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कोई रिश्ता ना होगा तब

कोई रिश्ता ना होगा तब

नीलिमा शर्मा निविया

नहीं !! नहीं !! ऐसा नहीं कर !!!”

बदहवास होते हुए सुमन अचानक नींद से जागी. मार्च के महीने में भी सुमन बदहवास सी पसीने से लथपथ थी. बहुत अजीब सपना देखा था उसने. चारो तरफ नजर दौडाई तो सिर्फ सन्नाटा था. हाथ आगे बढाकर उसने बत्ती जलाई. पीले बल्ब की रौशनी में उसने देखा सुबह के चार बजे थे.

सुबह के सपने सच होते है उसने अक्सर ऐसा सुना था तो क्या उसका ऐसा सपना.... सच... हो जायेगा. घबराहट की मारे उसकी धड़कन बढ़ गयी. किसको कहे यह अपना सपना कोई भी नही सुनेगा कोई विश्वास नही करेगा यह तो उसे मनोरोगी करार देंगे. पहले भी सीधे मुंह बात नही करते हैं....

झटके से कम्बल को परे फेंक कर उसने खिड़की खोल दी. ठंडी हवा के झोंके ने जैसे अंदर एक शान्ति भरने का प्रयास किया हो. सुबह ठंडी और अँधेरी थी लेकिन पहाड़ी जगह पर सुबह कुछ जल्दी होती हैं इसलिए धुंधलका छटने लगा था. खिड़की से नीचे तक का मंजर दिखने लगा था. गहरी खाई के साथ बलखाती पहाड़ी नदी जिसमे आजकल पानी कम था लेकिन पत्थर अब भी मुंह बाए सर उठाकर प्रश्न कर रहे थे मानो पूछ रहे हो कब तक आखिर हमें पानी के थपेड़े सहकर ऐसे ही खड़े रहना हैं. हमें भी रेत के कणों सा बिखर कर समंदर में एकाकार होना हैं।

सुमन ने ठन्डे पानी से चेहरे पर पानी के छपाके मारे और उस परिदृश्य से बाहर निकलने की कोशिश की, जहाँ वह सपने में......

उफ़ !! कान बंद कर लिए उसने और आँखे बंद करके झट से खोल दी, “यह सपना कभी सच ना हो “ ईश्वरको मनाते हुए मन ही मन बोली।

चाय का कप हाथ में लिए वह फिर से अपने कमरे में लौट आई और रेडियो ओन कर दिया.

रेडियो पर गाना बज रहा था. एक अजीब सा आक्रोश, अजीब सी घुटन कुछ न कर पाने की विवशता उसको अपने चारो तरफ लपेटे थी. अतीत की किरचे उसे हर तरफ से चुभने लगी और मन याद कर रहा था बीते लम्हों को।

एक प्राथमिक विद्यालय की सहायक अध्यापिका सुमन जब स्कूल में बच्चो को हिम्मत और बहादुरी का पाठ पढ़ाया करती थी तो एक जोश भरी आवाज़ निकलती थी. कितनी चाह थी उसको कि पढ़ - लिख कर डॉ बने परन्तु घर के सीमित साधनों ने उसके सपनो की उड़ान को सिर्फ कल्पनाओ में ही खुश होने दिया और न चाह कर भी पिता ने उसको बी टी सी करायी कि शर्तिया सरकारी नौकरी मिलेगी उसका भविष्य सुरक्षित रहेगा.

देहरादून शहर से बहुत दूर सहिया के पास बहुत ऊंचाई पर स्तिथ अलसी ग्राम में उसको पहली पोस्टिंग मिली ।मैदानी इलाके की सुमन को इतने ऊँचे पहाड़ पर जाना ही बहुत मुश्किल लगा,परन्तु पिता के दबाव और सरकारी नौकरी की सामाजिक इज्जत की वजह से उसको जाना ही पड़ा. |

कितना अकेलापन सा लगता था उसको वहाँ,पहाड़ो पर सन्नाटा कुछ अधिक ही गूंजता हैं. चिडियों की चहक प्रकृति का सुन्दर सानिध्यजहाँ सबको अपना बना लेता है वहीं अभिराम दृश्य मन में जगह बना लेते हैं | जब सपने पूरे न हो और वर्तमान को सच मान कर जीने की कोशिश करने लगो तो अकेलापन भी वरदान लगने लगता है।

अब सुमन माह में एक बार देहरादून आती थी. धीरे धीरे उसने अलसी में मन लगा लिया. समीप के एक घर में ही रहकर उसने ग्राम की सब बड़ी और समवयस्क महिलाओ से मित्रता कर ली. समय पंख लगा कर उड़ने लगा. पहाड़ जितने ऊँचे होते हैं वहाँ रहने वालो की ख्वाहिशे और उम्मीदे उतनी ही छोटी. कम में ही खुश रह जाने वाले भोले से लोग कितनी जल्दी अपना बना लेते हैं यह वहाँ रहने वाले ही जान सकते हैं समय बीत रहा था साथ ही उम्र भी हर बरस नए पायदान पर पांव रख आगे बढ़ती चलती जा रही थी.

छुट्टियों में देहरादून जाकर लम्बे समय तक रहना और 4 छोटी बहनों के साथ उनकी छोटी -छोटी इच्छाएं पूरी करना उसके अतृप्त मन को संतुष्ट करता था. छोटी बहन का सुंदर रूप देख कर पड़ोसी वर्मा जी ने अपने बेटे के लिए रिश्ता मांग लिया था लेकिन सुमन का विवाह नहीं हुआ था. इसलिये माता पिता ने उसके विवाह से पहले तक रुकने के लिए वर्मा जी को मना लिया।

उसके विवाह के लिय अब उचित वर की तलाश थी. शादी ब्यूरो वाली बबली ने राजीव का रिश्ता सुझाया और राजीव अपने परिवार के साथ उसको देखने आये. सांवला सा ऊँची कद- काठी वाला राजीव उसको एक नजर में ही अपना सा लगा था। उस पर उसकी केन्द्रीय सरकार के आधीन नौकरी घर भर के लिय सबसे बड़ा आकर्षण थी. घर /परिवार के साथ अब आस- पास के लोग उसके भाग्य को सरहाने लगे ।

राजीव की माँ उसकी बलाए लेते नही थक रही थी. अपनी गोरी चिट्टी चाँद सी बहू में उनको कभी लक्ष्मी नजर आ रही थी तो कभी अप्सरा. अब तो सुमन को भी आईने के सामने सवाल उठाने को विवश होना पड़ा कि क्या वह सच में इतनी सुंदर हैं ? कांवली रोड के नाथ पैलेस में धूम धाम से दोनों का विवाह संपन्न हुआ.

एक माह के मधुमास के पश्चात वो अलसी लौट आई. पति उसके बिना अकेले महसूस करने लगे| नयी नयी शादी के बाद के दिन वैसे भी मन कहाँ एक-दूसरे के बिना लगता हैं | पति ने कुछ हजार रूपये की रिश्वत देकर कुछ सिफारिश लगाकर उसका ट्रांसफर सहसपुर करा लिया. अब उसका नया रूटीन शुरू हो गया | अब रोजाना सुबह बस से जाना. स्कूल ख़तम होते ही लौट आना, सब खुश थे

जिन्दगी को जैसी जीने की वज़ह मिल गयी थी |

समय पंख लगाकर उड़ रहा था बहुत खुश थी सुमन राजीव को पाकर,परन्तु समय के साथ साथ सास का लहजा बदलने लगा कि विवाह को आठ माह होगये अभी तक कोई खुश खबरी ही नही,आखिर राजीव उनकी एकलौती संतान थी .

सुमन भी अब माँ बनना चाहती थी. उसका भी मन करता था कि उसकी गोद में भी एक प्यारा सा बच्चा हो. जब भी वह इन ख्यालो में खो जाती तो उसको अपनी बाहों में एक प्यारी सी बिटिया ही दिखती थी लेकिन उसने कभी अपने मन के सपने किसी के सामने बयां नही किये | राजीव भी अब अक्सर बच्चो की तस्वीर देख मुस्कुरा देते।

ईश्वर ने एक दिन उसकी पुकार सुनी | और प्रेगनेंसी टेस्ट में जब पॉजिटिव आया तो मौसम फिर से बसंती हो गया था जो हलके पतझड़ सा मालूम होने लगा था और फिर से सुमन घर भर की रानी बन गयी। उसके खाने पीने से लेकर स्कूल आने जाने तक का इंतजाम नए तरीके से किया गया. अब घर के बाहर से " सूमो ' उसको लेकर जाती और घर के बाहर ही छोडती थी ।

बसंत- विहार की सड़को पर सैर करती सुमन को अपना जीवन स्वर्ग सा लगता | सास अपने आने वाले पोते के लिए ऊन लाकर मोज़े स्वेटर बुन रही थी उसके कमरे में पति के बचपन की तस्वीरो के संग बच्चो की तस्वीर टांग दी गयी थी. एक नंगे छोटे से लड़के की तस्वीर चिपकाते हुए राजीव को देख सुमन बहुत जोर से हंस पढ़ी थी. इसके पहले राजीव कुछ कहते मांजी कमरे में आगयी थी. सब उत्साहित थे

९ माह कैसे बीते सुमन को मालूम ना हुआ. समय आने पर उसको आस्था नर्सिंग होम ले जाया गया. लम्बी दर्द भरी प्रसव पीड़ा के बाद उसने एक कन्या को जन्म दिया और मानो बसंत अचानक सबके चेहरे से लौट गया और पतझड़ ने फिर से वहां अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया. सबके बात करने के लहजे से उसे ऐसे लगा जैसे उसने कोई गुनाह कर दिया. सबके चेहरे मुरझा गये, राजीव भी थोडा चुप हो गये.

यंत्रवत अपने काम में लगे रहते, घर आकर भी सुमन ने सबके बदले व्यवहार को महसूस किया | कोई ख़ुशी नही की गयी बिटिया का नाम उसने खुद ही रूचि रख लिया. अगर रूचि रोने भी लगती भी तो कोई जल्दी से उसको उठाने वाला भी नही था.

समय बीत रहा था. मैटरनिटी लीव ख़तम होने वाली थी. अब बिटिया को कौन देखेगा,यह सोच कर सुमन ने 2000 रूपये में एक महिला को रूचि को सम्हालने का काम दिया.

सरल स्वभाव की ममतामयी मोनिका, सुमन की समवयस्क थी ।उसकी अपनी भी एक बेटी थी जो 5 बरस थी और स्कूल जाती थी मोनिका के सहारे बेटी को छोड़ कर स्कूल जाती सुमन अब निश्चिन्त थी | देखते ही देखते रूचि 11 माह की हो गयी थी | उसकी आँखों में माँ को देखते ही चमक आ जाती थी |. परन्तु सुमन की तबियत फिर से कुछ ठीक सी नही थी. हर वक़्त थकान भूख न लगना जी मिचलाना. सुमन को घबराहट होने लगी. अभी तो रूचि बहुत छोटी हैं क्या एक बार फिर से वह...... ओह ! अब क्या करे ।आजकल इस बात का पता करने के लिय हॉस्पिटल जाना जरुरी नही| टी. वी ने इतना जागरूक बना दिया कि एक स्ट्रिप लाओ और घर में ही पता लगा लो कि गर्भ हैं या नही. सुमन को वे 2 पल जिन्दगी के सबसे भारी पल लग रहे थे| ख़ुशी भी भीतर से तो एक अनजाना डर भी । रिजल्ट सकारात्मक देख कर उसको घबराहट होने लगी की| राजीव का न जाने क्या रिएक्शन होगा और मांजी... उनकी सूरत याद करके सुमन के हाथ -पैर ही कंपकंपाने लगे. रूचि के जन्म के बाद से उनका व्यवहार एक अजनबी सा हो गया था.

राजीव ने जैसे उसके फिर से गर्भ धारण की खबर सुनी तो ख़ुशी से फूले न समाये.

जैसे उन्होंने कोई किला जीता हो. एक पुरुष की जिन्दगी का सबसे बड़ा क्षण होता होगा. जब उसको पता चलता होगा कि वह पिता बनने वाला हैं. एक नए जीव का आना सुखद ही लगता हैं. मांजी ने भी ख़ुशी जाहिर की परन्तु उनके तीखे शब्दों ने राजीव के मन में एक संशय भर दिया कि "इस बारी चेक करा लेना,कही इस बार भी लड़की ही न जन दे तुम्हारी लाडली बीबी ! बिना बेटे के तो स्वर्ग भी नही मिलता । आजकल वो जमाना तो हैं नही कि बेटे के इंतज़ार में 5-5 लडकिया जन दो. अब ख्याल रखना कही अपना माँ का इतिहास न दोहरा दे यह लड़की. और तू तमाम उम्र बेटियों के ब्याह के लिए पैसा पैसा जोड़ता रहे …

राजीव की अल्प बुद्धि लड़के लड़की का फर्क तो समझ गयी परन्तु यह नही जानपाई कि लडकियां भी जिन्दगी में उतना ही महत्त्व रखती हैं जितना एक लड़का. बिना बहन का भाई जो था राजीव उसको वो खुशियाँ आनंद नही उपलब्ध हुए होंगे जो भाइयो को बहनों से प्राप्त होते हैं.

अब राजीव सुमन पर दबाव बनाने लगा की हमें पहले टेस्ट करना होगा| वरना कहाँ से आएगा दो दो बेटियों की पढाई से लेकर विवाह तक का खर्चा, सुमन ने बहुत कोशिश की परतु उसकी आवाज़ नक्कारखाने में तूती सी रह गयी आखिर टेस्ट कराना ही पढ़ा और उसकी डॉ ने " जय माता की " कहकर जैसे वज्रपात कर दिया राजीव और मांजी पर.... अब सबके सुर बदल गये.

मौसम भी इतनी जल्दी जल्दी बदलता हैं आजकल. अब तो समाज की भी ओजोन लेयर नष्ट हो रही हैं. समाज की, पैसे की, अगले लोक-परलोक की दुहाई देकर उसे इस गर्भ से छुटकारा पाने के लिय मजबूर किया जा रहा था। अपनी माँ के पास जाकर उसने उनका संबल और सहारा चाहा तो माँ के आंसू उसकी मज़बूरी बयां कर गये. 5 बेटियों की माँ कैसे उसका सहारा बनती जो खुद पति के सामने एक शब्द नही बोल पाती थी |

घर लौट कर तकिये में मुंह छिपाए रोते हुए सुमन सोचने लगी... कितनी मजबूर हो जाती हैं ना नारी, कहने को कहा जा सकता हैं कि लड़ जाती अपनी अजन्मी संतान के लिए, एक माँ अपने बच्चे के लिए कुछ भी कर सकती हैं| परन्तु सच एक दम अलग होता हैं | यह समाज पितृ प्रधान हैं मायके का संबल भी न होतो स्त्री कुछ नही कर पाती. बचपन से पिता और भाई के आधीन रहने वाली सहमी सी लड़की सब विवाह के बाद पति के घर जाती हैं तो जाने - अनजाने वे उसकी जिन्दगी पर हावी हो जाते हैं | और स्त्री उसे प्यार समझ बैठती हैं और वही प्यार जब उसकी जिन्द्दगी के हर फैसले करते हैं तो उसे घुटन होने लगती हैं | परन्तु उस घुटन से निजात पाने के लिय विद्रोह करना सारे समाज से खुद को अलग करना होता हैं । किताबों में नारी स्वतंत्रता की बाते लिखना और अपनी जिन्दगी में उनको ढालना अलग बात है. जो ऐसा कर पाती हैं उनका बचपन या तो बहुत सुखद होता हैं या वह जिनके लिये यह सब बाते करना फैशन होता हैं या फिर वे महिलायें जिनमे आग होती होती है समाज से लड़ मरने की,लोहा बना लेती हैं खुद को|. . बचपन से पिता की एक ऊँची आवाज़ पर डरने - सहमने वाली लड़की ससुराल में भी मान्यताओ रिवाजो और परम्परा के नाम पर चुप रह जाती हैं या दबे स्वर में किया गया उसका विरोध कोई माने नही रखता हैं|

आखिर टूट गयी सुमन. हार गयी उसकी ममता इस समाज के बनाये रिवाज़ के सामने कि पुत्र ही गति दिलाता हैं,पार लगाता हैं इस भवसागर से. एक नारी ने ही उसके नारीत्व का अपमान कर आने वाली नारी का क़त्ल कराने की योजना बना डाली वो भी एक नारी के ही हाथो से|. किसी को भी जरा भी अपराध बोध नही, सिवाय सुमन के ।

उसकी जार - जार बहते आंसुओ का किसी की आत्मा पर कोई फर्क नही पड़ रहा था ।कौन कहता हैं कि क़त्ल सिर्फ गरीबी की वजह से होते हैं कुछ क़त्ल ऐसे भी होते हैं जो किसी को अपने होने की खबर भी नही होने देते |

अचानक तेज आवाज़ ने सुमन का ध्यान भंग किया और रूचि घुटनों चलती हुए उसके पैरो के पास खड़ी थी रूचि का मन भीग गया. . कम से कम जो आज मेरी झोली में हैं उसको तो सम्हाल लूँ.

चाय ठंडी हो गयी थी राजीव भी दिल्ली से लौटने वाले होंगे सोचकर उसने कमरा समेटना शुरू कर दिया.

गुस्सा राजीव पर भी था उसको और मन ही मन मूक प्रतिशोध लेने की ठान ली थी. कल रात उसे याद आया था कि अलसी में एक बूढ़ी मांजी ने कभी बताया था कि फलां जड़ी- बूटी खाने से नारी बंजर हो जाती हैं. ईर्ष्या के चलते कई स्त्रीयां अपनी ससुराल या मायके में संतान ना उत्पन्न हो तो धोखे से गर्भवती को वह बूटी पीस कर खिला देती हैं ताकि गर्भ नष्ट होजाए और आगे कभी संतान भी ना हो. तो बस अब वह और संतान ही नही जन्मेगी, कर ले कोई कोशिश जितनी चाहे... कम से कम अपनी उस अजन्मी बेटी की आत्मा को तो न्याय दे पायेगी जिसका आज कत्ल कराने का इरादा रखते हैं सब.

लेकिन रात का वो भयावह सपना. . कहीं सच हो गया तो ? नहीं !

राजीव के आने पर भी अनमनी सी रही. बात भी की तो हाँ-हूँ कर के ही रह गई. रात को जब राजीव ने करीब आना चाहा तो वह चीख पड़ी,

"हाँ हाँ ! नोचो इसी तरह देह को, तुम पुरुष आज संतान तो बेटे के रूप में चाहते हो लेकिन देह की भूख को समेटना नही जानते हो. कल रक्तबीज की तरह हर तरफ सिर्फ पुरुष ही होंगे और गिनती की ही लडकियां.... अपने पौरुष को हाथ मे थामे तुम सब पुरुष तब फर्क नही कर पाओगे देह में. तब ना कोई देह बेटी की होगी ना बहन की ना माँ की,कोई रिश्ता ना होगा तब...... "'

राजीव हतप्रभत था, सहम गया था सुमन का यह रूप देखकर और सुमन अपना चेहरा हाथो में छिपाए सुबकियां लेकर रो रही थी और उसके दिमाग में घूम रहा था सपना. सुबह का सपना....

' सुबह का सपना... चारों और सफ़ेद बर्फ ही बर्फ है... दूर दूर तक कोई इंसान नहीं दिखता, इस बर्फीले पहाड़ की एक गुफा में आग जल रही है... आग की मध्यम रौशनी में कई छायाएँ डोल रही हैं... चारों ओर शिकार के भूनते मांस का धुआं तैर रहा है, वह भी वहीँ है उसकी बेटी भी वहीँ है उसका बेटा भी वहीँ है और राजीव भी वहीँ है…

आदिम ज़माने की गुफा में आदिम मानव के बीच आदिम सभ्यता की आदिम भूख थी। आदिम सभ्यता के विपरीत उसके इस भयानक सपने में सहमति नहीं जबर्दस्ती थी. .

उस गुफा में तन और मन के दर्द से भरी चीत्कारें थी। आदिम सभ्यता में मानवीय रिश्ते बने नहीं थे और उसके सपने में रिश्ते ख़त्म हो चुके थे, गुफा में मौजूद पुरषों के लिए न कोई माँ थी न बहन न बेटी न कोई बेटा था न भाई न पिता। बाकी बची थी तो सिर्फ भूख-देह और पेट की भूख. . ! '

राजीव सन्न रह गया, सपना सुन कर. उसने तो यह सोचा ही नहीं कभी, कि कभी यह स्थिति भी हो सकती है। वह यह क्यों भूल गया कि प्रकृति को नष्ट करने में वह भी तो भागीदार हो सकता है। उसने सुमन को गले लगा लिया और माफ़ी मांगी कि अब उसे बेटे की चाहत नहीं है। समाज में कभी ऐसी भयावह स्थिति नहीं आएगी। लोग अब जागरुक हुए हैं, ना जाने उसके ही मन की आँखों पर पट्टी कैसे बंधी रह गई थी. अब सिसकियाँ धीरे धीरे थमने लगी थी. .

नीलिमा शर्मा निविया

C2/133

जनकपुरी,

नई दिल्ली 58

pn no 9411547430

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