अनपढ़ वैज्ञानिक Archana Anupriya द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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अनपढ़ वैज्ञानिक

"अनपढ़ वैज्ञानिक "

- अर्चना अनुप्रिया


कठुआ गांव के किसानों में खलबली मची हुई थी ।सभी किसान गांव के बीचोंबीच बने मैदान में बरगद के नीचे इकट्ठे हो गए थे। सबकी जुबान पर राधेश्याम का ही नाम था। सब हैरान थे कि अनपढ़, उम्र में छोटा और पैसे से तंग राधेश्याम ने बिना रासायनिक खाद के ऐसी उपज कैसे कर ली थी कि गांव की मंडी में उसकी हर उपज, चाहे गेहूं हो या फल-सब्जियाँ, सबसे महंगे दामों पर बिक रही थीं ….जबकि इतना पैसा और रासायनिक खाद लगाने के बाद भी बाकी किसानों को कोई फायदा नहीं मिल पा रहा था,उल्टा कई तो कर्जे में डूबे हुए थे।जो भीड़ पहले उनके गल्लों पर हुआ करती थी, पिछले दो वर्षों से वह भीड़ राधेश्याम के गल्ले पर जाने लगी थी।उस पर से आलम यह कि बड़े-बड़े व्यापारी राधेश्याम को अगली फसल के लिए भी बुक करने लगे थे।

जब तक पिता थे, राधेश्याम को अपनी जमीन तक पता नहीं थी। दिन भर यूं ही गांव के दूसरे बच्चों के साथ खेलता रहता था।स्कूल भी जाने से भागता था। लेकिन, पिता की मृत्यु के बाद कम उम्र में ही राधेश्याम बड़ा और जिम्मेदार हो गया था।

सारे पैसे बहन की शादी में खत्म हो गए थे और महंगी महंगी खाद खरीदने में मां का एकमात्र बचा हुआ सोने का चूड़ा भी बेच दिया गया था।घर मेंं गरीबी जैसी हालत थी। एक दो वर्षों तक तो राधेश्याम गांव के अन्य किसानों की मदद से खेती करता रहा,परन्तु,जल्दी ही उसने अपनी खेती अलग तरीके से करने की ठान ली। अगल बगल के गांवों में जाकर बड़े बूढ़ों से मिलकर उनके पुराने खेती के तरीके पूछता, टीवी देख कर और सरकारी मददगारों के पास जाकर ऑर्गेनिक खेती के तरीके सीखता।जल्दी ही उसने अपनी गायों के गोबर और पुराने तरीकों से देसी खाद बनाना और अग्निहोत्र विधि से फसलों की सुरक्षा करना सीख लिया और अपनी खेती देसी तरीके से करने लगा।अन्य किसान उसे इस प्रकार खेती करते देखते तो खूब हंसते और समझाते परन्तु, राधेश्याम ने अपने भरोसे को कायम रखा और ऑर्गेनिक खेती से ज्यादा फसलें उगा कर सबको हैरान कर दिया।

इसी बात को लेकर गांव के सभी किसान चर्चा करने बैठे थे। राधेश्याम को भी वहाँ बुलाया गया था। सबसे बड़ी उम्र और तजुर्बे के जगमोहन बाबू ने राधेश्याम से पूछा-"राधे जरा हमें भी तो कहो, क्या करते हो कि तोरी खेती हमरी खेती से ज्यादा पैसा कमाइत है।हम सब इतना पैसा लगावत हैं, तो भी कर्जा में आ जावत हैं...तू तो अपनी गिरवी जमीनों छुड़वाई लिए हो... हवन-उवन करके कोई जादू-टोना करत हो का?... ऐसा बात है तो हम सब तुमको छोड़ेंगे नहीं"..। वहां पर जमा सभी किसान चिल्ला उठे- "ऐसा होय त हम सब देख लेंगे तोहरा राधे"।

इस तरह सबको रोष में देखकर जिम्मेदार राधेश्याम तुरंत खड़ा हुआ। सब को शांत किया और कहने लगा-"ऐसा बात नहीं है।हम कोई जादू टोना नहीं करते हैं।तुम सब काहे नहीं समझते हो कि ज्यादा रसायन के उपयोग से मिट्टी खराब हो रही है,फसल खराब हो रही है, खर्चा हर साल बढ़ रहा है।यह तो मौलिक सिद्धांत है कि रसायन से उसके अंदर के वे कीटाणु नष्ट हो रहे हैं, जो हमरी मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं।जीवों को जित्ता जरूरत धरती की है, धरती को भी उत्ता ही जरूरत जीवों की होती है।गेहूं,धान और अन्य फसल काटने के बाद उसी खेत पर उसका सूखा अवशेष जलाते हो,यह पर्यावरण को दूषित करता है और खेत के जरूरी जीवों को भी जला डालता है जिससे खेत की उर्वरा शक्ति और पानी सोखने की क्षमता कम हो जाती है। हमरी परंपरा में हवन के द्वारा वातावरण को शुद्ध करने का रिवाज है, जिससे फसल को नष्ट करने वाले कीटाणु समाप्त हो जाते हैं।हवन में सूरज भगवान के आवाहन से फसल भी स्वादिष्ट होते हैं और उनमें बरक्कत भी आती है। मैं तो देसी खाद और देसी तरीका इस्तेमाल करता हूँ, जिसमें बहुत ही कम लागत लगती है। फसलों के अवशेष को जलाता नहीं हूँ बल्कि उसे काटकर अपनी जमीन पर बिखेर देता हूँ और वे खाद बन जाते हैं... काका, शहर में जाकर देखो, अब लोग रासायनिक चीजों के इस्तेमाल से बनी चीजें पसंद नहीं करते हैं... उसी से तो तरह-तरह की बीमारियां पैदा हो रही हैं.. ..रसायन से जित्ता फायदा होता है उससे ज्यादा तो उसका उपयोग हानि दे रहा है। सभी लोग अब देसी तरीके से उपजायी चीजें पसंद करते हैं और उसकी ज्यादा कीमत देते हैं। शहर में इसे ऑर्गेनिक खेती कहते हैं...तुम सभी ऐसा क्यों नहीं करते..? फिर देखो, हमरे पूरे गांव की कित्ती तरक्की होती है.....।"

सारे जमा किसान अवाक् होकर राधेश्याम की बातें सुन रहे थे। जिसे वह अनपढ़ समझकर हँसते थे, आज कितने काम की बात बता रहा था। सभी ने मन ही मन ऑर्गेनिक तरीके से खेती करने की ठान ली।आज अनपढ़ से वैज्ञानिक किसान ने सबकी आंखें खोल दी थीं और एक नया रास्ता दिखा दिया था।

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