परितृप्त Sneh Goswami द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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परितृप्त

परितृप्त

दफ्तर से घर लौटते उसके पैर मानो नाच रहे थे . आज घर में बरसों बाद वह अपनी पत्नी के साथ अकेला होगा . वरना तो बाबूजी ,अम्मा ,छोटी और राजू सब से भरे पूरे घर में सरिता से ढंग की एक बात भी कहाँ हो पाती है . ऐसा नहीं है कि उसे अपना भरा पूरा घर अच्छा नहीं लगता . इन्हीं लोगों की ऊँगली पकड़ उसने चलना सीखा . इन्ही बहन भाइयों से हंसते बोलते बचपन से जवान हुए , हर दुःख सुख बराबर झेला . फिर भी आज जैसा फील हो रहा है वैसा तो अद्भुत है . सुबह बुआजी की ओर से देवी जागरण का बुलावा देने नरेन भाई आये तो लगा था रात भर के लिए जागरण में जागना पड़ेगा . पर जुग जुग जियें अम्मा ! उसके मुंह खोलने से पहिले ही बोली -ऐसा है भई नरेन ! ये नरेश तो आता ही रात को नौ बजे है ऊपर से जाना भी सुबह सात बजे होता है थका हारा आएगा तो कैसे बैठ पायेगा . उस पर अनु भी बहुत छोटी है इसलिए ये और इसकी बहु तो नहीं पर बाकी हम सब शाम को ही पहुँच जायेंगे .
उसने कृतज्ञता से माँ को देखा .अन्दर रसोई से टिफिन उठाने के बहाने सरिता को ए टी एम देते हुए बुआ और फूफा जी के लिए कपड़े खरीद लाने को दिए
पर जी इसकी जरूरत नहीं है .इस बार राखी पे माँ ने साड़ी और पेंट शर्ट भेजी थी न वही दे देंगे अम्माजी को वहाँ देने के लिए आप तो पांच सौ दे दो राजू को भेज के एक नारियल और लड्डू मंगवा लूंगी
यानि आज का पूरा दिन ही अच्छा है . छुट्टी होते ही वह सबसे पहले कैब की ओर लपका . किस्मत से पहली ही कैब में उसे बैठने की सीट मिल गयी . जल्दी ही सड़को पर सडक चौराहे पर चौराहे गुजरने लगे
उसने अपनी घड़ी में समय देखा साढे सात बज गए हैं . अभी कम से कम एक घंटा ओंर लगेगा . चुपचाप कैब में बैठ इन्तजार करने के अलावा कोई चारा नहीं . उसने खिड़की के शीशे से सिर टिका दिया .बाहर की ठण्डी हवा से उसे बहुत सुकून मिला .
उसने बाहर झाँकने की कोशिश की . आंचल साड़ी भण्डार , क्वालिटी आइसक्रीम , आर्चीस गिफ्ट हाउस बोर्ड भाग रहे हैं तेज तेज . फुवारे से निकलती रंग बिरंगी रोशनियों के बीच इतना मद्धिम संगीत उसने पहली बार सुना . उसे हैरानी हुई - ये सब उसे पहले क्यों नहीं दीखा रस्ता तो हर रोज़ यही होता है .इसी रास्ते से कैब दोनों बार गुजरती है . उसे एक जगह से दूसरी जगह पहुंचा देती है .पर कितना कुछ है जो बिलकुल अनचीन्हा है .एक दिन सरिता को साथ ले यहाँ घूमने आएगा . उसे कंधे पर हाथ का अहसास हुआ देखा कंडक्टर था - किन ख्यालों में गुम हो भाई ? उतरना नहीं क्या? तुम्हारा भारत नगर आ गया
वह झटके से उठा और कैब से नीचे आ गया . बस गिनती के पचास कदम और फिर उसका घर. . .लम्बे लम्बे डग भर उसने दरवाजा खटखटाया .उम्मीद के अनुसार दरवाजा सरिता ने ही खोला था . और रसोई से पानी लाने चली गई .उसने अपना कमीज खोल हाथ मुंह धोया . हाथ पोंछते वह बैड रूम में पहुंचा .पत्नी पहले ही पानी और कुरता पाजामा लिए खड़ी थी .उसने आगे बढ़ कर गले से लगाना चाहा . पत्नी मुस्कुराई - जी अनु देख रही है और शरमा कर फिर से रसोई में चली गई .
अच्छा ! तो अब ये अम्मा घर पर है . उसने गुस्से में पालने को देखा .नन्ही अनु उसे देख किलकारियां मार रही थी .उसके चेहरे की लकीरें स्निग्ध हो आई थी .अनु ने दोनों हाथ फैला दिए थे . उसकी दन्तुरित मुस्कान ने उस सीलन भरे कमरे को रौशनी से भर दिया था . नरेश ने हाथ बढ़ा अनु को गोद में उठा लिया था .सरिता चाय की ट्रे उठा लाई थी . पिता पुत्री की सहज किलकारियों में एक महक सरिता के हाथ के गर्मागर्म पकोड़ों की भी थी और प्यालियों से उठती भाप की भी . तीनो के चेहरे संतुष्ट और परितृप्त दिखाई दे रहे थे