वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आपने एक बात कई बार सुनी होगी ‘आज का युग विज्ञान का युग है ‘ ।इसका मतलब है पुराना युग विज्ञान का युग नहीं था वह धर्म का युग था । आज विज्ञान का विचार प्रभाव शील है अत:आज सभी विचारों को वैज्ञानिक साबित करने की होड़ लग गई है। जैसे मंत्र विज्ञान ,ज्योतिष विज्ञान ,हस्तरेखा विज्ञान आध्यात्म विज्ञान ।कुछ लोग अपने पंथ विशेष को वैज्ञानिक बताने में लगे हैं । कई जगह विज्ञान को विभिन्न धर्मों में बांटने का प्रयास है ,जैसे इस्लामी विज्ञान, ईसाई विज्ञान आदि कहीं विज्ञान को देशों संस्कृतियों में बांटने का प्रयास है भारतीय विज्ञान , चीनी विज्ञान आदि ।अत: प्रश्न उठता है, आखिर विज्ञान है क्या जिसका आजकल इतना शोर है, सभी लोग जिसके पीछे पड़े हैं, अपने को वैज्ञानिक साबित करने पर तुले हैं ।
वैज्ञानिक इसका उत्तर कुछ इस प्रकार देते हैं ।
विज्ञान सोचने का एक खास ढंग है ।विशेष विचार पद्धति है ।
विज्ञान की इसी के साथ कुछ मूल अवधारणाएं भी हैं ।
1-विज्ञान इस विश्व की लौकिकता में विश्वास करता है ।प्रकृति अपने नियमों से परिचालित है । कोई अलौकिक दिव्य शक्ति इसकी परिचालक या नियंत्रक नहीं है ।
2-इस दुनिया को जानने का एक मात्र स्रोत हमारी ज्ञानेन्द्रियां हैं । देखने ,सुनने ,सूंघने ,चखने , स्पर्श से हम विभिन्न वस्तुओं का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।एवं बुद्धि से उन्हें समझते हैं, उन्हें एक दूसरे से जोड़ते हैं, घटनाओं के होने के पीछे का वास्तविक कारण समझते हैं । भविष्य की संभावनाओं का पता लगाते हैं, आकलन करते हैं व आशंकाओं से बचाव के उपाय करते हैं ।
3-यह विश्व वास्तविक एवं परिवर्तन शील है ।जड़ प्रकृति में भी निरंतर परिवर्तन हो रहा है एवं चेतन जगत प्राणी एवं पेड़ पौधेां में भी परिवर्तन होता है। विख्यात वैज्ञानिक चार्ल्स डारविन के विकास वाद के सिद्धांत के अनुसार जीव– जंतु व पेड़– पौधे बदलते पर्यावरण के कारण स्वयं को नई परिस्थति के अनुकूल बनाने के लिए परिवर्तित होते रहते हैं ।पुरानी जातियों से नई जातियों का विकास होता रहता है ।
4-विज्ञान मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को ही मानता है । अनुमान या अंदाज को नहीं मानता जब तक प्रत्यक्ष रूप से या प्रेक्षण प्रयोगों से साबित न हो । शब्द प्रमाण किसी किताब या धर्म ग्रंथ में लिखा है या किसी महा पुरूष ने कहा है उसे मान्यता नहीं देता । जब तक प्रयोग या प्रेक्षण से साबित न हो ।
विज्ञान की पद्धति एक ऐसी पद्धति है। जिसका वैज्ञानिकों ने धीरे– धीरे लम्बे समय में विकास किया नई खोजों ने नई जानकारियों के द्धार खोले और विज्ञान ने नए क्षितिज पार किए यह प्रक्रिया निरंतर जारी है ।
हम प्रकृति के बीच रहते हैं अपने वातावरण का हम पर प्रभाव पड़ता है उससे कुछ समस्याएं उत्पन्न होती हैं हम उनके हल का उपाय करते हें ।यहीं से विज्ञान प्रारंभ होता है ।
1- दिलचस्पी हम अपने वातावरण में आसपास जो समस्याएं उत्पन्न होती हैं उन पर अपना मन विचार केन्द्रित करते हैं।
2- जिज्ञासा –अत: उस समस्या विशेष को अलग कर उस पर विचार करते हैं ।
2-3- अवलोकन –अब हम उस समस्या का निरीक्षण करते हैं उसका कारण क्या है कैसे घटती है कब घटती है घटना के सहायक व विरोधी कौन से कारण हैं ।परिमाप कितना है ।
4-कल्पना – बुद्धि द्धारा हम घटना के अंर्तनिहित कारण को जानने का प्रयास करते हैं उसका मन में एक चित्र बनाते हैं ।
5-तर्क –उसे अन्य प्रमाणों अन्य समान घटनाओं से तुलना कर समझने का प्रयास करते हैं । तर्क संगतता प्रदान करते हैं ।
6-प्रयोग –अब उसे विभिन्न परिस्थितियों में प्रयोग कर दोहराते हैं उसकी क्षमता व सीमा का पता लगाते हैं ।
7- परिकल्पना – हम अपने आकलन की एक मोटी रूप रेखा बना लेते हैं ।
8- आंकडे- हम बार बार प्रयोग करके व सर्वेक्षण करके आंकडे इकट्ठे करते हें ।
9-सूक्ष्म निरीक्षण- एकत्रित आंकड़े व विभिन्नन प्रयोगों की श्रृंखला के प्रकाश में अंर्तनिहित कारण खोजते हें
10- निष्कर्ष –अब समस्या का निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं ।
नई समस्याओं के हल का प्रयास करते हैं ।
यह एक मोटी रूप रेखा है विभिन्न समस्याओं के निराकरण के लिये विभिन्न पद्धतियों का विभिन्न चरणों में प्रयोग करते हैं ।
परंतु ये सब बातें रातों रात नहीं हो गईं। मैं पहले चर्चा कर चुका हूं कि सृष्टि के आंरभ में मानव समाज जंगल में निवास करता था। वह गृह विहीन था कोई निश्चित ठिकाना नहीं रहता था कोई संपत्ति नहीं थी ।वह जंगल में उत्पन्न फल संचय से काम चलाता था कभी- कभी छोटे- मोटे शिकार कर लेता था या मृत पशुओं का मांस उपलब्ध होने पर खाता था असुरक्षित रहता था भय ग्रस्त रहता था उसके पास हथियार नहीं थे धीरे धीरे उसने पत्थर ,लकड़ी, सींग, हड्डी से औजार बनाए, इसमें समय लगा, पशु पालन सीखा ।आग जलाना सीखा । हालत सुधरी । अकाल, बाढ़, बीमारी जंगली पशुओं के आक्रमण से बचाव उनके शिकार से जूझना सीखा ,उनके कारणों के बारे में जाना ।जंगली पशु कौन से पालतू बनाए जा सकते हैं किन पौधों का भोजन व अन्य कामों मे उपयोग किया जा सकता है । इसमें वर्षों लगे या कहिए सदियां लगी। उसका ज्ञान सीमित था ।
सभ्यता के प्रारंभ से ही मानव ने अपने अस्तित्व व अपने आसपास के बारे में सोचना आरम्भ किया। उसने स्वयं के बारे में व आसपास के बारे में विभिन्न दृष्टि कोण अपनाए ।आदि मानव को अपने ज्ञान की सीमा व प्रकृति के सामने अपनी असहायता के कारण प्रकृति उसे दुर्दांत शक्ति लगती थी व रहस्यात्मक व अज्ञेय प्रतीत होती थी। मुख्य रूप से दो- तीन तरह के दृष्टि कोण सामने आए । इन विचारों से ही आसपास के बारे में व स्वयं के बारे में जिज्ञासा व अपने समूह के बारे में विचार विश्वास व सामाजिक आर्थिक विकास की दिशा का निर्धारण होता है ।
एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमें वास्तविकता से साक्षात्कार कराता है व जीवन की समस्याओं के प्रति सही दिशा की ओर उन्मुख करता है। ताकि हम अपनी समस्याओं का हल उनके सारे पहलुओं को परख कर करें ।
हमारे आसपास के वातावरण के प्रति हमारी दो तरह की प्रतिक्रियाएं होती हैं। वास्तविक व आत्मिक (objective and subjective )आत्मिक (जो हमारे मन की धारणाओं ,विश्वासों के अनुसार होती हैं जैसे – भूत, प्रेत , आत्मा ,चमत्कार देवता देवी आदि )
अत: प्रश्न उठता है कि प्रथम क्या है भौतिक पदार्थ शरीर पेड़ पहाड़ नदी सामने सारा दृश्य जगत या चेतन ।
भौतिक वादी मानते हैं पदार्थ पहले है उससे ही चेतना का निर्माण होता है।
आत्मिक विचार को मानने वाले मानते हैं चेतना का अस्तित्व भौतिक पदार्थ से स्वतंत्र है व उसी(चेतन ) की इच्छा से भौतिक जगत का निर्माण होता है ।
भौतिकवादी विचारक इस दृश्य जगत को ही वास्तविक मानते हैं वे देवता- देवी, भूत –प्रेत, स्वर्ग- नर्क ,परलोक को काल्पनिक मानते हें उनमें विश्वास नहीं करते मृत्यु के बाद कोई जीवन या मानव का कोई अस्तित्व नहीं । मानव ने भूत- प्रेत ,देवता- देवी आदि का निर्माण अपनी कल्पना से या प्राकृतिक शक्तियों का मानवी करण करके अपने मृत पूर्वजों वीर पुरूषों की स्मृति आदि में किया है उनका वास्तविकता में कोई अस्तित्व नहीं ।
जबकि आत्मिक (आध्यात्मिक)विचार वाले लोगों के लिए मृत्यु के बाद का जीवन परलोक का जीवन बहुत महत्त्व पूर्ण होता है उसे वास्तविक मानते हैं देवी- देवता, भाग्य, पूर्व जन्म के पाप- पुण्य, स्वर्ग -नर्क आदि । वे राजा –महाराजाओं, संतों, ब्राह्मण, पुरोहितों का दैवी करण करते हैं राजा व पुरोहित ब्राह्मण इस धरती पर भगवान का रूप या प्रतिनिधि है उनके हर उचित अनुचित आदेश को बिना कोई सवाल किये बिना तर्क विवेक के मानना अनिवार्य है। कष्ट सहन करना नियति है हो सकता है पूर्व जन्म के पापों के कारण हो ।उसे नियति मान कर भोगें वे शासक वर्गों की तरफदारी करते हैं ,असमानता अन्याय का समर्थन करते हें भारत में इसके सबसे महत्त्व पूर्ण व्याख्याता महार्षि मनु हैं , वे ब्राह्मणेां व क्षत्रियों के तरफ हैं आइए देखें शूद्रों के लिए क्या कहते हैं । हमारे देश में सामान्य आकलन के अनुसार लगभग 85 प्रतिशत जन संख्या तथाकथित शूद्र है
एक मेव तु शूद्रस्य प्रभु: कर्म समा दिशत
ईश्वर ने शूद्र के लिये एक ही कर्म का आदेश दिया है ।
न शूद्र राज्ये निव सेन्या धार्मिक जनावृत्ते
न पाषिण्ड गणाकंते नोप सृष्टे अन्त्य जैनृमिव
शूद्र राजा के राज्य में धार्मिक जन निवास न करें
संचयाश्चं न कुर्वीत शूद्र कथंचन
पापी यानहि धनं लब्धवा वशे कुर्यात गरीयस
शूद्र कभी धन संचय न करे क्योंकि धन संचय करते ही वह पापी हो जाता है
उच्छिष्ट मन्नं दातव्यं जीर्णानि वसुनानि च
पुल काश्चैव धान्यानां जीर्णाश्चैव परिच्छदा
उस सेवा परायण शूद्र को जूठा अन्न पुराने कपड़े
असार धान्य और फटे पुराने ओढ़न बिछावन देना चाहिये !
मतलब देश की 85 प्रतिशत जनसंख्या के लिए मनु महाराज के अनुसार जूठा बचा हुआ भोजन उतारन फटे पुराने कपड़े अपमान उपेक्षा पूर्ण जीवन यही उनका भाग्य है पूर्व जन्मों के पापों के कारण जिन जन्मों का कोई प्रमाण नहीं ।
पर सभी विचारक इससे सहमत नहीं थे उस युग में भी भारत में भौतिक वादी विचारक थे। जिनमें प्रमुख थे चार्वाक जिनका कहना था
भस्मी भूतस्य देहस्य पुनरो गमनं कुत:
वे आत्मा, परमात्मा व पुनर्जन्म , पूर्वजन्म में विश्वास नहीं करते थे ।
दूसरे भगवान गौतम बुद्ध्ध हैं जिनका कलाम को सम्बोधन प्रसिद्ध है ।
हे कलामो---
सुनी हुई बात पर विश्वास न करो ,परम्पराओं पर विश्वास न करो क्योंकि वे पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आई हें ।किसी बात पर इसलिए विश्वास न करो कि वह जन श्रुति है। किसी बात पर इस लिए विश्वास न करो कि किसी ऋषि का कथन है ।किसी बात पर इसलिए विश्वास न करो कि तुम्हारे अग्रजों व शिक्षकों ने कहा है ।किसी बात पर केवल तब विश्वास करो जब उसे जांच – परख लो और देख लो कि वह तर्क संगत है ।
गौतम ऋषि न्याय शास्त्र में ज्ञान का स्रोत इन्द्रियों का वस्तु से सम्पर्क बताते हैं ।
इन्द्रियार्य सन्निकर्षोत्पन्न ज्ञानमध्य पदेश्य
मन्यमिचारि व्यासायात्मकं प्रत्यक्षं ।
वह ज्ञान जो इन्द्रियों के किसी वस्तु के सम्पर्क से फल स्वरूप प्राप्त होता है और जो सुष्पष्ट शब्दों में व्यक्त किए जाने योग्य हो वह त्रुटिहीन ज्ञान होता है ।
पश्चिम में एक देश ग्रीस या यूनान है उस देश के मिलेटस नामक शहर में ईसा से लगभग 585 वर्ष पूर्व 28 मई के दिन सूर्य ग्रहण पड़ा तब उस नगर के एक पंडित /विद्वान थेलिस नामक व्यक्ति ने ग्रहण प्रांरभ होने व पूर्ण होने का समय जनता को बता दिया व बताया इसका कारण सूर्य के आगे चंद्रमा का निकलना है किसी देवी- देवता की नाराजी नहीं है । यहीं से विज्ञान का प्रारंभ माना जाता है क्योकि उन्होंने पहली बार प्रकृति की किसी लौकिक घटना
का कारण उसका निरीक्षण करके उसका लौकिक कारण बताया किसी देवी -देवता का प्रकोप नहीं वे विज्ञान के पिता या प्रारंभ कर्ता माने जाते है
। वर्तमान तुर्की देश की राजधानी इस्ताम्बोल नाम का नगर है इसका पुराना नाम कांस्टेंटीनोपल या कुस्तुन्तुनिया था । तब इस पर रोमन नरेश राज्य किया करते थे । सन्1453ईसवी में इस नगर पर मोहम्मद सानी नामक तुर्की नरेश ने हमला कर जीत लिया । तो उस नगर के ईसाई विद्वान अपनी पुस्तकें लेकर इटली को ओर भाग गए व वहां शरण ली ।उसी समय के आसपास एक और प्रसिद्ध घटना हुई ।जर्मनी देश के नगर गुंटेनबर्ग निवासी निक जोनस ने किसी कारण निष्कासित किए जाने पर फ्रांस में शरण ली वहां उसने सन् 1440 में छापे की मशीन का अविष्ष्कार किया लौट कर गुंटेनबर्ग नगर में सन् 1450 में पहला छापाखाना खोला ।इससे किताबों की कई प्रतियां एक साथ छपने लगीं जो किताबें राजा महाराजाओं या मठों में सुरक्षित थी थोड़े से लोगों तक ही उपलब्ध थीं अब वे अपेक्षा कृत अधिक लोगों तक पहुंची ज्ञान का प्रसार हुआ । इस घटना का योरोप में बहुत महत्व है इसे रेनेंसा (Rene saw ) कहते हैं मतलब पुर्नजागरण।यूनान और रोम के पुराने साहित्य को जो थोड़े से लोगों के पास था बहुत सारे लोगों तक पहुंच ।बात यहीं तक सीमित नहीं रही आंदोलन एक नए स्तर तक पहुंचा इसे ( Reformation )सुधार आंदोलन कहते हैं इसे प्रारंभ किया सन् 1517 में जर्मनी के एक पादरी मार्टिन लूथर ने इससे राजनैतिक आर्थिक सामाजिक प्रभाव हुए पश्चिमी ईसाई धर्म दो भागों में बंट गया रोमन कैथोलिक चर्च व प्रोटेस्टेंट चर्च।प्रोटेस्टेंट चर्च को मानने वाले राजाओं ने पोप का अधिकार मानना अस्वीकार कर दिया पोप की सत्ता कमजोर हुई राजा निर्णय लेने में अपेक्षाकृत स्वतंत्र हो गए ।
पोलेंड देश के पेदुआ नगर में एक पादरी रहा करते थे उनका नाम था निकोलस कॉपरनिकस वे गणितज्ञ,व खगोल शास्त्री भेी थे ,मठ की अपनी धार्मिक व व्यवस्थापन संबंधी जिम्मेदारियां निभाने के साथ- साथ वे फुरसत के समय आकाश का निरीक्षण करते व अपने प्रेक्षणों का ध्यान से नोट करते रहते उनकी एक किताब बन गई सन्1543 ईसवी में उन्होंने इसे छपावा दिया व इसी के बाद उनकी मृत्यु हो गई उनके पहले जो खगोल में विद्वान टॉलेमी की विचार महत्त्व पूर्ण माने जाते थे उनके (ptolemy ) के अनुसार सारे ग्रह आकाशीय पिंड ,पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं(Geo Centric Doctrine) पर निकोलस कॉपरनिकस के अनुसार सारे ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं (Helico Centric Doctrine)उन्होने पुस्तक पोप (कॅथोलिक चर्च के प्रमुख धर्माचार्य) को ही समर्पित की । कॅथोलिक मत टॉलमी की स्थापना का समर्थक था उनकी पुस्तक पढ़ी जाती रही पर पोप के विरोध के कारण सन् 1616ईसवी में प्रतिबंधित की गई।इसी बीच एक और पादरी ज्योनार्डो ब्रूनो को कॉपरनिकस की स्थापना कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है के समर्थन करने के कारण पोप के आदेश से सन् 1600 ईसवी में जिन्दा जला दिया गया ।सन् 1608 र्इ्रसवी में नीदरलैंड के मिडिलबर्ग नगर निवासी हेन्स लिपरशे (Hans Lippershey )नामक चश्मा बनाने वाले ने दूरबीन का अविष्कार किया ।एक और पादरी गैलीलिओ ने सन्1609 ईसवी में इस टेलीस्कोप में सुधार किया और उससे चांद के धब्बे देखे बृहस्पति के चन्द्रमा ढूंढे । और निरीक्षण कर बताया कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है पोप बहुत नाराज हुआ उन्हें घर में नजरबंद रहने की सजा दी गई पोप के सामने सार्वजनिक रूप से घुटने टेक कर माफी मांगना पड़ी
और अपने शब्द वापिस लेते कहना पडा कि सूरज धरती के चक्कर काटता है । पर धीरे धीरे गैलीलियो की बात स्वीकार की जाने लगी । पर आज भी हमारे भारत के फलित ज्योतिष के गणना करने वाले इसी आधार पर गणना करते हैं कि सूर्य पृथ्वी के चक्कर काटता है । भारत में आर्य भट्ट ने निरीक्षण कर बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है । पर बाराहमिहिर ने उनकी स्थापना इस आधार पर अमान्य कर दी कि शास्त्र इसका अनुमोदन नहीं करते । इंगलेंड निवासी सर आईजक न्यूटन सन्1666ईसवी के लगभग खोज कर बताया किपृथ्वी पर चीजों के गिरने का कारण गुरूत्वाकर्षण बल है उन्हहोने गति के नियमों को भी खोज निकाला व प्रकाश सात रंगों से मिल कर बना है ।
सूक्ष्मदर्शी यंत्र ( Microscope )का अविष्कार सन्1590 ईसवी में नीदरलैंड देश के मिडिलबर्ग नगर में रहने वाले एक चश्मा बनाने वाले जैकेरियस जेनसेन नामक व्यक्ति ने किया सन्1655 ईसवी में रॉबर्ट हुक ने कॉर्क का टुकडा सूक्ष्मदर्शी के नीचे रख कर देखा उन्हे सेल दिखाई दिए सन् 1674 ईसवी में लीवानहुक ने प्रोटोजोआ देखा व बाद में बेक्टीरिया भी देखे ।इस तरह जन्तु ओ और पौधों की समानता दिखी। देवी सिद्धांतों पर एक और चोट थी बीमारियों के कारण ये सूक्ष्मजीवी थे । सन्1796 में डा. एडवर्ड जेनर (Edward Jenner ) ने एक गाय के शरीर से जिसे चेचक निकलीं थीं उसके चेचक के फफोले से रस लेकर एक आठ वर्ष के बालक की बांह में खरोंच लगा कर रस रगड़
दिया फफोला पड़ा
ठीक हो गया पर उसे चेचक नहीं हुई चेचक के टीके का अविष्कार हो चुका था फिर कई टीके खोजे गए। इन सब प्रगति से विज्ञान के कदम आगे बढ़े इसे (Enlightment)प्रबोधन कहा गया। जेम्स वाट ने भाप इंजिन का अविष्कार किया भाप से जहाज चलाना भी शुरू हूआ कपड़े
बनाने के करघे ( power loom)भाप से चलने लगे । अब राजा के दैवी अधिकार पर भी शंका होने लगी । सन् 1776 ईसवी में अमरीका ने स्वतंत्रता प्राप्त की व प्रजातांत्रिक देश बन गया सन्1789 में फ्रांस में क्रांति हो गई उन्होंने अपने राजा का सिर काट दिया व देश में प्रजातंत्र घोषित कर दिया राजा व चर्च दोनो के अधिकार खत्म कर दिए इसे क्रांति कहा गया इसके प्रमुख शिल्पी थे वाल्टेयर और रूसो और इस परिवर्तन में तीन मुख्य बातें /नारे थे (Equity fraternity liberty ) समानता बंधुता और स्वतंत्रता । इंगलेंड में व बाद में शेष योरोप में माल वनाना सस्ता हो गया व बनाने की गति तीव्र हो गई इसे बहुत सारे लोगों को रोज गार मिला व माल का निर्यात करने लगे बाजार खोजे जाने लगे । इसे (Indultrial Revolution ) औद्योगिक क्रान्ति कहा गया । इससे सारा योरोप माल बेचने निकल पडा इसने उपनिवेश वाद को जन्म दिया । हमारा भारत भी ब्रिटेन का उपनिवेश बन गया । नए दर्शन का जन्म हुआ अब केवल पुसतकों की लिखी बातें व संत महंतों की बातों पर आंख मूंद कर विश्वास करने के दिन लद गए । वैसे तो मध्य युग में भी कुछ लोग इसको नहीं मानते थे बाबा कबीर कहते हें
और कहें कागद की लेखी कबिरा कहे आंख की देखी।
या
फूटी आंख विवेक की लखें न संत असंत
जा के संग दस बीस हैं ताको नाम महंत ।
फिर आई उन्नीसवीं सदी इसमें हेगेल साहब जो जर्मनी के निवासी थे ने एक सिद्धांत खोजा वाद , प्रतिवाद संवाद का जिसे वे द्धन्द्ध वाद कहते थे उन्हीं के शिष्य कार्ल मार्क्स ने उसमें सुधार करके उसका नया नाम करण किया भौतिकवादी- द्धन्द्ध वाद ।ब्रिटेन में चहली बार कामगारों का संगठन बना (working man association)फिर उसने 1836 से 1848 तक एक आंदोलन चलाया जिसका नाम है चार्टिस्ट मूवमेंट इसकी प्रमुख मांगे थी सबको वोट का अधिकार जीते सदस्यों को वेतन हर साल चुनाव सम्पत्ति के आधार पर भेदभाव न हो ।भारत में ब्रिटिश शासन था । अत: बहुत सी बातों का प्रभाव पड़ा
। भारत में सार्वजनिक शिक्षा लागू की गई । मात्र धार्मिक विषय नहीं वरन् लौकिक विषयों की पढ़ाई शुरू हुई। राजा राम मोहन राय व ईश्वर चंद विद्या सागर के प्रयास से लड़कियों की शिक्षा भी शुरू की गईमहाराष्ट में ज्याति बा फुले व उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले ने शूद्रों व महिलाओं की शिक्षा के लिए पहला स्कूल खोला । सती प्रथा पर रोक लगी महिलाओं को पुर्नविवाह का अधिकार मिला सारी दुनिया में दास प्रथा पर रोक लगी भारत में भी 1843 में तत्कालीन गर्वनर –जनरल द्धारा दास प्रथा उन्मूलन का फरमान जारी किया गया । अमेरिका के शिकागो नगर में एक बड़ा आंदोलन उठ खडा हुआ मजदूर आठ घंटे तक काम की सीमा का अधिकार मांग रहे थे दमन हुआ आठ लोगों को फांसी दी गई पर 1886 में माना गया आज भी मई दिवस सारे विश्व में मनाया जाता है । रेल का अविष्कार हुआ भारत में 1853 में पहली रेल चली। भारतीय दंड संहिता बनी सबको फौजदारी कानून के तहत एक सा दंड मिलने की बात कहीं धार्मिक दखल बंद हुआ। भारत के हिंदी क्षेत्र में पहला छापाखाना लखनउ में नवल किशोर प्रेस खुला और हिन्दी में किताबें छपना शुरू हुईं । एक और महत्त्व पूर्ण खोज चार्ल्स डारविन का विकास वाद की खोज है उनकी पुस्तक (Origin of Species)सन् 1859 ईसवी में प्रकाशित हुई इसमें बताया कि सारे जीव जंतु एक ही एक कोशीय जीव से उत्पन्न हुए हें उनमें जो फर्क है वह उनमें वातावरण के अनुकूलन के कारण है जो जीव जंतु वातावरण के अपने को अनुकूल नहीं बना पता वह नष्ट हो जाता है यही प्रकृतिक चुनाव का सिद्धांत है विश्व के सारे ही धार्मिक पंथों ने इसका विरोध किया अब भी प्रवचन व धार्मिक पंथों की पत्रिकाएं उनका साहित्य इसके विरोध से भरे पड़े हैं इससे आदम हव्वा की कहानी मात्र कहानी बन कर रह गई ।दूसरे वैज्ञानिक का नाम सिगमंड फ्रायड उन्होने मनोविश्लेषण की खोज की व मनो चिकित्सा की विधियां खोजी भूत प्रेत बाधा पागल पन के कारण बताये व झाड़ फूंक के बजाय वैज्ञानिक इलाज बताए। उन्होंने चेतन मन अवचेतन मन के बारे में बताया मानव की मूल इच्छाऐं इड, अहम व परा अहम की बात की । बीसवीं सदी में विज्ञान और आगे बढ़ा । रूस में पहला समाजवादी राष्ट्र बना । मेरे देश में भूमि सुधार की बात उठी सन् 1937 में श्रम सुधार कानून लागू हुए आजादी के बाद भूमि सुधार लागू हुए अभिव्यक्ति की आजादी हमें अपना धर्म पालन की आजादी इसमें राज्य का दखल नहीं होगा सब नागरिकों को वोट डालने का अधिकार महिलाओं को वोट डालने का अधिकार सम्पत्ति का अधिकार मिला सबको शिक्षा की बात की गई लैंगिक भेदभाव नहीं होगा । एक और नई बात मानव अधिकारो की बात हो रही है । सबको सवाल पूंछने का अधिकार पर आजकल जो सत्ता से सवाल करते हैं वे देश द्रोही घोषित कर दिये जाते हैं जाने क्यों । टेलीविजन , कम्प्यूटर मोबाईल बहुत से नए अविष्कार हुए संचार की सुविधाएं बढी । नई तरह के बीज जो ज्यादा फसल देते हैं ज्यादा दूध देने वाले पशु एन्टीबायोटिक दवाएं आ गई हैं । तरह तरह के टीके उपलब्ध हैं ।हमें लगा बस स्वर्ग अब करीब है वैज्ञानिक प्रगति से प्राप्त समृद्धि का फल सबको प्राप्त होगा ।पर न जाने क्या हुआ सन् 1991 के बाद कुछ नई नीतियां लागू हुईं लागू करने वाले सुप्रसिद्ध अर्थ शास्त्री थे । तब से सरकारी सेवकों की पेंशन की सुविधा बंद हो गई स्थायी नौकरियां कम की गईं शिक्षा का निजी करण होकर मंहगी हो गई स्वास्थ्य के बजट में कटौती हुई देश में बेरोजगारी फैल गई करखाने बंद हो रहे हैं ।श्रम कानूनों में कटौती की जा रहीं है काम के मजदूरों के घंटे बढाए जा रहे हैं देश में साम्प्रदायिक दंगे हो रहे हैं परस्पर घृणा को बढावा दिया जा रहा है जाति दंगे भी हो रहे हैं कठिन संघर्ष से पाई गई उपलब्धियां छीनी जा रहीं हैं मिथ को सत्य बताया जा रहा है पुराण कथाओं को इतिहास बताया जा रहा है वेदों में से वायुयान ,मिसाईल परमाणु बम ढूंढ लिए गएवैज्ञानिक सेमिनारों में न जाने किन बातों को बोला जा रहा है अब तो वे दंभ से घोषणा कर रहे है कि विज्ञान को धर्म का चाकर बनना होगा गणेश जी की प्लास्टिक सर्जरी की बात हो रही है पर विज्ञान केवल देश विशेष में तो है नहीं सारे विश्व का है मानवता की थाती है इसे सबसे कैसे मनवाएं यही उनकी दुविधा है । लगता है प्रगति के पहिए को पीछे घुमाने का प्रयास हो रहा है इन्हें बचाने के लिए एक लम्बा संघर्ष छेड़ना पड़ेगा । तभी सब को मूल भूत सविधाओं का लाभ मिल पाएगा वैज्ञानिक शिक्षा व रोजगार परक ,सस्ती ,सबको सुलभ शिक्षा का प्रबंध हो प्रचार प्रसार हो चिकित्सा सुविधा मुफत या नहीं तो सस्ती लोगों की पहुंच में हो रोजगार मिलें बेराजगारी कम हो हम स्वास्थ्य प्रद वातावरण में शांति व सुरक्षा से रह सकें ।हम एक वैदिक प्रार्थना दोहराएं
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुखभाग् भवेत।
हम सब सुखी हों सब निरोगी हो सब कुशल से हों कोई दुख न भोगे ।
इसे मात्र वाणी से दोहराना नहीं वरन् इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सब को मिल जुल कर सघंर्ष रत होना पडेगा तभी यह प्रार्थना सार्थक होगी
आमीन
स्वतंत्र कुमार सक्सेना
सावित्री सेवा आश्रम डबरा
जिला- ग्वालियर (मध्य प्रदेश)