छोटा बड़प्पन Archana Anupriya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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छोटा बड़प्पन

छोटा बड़प्पन

त्योहार के दिन थे और अमेजॉन से सबके लिए कपड़े,गिफ्ट्स वगैरह मँगवाये जा रहे थे।कोरोना की वजह से हर साल की तरह सबको बाजार ले जाकर उनके पसंद की चीजें खरीद पाना संभव नहीं था,तो रमेश जी ने अमेजॉन से ही सबके पसंद की चीजें मँगवाने की सोच ली।तीन वर्षीया गुड्डी के लिए लाल फ्रॉक और नन्ही सी नाचने वाली गुड़िया, बुजुर्ग माता-पिता के लिए कपड़े और किताबें, छोटे भाई के लिए कपड़ों के साथ म्यूजिक सिस्टम, पत्नी रमा के लिए खूबसूरत सी ड्रेस और पर्स,अपने लिए बढ़िया सा सूट और लैपटॉप..सभी अपनी-अपनी फरमाइशों का ऑर्डर करके खुश थे..बस एक रोहन ही था जो जिद पर अड़ा था कि उसे सिर्फ कपड़े और गिफ्ट्स ही नहीं, मिठाईयाँ, चॉकलेट्स, पटाखे,दीवाली के कैन्ड्ल्स भी चाहिए और वो भी डबल-डबल..।घर वाले समझा-समझाकर परेशान थे कि ऐसे मुश्किल वक्त में इतनी चीजें मत मँगवाओ,लेकिन रोहन था कि मानने को तैयार ही नहीं था।जिद पकड़कर बैठा था कि या तो मुझे हर चीज डबल-डबल मँगवाकर दो या फिर मुझे कुछ भी नहीं लेना है।

"बेटे घर में जो मीठी चीजें बनेगीं, वो भी तो मिठाई ही होगी न"- दादी ने समझाया।

"हाँ... तो वो भी रहेगा, पर मिठाई का बड़ा पैक और ढेर सारा चॉकलेट तो चाहिए ही.." रोहन ने मचलते हुए कहा।

अंततः रोहन की फरमाईशें मानकर उसने जो भी कहा,मँगवा दिया गया।

दो दिनों के बाद ही डिलीवरी ब्वॉय अमेजॉन से मँगवायी सारी चीजें दे गया पर उसमें रोहन की फरमाईश की चीजें नहीं थीं।पूछने पर पता चला रोहन अपनी चीजें ले गया है।

"ले गया तो है कहाँ ले गया है..?एक बार देखना तो पड़ेगा ही न कि सही चीजें आयीं कि नहीं..?"रमेश जी ने कहा।

सब रोहन को पुकार रहे थे पर रोहन घर में नहीं था।थोड़ी ही देर बाद वह बाहर के दरवाजे से आता दिखा।रमेश जी तो वैसे ही रोहन की जिद से चिढ़े बैठे थे, बाहर से आते देख आगबबूला हो गए-

"तुझे मालूम नहीं है कि अभी बाहर निकलना मना है..? लॉकडाउन लगा है,हम जरूरी चीजों के लिए बाजार जाने से परहेज कर रहे हैं और तुम बाहर घूम रहे हो..?कहाँ गया था..?कहाँ है अमेजॉन से आया तेरा सामान..?"गुस्से से रोहन की कान खींचते हुए रमेश जी ने पूछा।

"अरे,बच्चे को क्यों डाँट रहे हो, पहले पूछ तो लो, कहाँ और क्यों गया था..?"-दादाजी ने कहा।

"कहाँ जायेगा.. बस पैसे खर्चने हैं और अपनी मनमानी करनी है इसे...कहाँ से आ रहा है तू?"आँखें तिरेरते हुए रमेश जी ने पूछा।

डरा -सहमा रोहन दादी के पास जाकर खड़ा हो गया और कहने लगा-"अपने दोस्त बीनू के घर गया था... अमेजॉन से आयी हुई चीजें देने...फैक्ट्री बंद है तो उसके पापा की नौकरी चली गयी है न,इसीलिए..अब वो भी अच्छे कपड़े पहनेगा और दीवाली मना सकेगा..।"

वहाँ खड़े घर के सभी लोग अवाक होकर एक-दूसरे का मुँह देखने लगे।किसी के दिमाग में यह बात नहीं आयी कि उनके पास ही रहने वाले रोहन के दोस्त बीनू का क्या हाल है..किसी प्राईवेट कारखाने में नौकरी करने वाले उसके पिता की नौकरी चली गई है तो वे सब किस हाल में हैं या उन्हें भी आगे बढ़कर बीनू के पिता की मदद करके पड़ोसी धर्म निभाना चाहिए..ऐसा ख्याल केवल रोहन के ही दिल में ही आया। छोटे से रोहन का दिल कितना बड़ा निकला...रमेश जी का गुस्सा क्षण भर में ही फुर्ररर हो गया और उन्होंने आगे बढ़कर बेटे को गले लगा लिया।उसकी इस बड़प्पन से सबकी आँखें भर आयीं..सभी उसके आगे नतमस्तक थे।

अर्चना अनुप्रिया