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गृहस्थी के दल

"गृहस्थी के दल"


"आजकल दल बनाने का फैशन जोरों पर है। राजनीति का मैदान हो या घर का आँगन-सभी इसमें शामिल हैं"- यही बात मैंने कल अपने घर में खाने की टेबल पर कही तो सभी एक साथ मेरे ऊपर बरस पड़े - "तुम भी अजीब हो, भला राजनीति और गृहस्थी में कैसी समानता..?हाँ, राजनीति में आए दिन दल बनते बिगड़ते रहते हैं पर गृहस्थी को दलों और पार्टियों से क्या काम..?" मैंने अपनी सफाई में कई तर्क दिए और अपनी बात सिद्ध करने की कोशिश की पर सब बेकार... मेरी बात मानने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ। आप भी शायद यही सोच रहे होंगे कि गृहस्थी के आँगन में दलों,पार्टियों की बात मैंने कैसे और क्यों कह दी? पर, सच मानिए, मुझे ऐसे दो-एक दलों की तरफ से मेंबरशिप के ऑफर मिल चुके हैं... कुछ एक पार्टी की मीटिंग में मेरा गेस्ट अपीयरेंस भी हुआ है,इसीलिए मैं ऐसा कह रही हूंँ।गृहस्थी के शांत और निश्छल माहौल का राजनीति के स्वार्थ और आतंक से भरे वातावरण के साथ समानता स्थापित करने का दु:स्साहस करके मैंने अपने ऊपर जो काले धब्बे लगाए हैं, उसे धोने के लिए गृहिणियों द्वारा बनाई एक- दो विशिष्ट पार्टियों का राज खोलना मेरे लिए अत्यंत अनिवार्य हो गया है। "महिला मुक्ति मोर्चा" मुझे क्षमा करें।


गृहिणियों की पार्टियों में से एक, जो आधुनिकतम विचारों को लेकर बनाई गई है- वह है, किटी पार्टी। यहाँ पार्टी शब्द द्विअर्थी है। एक पार्टी वह, जहाँ खाने पीने की व्यवस्था हो और पार्टी का दूसरा अर्थ है वह, जिसका मतलब है दलबन्दी। इस शब्द के द्विअर्थी होने से गृहिणियों को गृहस्थी और समाज के बीच सामंजस्य बनाए रखने में आसानी होती है। दूसरा शब्द "किटी" अंग्रेजी शब्द है।इस शब्द का मतलब भले ही हिंदी शब्दकोश में "संयुक्त धन" हो या "बिल्ली का बच्चा" हो पर यह गृहस्थी की मासूम बिल्लियों मेरा मतलब है गृहिणियों की दलबंदी का आधुनिक नाम है। मेरे हिसाब से यह शब्द हिंदी के "कि"और अंग्रेजी के "टी"शब्दों से बना है,जिसमें"कि" का अर्थ है- "किसके घर"और "टी"का अर्थ है-" चाय"। हिंदी और अंग्रेजी का यह मिश्रण ही पार्टी के नाम और व्यवहार को आधुनिकता प्रदान करता है। "किटी" अर्थात्- "किसके घर चाय"? पर, जनाब चाय शब्द से आप पार्टी की गतिविधियों को सस्ती और हल्की मत समझ लीजिएगा। ऐसा तो कदापि नहीं है। पार्टी में शामिल होने वाले सदस्य इतने मामूली नहीं होते कि बात को चाय से ही टाला जा सके।सच कहती हूंँ। मैंने अपनी आँखों से देखा है। मुझे भी सदस्यता लेने को कहा गया था, पर मेरे तो हाथ-पैर फूल गए।


हुआ यूँ कि मैं अपनी एक सहेली ऊषा के घर उससे मिलने गई। बहुत दिनों से उसकी जिद थी कि मैं उसके घर आऊँ। उसके आग्रह को ध्यान में रखते हुए एक दिन मैंने जल्दी-जल्दी काम निपटाया और शाम बिताने उसके घर चली आई। लेकिन, वह रसोई में अत्यंत व्यस्त थी, इसलिए मुझसे बहुत गर्मजोशी के साथ नहीं मिली। कहने लगी-"आज घर में किटी पार्टी रखी है। दरअसल, इस बार मेरा नंबर लगा था, इसीलिए कभी तो करनी ही थी, सो आज ही बुला लिया। अब तुम आ ही गई हो तो पार्टी अटेंड करके ही जाना।" मैंने भी इस किटी पार्टी के विषय में काफी सुन रखा था परंतु उसके विषय में कुछ ज्यादा पता नहीं था, इसीलिए नंबर लगने का अर्थ मेरी समझ में नहीं आया। पूछने पर पता चला कि लॉटरी के द्वारा नाम निकाला जाता है कि अगली बैठक किसके घर हो? नाम निकलने पर सभी सदस्य पैसे इकठ्ठे करके उसे ही दे देते हैं। फिर, अनुकूल दिन वह उन पैसों से बैठक और खाने-पीने का इंतजाम करती है। आज वही ऊषा का नंबर था। सुनकर मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई कि देखूँ, इस पार्टी में भला होता क्या है? सोचा पूछूँ, पर पता नहीं क्या सोच कर चुप रह गई।

तीन बजे से पार्टी शुरू होनी थी सो ढाई बजते ही सदस्यों का आना शुरू हो गया। ऊषा काम निपटा कर कपड़े बदलने चली गई थी। पार्टी में आने वाली महिलाओं की वेशभूषा और रूप सज्जा देखकर तो मैं दंग ही रह गई। एक से बढ़कर एक हेयर स्टाइल और तरह-तरह के मेकअप। अच्छी खासी उमरदार स्त्रियाँ थीं...किसी ने जींस पहन रखी थी तो किसी ने मिडी ... कोई आकर्षक कीमती सलवार-कुर्ते में थी तो कोई चूड़ीदार और टॉप में। एकाध ने भूल से साड़ी पहन ली थी पर उनके ब्लाउज इतने छोटे और तंग थे कि वह पूरी तरह से उस ग्रुप में मिक्स हो जा रही थीं। उन सभी महिलाओं की खुली बाहें,घुटने से ऊपर तक की चुस्त मिडी और अधखुले कंधे उनके मॉडर्न होने के प्रमाण थे। सभी महिलाएँ ड्राइंग रूम में आ चुकी थीं।ऊषा अभी तक नहीं आई थी, अतः मैं उसे बुलाने अंदर के कमरे में गई। अंदर वातावरण बिल्कुल गरम था। घर के सभी बच्चों, उनके साथ खेलने आए साथियों और काम करने वाले नौकरों को कड़ी हिदायत दी जा रही थी कि किसी भी किस्म का शोर बाहर नहीं आना चाहिए, न ही मेहमानों के जाने तक उन पकवानों में से बच्चों को कुछ मिलेगा। घर के मुख्य नौकर को यह अधिकार दिया गया कि अगर बच्चे शरारत से बाज न आएँ, तो उन्हें कमरे में बंद करके बाहर से ताला लगा दिया जाए।

सब कुछ चुस्त-दुरुस्त करके ऊषा ड्राइंग रूम में पहुँची।सभी महिलाएँ उसे देखते ही कहने लगीं-- "क्या बात है, मेजबान ही गायब है..? भई,हम तो कब से आकर बैठीं हैं।" ऊषा ने क्षमा मांगते हुए कहा-- "सॉरी यार, थोड़ी देर हो गई।इन बच्चों के मारे तो कोई क्रिएटिव वर्क हो ही नहीं पाता है।" फिर, हँसते हुए सब से मेरा परिचय कराया-- "यह हैं,मैसेज नीलिमा देसाई, मेरी सबसे अच्छी सहेली।" सब ने मुझे "हेलो" कहा पर वे मेरे इस परिचय से ज्यादा संतुष्ट नहीं दिखीं। सभी यह जानने में उत्सुक थीं कि मेरे पति क्या करते हैं? जब उसने बताया कि मेरे पति एक आई.ए.एस. ऑफिसर हैं और इस शहर के कलक्टर हैं, तब अचानक ही सब मुझमें दिलचस्पी लेने लगीं। "आपने पहले क्यों नहीं अपना परिचय दिया... मिस्टर देसाई तो मेरे हस्बैंड के बड़े अच्छे परिचित हैं"-- उनमें से एक ने कहा। "आप भी हमारी किटी ज्वाइन कर लीजिए ना"-- तभी पीछे से आवाज आई। "अरे,ज्वाइन क्या करना है, यह तो आज से ही हमारी पार्टी की मेंबर हो गईं।" सुनकर, मैं तो घबरा ही गई। तुरंत कहा," नहीं,नहीं..मैं थोड़ा सोच कर बताऊँगी।आखिर इनसे भी तो पूछ लूँ।".."सुनकर सभी ने थोड़ा बुरा सा मुँह बनाया,"ओह कम ऑन मिसेज देसाई, डोंट साउंड लाईक एन ओल्ड फैशन्ड वुमन,वी आर टूडेज वुमन,स्मार्ट एंड इन्डीपेन्डेंट"... सबको लग रहा था कि एक कलक्टर की पत्नी होकर भी यह कितने पुराने ख्याल की है, पर मुझे नाराज नहीं करना चाहती थीं, इसलिए मेरे सामने मुस्कुराती रहीं-"ओके, मिसेज देसाई, एज यू विश"। मैं कुछ कहती,तब तक ड्रिंक्स आ गए थे,इसीलिए सब उसमें व्यस्त हो गयीं। नींबू पानी से लेकर व्हिस्की तक- सभी कुछ का इंतजाम था। मैंने थम्सअप की एक बोतल ली और अलग कोने में जाकर बैठ गई।फिर शुरू हुई ताश की बाजी और साथ में दूसरों की शिकायतों का दौर...फलां की बेटी ने कैसे लव मैरिज कर ली,फलां के हस्बैंड का घर की नौकरानी के साथ क्या लफड़ा है,फलां की पत्नी कैसे कंजूसी करती रहती है….वगैरह वगैरह...। पार्टी की जोरदार डिस्कशन के बाद शुरू हुआ नाश्ते का दौर।आखिर बोलते रहने से भूख तो लगती ही है। कहने को तो सभी औरतें डायटिंग ही कर रही थीं पर नाश्ते को सभी ने खाने की तरह खाया। इसी बीच मैं अंदर प्लेटें रखने गई तो देखा कि बच्चे खिड़की में चुपचाप बैठे जाती हुई भरी प्लेटें और आती हुई खाली प्लेटें देख रहे थे।मुझसे रहा नहीं गया, तुरंत रसोई में गई पर वहाँ सभी कुछ लगभग समाप्त सा था।मुझे ऊषा पर इतना गुस्सा आया कि क्या बताऊँ। मैं नौकरों से कहकर सभी बच्चों को अपने घर ले आई, अंदर जाकर इजाजत भी नहीं ली।कौन भला उस आग में हाथ डालता। उस दिन के बाद से कई दिनों तक मुझे किटी पार्टी में मेंबर बनने के ऑफर आते रहे पर मैंने साफ इनकार कर दिया।


इसी बीच मुझे महिलाओं के एक और दल में शामिल होने का अवसर मिला। वह था- "कीर्तन दल"। दरअसल, हमारे पड़ोस की मिसेज विमल कुमार को भगवद् कीर्तन में बहुत रुचि है। अक्सर उनके यहाँ स्वाध्याय का प्रोग्राम या कीर्तन- गान का प्रोग्राम होता रहता है। मुहल्ले भर की प्रौढ़ और वृद्ध औरतें इकट्ठी होती हैं।कई तो दूर-दूर से भी आती हैं। वैसे तो यह बैठकी लगभग हर हफ्ते होती- कभी किसी के घर पर,कभी पास के हनुमान मंदिर में तो कभी किसी आश्रम में।खबर तो मुझे हो ही जाती थी पर मैंने कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई। लेकिन, एक दिन जब मिसेज विमल कुमार खुद आकर कीर्तन में आने का आमंत्रण दे गयीं, तो मुझे जाना ही पड़ा। मैंने भी सोचा, सारा दिन घर के अच्छे-बुरे कामों में फँसी रहती हूँ, चलकर थोड़ा भगवद् भजन कर लूँ तो मार्गदर्शन मिले। सुबह आमंत्रण देते समय मिसेज विमल कुमार ने ईश्वर के प्रति मानव-कर्तव्यों पर इतना जोरदार भाषण दिया था कि मेरा मन भी ईश्वर के प्रति कर्तव्य निभाने को लालायित हो गया। काम निपटा कर,धुले साफ-सुथरे कपड़े पहन कर मन में ईश्वर का ध्यान करती हुई मैं घर से निकली।कीर्तन पास के ही मंदिर के प्रांगण में था। वहाँ पहुँची तो देखा,वहाँ लगभग सभी महिलाएँ पहुँच चुकी थीं। एक तरफ ढोलक, मंजीरा, हारमोनियम वगैरह रखा था। वहीं पास में एक चौकी पर भगवान श्री कृष्ण की फोटो रखी थी। सामने अगरबत्तियाँ जल रही थीं। मैंने मन ही मन तस्वीर को प्रणाम किया और वही झुंड में एक तरफ बैठ गई।थोड़ी ही देर में कीर्तन शुरू हुआ। एक दो भजनों के बाद कुछ महिलाओं ने मुझे एक भजन गाने को कहा। ईश्वर भक्ति में डूबी मैं याद करने लगी कि कौन सा भजन गाऊँ,तभी श्वेत वस्त्रों में लिपटी वृद्ध सी दिखने वाली एक महिला ने बगल में बैठी दूसरी महिला से पूछा-"आज राधिका बहन नहीं दिख रही है। क्यों नहीं आई वह..?" दूसरी ने फौरन जवाब दिया- "क्या आएगी बेचारी, घर के कामों से उसे फुर्सत ही नहीं मिली होगी... बहू महारानी जी निकली होंगी कहीं शॉपिंग करने..।" एक तीसरी महिला ने हमदर्दी दिखायी- "हाय,बेचारी को बुढ़ापे में भी आराम नहीं है...सच बहन,आजकल की बहुएँ बड़ी नालायक होती हैं... एक हमारा जमाना था, सास के सामने जुबान नहीं खोलती थीं हम.. हर आज्ञा, जैसे ब्रह्म-वाक्य"..। इतना सुनना था कि वहाँ बैठी सभी वृद्धाओं को अपनी जवानी के दिन याद आ गए और सब की सब एक-एक कर शुरू हो गयीं। भगवद् भजन की जगह बहू- कीर्तन शुरू हो गया ।किसकी बहू ने सास ससुर को घर से बेघर कर दिया, किसने कैसे पति को कब्जे में कर रखा है, किसके घर नौकरानी नहीं टिक पाती है... वगैरह-वगैरह..। अगरबत्तियाँ जलती रहीं, कीर्तन चलता रहा। मेरी तो सांप- छछूंदर की सी हालत हो गई ।अगर उठ कर चली जाऊँ तो मैसेज विमल कुमार को बुरा लगेगा और बैठी रहूँ तो फालतू की बकवास सुननी पड़ेगी... वैसे भी वृद्धाओं की उस कीर्तन मंडली में बहू स्तर की एक मैं ही दिख रही थी। इसीलिए,अंदर से जरा घबराहट भी थी। आखिर अच्छे पड़ोसी होने का फर्ज तो निभाना ही था,सो थोड़ी देर तक सोचने के बाद मुझे एक उपाय सूझी।मैं फौरन उठकर हारमोनियम पर बैठ गई और एक भजन गाने लगी- "पायोजी मैंने,राम रतन धन पायो"... अचानक गाना शुरू होने से एक पल के लिए खामोशी सी छा गई।कुछ को मेरा गाना पसंद आया और वे शांत होकर सुनने लगीं परन्तु, कुछ को बहू-कीर्तन में ही ज्यादा रस आया और वे फिर से शुरू हो गयीं।मेरा गाना खत्म हुआ तो महिला मंडली भी उठ खड़ी हुई ।प्रशाद वितरण होने लगा। मैंने भी जल्दी से प्रशाद लिया और मिसेज विमल कुमार को बता कर जल्दी ही घर रवाना हुई।


इन दोनों तरह के दलों के कटु अनुभव के बाद,आप ही बताइए कि पार्टी बनाने के मामले में मैंने गृहस्थी को राजनीति से जोड़कर क्या गलत किया है..? कभी-कभी सोचती हूँ कि राजनीति में तो दलों का निर्माण होता है देश और सरकार चलाने के उद्देश्य से...परन्तु औरतों को यह क्या सूझी है कि खुद को ग्रुपों और दलों बाँध लिया है?...शायद उनका उद्देश्य यह है कि दिनभर के तनाव को एक जगह इकठ्ठी होकर, हँस-बोलकर हल्का कर लें।पर क्या वे इस उद्देश्य में सफल होती हैं या आपसी नये तनाव को जन्म दे देती हैं ? पता नहीं...अपने अनुभवों को ध्यान में रखते हुए मैं तो निर्दलीय होना पसंद करुँगी...आपका क्या ख्याल है..?

अर्चना अनुप्रिया


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