प्रेम का उदय Kumar Kishan Kirti द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम का उदय

पत्नी उदास बैठी है. मन ही मन कुढ़ रही है और अपने पति पर गुस्सा कर रही है. गलती उसी की है, जो एक शायर और लेखक से प्रेम विवाह कर ली है
क्या जरूरत थीउस को इतनी ज्यादा आशा रखने की अपने पति से?आज उसका जन्मदिन है. सारे मेहमान आकर चले गए. सब उसके पति के बारे में पूछ रहे थे और वह बेचारी क्या जवाब देती?कैसे मेहमानों से कहती की उसके शायर पति अभी तक मुशायरा से लौटे नहीं है. मेहमान क्या सोचते?आ जाए लौटकर घर पर,तब उनकी तबीयत ठीक करती हूँ. इतना सोचकर पत्नी गुस्से से अपने कमरे में चली गई, लेकिन उसी वक्त नौकर से बोली"अगर साहब आए तो दरवाजा खोल देना और उन्हें खाना खिला देना"
रात के करीब दो बजे लेखक महोदय घर आए.नौकर ने खाना पूछा तो उन्होंने कहा"नाम रामू काका,खाकर आया हूँ"इतना कहकर वे अपने कमरे में सोने चले गए
सुबह लेखक पति चाय पी रहे थे, लेकिन पत्नी बेचारी गुस्सा थी क्योंकि कल की बात उसे याद थी अतः पति बोले"क्या बात है?आप बहुत गुस्से में दिख रही है"इतना सुनते ही पत्नी क्रोधित होकर बोली"तो क्या करूँ?बैठकर आपके साथ शायरी लिखूँ. मेरा भाग ही खराब है जो एक लेखक से प्रेम विवाह कर ली.पता है आपको?कल मेरा जन्मदिन था,घर मे मेहमान आए हुए थे,लेकिन जनाब!तो मुशायरे में चले गए थे.मुझसे ज्यादा प्रेम तो इनको अपनी शायरी,गजलों से है"
इतना कहकर पत्नी वहाँ से चली गई दूसरे कमरे में
लेखक साहब चुपचाप सारी बातों से सुन लिए,लेकिन उन्होंने प्रत्युत्तर में कुछ नहीं कहा और वैसे भी वह अपने पत्नी का स्वभाव जानते थे, खैर थोड़ी देर के बाद उन्होंने एक पत्र लिखा और अपनी पत्नी के पास जाकर बोले"मैं जानता हूँ आप मुझसे नाराज है लेकिन एक बार इस पत्र को पढ़ लेना"
पत्नी उस समय खाना बना रही थी. कुछ नहीं बोली.और इतना कहकर पति वहाँ से चले गए और चुपचाप बरामदे में
रखी कुर्सी पर आँखें मुदकर बैठ गए. थोड़ी देर के बाद जब पत्नी का गुस्सा ठंढ़ा हुआ तो वह अपने कमरे बैठकर उस पत्र को पढ़ने लगी जिसमे लिखा गया था....
"प्रिये चांदनी,
मैं जानता हूँ. आप मुझसे नाराज है और आपको पूरा अधिकार है नाराज होने का.कारण,मैं खुद हूँ. आपके जन्मदिन पर भी आपके साथ नहीं था,जबकि मुझे आपके साथ होना चाहिए था और जहाँ तक मुझे लगता है.आप एक कवि से प्रेम विवाह करके पछता रही होंगी.आपको लगता है की मैं आपसे ज्यादा अपनी कविताओं से प्रेम करता हूँ तो आपकी सोच गलत है
चाँदनी, मेरी कविता तो आप है. अपनी जिंदगी और कविताओं से बढ़कर मैं तो केवल आपसे प्यार करता हूँ. हर वक्त मेरी निगाहें तुम्हें ही ढूंढती रहती हैं. फिर भी मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ. मुझे कोई भी सजा आप दे सकती है लेकिन यूँ हमसे खफा मत होइए
आपका प्रेमी और पति
किशन"
जैसे ही पत्नी पत्र को पढ़ी.उसके मन की सारी शिकायते दूर हो गई और एक प्रेम का उदय हुआ जो ठोस,किंतु मीठा था.
अतः वह तड़पकर अपने लेखक पति के पास पहुँची तो वह बरामदे में खड़े मुस्कुरा रहे थे. यह देखकर पत्नी बड़े ही प्रसन्न होकर बोली"बदमाश कही के"और इतना कहकर उनसे लिपट गई.
:कुमार किशन कीर्ति,युवा लेखक
बिहार