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परवरिश

लघुकथा

परवरिश

“ मैडम जी पलीज मेरे बेटे को बचा लीजिए. वकील साहब को आप कहेंगी तो वे जैसे भी करके उसे छुड़ा देंगे . अभी उसकी उम्र ही क्या है । पंद्रह का ही तो हुआ है । जेल हो गई तो कहीं के नहीं रहेंगे . आप तो पढ़ाये हो उसे -“. वह लगातार बोले जा रहा था.”
वही रूप लाल जिसे दो साल पहले जब स्कूल बुलाया गया था कि उसके बेटे ने वीडियो गेम खेलने के चक्कर में गलती से अपने पिता की ब्लू फिल्म देख ली थी. और अब उत्सुकता के मारे अपने दोस्तों को उसके बारे में बता रहा था . एक लड़के ने मुझे शिकायत कर दी था. उसे दफ्तर बुलाया गया। पूछताछ में पता चला कि यह फिल्म उसे अपने घर में ही मिली थी.
रूप लाल ने सुन कर आश्चर्यमिश्रित गर्व से बेटे को देखा था
- अरे ये अभी से जवान हो गया.
शर्म की कोई बात उसे लगी ही नहीं।
बेटे को स्कूल से निकाले जाने की धमकी का थोड़ा सा असर पड़ा था और समझाने पर वह मान गय कि वह अपनी सारी सी डी घर से बाहर निकाल कर नष्ट कर देगा.
पर उस दिन से पंकज में दिनो दिन सुस्ती और लापरवाही बढ़ती जा रही थी । दूसरी बार बुलाने पर उसने स्कूल को ही जिम्मेदार ठहराया कि उसके बच्चे को जान बूझकर बदनाम किया जा रहा है, उसे सब परेशान कर रहे हैं ।
और सैशन पूरा होते ही उसने पंकज को किसी और स्कूल में दाखिला करवा दिया था.

उस बात को अभी पाँच महीने ही बीते होंगे कि आज वही रूप लाल अपने उसी बेटे को बचा लेने ने के लिए रो रहा था जिसने सिर्फ पंद्रह साल की उम्र में चार साल की बच्ची से बलात्कार की कोशिश की थी. क्या आज भी वह अपने अंदाज में कह पाएगा – “मैडम जी , मुझे क्या ? अपने आप भुगतान करेगा अगर कुछ गलत करेगा .
पर आज वह परेशान हो हाथ बाँधकर. खड़ा था । मिन्नतें कर रहा था। मै तो आज भी उस दिन की तरह स्तब्ध खड़ी थी ।असमंजस की स्थिति थी। क्या किया जा सकता है, क्या किया जाना चाहिए ,सोच पाना आसान नहीं था।
माँ की वापसी

बहुत दिनों से खांसी से बेहाल देख पड़ोसी उसे बार बार बेटे के पास दिल्ली जा कर टेस्ट कराने की सलाह दे रहे थे. हर बार वह टाल रही थी. लेकिन इस बार उसने जाने का फैसला किया. कुल जमा चार जोड़ी कपड़े बैग में रखते हुए उसने थैले में थोड़ा सा गुड़. शक्कर. पाँच किलो बासमति चावल..और किलो भर घी भी रख लिया. वहां शहर में खरीद कर कितना ले पाता होगा और शुद्ध कितना मिलता होगा.
रोकने के बावजूद सोहन उसे ट्रेन में बैठा आया. जब से शादी के बाद अभय दिल्ली आ बसा है. पहली बार वह दिल्ली आई है. बेटे को फ़ोन पर सूचना दे दी है.
स्टेशन पर उतर उसने इधर उधर देखा. अभय कहीं दिखाई नहीं दे रहा. वह रुआसी हो गयी. इस अनजान शहर में वह कहाँ जाएगी. तभी एक वर्दीधारी ड्राइवर ने उसे चिंता से उबार लिया – आइए माँ
अपने मैले थैले के साथ लग्जरी कार में बैठते वह एक कोने में सिकुड़ गई. कार कुछ ही देर में बड़ी सी कोठी के सामने रुकी. बेटे की तरक्की देख उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया.
अंदर ड्राइंगरूम में उसके बेटे की कोई मीटिंग चल रही थी.नौकरानी ने ट्रे में चाय बिस्कुट सजाये.
बहू कहाँ है
मैडम. वे तो टूर पर बाहर गई हैं. कल रात तक आएंगी.
चाय की ट्रे लिए वे बेटे की ओर बढ़ गई.बेटे ने उनकी ओर देखा और आवाज दी.- राजू माँ को उनका कमरा दिखाओ. वे फ्रेश हो जाएगी. चाय टेबुल पर रख वे चली आई थी. गेस्टरूम में दीवान पर बैठते उपवास का बहाना बना चाय उन्होंने लौटा दी थी.
बेटा कोई ऑटो बुला दो किसी डाक्टर के पास जाना है और हाँ रात की ट्रेन की टिकट भी ला दो. टेस्ट के बाद वापिस जाऊँगी.
इतनी जल्दी – राजू अचकचा गया था.
बेटे को देखना था देख लिया. डाक्टर को दिखाना था दिखा रहे हैं.वहाँ घर में बहुत लोग हैं जो मेरे बिना एक मिनट भी नहीं रहते.
उन्होंने अपना कपड़े वाला बैग खोल लाई स्वेटर और साड़ी दोनों नौकरों में बांट दी और ऑटो में बैठ गई.


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