पवन करण - कोट के बाजू में बटन राज बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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पवन करण - कोट के बाजू में बटन

पवन करण-कोट के बाजू में बटन

स्त्री मेरे भीतर संग्रह से ख्याति प्राप्त हुए कवि पवन करण के कविता संग्रह "कोट के बाजू में बटन "(राधाकृष्ण प्रकाशन) में कुल 39 कविताएं सम्मिलित हैं !इस संग्रह में पवन अपने स्वाभाविक रूप में उपस्थित हैं। चूंकि वे हर कविता को तफ्सील से कहने के आदी हैं और एसी रचनाओं में उनकी कविताएं लंबी हो जाती हैं। इस संग्रह की मात्र 13 कविताएं ही छोटी यानी एक डेढ़ पेज की हैं बाकी सब कविताएं लंबी हैं।
पवन को स्त्री मनोविज्ञान का पारखी और जानकार कवि कहा जाता है । जब स्त्री मनोविज्ञान की बात करते हैं तो स्त्री की खुद की देह की अनुभूतियां, समाज का स्त्रियों के प्रति नजरिया भी सहज और अनिवार्य रूप से पवन की कविताओं में आता है। स्त्री मन के विशेषज्ञ कवि द्वारा कविता लिखी जाए और स्त्री विमर्श की महत्वपूर्ण स्तंभ मैत्रेयी पुष्पा की बात ना हो यह कैसे मुमकिन होगा !पवन ने एक कविता में मैत्रयी जी पर दो स्टेन्जा लिखे है। दरअसल कविता लिखी है मेजर सरोजा कुमारी को संबोधित करके पर उसमें विवरण है मैत्रेयी जी का( पृष्ठ 35)-
क्या तुम मैत्रेई पुष्पा को जानती हो सरोजा कुमारी
हां बड़ी लेखिका है वे और उनका भी रास्ता
बेतवा बहती रही से पत्रिया हठ तक पहुंचता है
और गोमा तो हरदम उनके भीतर
हंसती और उनके चेहरे पर चमकती है पता है उन्होंने क्या किया
उन्होंने सबसे पहले अपने पैरों से बिछिये उतारे
और फिर गले से उतारा मंगलसूत्र
और सब से कहा यही तो बंधन है
नख से शिख तक स्त्री को बांधे
दिल्ली जाओ तो उनसे जरूर मिलना

प्रेम हर कवि के हृदय में बजी बंसी की विलंबित धुन है। पवन तो प्रेम में आकंठ डूबे कवि हैं। पवन ने प्रेम की कई कविताएं लिखी हैं । उनकी कविता लड़ाई: पांच प्रेम कविताएं (74)शीर्षक की लंबी कविताएं प्रेम के विभिन्न रूपों, विभिन्न अनुभूतियों को व्यक्त करती हैं , इस कविता का यह अंश देखिए -
एक लड़ाई के बाद दूसरी लड़ाई तक फिर हम
एक दूसरे को ताबड़तोड़ प्रेम करते थकने तक
हम मैदानों में हवा से भी तेज भागते और
दौड़ कर चल जा चले जाते पहाड़ियां जैसे कुलांचे
जंगल में फैल जाते जैसे आग
आकाश में धड़कते जैसे बिजली
*
लड़ाई ने भले ही उसे मेरे भीतर हमेशा के लिए
बाहर निकल जाने को कर दिया हो विवश
और उसे लग भी रहा हो कि मैं खुद को मेरे भीतर से
पूरी और हमेशा के लिए बाहर निकाल लाई है
और ऐसा कभी हुआ नहीं आज तक कोई किसी के
भीतर से इतना रहने के बाद अपने आप को पूरा
ले गया हो निकाल कर बाहर आने से पहले वह
जरा भी ना हो जरा भी न छूटा हो उसके भीतर
पवन की अन्य प्रेम कविताओं में "अपने विवाह की तैयारी करती प्रेमिका" (88)अद्भुत अनुभूति की कविता है , जहां प्रेमी चुप रहकर अपनी प्रेमिका द्वारा किसी अन्य पुरुष के साथ अपने विवाह की तैयारी को देखता रहता है ,जहां की प्रेम का अनुमानित भाव प्रदर्शित करती अपनी एक-एक शॉपिंग , एक - एक तैयारी को अपने प्रेमी से शेयर करती है । सौ फ़ीसदी यथार्थ की कविता है यह जहां लैला मजनू की तरह का मरने मिटने वाला इश्क नहीं सहज सी ऐसा प्यार और मोहब्बत है।

सेलिब्रिटी और प्रसिद्ध लोगों द्वारा गलत को गलत ना कह पाने की साहस हीनता और अपने मन का क्षोभ प्रकट करती कविता " नरिसा चक्र बोंगसे" से जुड़ी यह कविता, इसी नाम के खिलाड़ी को सलाम करने के बाद लिखी गई है, नरिसा चक्र बोंगसे ने ओलंपिक मशाल ले जाने के लिए चुने जाने के बाद भी मशाल के बहिष्कार की घोषणा की थी ।(पृष्ठ 92/93)
जब उस तरफ एक मशाल चलेगी
उसकी रोशनी इस तरह दिखाई देगी
खेल को धर्म और उसे खेलने वालों को ब्रह्मा विष्णु महेश जैसा मानने वाले
कभी यह नहीं सोचेंगे
हमारे इन भगवानों ने क्यों नहीं कहा गुजरात में अच्छा नहीं हुआ
कोका कोला का प्रचार और बांध का विरोध
साथ-साथ करने वाला एक सितारा
देश में दौड़ेगा इसे लेकर
और करेगा खुद को मशाल सा महसूस
नरिसा चक्रबोंगसे तुम्हें सलाम तुम ने थाम ली
अपने हाथों में विरोध की मशाल

स्त्री के सुख-दुख की कविता" सोनागाछी" (101) में पवन उस मूर्तिकार को सलाम करते हैं जिसने इस बार मूर्ति की जगह सोनागाछी की वेश्याओं को सजा संवरा के देवी बना कर बैठा दिया था ।
बाजार हमारी संवेदना हुनर और अधिकारों पर डाका डालता वह आधुनिक दानव है जिसका विरोध पवन ने अपनी कविता बाजार 103 में किया है -
तुम किसी का हक क्यों नहीं मारते
किसी को लूटते क्यों नहीं
किसी का गला काटने का कमाल
क्यों नहीं करते तुम मेरी दुनिया में
तुम्हारी कोई जरूरत नहीं है
आना जब तुम्हारी जेब में भरी हो
भले ही नोट खून से लिथड़े हों।

दलित विमर्श यद्यपि पवन का मूल विषय नहीं है, लेकिन समाज में सदियों से व्याप्त दलित दमन अनायास उनकी कविता में आ जाता है ।कविता भूलना (24) में अगड़े वर्ग द्वारा दलित वर्ग से पुराना इतिहास भुला देने का आग्रह कितना निर्मम है यह देखिए ।एक अन्य कविता अगली सदी में( पृष्ठ 58 से 62 )में पवन अपने सामने घट रही त्रासदी बांटते हुए कहते हैं
पुरानी सदी से नई सदी में प्रवेश करते ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र की स्थिति क्या होगी ,उनका नया स्थान क्या होगा, कविता में पवन वर्गों का नाम ना लेकर वर्ण का नाम ना ले कर पोथियों,बंदूकें तराजू बाँट और मैं संज्ञा के साथ अपनी बात करते हैं (पृष्ठ 61 )
अगली सदी में भी
पोथियों को मिलेगा
उतना ही सम्मान
जितना कि उन्हें मिलता आया
पिछली सदी में
अगली सदी में
रक्त सनी तलवारों
और बारूद से गंध आती बंदूकों के
रहेंगे उतनी ही अधिकार
जितने पिछली सदी में
अगली सदी में भी
तराजू बांटो के पास होगी
उतनी ही आजादी
उतनी ही धूर्तताएं
जितनी कि उनके पास रही
पिछली सदी में

पिछली सदी की तरह
नहीं होगी मेरी कोई आवाज
अगली सदी में भी
हाथों में कुछ जूते
और मुंह पर कई गालियां
मेरे लिए वहां भी होंगी तैयार

पवन की अन्य कविता नाच, पिटाई, छोटा भाई, क्या मैं तुम्हें बदला हुआ नहीं लगा, कड़ी, बड़ी बुआ ,चम्मच , छिनाल, घुटने आदि अपने इर्द-गिर्द के समाज घर और परिवार की अनुभूतियों को अलग अंदाज में देखती कविताएं हैं तो पलटन बाजार के लड़के , चु युआन, रंगे अदके, हंटर वाले मुल्लाजी, पेशी से लौटते कैदी, गाय हमारी माता है , व प्रधानमंत्री के कमांडो जैसी कविताएं पवन की खास नजरिए की कविताएं हैं ।
उनका कैमरा एक खास जगह जाकर क्लिक करता है, टिकता है ।
हालांकि एक सामान्य पाठक को इस सँग्रह की तमाम लम्बी य्या बड़ी कविताओं में गद्य जैसी रिदमहीन पंक्तियां दिखेंगी तो कई कविता शास्त्र ज्ञान से बोझल भी मिलेंगी।
संक्षेप तथा इस संग्रह में पवन एक परिपक्व कवि के रूप में सामने आते हैं