मेरी पगली...मेरी हमसफ़र - 3 Apoorva Singh द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मेरी पगली...मेरी हमसफ़र - 3

मैं उसे देख थोड़ा चौक गया!मैंने एक बार उसे आवाज दी 'सुनो'!लेकिन उसने सुना नही,शायद इसीलिए कि वो बहुत मन से मंच पर चलने वाली प्रस्तुति को सुन रही थी।उसके चेहरे पर फैली मुस्कान मुझे बता रही थी कि वो उस शाम को कितने ध्यान से एन्जॉय कर रही है।मैंने उसे फिर आवाज दी 'सुनो'।इस बार उसने सवालिया निगाहों से मेरी ओर देखा तो मैंने अपना हाथ ऊपर उसके सामने कर दिया और बोला 'सुनो,आपका दुपट्टा' !न जाने क्यों मैं उसके लिए शब्दो का इस्तमाल कर गया जो मैं कम ही करता था।उसे देख वो झेंप गयी और सॉरी कहते हुए हड़बड़ा कर उसे निकाल कर असहज महसूस करने लगी।


न जाने क्यों मेरे मन में ख्याल आया कि उसकी उस सुन्दर प्रस्तुति के लिए उससे दो शब्द बोलूं!उसका कारण शायद उसका असहज होना भी रहा।मैंने उससे धीरे से बोला 'सुनो,तुम्हारी प्रस्तुति बहुत अच्छी थी' सुनकर उसके चेहरे पर एक मुस्कान छा गयी जिसे देख मैं एक बार फिर मुस्कुराया और वापस अपनी जगह आ कर आँखे बन्द कर प्रस्तुति को एन्जॉय करने लगा।


कुछ देर बाद मेरा फोन रिंग हुआ जो मेरी स्वीट एंजेल त्रिशा का था!जिसे देख मुझे याद आया कि आज मैं उसके पास जाना ही भूल गया!मेरी आदत थी सप्ताह में एक बार उससे मुलाकात करने की उसके साथ खेलने की उसकी प्यारी सी बातों में हर गम भूल कर खो जाने की।नंबर देख मैं एक बार फिर अर्पिता के पास गया और धीरे से उससे बोला, 'सुनो,ये गजल की प्रस्तुति दस मिनट बाद खत्म हो जायेगी,तुम श्रुति की दोस्त हो तो उससे कहना कि मैं बाहर उसका इंतजार कर रहा हूँ'।


उसने अपनी खनकती आवाज में कहा, 'जी हम उससे कह देंगे'।'थैंक्स' बोल कर मैं वहां से उठकर चला गया और बाहर जाकर बात करने लगा।त्रिशा थोड़ा सा गुस्से में बात कर रही थी मुझसे।बित्ते भर की थी त्रिशा और उसका गुस्सा उससे दूने भार का। 'चाचू, आप आना भूल गये न,हम कबसे इंतजार कर रहे हैं,त्रिशा ने कहा तो मेरे मन में 'हम' सुनकर ही सुकून के साथ खुशी उभरी। 'हम' ये शब्द तो त्रिशा पहले भी कहती थी आखिर संगत का जो असर था राधु भाभी की लाडली जो थी।लेकिन उस समय मुझे वो शब्द कुछ अधिक ही अच्छा लगा।मैंने त्रिशा को मनाते हुए बोला,'क्या हुआ स्वीट एंजेल!आज आप चुप क्यों है? नाराज हैं क्या आप?'


वो अपनी तोतली सी जबान में बोली।'नही चाचू!एंजेल नाराज नही है।एंजेल तो आपका इंतजाल कल लही है।'


गुड! आप गुस्सा मत करिये चाचू कल अपनी एंजेल से मिलने आएंगे ये सीक्रेट है मम्मा को मत बताना ठीक है।


सुनकर ही त्रिशा धीमे से फुसफुसाते हुए बोली!ओके चाचू!


'गुड!माय एंजेल लव यू' मैंने कहा और फोन रखा।फोन रखने के बाद मेरी नजर सामने खड़ी श्रुति और अर्पिता दोनो पर पड़ी।वो कुछ सोचती हुई परेशान सी दिखी।जिसे देख मन में ख्याल आया ये सोचती बहुत है।श्रुति उसका परिचय मुझसे कराते हुए बोली 'भाई ये मेरी फ़्रेंड है अर्पिता!मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती है'।मैं बस फॉर्मलि बोला 'तुम्हारी दोस्त है ये तो मैं जानता हूं जब मंच से उतर कर तुम्हारे पास आई तभी गेस कर लिया।लेकिन ये तुम्हारे साथ कॉलेज में कैसे,क्योंकि इन्हें मैंने कहीं और किसी दूसरे कॉलेज की लाइब्रेरी में पढ़ते हुए देखा है।जहां मैं अक्सर जाता रहता हूँ'।मेरे मन में उसके बारे में जानने की ललक ने मुझे उसके बारे में पूछने पर मजबूर कर दिया।मेरे सवाल को सुन वो बोली, ' जी,वहां हम हमारी कजिन के साथ गये थे वो लेक्चर अटैंड कर रही थी तो हम लाइब्रेरी में बैठ कर पढ़ने लगे'।इतनी शालीनता से उसने जवाब दिया कि मैं उससे प्रभावित हुए बिन रह ही नही सका।चूंकि अभी तो सिलसिला शुरू हुआ था कहीं वो मुझे लेकर कुछ नेगेटिव विचार न बना ले ये सोच कर मैं बातों का सिलसिला खत्म करते हुए बोला, 'अरे कोई बात नहीं।तुम्हे मुझे सफाई देने की कोई जरूरत नहीं,ओके।वैसे मै प्रशांत!पेशे से एक बिजनेस मेन के साथ पार्ट टाइम म्यूजिक टीचर हूं यहीं पास ही में एक एकेडमी में इंस्ट्रूमेंट बजाना सिखाता हूं स्पेशली गिटार'! उसे अपने बारे में बताते हुए मुझे पहली बार एक अलग खुशी मिल रही थी।जैसे मैं चाहता था कि वो मेरे बारे जाने मुझे समझे।एक अलग जुड़ाव कुछ अलग एहसास उसके साथ महसूस हो रहे थे मुझे।मैंने उसकी ओर हाथ बढ़ाया।जिसे देख उसने मुझसे हाथ मिलाया।उसका प्रथम स्पर्श मेरे हृदय की गहराई में उतरता चला गया।एक अजब एहसास मन में समा गया।जो मुझे उसके आसपास होने का एहसास कराने लगा था।


मैंने अपना हाथ पीछे किया और श्रुति से बोला,'श्रुति तुम्हारी दोस्त तुम्हारे साथ खड़ी है और तुम हो कि यहीं खड़ी हो कुछ भी नही पूछा उससे।सब मैनर भूल गयी'।मुझे सुन श्रुति ने हैरानी से मुझे देखा।हैरत वाली बात ही थी मैं वैसे भी कम बोलता था और हंसी मजाक तो बाहर कम ही करता था बस कभी कभी घर में कार्य करते हुए कर लेता।श्रुति बोली, 'आपको तो मैं घर देख लूंगी'और अर्पिता से बोली,सॉरी यार वो मैं बस यूँ ही बातों ही बातों में भूल गयी वो वहां एक आइसक्रीम वाला दिख रहा है चलो चलकर वही खाते हैं'।श्रुति को सुन उसने मेरी ओर देखा और श्रुति से बोली 'हम दोस्त है न तो दोस्तो में फॉर्मेलिटीज की तो जरूरत ही नही।हमे अगर कुछ चाहिए होगा तो हम हक से बोल देंगे समझी कि नही'।


उसकी बात सुन मैं समझ गया ये श्रुति से नही मुझसे कहा गया था।मैं हल्का सा मुस्कुराया और मन में सोचा,तहजीब में रहकर सभ्य तरीके से जवाब देने की कला क्या खूब आती है इसे।


मैं बोला 'बाते हो गयी हो श्रुति तो अब चला जाये'!'हां भाई' श्रुति बोली।नजर एक बार फिर अर्पिता पर चली गयी और न चाहते हुए भी बोल पड़ा, 'तुमसे मिलकर अच्छा लगा'!

'हमे भी आपसे मिलकर बेहद खुशी हुई'उसने कहा।उसके चेहरे की प्रसन्न्ता बता रही थी कि वो सच ही कह रही थी।श्रुति उसके गले लगी और उससे बाय बोल कर बाइक पर बैठ गयी।


मैंने हेलमेट पहन बाइक घर के लिए दौड़ा दी।और एक नजर मिरर पर डाली वो अभी भी वहीं खड़ी थी।कुछ ही देर में हम घर आ गये।श्रुति बिन कुछ कहे गुनगुनाते हुए फ्लोर की ओर बढ़ गयी मैं भी बाइक घर के अंदर खड़ी कर ऊपर चला आया।आकर कमरे में चला गया और चाबी बेड पर फेंक आराम फरमाने लगा।


घर से मां का फोन आया।मां से बात करते करते मैं कब सो गया मुझे खुद पता नही चला।(मां और बड़ी मां दोनो मेरे मन के बहुत करीब हैं।मां थोड़ी सी स्ट्रेट फॉरवर्ड है तो वहीं बड़ी मां गुड की तरह स्वीट)।


शाम का डिनर किया नही सो अगले दिन सुबह सुबह हल्की सी भूख लगी।अपने लिए चाय बना कर मैं बालकनी में खड़ा सिप ले रहा था।तभी मेरी नजर सामने वाली बालकनी पर अपने बालो को झटकती हुई नीला पर पड़ी।जो सुखा तो बाल रही थी लेकिन नजरे इधर ही थी।मैंने आदतन अपना मुंह फेरा और दूसरी ओर देख मजे से चाय पीने लगा।लेकिन वहां भी वही हाल।ये देख मन ही मन बोला 'मतलब हद हो गयी ये तो जानता था कि जो लड़के कमीने होते वो ऐसे ही लड़कियों को ताड़ते है लेकिन लड़कियां भी ताड़ती है ये मैं देख और समझ रहा था'।फिर ये सोच इग्नोर मारा मेरे साथ ये सब नया थोड़े ही है।स्कूल से लेकर कॉलेज तक इतनी बार तो ये सिचुएशन देख चुका था।लेकिन कभी इन सब को सीरियस नही लिया क्योंकि मैं जानता था ये सब मेरे लुक की वजह मेरे आसपास है।प्रेम भाई के साथ हुए हादसे से मैं अनजान नही था।इसीलिए इन सब से हमेशा हाथ भर की दूरी बनाये रखता था।कॉलेज में लुक्स की वजह से एक लड़की के दिल तोड़ने के कारण भाई बहुत बदल गये थे बड़ी मुश्किल हुई थी उन्हें उस बात से निकलने में।

मेरी चाय खत्म हुई और मैं अपनी बाइक की उठा जिम के लिए निकल गया।मेरा मानना है किसी भी कार्य को पूरी तरह से करने के लिए शारीरिक और मानसिक दोनो तरह से फिट रहना बहुत जरूरी है जिम मे पसीना बहा कर मैं शारीरिक रूप से और शाम के समय एक घण्टा गिटार प्ले कर मानसिक रूप से फिट रहने के नियमित लिए मेहनत जरूर करता।


जिम पहुंच कर वहां मौजूद लोगों की बातें सुनते हुए अपनी एक्सरसाइज करने लगा।वहां जितने भी साथी लड़के आते सभी अपनी गर्लफ्रेंड की ही बातें करने लगे।एक ने कहा,'आज सुबह सुबह ही मेरी वाली ने झगड़ा कर मूड खराब कर दिया' तो वहीं दूसरा बोला 'मेरी वाली ने तो आज डिमांड कर दी कि आज दोपहर लंच के लिए 'आनंद' में जाना है बताओ अब हम ठहरे बेरोजगार 'आनंद' में लंच कहां से करा पाएंगे'।दूसरे की बात खत्म हुई तो तीसरा बोल पड़ा (जो अब तक उदास रूआंसा हुआ बैठा था) तुम लोग तो फिर भी किसी न किसी तरह मैनेज कर लोगे अब मैं क्या करूँ मेरी वाली तो कल मिल न पाने की वजह से और कॉल कर रीजन न बताने की वजह से ब्रेक अप ही कर गयी और तो और नंबर भी ब्लॉक कर दिया।अब बताओ भला मैं क्या करूँ।।


तीनो के दुखड़े सुन मैं मन ही मन बोला शुक्र है मेरी अब तक कोई गर्लफ्रेंड है ही नही।तभी मन में ख्याल आया 'अर्पिता वो बाकियो के जैसी नही'।हर बात पर अर्पिता का ख्याल आना मुझे बैचेन कर रहा था! उसका इतना ख्याल बार बार आने लगा था मुझे।हमेशा की तरह मैं कुछ नही बोला अपना काम किया और वहां से वापस घर चला आया।


परम भी कमरे से बाहर आ चुका था! हमने हमेशा की तरह साथ काम किया और फिर तैयार होकर फ्लोर लॉक कर वहां से निकल गये।श्रुति को कॉलेज छोड़ते हुए मन खुश था।श्रुति चुपचाप बैठी हुई फोन चला रही थी और मै उसके बारे में सोचता हुआ रास्ते को नाप रहा था।कुछ ही देर में हम कॉलेज के एंट्री गेट पर पहुंचे जहां वो भी खड़ी थी।उसे देख मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी और मैंने उससे 'हेल्लो' कहा।खुद की इस हरकत पर मन ही मन खुद को कोसा न जाने वो क्या समझे।लेकिन अगले ही पल कोसना छोड़ मन खुशी से भर गया क्योंकि उसने बिन कुछ रिएक्ट किये बहुत ही सरलता से मेरे हेल्लो का जवाब दिया था 'हाय'।


श्रुति बाइक से उतरी तो मैं उससे बोला 'आज शाम सही समय पर मॉल पहुंच जाना।मैं चित्रा और त्रिशा को लेकर पहुंच जाऊंगा शाम को मूवी का प्लान है मिस मत करना ठीक है'।श्रुति बोली 'ठीक है भाई'।मैं पलटा और हेलमेट दोबारा पहना।फिर जाने किन एहसासों की प्रेरणा से मैं दोबारा पलटा और बिन कुछ सोचे समझे उससे(अर्पिता)से कह दिया, 'तुम भी श्रुति के साथ आ सकती हो'।कहने के बाद मैं पलटा और बिन जवाब लिए बाइक दौड़ा दी, चलते हुए अपनी इस हरकत पर फिर से मुझे अजब एहसास हुआ।मन में कई सवाल घूमे!जिनका जवाब पाने के लिए मन बैचेन हो गया।उन्ही सवालो जवाबो में उलझते हुए मैं वहां से ऑफिस पहुंचा।ऑफिस में मेरे आते ही सब शांत हो अपने कार्य पर लग गये।मैंने नीलम को बुलाया और उनसे कुछ पुराने रिजेक्ट प्रोजेक्ट पर डिस्कस किया उनमें कमियों को समझा और उन्हें दूर कर एक फ्रेश प्रोजेक्ट तैयार करने को कहा।नीलम वहां से चली गयी तो मैं भी कुछ देर फ्री हो कर उठ कर बाहर चला आया और सभी एम्प्लोयी के वर्क को ध्यान से देखने लगा।मैं वही था तभी मेरा फोन रिंग हुआ जो घर से शोभा बड़ी मां का था।नंबर देख कर मैं वहां से अपने केबिन में चला आया और उनसे बात करने लगा।बड़ी मां ने बताया कि वो और ताऊजी दोनो कल सुबह लखनऊ के लिए निकल रहे हैं।दोपहर से पहले ही पहुंच जाएंगे।लड़की देखने का कार्यक्रम कल के लिए फिक्स किया है।बड़ी मां की बात सुन मन खुश हो गया।आखिर घर में एक और भाई शहीद होने जा रहा था।हालांकि उसे किसी बॉर्डर पर नही शहीद होना था।लेकिन शादी कर अपनी बागडोर किसी और के हाथ में देना ये भी कुछ वैसा ही तो है।मन के विचारो के सागर से निकल मैं बोला,'ठीक है ताईजी मैं छोटे से बोल दूंगा कि वो कल थोड़ा समय निकाल ले'। 'ठीक है याद से बोल देना' बड़ी मां ने कहा।मैंने उनसे मां के बारे मे पूछते हुए कहा और 'बड़ी मा ये बताइये क्या मेरी टॉर्चर मशीन भी साथ आ रही हैं'? मेरी बात सुन बड़ी मां डपटते हुए बोली 'अभी तक तो नही आ रही लेकिन तुम्हारी बात सुन लग रहा है कि उसे साथ ले आना चाहिए क्या ख्याल है प्रशांत'! बड़ी मां की बात सुन मैं झट से बोला, 'ख्याल तो नेक है बड़ी मां लेकिन मेरे लिए सही नही।पता चला टॉर्चर मशीन आई तो परम के लिए लड़की देखने।लेकिन अगर उसकी कोई कजिन वगैरह हुई तो फिर से टॉर्चर शुरू हो जायेगा'।


मेरी बात सुन बड़ी मां हंसते हुए बोली, 'बस मुझसे ही तेरी जुबां खुल पाती है बाकी सब के लिए तो तुम मौन व्रत धारण कर लेते हो नई'।मैं चुप हो गया क्या बोलता उन्हें कि उनसे तो बचपन से बात करता आ रहा हूँ इसीलिए इतनी बातें कर लेता हूँ।मेरी खामोशी को समझ वो बोली 'ज्यादा सीरियस मत हो मैं सब समझती हूँ मैं प्रशांत।अब बाकी बातें कल मिलकर करते हैं ठीक है'।


'जी ' मैंने कहा तो उन्होंने फोन रख दिया।


मैं भी फोन रख बाकी फाइलों को समेटने लगा।फाइलों का काम निपटाते हुए कब दोपहर से शाम हो गयी मुझे पता नही चला।कुछ क्लाइंट से मीटिंग फिक्स की और कुछ एक से मुलाकात कर अपने प्रोजेक्ट की डिटेल साझा कर डिस्कस किया जिनमे कुछ तो अप्रूव हो गयी और कुछ एक पेंडिंग लिस्ट में जुड़ गयी।कुछ देर बाद नीलम आई। उसने मुझे आज की वर्किंग प्रोग्रेस रिपोर्ट दी तब मुझे एहसास हुआ कि अब ऑफिस बन्द होने का समय हो चुका है।यानी चित्रा और त्रिशा मेरा इंतजार कर रही होगी।'ओके नीलम आप जा सकती हो' मैंने कहा और फाइल अपने बेग में रख चाबी उठाई और बाहर निकल गया।मेरे बाहर निकलते ही गेटमैन ने दरवाजे पर क्लोज्ड टैग लगा कर चाबी मुझे लाकर थमाई।मैं वहां से सीधे मॉल चला गया।


मॉल पहुंच कर मैंने बाइक पार्क करते हुए बैग रखा और अंदर चला आया।वहां मैंने चित्रा और त्रिशा को देखा जो किसी के साथ खड़े हो बातचीत कर रही थी।'उसकी पीठ मेरी ओर थी तो देख नही पाया था।जानने के लिए पूछा किससे बात कर रही है आप चित्रा' मैंने आगे बढ़ पूछा तो मेरी आवाज सुन त्रिशा ने मेरी ओर देखा और चित्रा की गोद से मेरे पास आने के लिए इस तरह लटक गयी कि अगर मैने उसे नही लिया तो अभी वहीं नीचे गिर कर खुद को चोट लगा बैठेगी।उसकी बैचेनी देख मुझे हंसी आ गयी और मैंने आगे बढ़ कर उसे गोद में ले लिया और बोला,'क्या बात है एंजेल,भई मुझे आने में जरा सी देर क्या हो गयी आपने तो शरारत ही शुरू कर दी' त्रिशा खिलखिलाई और अपने मुंह पर हाथ रख बोली,'नही चाचू एंजेल ने छलालत छुलु नही की आप न इन छवीत छी दीदी छे पूछ लीजिये'!मैंने देखा तो वो अर्पिता की ओर इशारा कर रही थी।मैंने अर्पिता की ओर देखा तो उसे वहां देख मन ही मन खुश हो ठाकुर जी को धन्यवाद किया।अब ठाकुर जी को इसीलिए क्योंकि हमारे घर सभी ठाकुर जी को मानते हैं।अर्पिता भी बच्ची का साथ देते हुए बोली, 'बच्ची ठीक कह रही है प्रशांत जी आपकी एंजेल ने कुछ नही किया गलती हमारी थी और हम उसके लिए सॉरी है'।कहते हुए अर्पिता ने अपने दाये हाथ से कान पकड़ा तो त्रिशा हंस दी और धीमे से बोली,चाचू ये दीदी तो आपकी ही तरह छोली बोलती है हम इनसे कहे कॉपी कैट!!त्रिशा को सुन मुझे हल्की हंसी आई और उसे धीरे से झिड़कते हुए बोला 'शशशश..गलत बात त्रिशा आपके साथ साथ मुझे भी डांट पड़ जायेगी'। 'ओके चाचू नही कहेंगे'!त्रिशा ने गर्दन हिला कर अपने होठों पर अंगुली रखते हुए कहा और चुप हो गयी।मैंने अपने पास रखी टॉफी उसे दी और आगे बढ़ते हुए धीमे से अर्पिता से बोला, 'मुझे खुशी हुई कि तुम मेरे एक बार कहने से यहां आई'! उसका आना मुझे सुकून दे रहा था।मैंने घड़ी की ओर नजर डाली शो शुरू होने में समय था तो मैं त्रिशा के साथ वहां से चला गया और फूड सेक्शन में बैठ उसके आने का इंतजार करने लगा।त्रिशा मेरे पास थी और वो कुछ न कुछ बोलती ही जा रही थी।कुछ ही देर में त्रिशा की वजह से चित्रा भी वहीं आ गयी।उसके आने पर त्रिशा उसके साथ उलझ गयी।तो मुझे थोड़ा राहत मिली।


कुछ ही देर बाद नजर परम के साथ आ रही श्रुति पर पड़ी।उसे अकेला देख मैं थोड़ा हैरान रह गया।मैं चित्रा के साथ अचानक से बोल पड़ा 'तुम अकेले आई हो अर्पिता कहां है'।श्रुती ने बताया कि अर्पिता अपनी मासी के साथ चली गयी।मैंने बोला था उसे आने को तो कहने लगी मासी को शायद अच्छा न लगे इसीलिए चली गयी'।श्रुति की बात सुन मन को खुशी मिली।इसीलिए नही कि वो अपनी मासी के साथ चली गयी।बल्कि इसीलिए मुझे पहली बार कोई ऐसी मिली थी जिसने मेरी बात को अपनो की वजह से इग्नोर किया।यानी जिसने मुझसे ज्यादा अपनी फॅमिली को प्रायोरिटी दी।श्रुति के उदास चेहरे को देख मैं बोला उदास होने की बात नही श्रुति 'फैमिली फर्स्ट' जानती हो।


'

हम्म भाई' श्रुति ने कहा और मुस्कुरा दी।शो शुरू होने वाला था तो सभी अंदर जाने लगे।एक बार फिर मेरा फोन रिंग हुआ।मैंने नम्बर देखा और चित्रा परम श्रुति से वापस आने का कह वहां से एक ओर चला आया।कॉल रवीश का था जिसे रिसीव कर मैं उससे बातें करने लगा।लगभग तीस सेकण्ड हुए थे कि मेरे कानो में कुछ आवाजे पड़ी।फोन एक ओर हटा मैंने इधर उधर देखा तो ऊपर फ्लोर पर अर्पिता इलेक्ट्रॉनिक सीढियो के पास एक बच्चे के साथ नजर आयी।उसे देख कर लग रहा था कि वहां अभी कोई हादसा होने से टला था।बच्चा रो रहा था जिसे देख उसने नीचे बैठ कर उसके आंसू पोंछते हुए न जाने उससे क्या कहा कि वो चुप हो गया और उसने नीचे की ओर इशारा किया।मैंने आसपास देखा तो मेरी नजर लुढ़कती बॉल पर पड़ी।मैं समझ गया कि वो बच्चा जरूर बॉल के पीछे पीछे सीढियो की ओर आ रहा होगा और अर्पिता उसे देख उसके पीछे चली आई होगी।मैं कुछ सोच कर बॉल उठाकर ऊपर चला आया और उस बच्चे को बॉल देते हुए, 'हे लिटिल चैम्प आपकी बॉल' कहा जिसे सुन कर उसके चेहरे पर मुस्कुराहट छा गयी।जिसे देख अर्पिता भी मुस्कुरा दी।तभी वहां एक लड़की उस बच्चे के मां पापा को लेकर वहां चली आई।अपने मां पापा को देख बच्चा दौड़ते हुए उनके पास जाकर चिपक गया।दोनो ने उससे थैंक यू कहा तो अर्पिता बच्चे को देख शालीनता से बोली, 'माना कि इस व्यस्त जीवन में एक कपल को अपने लिए समय निकालना मुश्किल है,जैसे तैसे हम अपने लिए समय निकालते है तो इसका अर्थ ये तो नही कि हम बाकी की जिम्मेदारियां भूल जाएं'।उसकी बातों को समझ उन दोनो ने सॉरी कहा तो अर्पिता बोली, 'सॉरी नही जिम्मेदारी'।'जी 'कह वो वहां से चले गये।उसकी इस बात से मैं समझ गया था कि वो सबको साथ लेकर चलने वाली लड़की थी।उसने एक नजर मेरी ओर देखा।साथ आयी लड़की बोली 'चले अर्पिता'।


हम्म उसने धीमे से कहा और वहां से चली गयी।उसके जाने के बाद मैं खुद से मुस्कुराते हुए बोला


जब जब मैं मिलता हूँ तुमसे !! तुम मुझे बिल्कुल अलग सी लगती हो !! कभी नये से रंग में दिखती हो तो कभी नये से ढंग में मिलती हो॥


कुछ बात तो है तुममे मिस अर्पिता!जो तुम्हे सबसे अलग बना रही है।मैंने खुद से कहा और वहां से सबके पास चला आया।आ तो गया लेकिन लेकिन मूवी में मेरा मन नही रमा सो मैं बोर होकर कुछ देर बाद ही बाहर चला आया।ऐसा मेरे साथ पहली बार हो रहा था कि मैं सबके साथ मूवी देखने गया और बोर हो छोड़कर चला आया।जबकि पर्दे पर डीडीएलजे चल रही थी।अपने समय की एक कामयाब फिल्म..!बाहर आकर मैं फ्लोर की गैलरी में ही खड़ा हो गया जहां मैंने एक बार फिर उसे देखा लेकिन इस बार एक नये अंदाज में....


क्रमशः...