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आखिर क्यों ?

ज़िंदगी में कुछ तारीखें ऐसी होती हैं जिन्हें याद करके दिल उदास ओर उद्वेलित हो जाता है । आज यानी 14 जून को टीवी और फिल्मों के मशहूर अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत को गुज़रे एक साल हो गया. इसी तारीख को बीते साल सुशांत ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. फर्श से अर्श तक पहुंचने की मिसाल थे सुशांत।

कभी टी वी की दुनिया से कैरियर की शुरुआत करने इस एक्टर ने वक़्त के साथ खुद को प्रतिभाशाली साबित किया कि वो फिल्मों का लीड एक्टर बन गया. आज सुशांत की पहली बरसी है।

दुनिया चलाचली का मेला है । एक बार किसी अपने ने कहा था कि यह दुनिया बड़ी स्वार्थी औऱ कमीनी होती है । किसी के चले जाने से कुछ नही रुकता है ।सबके काम होते रहते है ।कुछ लोग तो मृत्यु को भी उत्सव बना लेते है। शोक की अवधि अब चौथे तक की ही रह गयी है ।अब लोग तेहरवीं तक भी इंतज़ार नही करते ।

गीता में सही ही कहा गया है यह देह तुम हो तो आत्मा कौन है ,अगर आत्मा तुम हो तो यह शरीर किसका है । सब देह की मोहमाया है ।कोई आपकी आत्मा के अच्छे होने को प्यार नही करेगा । सब आपकी देह से जुड़े स्वार्थ पूरित कार्यों से प्यार करेंगे ।

यह देह जब मृत्यु का वरण स्वयं करती है तो उसके पहले कितने संकेत देती है । लोग उस समय उन संकेतो को अनदेखा कर देते है । जब देह निष्प्राण होजाती है तब एक हाहाकार मचाता कोलाहल मचता है कि काश हम से कहा होता ।हमें कभी कुछ नही बताया,हमसे बात तक नही की।अचानक कैसे कब क्या उनके मन मे आया । काश कुछ बताते तो ...

मौन मार देता है ,अकेलापन मार देता है ,अपेक्षा उपेक्षा औऱ तिरस्कार का भय मार देता है । कुछ रिश्ते चाहे खून के हो या दोस्ती के उकसाते भरमाते है कि अब तुम कुछ नही हो । ख़ुद्दारी मार देती है ,वैराग्य मार देता है , अवसाद की लम्बी अवधि मार देती है और लोग जो साथ होने का दावा करते है वो कहते है ....काश हमें बताया होता .....

अपराध बोध भी नही रहता आसपास बने रहते लोगो को कि उनकी जरा भी केअर से किसी की ज़िंदगी तो न जाती। दान पुण्य सैर सपाटे औऱ वैभव पर बेतहाशा खर्च करने वाले लोग सिर्फ स्वस्थ लोगो के साथ रहते है ।मृत्यु एक शाश्वत सत्य है लेकिन किसी को मृत्यु को गले लगाने को उत्प्रेरित करना सबसे बड़ा पाप।

आज़कल पाप पुण्य आउट ऑफ फैशन में है ।

सुशांत सिंह राजपूत मेरा प्रिय एक्टर एक बरस हुआ और कोई नही जान पाया कि तुम्हारा कातिल कौन है ? तुम्हारा कोई एक कातिल नही है तुम्हारे आसपास का समाज है । तुम्हारे अपने लोग भी है तो तुम्हारे दोस्त भी ।तुम्हारे शब्दो का सार कोई नही समझ पाया।

किसी का कुछ नही गया तुम्हारे जाने से , सिवा उन बहनों के जिन्होंने तुम्हारे लिए राखी भेजनी होती थी । तुम्हारे पिता को जिनको तुम्हारे जन्म दिवस का एक एक पल रोमांचित करता था ।

ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे। कहते है आत्महत्या करने वाले के लिए लाख बार मुक्ति हवन करवा दो।उसकी आत्मा भटकती रहती है तो इस दुनिया मे ही भटक लेते है न...लड़ जाते सबसे। अलग कर देते नासुरो को अपनी जिंदगी से।

सुशांत सिंह राजपूत .......एकबरस हुआ तुम नही रहे ....दुनिया चल रही है तुम्हारे बिना भी जैसे तुम्हारे होने पर चलती थी । चंद लोगो की सांसें बस अटकी है तुम्हारी यादों में।काश तुम लौट कर अपने अपनों के उन चेहरों को देख पाते .......

Neelima sharma

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