पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 11 Asha Saraswat द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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पावन ग्रंथ - भगवद्गीता की शिक्षा - 11



अध्याय सात

ज्ञान-विज्ञान

अनुभव— सारे विश्व का निर्माण कैसे हुआ, दादी जी? क्या उसका कोई बनाने वाला है?

दादी जी — किसी भी रचना (सृष्टि) के पीछे उसका कोई बनाने वाला (रचयिता या सृष्टा) होता है ।अनुभव, कोई भी चीज बिना किसी व्यक्ति या शक्ति के पैदा नहीं की जा सकती, नहीं बनाई जा सकती । न केवल उसकी सृष्टि के लिए बल्कि उसके पालन करने और चलाने के लिए भी किसी न किसी की ज़रूरत होती है । हम उस शक्ति को ही भगवान कहते हैं । परमप्रभु, परमात्मा, कृष्ण, ईश्वर,शिव कहते हैं । दूसरे धर्मों ने उसे अल्लाह, पिता, मसीहा और अन्य नामों से पुकारा है ।वास्तविक अर्थ में भगवान सृष्टि का सृष्टा नहीं है, बल्कि वह स्वयं ही विश्व में हर वस्तु का रूप धारण करके रहता है । वह ब्रह्मा के रूप में अवतरित होता है ।जिसे हम सृष्टा कहते हैं ।वास्तव में ब्रह्मा और अन्य सभी देवी -देवता केवल एक ही भगवान की भिन्न-भिन्न शक्तियों के नाम हैं । लोग सोचते हैं कि हिंदू बहुत से भगवान की पूजा करते हैं, पर उनका ऐसा सोचना सच्चे ज्ञान के अभाव के कारण है । सारा विश्व ही भगवान का रूप है । यही वेदांत का उच्चतम दर्शन है, जिसे शायद अभी पूरी तरह नहीं समझ सकते ।

अनुभव— दादी जी, एक भगवान विश्व में इतनी वस्तुएँ कैसे बन जाता है ?

दादी जी— सांख्य मत के अनुसार परमात्मा स्वयं पदार्थ का रूप धारण कर लेती है , जो पॉंच मूल तत्वों से बने हैं ।
सारी सृष्टि परमात्मा (या आत्मा) और पदार्थ (या प्रकृति)
इन दो शक्तियों के मेल से उत्पन्न होती है ।वही सूर्य और चंद्रमा में प्रकाश के रूप में है ।मानवों में वह मन और बल के रूप में है । वह हमारे भोजन को पचाती है और जीवन को सहारा देती है । उसी एक आत्मा के द्वारा हम सब एक-दूसरे से जुड़े हैं । जैसे माला के सब फूल एक ही धागे से जुड़े होते हैं ।

अनुभव— यदि परमात्मा सब जगह है और सब चीजों में हैं , तो हर कोई उसे समझता क्यों नहीं, प्यार क्यों नहीं करता और उसकी पूजा क्यों नहीं करता ?

दादी जी— बहुत अच्छा प्रश्न है यह, अनुभव । प्रायः लोगों का परमात्मा के बारे में ग़लत विचार होता है, क्योंकि हर किसी को उसको समझने की शक्ति नहीं मिली है । जैसे कुछ लोग साधारण गणित भी नहीं समझ पाते , वैसे ही वे लोग, जिनके अच्छे कर्म नहीं है परमात्मा को न जान सकते हैं, न समझ सकते हैं, न उसे प्यार कर सकते है और न ही उसकी पूजा कर सकते हैं ।


अनुभव— तब वे कौन हैं, जो परमात्मा को समझ सकते हैं ?

दादी जी— चार प्रकार के लोग हैं, जो परमात्मा की उपासना करते हैं या उसे समझने का प्रयास करते हैं ।
(1) वे जो रोगी हैं किसी संकट में हैं या अपने अध्ययन या अन्य काम को करने में परमात्मा की सहायता चाहते हैं ।
(2) जो परमात्मा का ज्ञान पाने का प्रयत्न कर रहे हैं ।
(3) जिन्हें धन या पुत्र आदि किसी वस्तु की इच्छा है ।
(4) वे ज्ञानी जिन्हें भगवान का ज्ञान है ।

भगवान श्री कृष्ण चारों प्रकार के लोगों को भक्त मानते हैं। परन्तु ज्ञानी सर्वश्रेष्ठ हैं क्योंकि वह भगवान से बिना किसी चीज़ की इच्छा किये उनकी उपासना करता है । ऐसा ज्ञानी पुरुष भी भगवान को पूरी तरह कई जन्मों के बाद ही जान पाता है ।


अनुभव— यदि मैं श्री कृष्ण की पूजा करूँ, तो क्या मुझे परीक्षा में अच्छे अंक मिल सकेंगे या मुझे रोग से मुक्ति मिल जायेगी ?

दादी जी— हॉं वे सबकी इच्छायें पूरी करते हैं, जो उनमें विश्वास रखते हैं और पूरी आस्था के साथ सदा उनकी उपासना करते हैं । परमात्मा हमारी माता और हमारे पिता दोनों हैं । तुम्हें प्रभु से जो चाहिए, अपनी प्रार्थना में मॉगना चाहिए । वे अपने निष्ठ भक्तों की इच्छाएँ ज़रूर पूरी करते हैं ।


अनुभव— फिर हर कोई कृष्ण की पूजा क्यों नहीं करता? हम गणेश देवता, हनुमान जी, मॉं सरस्वती और कई अन्य देवी -देवताओं की पूजा क्यों करते हैं ?

दादी जी— भगवान श्री कृष्ण परम प्रभु का नाम है । हिंदू धर्म के कुछ संप्रदाय परम प्रभु को भगवान शिव जी भी कहते हैं । अन्य धर्मों के अनुयायी उसे बुद्ध, ईसा, अल्लाह, पिता आदि कहते हैं । अन्य देवी-देवता उसी की शक्ति के अंग हैं । जैसे वर्षा का सारा जल सागर को जाता है, उसी प्रकार किसी भी देवी-देवता की पूजा कृष्ण अथवा परमात्मा को ही जाती है । किंतु आरम्भ में व्यक्ति को अनेक में से किसी एक देवी-देवता को चुनकर पूजा के द्वारा उनसे व्यक्तिगत संबंध स्थापित करना चाहिए या कम से कम अपने इष्ट देव-देवी को नित्य नमस्कार करना चाहिए । वह व्यक्तिगत देव - देवी तब तुम्हारा व्यक्तिगत मार्गदर्शक और सहायक बन जाता है । व्यक्तिगत देव-देवी को ईष्टदेव या ईष्टदेवी भी कहते हैं ।

अनुभव— आपने कहा कि सारा विश्व परमात्मा का ही दूसरा रूप है । क्या भगवान निराकार है या भगवान कोई रूप धारण करता है ?

दादी जी— यह प्रश्न न केवल बच्चों में भ्रम पैदा करता है, बल्कि बड़ों के लिए भी समस्या है । इस प्रश्न के उत्तर के आधार पर हिंदू धर्म में कई सम्प्रदाय या वर्ग पैदा हो गये हैं । एक संप्रदाय, जिसका नाम आर्य समाज है,मानता है कि भगवान कोई रूप धारण नहीं कर सकता है और निराकार है। दूसरे वर्ग का विश्वास है कि भगवान रूप धारण करता है । उसका एक स्वरूप है । तीसरे वर्ग का विश्वास है वह निराकार है और रूप भी धारण करता है । एक वर्ग ऐसा भी है जो विश्वास करता है कि भगवान निराकार और साकार दोनों ही है ।

मेरा विश्वास है कि हर चीज़ का एक रूप होता है । संसार में कुछ भी बिना रूप के नहीं है । प्रभु का भी एक ऐसा ही दिव्य रूप है । जो हमारी इन ऑंखों से दिख नहीं सकता । उसे मानवीय मस्तिष्क से नहीं समझा जा सकता, न ही शब्दों से उसका वर्णन किया जा सकता है । परमात्मा
इन्द्रियातीत,विराट,अलौकिक रूप वाला है । उसका कोई आदि या अंत नहीं है, किंतु वह हर चीज़ का आदि या अंत है।अदृश्य परमात्मा ही दृश्य जगत् का कारण है ।अदृश्य का अर्थ निराकार नहीं है । जो भी हम देखते हैं परमात्मा का ही दूसरा रूप है ।जैसा कि गीता में कहा गया है ।सब वस्तुओं में परमात्मा को देखने के व्यवहारिक रूप को समझाने के लिए एक कथा है ।

कहानी ( 7 ) सब जीवों में प्रभु को देखें

एक वन में एक संत महात्मा रहते थे । उनके बहुत से शिष्य थे । उन्होंने अपने शिष्यों को सब जीवों में प्रभु देखने की शिक्षा दी और सबको झुककर प्रणाम करने को कहा ।
एक बार उनका एक शिष्य जंगल में आग के लिए लकड़ी लेने गया ।अचानक उसे एक चीख सुनाई दी ।

“ रास्ते से हट जाओ एक पागल हाथी आ रहा है ।”

महात्मा के एक शिष्य को छोड़कर सब लोग भाग खड़े हुए । परन्तु उसने हाथी को भगवान के ही एक अन्य रूप में देखा,तो वह क्यों भागता उससे ?
वह निश्चल खड़ा रहा ।झुक कर हाथी को प्रणाम किया ।
हाथी के रूप में भगवान का ध्यान करना शुरू कर दिया ।हाथी का महावत फिर चिल्लाया, “भागो -भागो।”

किंतु शिष्य नहीं हिला । हाथी ने उसे अपनी सूँड़ से पकड़ा और एक तरफ़ फेंक कर अपने रास्ते चलता बना, शिष्य धरती पर बेहोश पड़ा रहा । इस घटना की बात सुनकर उसके गुरु भाई आये और उसे आश्रम में ले गए । जड़ी-बूटी की दवा से वह फिर होश में आ गया ।

तब किसी ने पूछा, “जब तुम्हें पता था कि पागल हाथी आ रहा है, तो तुम उस जगह को छोड़कर भागे क्यों नहीं ?”

उसने उत्तर दिया, “हमारे गुरु जी ने हमें सिखाया है कि प्रभु सब जीवों में है , पशुओं में भी और मानवों में भी । अंत:मैंने सोचा कि वह केवल हाथी -देवता ही था , जो आ रहा था, इसलिए मैं भागा नहीं ।”

गुरु जी ने कहा, “हॉं मेरे बच्चे यह तो सच है कि हाथी-देवता आ रहा था, किंतु महावत देवता ने तो तुम से रास्ते से हट जाने को कहा । तुमने महावत के शब्दों पर विश्वास क्यों नहीं किया? फिर हाथी देवता को यह आत्म - ज्ञान नहीं था कि हम सब प्रभु हैं ।”

परमात्मा सब चीजों में रहता है । वह बाघ में भी है, पर हम बाघ को गले तो नहीं लगा सकते । केवल अच्छे लोगों के समीप रहो और पापात्माओं से दूर रहो । बुरे , पापी ,और दुर्जनों से दूर रहो।

आगे की कहानी कल सुनायेंगे अनुभव ।

क्रमशः ✍️