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अपना अपना कोना

अपना अपना कोना

सोफे पर पीठ टिकाये निशा ने आँखे मूँद ली|पर आँखे मूँद लेने से मन सोचना तो बंद नही करता न | मन की गति पवन की गति से भी तेज होती हैं |एक पल मैं यहाँ तो दुसरे ही पल सात समंदर पार |

यह सोचे भी ना कितनी अजीब होती हैं |एक पल में अतीत के गहरे पन्नो की परते उधेड़ कर रख देती हैं तो दुसरे ही पल में भविष्य के नए सपने भी देखना शुरू कर देती हैं . निशा का मन भी उलझा हुआ था अतीत के जाल में . तभी फ़ोन की घंटी बजी

" हेल्लो "

"हाँ जी बोल रही हूँ "

"जी"

"चरणस्पर्श आपको "

"जी "

" जी अच्छा"

" मैं उनको कह दूँगी "

"आपने मुझसे कह दिया तो मैं सब इंतजाम कर दूँगी ""

"विश्वास कीजिये मैं आप को अच्छे से अटेंड करुँगी आप आये तो घर| यह घर आपका ही घर हैं "

" यह तो शाम को ही घर आएंगे इनका सेल फ़ोन भी घर पर रह गया हैं "

"आप शाम को 7 बजे के बाद दुबारा फ़ोन कर लीजियेगा "

"जी चरण स्पर्श "

फ़ोन रखते ही पहले से भारी मन और भी व्यथित हो उठा जब मन उद्वेलित हो और उस पर वही इंसान बेबात की बाते करने लग जाए जिसकी वज़ह से मन परेशान हैं |तो मन का ज्वालामुखी भीतर सुलगने लगता | मुहाने से तब यदा कदा लावा निकलने लगता और उसकी गर्म राख कई घंटो तक घर के माहौल को संतप्त रखती हैं |

एक नारी जितना भी कर ले पर उसकी कोई कदर नही होती हैं | सुबह सुनील से निशा की बहस भी उसकी बहन को लेकर हुई थी | यह पुरुष लोग अपने रिश्तो के प्रति कितने सचेत होते हैं ना | स्त्री के लिए घर आने वाले सब मेहमान एक से होते हैं | परन्तु पुरुषो के लिय अपने परिवार के सामने उसकी स्त्री भी कुछ नही होती,न ही अपना घर , तब खाने के स्पेशल व्यंजन होने चाहिए ,घूमना फिरना होना चाहिए पिक्चर बाजार सब मनोरंजन उसको याद आजाते | पैसे पैसे को दाँत से पकड़ने वाला पति तब धन्ना सेठ बन जाता हैं पत्नी दिन भर खटती रहे पर उसपर अपने परिवार के सामने एकाधिकार एवेम आधिपत्य दिखाना पुरुष प्रवृत्ति होती हैं |

सुनील की बहन रेखा सर्दी की छुट्टियाँ बिताने के लिय उनके शहर आने वाली थी सुनील चाहता था कि उनका कमरा एक माह के लिए उनकी बहन को दे दिया जाए | निशा इस बात के लिए राजी नही थी पिछली बार भी दिया था उसने अपना कमरा दीदी को रहने के लिए .....

दिन भर आरामतलबी से रजाई में पड़े रहना | पलंग के नीचे मूंगफली के छिलके , झूठे बर्तन , गंदे मोज़े निशा का मन बहुत ख़राब होता था | काम वाली बाई भी उनके तीखे बोलो की वज़ह से उस कमरे की सफाई करने से कतराती थी . निशा के लिए सुबह स्नान के लिए अपने एक जोड़ी कपडे निकलना भी मुश्किल हो गया था तब .. उनके जाने के बाद जब निशा ने अपना कमरा साफ किया तो तब जान कर हैरान थी कि उसके कमरे से अनेक छोटी छोटी चीज़े गायब थी |उसके कई कपडे , बिँदिया , पलंग के बॉक्स से चादरे और बहुत कुछ तो उसको याद भी नही |

मन खट्टा हो गया था उसका पिछले बरस कि अबकी बार आएँगी तो इनको अपना कमरा बिलकुल नही दूँगी |लेकिन सुनील बात मान लेने को तैयार ही न था इस बार उनकी बहन बच्चो के छोटे कमरे में रहे |

" तकिये के कवर बदलती निशा का मन अतीत में जाता हैं अक्सर . मायका तो उसका भी हैं वोह कभी दो दिन से ज्यादा के लिए नही गयी सुनील का कहना हैं ....

".रही नही क्या 22 साल उस घर में

अब भी तुम्हारा मन वहां ही क्यों रमता है ?

अपना घर बनाने की सोचो बस !!

अब यही हैं तुम्हारा घर ..."

अब .जब भी जाती हैंमायके तो अजनबियत का अहसास रहता हैं वहां , माँ बाबूजी उम्र के उस पड़ाव पर हैं जहा उनके शब्दों का कोई मोल नही अब , जैसा बन जाता हैं खा लेते हैं |. बच्चे अगर जरा भी नखरे करे निशा ही उनको आँखे तरेर कर चुप करा देती हैं | वापिस चलते वक़्त माँ मुठ्ठी में बंद कर के कुछ रुपये थमा देती हैं और एक शगुन का लिफाफा 4 भाइयो की बहन को कोई एक भाभी " हम सबकी तरफ से " कहकर थमा देतीहैं \\ वो भी अंदाज़ से उनसे ज्यादा ही भाइयो के बच्चो को थमा आती |भाइयो के बचचो को अगर बुआ नेग ना डे तो माँ का जीना दुभर हो जाता ............न कुछ बोलने की गुंजाईश होती हैं न इच्छा .

किस्मत वाली होती हैं न वोह लडकिया जिनको मायका नसीब होता हैं जिनके मायके आने पर खुशिया मनाई जाती हैं , माँ की आँखों में परेशानी के डोरे नही खुशी के आंसू होते हैं | यहाँ तो मायके से आया फ़ोन ही दिल धड़क जाता कि जाने किसका किसके संग झगडा हो गया |अब माता पिता ने किसकी पत्नी को टोक दिया जो भाई उसको बाते सुनाना चाहते |

विचार जब मन में चलने लगते तो उनकी गति बहुत तेज होती| मायके ससुराल सखियों को याद करते करते उनके मन कभी आंसू पीते तो कभी समंदर भर आँखों को छलका जाते |

मन को झटक कर उसने माँ को फ़ोन मिलाया तो माँ उसकी आवाज़ सुनते हो रो दी | बार बार पूछने पर उसने माँ ने कहा कि भाई ने कहा कि अपनी बेटियों से कहे इस बरस मायके ना आये | इस बरस उसको ससुराल वालो को छुट्टियों में बुलाना हैं | हो सके तो माँ भी बाबु जी को लेकर कुछ दिन को किसी बेटी के घर चली जाए | कितना मुश्किल होता हैं ना माँ की आँखों में आंसू देखना और उसकी रोती हुयी आवाज़ में बेबसी भरी बाते सुनना |माँ को दिलासे देकर उसने चुप कराया और धीरे धीरे उनको बहु के हिसाब से एडजस्ट करने की सलाह दी | क्या करती आखिर माँ को अपने घर नही ला सकती थी कुछ माता पिता की दकियानूसी पुरानी सोच और कुछ सुनील का स्वभाव

तकिये के कवर बदलकर उसने चादर झाड़कर नीचे गिरा रिमोट उठाया और टी.वी ओन कर दिया

टी वी पर सुधांशु जी महाराज बोल रहे थे बहनों को जो मान -सम्मान मिलता हैं जो नेग मिलता हैं उसकी भूखी नही होती वोह बस एक अहसास होता हैं कि इस घर पर आज भी मेरा हर बात में हक हैं बेटियाँ नियामत होती हैं बेटे तब तक अपने जब तक अविवाहित लेकिन बेटियाँ तो उमरभर मायके की फ़िक्र करती |सच ही तो कह रहे थे महाराज जी |उसने कभी इन प्रवचनों में विश्वास न किया लेकिन आज बात दिल तक पहुंची |

पिछले ही बरस मार्च में जब पापा नही रहे थे तो इन्ही दीदी ने उसे कितना मानसिक संबल दिया था |रोजाना कॉल करती थी घंटो बचपन के किस्से सुनाकर मन बहलाए रखती थी | उसके जन्मदिन पर सुनील से जिद करके उसने उसे दो दिन के मंसूरी घुमने भेजा था और खुद ऑनलाइन आर्डर करके केक बुके भेजा था | छोटी छोटी खुशियाँ छोटे छोटे सामान ग़ुम हो जाने के सामने क्या मायने रखती थी | अपने गमो और मायके के सामने उसेकम पढ़ी लिखी मोटी सी दीदी उसे गौण सी नजर आती थी | आज उसकी अपनी कम पढ़ी लिखी भाभी ने उसको आइना दिखा ही दिया कि रिश्ते पैसे /रुतबे / व्यवहार से चलते ना कि शिक्षा के स्तर से |

निशा ने झट से आंसू पोंछे , फ़ोन उठाकर सुनील को उनके दूकान के नंबर पर काल किया

"सुनो जी , बाजार से गाजर लेते आना , निशा दी कल शाम की ट्रेन से आ रही हैं गाजर का हलवा बना कर रख दूँगी उनके चुन्नू को बहुत पसंद हैं "

कमरे की सफाई करते हुए निशा सोचने लगी |ना जाने रेखा दीदी ससुराल में किन परिस्तिथियों में रहती होगी कैसे कैसे मन मारती होगी छोटी छोटी चीजो के लिए | ननदोई जी का आशिकाना और उज्जड स्वभाव सब जानते .दीदी को उन्होंने कभी पत्नी वाला सम्मान नही दिया | और दीदी सुनील की एकलौती लड़की बहन जिसे अपने रूप की वज़ह से मात्र सोलह बरस की उम्र में ब्याह दिया गया था कि अच्छे पैसे वाले घर का रिश्ता आया हैं |शायद यहाँ आकर उस पर अपना आधिपत्य दिखा कर उनका स्व संतुष्ट होता होगा |उनका भी रौब चलता किसी पर |.

छोटी छोटी बातो को नजरंदाज़ करना उसको आना चाहिए जब वो मायके में भाभियों की इतनी बाते नजरंदाज कर जाती तो ससुराल में उसे सिर्फ पति के अलावा और कोई क्यों नही नजर आता |

आ जाए इस बार दीदी मायके और रहे यहाँ ख़ुशी ख़ुशी |

कम से कम किसी को तो मायका जाना सुखद लगे और खुश रहे उसके मन का रीता कोना !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

नीलिमा शर्मा

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