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काहे री नलिनि तू कुम्हलानी

काहे री नलिनि .........

सूरज अपने पूरे तेज के साथ हाजिर । दोपहर के तीन बजने को हैं । महानगर के बीचोबीच ई पी एफ का यह आलीशान दफ्तर । दफ्तर में भीतर बाहर ग्राहकों का भारी जमावङा । लोग अपना काम न होने की मायूसी लिये वापिस लौटने की तैयारी में हैं । सब बार- बार नलिनि मैडम को पूछ रहे हैं ।
“ नलिनि मैडम कहाँ हैं ?”
“ आज आई क्यों नहीं ? उनसे एक बार मिल लेते तो काम पक्का हो जाता । “
“ ये नलिनि मैडम तो आज भी नहीं आई । कब आएंगी ?”
“ वे कल आ जाएंगी क्या ?”
लोग बेचैन हो गये हैं । बारबार पूछ रहे हैं । किसी के पास कोई जवाब नहीं । कोई कुछ जानता ही नहीं ।
नलिनि , हमारे डिपार्टमैंट की सबसे जीवंत महिला है , बेहद स्मार्ट , अत्यंत एक्टिव । पिछले कई दिन से दफ्तर नहीं आ रही । कोई अर्जी नहीं । कोई फोन नहीं । ऐसा तो कोई नहीं करता और नलिनि जैसा जिम्मेदार अधिकारी तो बिल्कुल नहीं । उसका इस तरह घर बैठ जाना किसी को समझ नहीं आया तो सीमा और अंजलि ने फैसला किया कि छुट्टी होते ही सीधा उसके घर जाया जाय और हाल चाल पूछा जाए ।
घंटी बजाने पर दरवाजा नलिनि ने ही खोला था । करीने से कटे हलके ब्राऊन बाल , लाईनर लगी चमकती आँखें , होठों पर हलकी गुलाबी लिपस्टिक , पूरा दिन काम करके भी मजाल है , कपङों पर कहीं एक सलवट आ जाए , चुस्ती फुर्ती का दूसरा नाम है नलिनि । जिस नलिनि को हम जानते थे , वह चुस्त दुरुस्त नलिनि यहाँ कहीं नहीं थी । एकदम अस्त व्यस्त , पीला चेहरा , निस्तेज आँखें , लङखङाते कदम । लगा अभी गिर पङेगी । सूरत से लग रहा था जैसे सीधे किसी कब्र से निकल कर चली आ रही है ।
अंजलि ने दौङ कर उसे थाम लिया ।
“ क्या हुआ नलिनि ? ”
उसने प्रश्नसूचक नजरों से देखा । दरवाजे तक आने में ही उसकी साँस फूल गयी थी ।
“ बता न , क्या हुआ “ - दोनों सखियाँ सहारा दे उसे भीतर ले आई ।
“ कुछ खास नहीं ।“
“ आम ही सही , बता तो “
बारबार पूछने पर उसने झिझकते झिझकते बताया – “ पिछले दो महीने से लगातार ब्लीडिंग हो रही है । शायद मैनोपास हैं । उसमें ऐसा होता है । चालीस पर पहुँच रही हूँ न “ । उसने जबरदस्ती हँसने की कोशिश की पर इस कोशिश में चेहरा और भी ज्यादा विवर्ण हो आया ।
“ दो महीने से । पागल है तू नलिनि ! किसी डाक्टर को दिखाया या खुद ही मान कर बैठी है । चल हमारे साथ अभी इसी वक्त दिखा कर आते है “
और वे दोनों उसे जबरदस्ती गायनी डाक्टर मीना के पास ले गयी । रास्ते भर उसका वही सुर रहा – “ ऐसा कुछ खास तकलीफ नहीं है । गोली खा रही हूँ न । अब ठीक हो रहा है । क्या करेंगे दिखा कर । घर वापिस चले । “
क्लिनिक पहुँच सीमा ने पर्ची बनवायी । उसकी हालत देख रिसैप्शन पर बैठी लङकी तत्काल उसे डाक्टर के कैबिन में ले गयी ।
डाक्टर मीना ने देखा तो पूछा – “ कहाँ रही इतने दिन । मैंने जो टैस्ट लिखे थे , करवाये या वो भी नहीं । और दवाई तो सिर्फ पाँच दिन की थी , आज उस बात को डेढ महीना होने को आया । फिर दोबारा आई क्यों नहीं । तुम्हारे पति को तो मैंने बार बार समझाया था । “ उसने अटैंडैंट को बुला कर पर्ची पकङाई और सारे टैस्ट दोबारा करने को कहा ।
यानि नलिनि पहले भी डाकटर से मिल चुकी थी ।
नलिनि फिर अङ गयी थी – “ आज टैस्ट नही । कल हस्बैंड के साथ आकर करा लूँगी ।आज वापिस चलते हैं ।“
“ रहने दे । अगर तूने उसके साथ आ के कराने होते तो अब तक करा चुकी होती । “
“ यार तब राज को एक सैमीनार में जाना था ।“ – वह एकदम टिपीकल भारतीय नारी के स्टाईल में सफाई दे रही थी ।
“ तू महीने में बीस बीस दिन इस तरह बीमार रहेगी तो उसे तो सैमीनार पर जाना ही पङेगा । “ हम दोनों चेहरे पर छाई मुर्दनी को कम करने के लिए हँस पङी थी । नलिनि के मुख पर एक काली छाया आई और चली गयी । नलिनि ने सायास उसे छिपा लिया था ।
“ पर वह तो दो दिन के लिए ही गया होगा न ? उसके बाद ? “
“ पूरे हफ्ते का टूर था दिल्ली में। उसके बाद विपुल के प्रैक्टीकल शुरु हो गये । फिर फाइनल ऐग्जाम । तू ही बता उसके बोर्ड एग्जाम खराब कैसे कर देती । और ऐसी कोई तकलीफ भी नहीं थी । बस थोङी ब्लीडिंग ही तो है जो अपनेआप ठीक हो जाती है । बाकी थोङी कमजोरी है , खाने पीने से वह भी ठीक हो जाएगी । “ – वह सहज दिखने की पूरी कोशिश कर रही थी ।
“ विपुल के टैंथ के ऐग्जैम कैसे चल रहे हैं ? ”
“ वो आज लास्ट है साइंस का । बहुत अच्छे से कर रहा है । “
हम अपने दुख सुख करते रहे ताकि नलिनि नार्मल हो सके । इस बीच सारे टैस्ट हो गये । रिपोर्ट वही थी जिसका डर था । स्थिति भयानक हो चली थी । नलिनि का यूटरस कैंसर तीसरी स्टेज पर पहुँच गया था । नलिनि को तुरंत आपरेशन की जरुरत थी पर उससे पहले दो टैस्ट और होने थे ।
डाक्टर ने ऐडमिट कर इलाज शुरु किया । राजकुमार को फोन पर अस्पताल का पता बता दिया गया और उसके आने पर हम घर लौट गये ।
पाँच दिन बाद पता चला , नलिनि घर आ गयी है । इतनी जल्दी । बात कुछ हजम नहीं हुई पर उस दिन जाना संभव नहीं हुआ । हफ्ते बाद गयी तो नलिनि दवा के नशे में बोलने की हालत में भी नहीं थी । राज दफ्तर गया था । घर में एक औरत थी जिसने हमें पानी दिया और चाय बनाने चल पङी । पर हम चाय पीने के लिये वहाँ रुके नहीं फिर आने का वादा कर लौट आए ।
अगले दिन दोपहर में लंच ले रहे थे कि मोबाइल की रिंगटोन बजी । नलिनि फोन पर थी । बार बार मिलने का आग्रह कर रही थी ।
“ नलिनि अभी कैसे आएँ । अभी तो दफ्तर में हैं । “
“ मतलब तुम नहीं आओगी “ उसके स्वर में निराशा थी ।
“ ठीक है । छुट्टी होते ही आते हैं । “ हमने उसे तसल्ली दी ।
और इस बार दरवाजे पर ही मिले थे राजकुमार । कहीं बाहर जाने को तैयार दिखाई दे रहे थे ।
“ आइए आइए बैठिए । उन्होंने सोफे की ओर संकेत किया । “ हम बैठ गये ।
“ कैसी है अब नलिनि । “
कैसी होगी वो यह जानते हुए भी मात्र पूछने के लिए पूछा ।
“ आप खुद ही देख लीजिए । “ - वे पानी के दो गिलास ले आए थे ।
“ यदि समय पर बीमारी का पता चल जाता तो यूटरेस रिमूव कर दिया जाता और नलिनि इस तकलीफ से बच जाती । “
“ फिर बिना गर्भाशय के वह औरत कहाँ रह जाती मैम । जिनके ये नहीं होता या इसमें कोई नुक्स होता है जानती है उन्हें क्या कहते हैं । “
“ आप खुद पानी क्यों लाए । “ मैने बात बदलने के लिए कहा ।
अजीब है ये आदमी । बीबी मरने के कगार पर है और इसे ये फालतू बातें सूझ रही हैं । कौन कहेगा इस आदमी के साथ नलिनि ने लवमैरिज की थी और पिछले सोलह- सत्रह साल से दोनों इकट्ठे जी रहे हैं ।
“ और कौन लाता मैम । राधा आई थी मदद के लिए । उसे तो नलिनि ने लङ झगङ के भगा दिया । “ वह शिकायत के सुर में बोला ।
“ खैर , दवा कहाँ से चल रही है । “
“ वहीं डाक्टर मीना से । डाकटर ने सिर्फ चार महीने लाईफ बताई है । पहले शायद कुछ हो सकता था पर इसने सीरियसली बताया ही नहीं । अब किसी दवाई का कोई फायदा नहीं है । एक नर्स सुबह शाम इंजैक्शन दे जाती है ताकि दर्द से आराम मिल सके । आप मिल लीजिए । मैं बाजार जा रहा हूँ । आप जाने लगें तो ताला लगा कर चाबी बाहर पायदान के नीचे रख दीजिएगा । बेटा आएगा तो अपनेआप ले लेगा । “
हमारे उत्तर का इंतजार किये बिना ही वे चले गये । हमने मेन बैडरुम में झांका ।
“ नलिनि कहाँ हो भई । “
साथ वाले बैडरुम से क्षीण सी आवाज आई “ आओ । “
कमरे में बैड पर लेटी नलिनि दिखाई ही नहीं दे रही थी । मात्र हड्डियों का ढांचा । दो महीने में ही नलिनि और उसका घर दोनों बेनूर हो गये थे । पलंग के पास प्लास्टिक के स्टूल पर सूखे ब्रैड , एक बोतल जूस , जूठे गिलास , दवाइयों के खाली रैपर और भी न जाने क्या क्या ढेर लगा था ।
मैं लाबी से एक कुर्सी उठा लाई थी ।
“ तुमने फोन किया था ? “
जवाब में नलिनि बच्चों की तरह फूट-फूट कर रो पङी थी । हमने उसे रोका नहीं । बह जाने दिया । कभी कभी रो लेने से मन हल्का हो जाता है । काफी रो चुकने के बाद उसकी आँखें बरस चुके बादल जैसी शांत और धुली धुली दिखाई देने लगी । उसे अपनेआप को संयत करने में बहुत परिश्रम करना पङ रहा था । इस बीच मैंने स्टूल का सारा सामान समेटना शुरु किया ।
“ रहने दो , मैं उठाकर फैंक दूँगी । जब थोङा ठीक लगता है तो फ्रीज से कुछ निकाल लाती हूँ । मन करता है तो , खा लेती हूँ । “
“ विपुल ? ”
“ वह तो मेरे सामने ही नहीं आता । कहता है , मेरी शक्ल से उसे डर लगता है । घबराहट होती है । सारा सारा दिन पता नहीं कहाँ कहाँ भटकता रहता है । “
“ तो उसकी रोटी वगैरा ? “
“ मेरा ए टी एम उसके पास है । बाहर से ही कुछ न कुछ खा लेता है । जब मन करता है आ जाता है पर मुझसे या अपने पापा से कोई बात नहीं करता । “
एक ए टी एम तो शुरु से ही राज के पास था । अपनी मरजी से खरचा करता । नलिनि से एक एक पैसे का हिसाब लेता । नलिनि एक एक पैसे के लिए तरस जाती थी तो हमने ही उसका यह दूसरा खाता खुलवाया था जिसमें सेलरी के अलावा बाकी बिलों के पेमैंट आ जाते थे और नलिनि का खर्च चल रहा था । अब यह ए टी एम विपुल के पास था ।
“ और सरवैंट जो उस दिन काम कर रही थी । “
नलिनि का सब्र का बाँध अचानक फिर से टूट गया । वह फूट फूट कर रो पङी । काफी रो चुकने के बाद उसने खुद ही अपने आँसू पौंछे – “ मैंने भी उसे सरवैंट ही समझा था । वह सुबह सुबह आकर नाश्ता बनाती । छोटे मोटे काम निपटाती । फिर जब ये दफ्तर जाते तो वह भी चली जाती । शाम को दोबारा आती । रात का खाना बनाकर सबको खिलाती , रसोई संभालती फिर राज उसे घर छोङ आते । कभी ज्यादा लेट हो जाती तो एक दो बार यहीं रह भी गयी । मुझे कोई शक नहीं हुआ या यह कहूँ उसने शक का कोई मौका कभी नहीं दिया । “
“ फिर ? “
“ सब ठीक ही चल रहा था । परसों राज कुछ पेपर साईन कराने लाया था । मैंने देखा तो वे तलाक के पेपर थे । पूछा - ये सब क्या है ? “
“ देखो बात को समझो । तुम्हारी हालत तो बिगङती जा रही है । कोई तो चाहिए न घर संभालने के लिए । जो तुम्हें टाईम पर दवा दे , तुम्हारी सेवा करे । घर तुम्हारा है ,तुम्हारा ही रहेगा । काम रेवती सब संभाल लेगी । हम इस प्रोसेस को सीक्रेट रखेंगे । किसी को नहीं बताएंगे । न मेरे दफ्तर , न तुम्हारे पर रेवती की मरजी के लिए ये सब करना जरुरी है । समझी । “ मीठे सुर में समझाते - समझाते राज की आवाज से उसका पक्का इरादा झलकने लगा था । और वह कागज यह कहते हुए पटक कर चला गया “ लंच तक साईन करके रखना । मैं न सुनने का आदी नहीं हूँ । “
“ पता है रेवती उसी के दफ्तर में स्टैनो है और दोनों में पिछले काफी दिनों से घनिष्ठता है । “
“ तुझे कैसे पता चला । तेरा वहम भी तो हो सकता है । “
“ रेवती ने ही बताया कि उसे राज ने बताया था कि मैं अब चंद दिनों की मेहमान हूँ इसलिए वे दोनों कोर्टमैरिज करना चाहते हैं । “
मुझे बहुत गुस्सा आया । राज दूसरी शादी के लिए इतना उतावला है कि बीमार पत्नी की मानसिक पीङा का अहसास भी नहीं है । जिस समय नलिनि को सबसे ज्यादा उसके साथ की जरुरत है , उस समय ऐसी बेरुखी और ऐसे फैसले ।
नलिनि फिर रो पङी थी ,
“ इस आदमी के लिये मैंने हर रिश्ता छोङ दिया । हमेशा इसकी हर खुशी का ख्याल रखा । इस घर को बनाने में पूरी जिंदगी खपा दी । सारी की सारी तनख्वाह इसी घर में लगादी । अपने पास एक पैसा भी नहीं रखा । यहाँ तक कि अपनी सेहत की परवाह भी नहीं की । अब ये मेरे साथ ऐसा कर रहे हैं ।अब दो दिन से रेवती नहीं आ रही तो रेवती के न आने से पूरा दिन खीझे रहते हैं । विपुल को भी मेरी बिल्कुल चिंता नहीं । कल तक एक मिनट मुझे अपने से दूर नहीं होने देता था अब मेरे कमरे में झांकने भी नहीं आता ।इस आदमी की मीठी मीठी बातों में आकर मैंने घर वालों के खिलाफ जाकर मंदिर में शादी की थी फिर कोर्टमैरिज भी । एक दो साल तो पलकों पर बैठाकर रखा । फिर विपुल आ गया । ये आदमी मुझे तबसे इग्नोर कर रहा था पर मैं समाज और बेटे की वजह से चुप थी । सब कुछ ठीक ही चल रहा था । वह रोज समय पर घर आ रहा था । सुबह घर से तैयार होकर दफ्तर जा रहा था । और क्या चाहिए था मुझे । पर अब तो कई बार घर ही नहीं आता कि सारा दिन दफ्तर में काम करने के बाद तुम्हारी हाय हाय सुनने की मेरी हिम्मत नहीं है । बता मैंने क्या खुद बीमारी बुलाई है । “
मैं सुन्न हुई चुपचाप सुनती रही । एक तो बीमारी ,ऊपर से कीमो और रेडियो थैरेपी ने उसे शरीर से तोङ दिया था । दर्द से वह अलग बेहाल थी । ऊपर से यह संताप । औरत आज पढी लिखी है ।नौकरी करती है ।चार लोगों में उठती बैठती है । कमाती है । सब तरह से सक्षम है फिर भी इतनी लाचार और बेबस क्यों है । सारी जिंदगी खटने के बावजूद पल्ले के चारों कोने खाली । पुरुष आज भी उसका हमसफर न होकर स्वामी है । साथ निभाने की कसमें खाने के बावजूद सिर्फ भोक्ता । औरत के मन की भीतर झांकने की न उसे फुर्सत है , न जरुरत । मानो औरत केवल शरीर है । बेजान शरीर जिसे न थकावट होती है ,न दर्द । पता नहीं क्या क्या सोचे जा रही थी कि नलिनि ने पुकारा – कहाँ खो गयी , बता न, क्या करूँ । “
क्या कहती । सांत्वना के शब्दों का अकाल पङ गया था । मात्र इतना ही कह सकी – “ तू घबरा मत । साईन मत करना । हम कुछ न कुछ करते हैं । “
पर कुछ करने की नौबत ही कहाँ आई । कल रात सात बजे उसे सूप पिला कर हौंसला दे मैं घर आई थी और आज सुबह दफ्तर पहुँचते ही यह खबर मिली । नलिनि नहीं रही । रात में उसे हार्टअटैक आया जो अपने साथ ही ले गया । पूरा स्टाफ उसके घर गया था । आखिरी बार उसे मिलने । लोग राज और विपुल को घेरे हुए थे .। उन्हें चुप करा रहे थे । हौंसला रखने को कह रहे थे ।
लाल साङी , सिंदुर और माथे पर बङी सी बिंदी में लिपटी नलिनि फर्श पर शांत लेटी थी । हर पीङा से दूर । कहते हैं कि मृत्यु विश्रामस्थली होती है जहाँ आत्मा सारे कष्टों से मुक्ति पा आराम करती है । इस सब के बावजूद अरथी पर लेटी नलिनि का चेहरा बेहद कुम्हलाया और जर्द लग रहा था । मन किया , चिल्ला कर कहूँ – मैं जानती हूँ , नलिनि कैसे मरी पर क्या किसी मैडीकल रिपोर्ट में वह वास्तविक कारण दर्ज हो सकेगा जिसने नलिनि की जान ले ली । हत्यारे को हत्यारा साबित कैसे किया जा सकेगा ।
लोग बातें कर रहे हैं । इतनी पढी लिखी ,समझदार और हँसमुख नलिनि ऐसे अचानक कैसे चली गयी । इतनी छोटी उम्र में भी हार्टअटैक हो जाता है ? कोई नहीं जानता कि तिल तिल मरते उसे कितने दिन हो गये थे ।

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