बारह मास वसन्त - लक्ष्मीनारायण बुंनकर राज बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

बारह मास वसन्त - लक्ष्मीनारायण बुंनकर

बारह मास वसन्त-लक्ष्मीनारायण बुंनकर
बारह मास वसंत कवि लक्ष्मी नारायण बुनकर का पहला कविता संग्रह है, जो ग्रंथ भारती दिल्ली ने छापा है । संग्रह में कवि की विभिन्न प्रकार की कविताएं शामिल हैं जो छंद बद्ध हैं।
लक्ष्मी नारायण बुनकर ऐसे प्रतिभा संपन्न कवि हैं जो प्रायः बचपन से ही कविता कहते थे। बात को चमत्कार पूर्ण ढंग से कहना उन्होंने बचपन में ही सीख लिया था। एक श्रम शील परिवार में जन्म लिया और भूतपूर्व रियासत के कस्बे में बचपन बिताया, तो उनके व्यक्तित्व में बहुत सारे आयाम जुड़ गए थे ।लेकिन वे अंतर्मुखी और मितभाषी हैं इस कारण मन के भाव कविता रूप में आने में वर्षों लगे। जैसा की पुस्तक "बारह मास बसंत" की भूमिका में प्रोफ़ेसर सुरेश चंद्र पांडे शर्मा ने लिखा है "कभी-कभी इसी रचना को कलम से निश्चित होने में क्षण की जरूरत होती है तो कभी-कभी एक चिंतन संवेदना या भावना को शब्दों का आकार ग्रहण करने में वर्षों का समय लग जाता है।"

परंपरागत साहित्यिक रचनाओं या उत्तर छायावाद के समय की रचनाओं की तरह ही बुनकर की कविताओं में अनेक कविताएं शामिल हैं।"गीत तुम्हारे आंसू हैं"( पृष्ठ 38) नदियां बीच नाव(पृष्ठ 48) नवचेतना (18)परख व व्यर्थ तुम्हारा जीवन( 20/21) जाग समय की मांग (23) प्रतिदान (29) मौन मानव (52)पथिक तू चल अकेला( 61) हृदय सिन्धु में (65) तो सफर आसान हो( 92) कश्ती कहाँ है वहोगी मेरी जीत (103 व 104) इंसान बन जाओ (114) स्थिति बना लो (111) को पढ़ कर जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद और उनके समकालीन कवि याद आते हैं।
कवि बुनकर को मौसम और पुष्पों से बड़ा अनुराग है। उनकी बहुतेरी कविताएं मौसम ऋतु व पुष्पों से जुड़ी हैं, जिनमें बरखा रानी (16 )यह वसंत की बेला (36) बैगन बौरे आम (41 )वासंती मौसम ( 42) वसंत विहार( 43) पावस परी( 45 )होली आई (50) पावस विरह( 54 ) बारह मास बसंत (108) लगती कितनी मतवाली (24) हे सघन घनश्याम (78) बरस जाओ मेघ (89) आगम देख तुम्हारा (80 )उल्लेखनीय है।
नायक नायिका के मिलन विरह की रचनाएं उनके उद्गार प्रत्येक कवि का प्रिय विषय होता है ,बुनकर ने भी प्रचुर मात्रा में ऐसी कविताएं लिखी जो इस संकलन में शामिल हैं -तू तो चली (33 ) मैं कितना खुशनसीब (39) मैं तेरा राजा हूं (47) विगत दिनों का सुखद भास( 58)बन घटा छाया करो (67) आंख के मोती (70) मधुगान(73) यह कैसा मधुमास( 85) आंसू बहुत बहाए (87 ) नयनों से बदली(95) हरा होगा मरुथल (97) दोनों ही परिस्थितियों में (106)पिया हमारा कितना सुंदर (110 )अगर नहीं आते तुम (115) को देखा जा सकता है ।
देशभक्ति व समाज सेवा हर रचनाकार का धर्म व कर्म होना चाहिए , कवि बुनकर ने ऐसी कविताएं भी लिखी हैं , जिनमें अमर ज्योति (34) प्यारा हिंदुस्तान रहे (50) हमारा संसार (76 )मशाल आ गया (115) ऐसी ही कविताएं कही जा सकती हैं ।
धर्म कर्म व सर्व धर्म एकता से जुड़ी कविताएं भी बुनकर ने बहुत सी लिखी हैं, इस संग्रह में जीवन चलता है अभिराम ( 40 )दिलदार तू ही है( 55) सृष्टि कण कण में समा (63 )पल भर का सुख( 66) ऐसा ज्ञान दिया (74 )क्या मंदिर क्या मस्जिद (83) ये खुदा के बंदे( 91) एक ही काम (93) बारहमास बसंत (108) बाहर मत डोल (112) कविताएं ऐसी ही रचना कही जा सकती है।
श्रम और श्रमिक पर आधारित कविता "उपेक्षित जीवन " (68)कवि की वह विचारधारा है ,जिसके तहत जोड़कर कवि ने बरसों प्रगतिशील लेखक संघ में सक्रियता दिखाई और उस तरह की जनवादी विचारधारा को अपनी कविता में जगह दी। जीवन व समाज में और आसपास के माहौल में जो शोषण पाया वही कवि ने लिखा, इस कविता में लिखता है -
दिन भर जो तोड़ा करते हैं पत्थर
रखना पड़ता है उनको सीने पर
निश्वासों को छोड़ सदा वे जीते
डरते ही रहना पड़ता पल-पल पर

अन्न उगा कर देते हैं जो जीवन
उनको भी कम मिलता है अपनापन
सदा उपेक्षित रहते हैं यह बेचारे

नहीं चलती उनकी कोई उलझन मानवीयता पर केंद्रित लक्ष्मीनाथ बुनकर की यह कविता"मगर यहां इन्सान नही" (32) सराहनीय है-
कोलाहल है इतना भारी कोई सुरीली तान नहीं
बस्ती तो है इंसानों की मगर यहां इंसान नहीं
बदलते युग के अनुकूल अपने आप को बदल लेने वाले लोगों पर कटाक्ष करता हुआ कवि " नवयुग की हर नई चाल में(26) में कहता है-
नवयुग की हर नई चाल में हमने सबको ढलते देखा
लघुता को आहार बनाकर प्रभुता को ही पलते देखा
गिरगिट की ही कौन कहे सब को रंग बदलते देखा
लघुता को आहार बनाकर कविता को ही पलते देखा
हर कवि अपना एक दर्शन ,अपना एक विचार भी अपनी कविता में व्यक्त करता है और अपने पाठकों तक पहुंचाता है। बुनकर ने जाग समय की मांग(23) कविता में लिखा है -
सोच समझ ले मन में ऐसा होना ही तो है,
जीवन के एहसास से एक दिन खोना ही तो है ।
बिता दिया है बचपन अपना खेल कूद और खाने में
यौवन बीत गया सारा ही कुछ ना किया जमाने में
चेत बुढ़ापे में वरना फिर रोना ही तो है।। जीवन की यह सांसे ....
बसंत और किसान के बारे में कवि बागन बोरे आम(41) कविता में लिखता है-
सखी री बागन भंवरे आम !
जंगल में मोरा नाचत है
कोयलिया मीठो गावत है
पंछी भये ललाम
सखी री बागन बोरे आम

नायिका बारे में कैसी दुखी होती है, इसका वर्णन एक हिंदी साहित्य के प्रोफेसर के रूप में न लिखकर एक कवि के रूप में बुनकर लिखते हैं -
यह कैसा मधुमास सखी ,
पिया बिना अब चैन कहां है
जियरा हुआ उदास सखी।
यह कैसा मधुमास सखी

शीर्षक कविता "बारह मास वसंत "न केवल ज्ञान की कविता है बल्कि बारहों महीने मन को आनन्दित करके बसंत ऋतु छाई रहने का अनुभव करने से संबंधित यह कविता बड़ी सराहनीय है। कवि लिखते हैं -
गया वह मेरे जीवन से
पाया मैंने कंत
मेरे आंगन में रहता है
बारह मास बसंत
सुखद पलों की बौछारों से
भीग रहा तन मन
नहीं किसी से द्वेष भाव है
नहीं किसी से अनबन
शांति और पावनता फैली
दूर दृष्टि पर्यंत
मेरे आंगन में रहता है
बारह मास बसंत

सब से प्रेम करने का संदेश देता हुआ कवि "आओ मिलाप करें'(100) में कहता है -
मन के भीतर मैंल भरा है
आओ इसको साफ करें
हम तुमसे जो भी गलतियां
चलो उन्हें भी माफ करें
बुनकर का यह पहला संग्रह है, उनको अपनी आरंभिक कविताओं से खूब मोह है, इस कारण उन्होंने इस संग्रह में अपनी शुरुआती तुकबंदी या कम अच्छी कविताएं भी सम्मिलित कर ली हैं । अगर उन्हें शामिल ना किया जाता, और वर्तमान में लिखी जा रही सशक्त कविताएं इसमें जुड़ती तो संग्रह का स्तर और ऊंचा हो सकता था।
बुनकर ने इस संग्रह में केवल कविताएं शामिल की हैं दरअसल वे गीतकार और ग़ज़ल को भी हैं , उनकी बहुत सी गजल और गीत भी पत्रिकाओं में छपते रहते हैं और सोशल मीडिया पर आते रहते हैं। गीत व ग़ज़ल विधा की रचनाओं के संकलन ज्यादा समृद्ध सुखद होगे ऐसी आशा है।
राजनारायण बोहरे