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मुट्ठी भर शब्द (निविया की लघुकथाये )

मुट्ठी भर शब्द ( निविया की लघु कथाये )

१.कालर आई डी वाला फ़ोन

आज फिर सर्द हवाए चल रही हैं कपडे धुप में सुखाने के लिय बाल्टी उठायी ही थी कि लैंडलाइन फ़ोन की घंटी बजी . लैंडलाइन की घंटी बजना यानी किसी अपने का फ़ोन ही होगा आज कल इस नंबर को कौन याद रखता हैं सब अपने अपने सेल में एक नंबर फीड कर लेते हैं और उस पर नाम चस्पा कर देते हैं फलां का नंबर .और अगर कभी सेल फ़ोन बीमार पढ़ जाए तो वोह नंबर भी बीमार पढ़ जाता हैं जिसे पाने के लिय जान पहचान वालो के नंबर मिलाने पढ़ते हैं जो संयोग से याद रह जाए .घंटी एक बार बंद होकर दुबारा बजनी शुरू हुयी .पक्का कोई अपना ही हैं बेसब्र बेताब सा …… गीले कपड़ो के साथ भीतर जाना पडेगा सोचती हुयी मनीषा ने शाल उठाया और भीतर कमरे में चली गयी और जैसे ही उसने फ़ोन उठाया फ़ोन बंद हो गया गुस्से से चुपचाप लाल फ़ोन को घूरती रही कि कौन होगा फिर से फ़ोन की घंटी बजी उसने एक दम से फ़ोन उठाया और हेल्लो कहा .
एक ख़ामोशी सी थी दूसरी तरफ उफ्फ्फ्फ़ . हेल्लो हेल्लो बार बार कहने पर भी उधर से कोई आवाज़ नही आई ..मनीषा सोचने लगी क्या पता उनकी आवाज़ नही आ रही हो मुझ तक मेरी तो जा रही होगी न … तो एक दम से बोली सु निये आप जो भी हैं मुझे आपकी आवाज़ नही आरही हैं अगर आपको मेरी आवाज़ आ रही हैं तो या तो फिर से कॉल मिलाये या मेरे सेल फ़ोन पर कॉल करे …कहकर मनीषा ने फ़ोन रख दिया और इंतज़ार करने लगी क्या पता फिर बजे फ़ोन …… पर .फ़ोन नही बजा
फ़ोन के पहली बार खाली बजने और उसके दुबारा बजने के बीच के समय में घर की सूनी दीवारे भी बात करने लगती हैं और कल्पनाये होने लगती हैं कि उसका फ़ोन होगा इसका फ़ोन होगा .पता नही क्या बात होगी जो लैंडलाइन पर फ़ोन आया यह नंबर तो सिर्फ फलाने फलाने के पास हैं .उफ़ नही आ रहा कोई फ़ोन वोन .सोचते ही मनीषा ने बाहर आकर बाल्टी उठायी और कपडे सुखाने चल दी ………….कौन हो सकता हैं हर गीले कपडे को झटकते हुए उसका मन एक नाम लेता और उसे झटक भी देता कि नही .. उसका नही हो सकता आजकल घंटिया कुछ ज्यादा ही बजने लगी हैं कही किसी बीमा पालिसी वाले एजेंट का ही नंबर न हो
सुनहरी धुप धीरे धीरे सुरमई शाम में तब्दील हो गयी ….. रसोई में सब्जी बनती मनीषा गीत गुनगुना रही थी कि फिर से घंटिया बजने लगी तो उसने उसने झट से आंच धीमी की और कमरे में जाकर खिन्न होकर फ़ोन उठाया और थोड़े रुड स्वर में हेल्लो कहा . उधर से सिर्फ सांसे सुनाई दी उसका गुस्सा और बढ़ गया …….. ”“
देखिये !!! आप जो भी हैं बात करिए या कॉल मत करिए” …….“
हेल्लो हेल्लो ” …..
“” देखिये अब अगर फ़ोन किया तो मैं पुलिस में शिकायत कर दूँगी .”
कहते ही जैसे ही उसने फ़ोन रखना चाहा उसको एक आवाज़ सुनाई दी “.मणि ………………
और हाथ से उसके रिसीवर गिर गया
मणि!!!! यह नाम तो मुझे ……….
उफ़ मेरा नंबर उसको कहाँ से मिला
हाँ सांसे भी वही थी गहरी सी
कभी जिन सांसो से वोह पहचान जाती थी किसका फ़ोन हैं
जिसके फ़ोन करने के तरीके से वोह घंटियों की भाषा पढ़ लेती थी
मिस्ड कॉल की एक घंटी तो मिस्सिंग यू
दो घंटी तो लव यू
तीन घंटी तो कॉल मी
और आज भूल गयी उन सांसो की थिरकन को
उधर से मणि मणि की आवाज़ के साथ हेल्लो हेल्लो सुनाई दिया तो उसने झट से रिसीवर उठाया …………
देखिये यहाँ कोई मणि नही रहती आजके बाद यहाँ कॉल न किया करे ……… कहकर फ़ोन रख दिया
और इधर उधर देखते हुए अपनी धडकनों को सम्हालने की असफल कोशिश करने लगी .उसे मंगवाना ही पड़ेगा अब तो कॉलर ऑय दी वाला फ़ोन

नीलिमा शर्मा

2...( संवेदना)"
कल भी सन्डे हैं और एक बार फिर मैं अकेली .. आखिर कब तक ऐसे चलेगा ""
अब बताओ क्या करू ?नौकरी करनी हैं तो क्या नखरे!!! ऑफिस वाले जहाँ कहेंगे रहना होगा न, आजकल ऑडिट चल रहा हैं सन्डे को भी काम करना होता हैं |पक्का अगले सन्डे घर आऊँगा मैं भी बच्चो के लिय उदास हूँ"
फ़ोन रखकर निम्मी सोचने लगी ....... क्या सिर्फ बच्चो के लिय ???.मेरा कोई वजूद नही मैं तो जैसे केयरटेकर बनकर रह रही हूँ | खुद १५० किमी दूर दुसरे शहरमें नौकरी कर रहे हैं|
मन किसी काम में नही लग रहा था| पनीर उठाकर फ्रीज में रख दिया | नही बनाना मुझे कुछ भी ... बच्चे तो वैसे भी मेग्गी खाकर खुश हो जायेगे .
टिंग टोंग
टिंग ट्रिंग
।सुनते ही हडबडा कर उठी निम्मी ने लाइट जलाकर वक़्त देखा .रात के १ बजे हैं
कोन होगा इस वक़्त .
दुपट्टा उठाते हुए उसने खिड़की से बाहर झाँका| एक परछाईसी गेट कूदते हुए नजर आई .उफ्फ्फ्फ़ !!!कोई चोर होगा पक्का | सबको पता हैं कि मैं अकेली हूँ बच्चो के साथ ... राम राम करते हुए उसने मिम्याती हुई आवाज़ में पूछा"
कौन हैं वहां""
निम्मी खोल ना दरवाज़ा कब से बारिश में भीग रहा हूँ "
ओह!!! यह तो उनकी आवाज़ हैं
आssssssssssssआप!!! ""
क्यों? किसी और का इंतज़ार था क्या ""
नही किसी का इंतज़ार ही तो नही था ""
मैंने सुन ली थी तुम्हारी खामोश सिसकिया फ़ोन पर और रहा नही गया सो आगया ""
सुबह सुबह वापिस चला जाऊँगा .
बॉस से कल १२ बजे तक आने का कह कर आया हूँ "
निम्मी सुनते ही किलक उठी मन से "हाँ मैं भी बहुत कुछ हूँ तुम्हारे लिय "
सुनो क्या खाओगे इस वक़्त ???
नीलिमा शर्मा

३.आयटम

"सारी उम्र बीत गयी रे लड़की ! इसी तरह साड़ी पहनते हुए . अब इस उम्र में क्या सूट पहनूगी ! यह सलवार वाले सूट ब्याह के बाद नही पहने जाते हैं हमारी बिरादरी में| .ब्याह के बाद लड़की की चाहे जितनी भी उम्र की हो उसे साडी ही पहननी होती हैं . और सर पर पल्लूनही उतरता | तुम चाहती हो मैं सलवार सूट पहनू उम्र के इस मोड़ पर ..न मेरे से यह नही हो सकता ,, जाओ ! मैं अपने कमरे से बाहर ही नही निकलूंगी "

कहते कहते मिथलेश ने अपनी साड़ी को और कसकर लपेट लिया
और मन ही मन बुदबुदाने लगी __यह आजकल की बहुए हमने इनको नही टोका कि यह न पहनो वोह न पहनो ,कह दिया कि जो मर्ज़ी करो तो अब हमपर भी ज़बरदस्ती कि अम्मा सीधे पल्ले की साड़ी न पहनो अम्मा सर पर पल्लू न रखा करो . अब यह सलवार सूट की जिद !! मुझे अब नही रहना इनके घर एक तो पहले ही महरी और मिसराइन का काम सौप रखा हैं उस पर अब नयी जिद
थोड़ी देर बाद पानी पीने रसोई की तरफ बढ़ी तो बहु की सहेलियों की हंसी सुनाई दी

" यार क्या आइटम हैं तेरी सास कसम से "..................नीलिमा शर्मा

४.ग्रहण

" ग्रहण "

उम्मीद ही नही थी कि कोई इतना चुप्पा हो सकता हैं | हॉस्पिटल के बरामदे में एक अकेला चुपचाप कल से शून्य को ताकता हुआ नजर आरहा था | आज उसे कैंटीन में देखा तो पूछ लिया " किसके साथ आये हो यहाँ " पलके ऐसे उठी जैसे ग्रहण लगा हो चाँद को और होंठो से लफ्ज़ निकले ' यादो के " यादो के!!!इसका क्या मतलब ""
पिछले बरस आज के दिन मेरी माँ इसी हॉस्पिटल से अपनी अनंत यात्रा को गयी थी और मुझे भाई ने घर से बाहर निकाल दिया था आज माँ की बरसी हैं अपना कोई घर नही सो यहाँ माँ को मिलने आया हूँ "
अब मेरी सोच को जैसे ग्रहण लग गया
नीलिमा शर्मा निविया

५. आइना

"कब आएगा सुनील शिप से ! मीनू की डिलीवरी एक महीने बाद होनी हैं उसको आ जाना चाहिए ना " "
हाँ कल बात हुयी थी मेरी स्काइप पर , जब आप सोये थे ना , कह रहा था माँ आजकल शिप मिस्र के आस -पास से गुजर रहा हैं यहाँ के हालत सही नही हैं सो यहाँ से एयर टिकेट नही कराये अब जैसे ही शिप मिडिल ईस्ट पहुंचेगा मैं वहां से तुरंत फ्लाइट लेकर आजाऊंगा ""
ओह !! एक हफ्ता तो लग जाएगा उसको फिर ""
मुझे तो मीनू को देख रोना आता हैं कैसी रहती हैं सुनील के बिना , याद हैं आपको जब सुनील होने वाला था तब मैं कैसी जिद करती थी आपसे कि मेरे साथ रहो , और आप मुझे माँ- बाबूजी के पास छोड़ कर गोपेश्वर अपनी ड्यूटी पर चले जाते थे, उफ़ !! कितना कुढती थी तब मैं " "
हा हा हा याद हैं मुझे ! आज तक तुम्हारी बाते सुनता हूँ कि मुझे तो तुम अपनी माँ- बाबा की सेवा के लिय ब्याह कर लाये थे ""
हटो भी !! मैं तुम्हारी माँ जैसी सास भी नही हूँ न तुम अपने बाबूजी जैसे कड़क हो , कितनी चाह थी मुझे बेटी हो पर बेटे हुए दोनों .अब मीनू ने मेरे बेटी के सारे चाव पूरे कर दिए ""
एक बात सुनो ! ऐसा करते हैं सुनील को कहते हैं कि सिंगापूर में घर ले ले एक .... एन आर ऑय का स्टेटस हैं उसका ......... और उसके शिप भी ववहां बराबर आते हैं .कम से कम हर दो महीने बाद घर तो आसकेगा ....... जहाँ अपना परिवार हो बच्चे खुश रहे साथ रहे हमारे लिय अच्छा ही होगा न ' "
सही कहते हो आप , वैसे भी अनिल ने तो ऑस्ट्रेलिया में सेटल होने का मन बना लिया हैं मीनू को भी हक हैं अपने परिवार को एक साथ रखने का अब हमारा ज़माना नही रहा की सास ससुर अपने मकान की वज़ह से बहु को अपने साथ रख ले और बेटा जल्दी जल्दी आता जाता रहे""
चलो मीनू को आवाज़ लगाओ . थक गयी होगी घर चलते हैं .....सुनील के आते ही सब बात कर लेंगे ." कहते हुए सुरेंदर ने अक्की कोपुकारा
घुटने पकड़ कर उठ'ती नीलू का मन बहुत हल्का हो आया ...जो अकेलापन उसने झेला कम से कम उसकी बहु तो न झेले ... जब अपने बच्चे साथ हो तो क्या इंडिया क्या सिंगापूर

नीलिमा शर्मा

६. पोक

"ओ मिस्टर यह पोक क्यों ? क्या आप मुझे जानते हैं ?"
जी हाँ ! आप सिन्हा सर की बेटी मानसी हैं ना मैं आपका क्लासमेट समीर .वोह चेक शर्ट वाला जिसे कहती थी आप ""
तुम !!! तुमने मुझे कहा से ढूढ़ लिया यहाँ फेस बुक पर ""
बहुत पत्थर मारे हैं मैंने मिस मानसी आपको गुलाबो की झड़ी के पीछे से ""
यह तुम थे ना जो मुझे पत्थर मारते थे कॉलेज के गार्डन में , और हर बार कोई और पकड़ा जाता था कितनी भी नानुकुर करे मेरे पापा जो कॉलेज के लेक्चरार थे उसको संस्कृति और सभ्यता पर लम्बा सा लेक्चर सुना देते थे ""
हाँ मैं ही होता था बहुत मन करता था आपसे बात करूँ पर एक तो प्रोफेसर की बेटी उस पर बला की खूबसूरत ,डर लगता था कि कही घर शिकायत गयी या कॉलेज निष्कासित कर दिया गया तो मेरा तो साल ख़राब हो जाएगा ""
पर पत्थर मारने का क्या मतलब ""
हाँ था तो गलत ही तब अक्ल ही कितनी थी ""
हाँ बेवक़ूफ़ से तुम इसिलिय मुझे याद रह गये ""
आओ स्वागत तुम्हारा मेरी फेसबुक लिस्ट में ""
सच ! मेरा पत्थर मारना सफल रहा फिर तो " सोचकर ठहाका लगा कर हँस पढ़ा समीर और उधर मानसी भी मुस्कुरा दी .. आज फेस बुक पर फिर से समीर ने पत्थर रूपी पोक मार दिया था और इस बार सही जगह लग गया था.............. नीलिमा शर्मा

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