आभार (व्यंग्य ) Alok Mishra द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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आभार (व्यंग्य )




आभार (व्यंग्य )


हमारे यहाॅ कोई भी मंचीय कार्यक्रम हो बहुत ही पारंपरिक तरीके से ही होता है । पूरे कार्यक्रम के पश्चात् जब लोग उठ कर जाने लगते है, अतिथी अपना स्थान छोड़ कर स्वल्पाहार कक्ष की ओर प्रस्थान कर रहे होते है ,दरी और पंडाल लगाने वाले समेटने की तैयारी कर रहे होते है । तब एक व्यक्ति बड़ी ही तन्मयता के साथ आभार व्यक्त कर रहा होता है । अक्सर आभार व्यक्त करने वाला वह व्यक्ति होता जिसे चलते कार्यक्रम में माईक देना खतरे से खाली नहीं होता । ये व्यक्ति ऐसा होता है जिसे बोले बगैर रहा भी नहीं जाता । बस इसी का फायदा उठा कर उसे आभार व्यक्त करने में लगा कर बेवकूफ बनाया गया होता है वो भी आपकी वाकपटुता का प्रदर्शन खाली मैदान और जाते हुए लोगों में करने लगता है ।

आभार हमारी परंपरा है अब तुलसीदास जी को ही ले लो उन्हाेंने सोचा रामचरित मानस कोई अंत तक पढे कि न पढ़े बस उन्होने आभार प्रदर्शन का कार्यक्रम सबसे पहले ही अयोध्या काण्ड में निपटा डाला । उन्होंने सज्जनों को तो आभार दिया ही दुर्जनो और दुनिया में किसी जीव जन्तु को नहीं छोड़ा । उन्हें मालूम था सज्जन तो पुस्तक को पूरी पढ़कर सज्जनता का परिचय देंगे लेकिन दुर्जन दो पंक्तियाॅ पढ़ कर ब्रेकिंग न्यूज बनाते हुए वाद-विवाद का आयोजन कर उनकी पूरी बखियाॅ ही उधेड़ देंगे । इसीलिए उन्होंने आभार प्रदर्शन पहले ही रख दिया ।

अब कब आभारी हो या न हो इस बात पर विवाद नहीं है । काम निकालो और आभार व्यक्त करो इस बात पर दुनिया भर के विद्वान एक मत है । भगवान को पहले ही बता देते है कि यदि तूने मेरा काम कर दिया तो मै नारियल चढ़ाकर आभारी होऊंगा । याने यह साबित हो जाता है कि आभारी होने के लिये काम का होना अतिआवश्यक है । अब इसमें यह बंधन बिलकुल भी नहीं है कि काम का स्तर कैसा था ? काम हुआ और आपको आभारी होना है। अब कुछ लोगों ने आभार में शब्द लेना प्रतिबंधित कर दिया हैं । ऐसे लोग आभार में नगद लेना पसंद करते है और एक बात यह भी तो है कि नगद तो सबके पास होता है पर हर कोई अच्छा वक्ता थोड़े ही हो सकता है । अब साहब एक बाबू ने आपका अवैध लाइसेंस बनवा दिया तो आप सारे आफिस के सामने उसे सार्वजनिक रूप से आभार देनेे लगेंगे तो.......... बस इसीलिए आपकी सुविधा की दृष्टि से आपसे आभार नगद स्वीकार कर लेता है ।

देखिये साहब मुझे भी पिछले कई कार्यक्रमों से किसी ने बोलने का मौका नहीं दिया । दिल में एक तमन्ना भी थी कि मै कभी आपको आभार व्यक्त कर सकूं तो सबसे पहले मेरे लेखो, व्यंग्यों को पढ़कर पचा सकने वाले पाठको को आभार । मै आभारी हुँ उन डाॅक्टरों और नर्सो का जिन्होने पैदा होते ही मुझे ब्राम्हण परिवार को सौपकर मुझे आरक्षित श्रेणी में आने से वंचित कर दिया मै आभारी हॅूं उन शिक्षकों का जिन्होंने शासकीय नीतियाॅ पर चलते हुए मुझे बाबू या शिक्षक बनने योग्य ही शिक्षा दी । अब मुझे आभारी होना चाहिए अपने उस वरिष्ठ अधिकारी को जो मुझसे दस वर्ष कनिष्ठ है और काम न आने के कारण मुझे काम करने के पूूरा अवसर प्रदान करता है । मै आभारी हॅूं उन नेताओं का जो चुनाव के दौरान वादे करके कम से कम अच्छे सपने देखने को बाध्य तो करते है । वैसे जिंदगी तो जैसे-तैसे सब जी ही रहे है । उन नेताओं का भी आभार व्यक्त करना चाहिए जिन्होने घोटाले करके देश के पैसे को चोरी होने से बचाया अरे भाई यदि वे न चुराते तो कोई और चुराता कि नहीं । ऐसे नेताओं के कारण ही देश विदेश में हमारा देश समृद्व दिखाई देता है क्योंकि गरीब तो विदेश जाता नहीं । हमें आभारी होना चाहिए पाकिस्तान का जो समय-समय पर हमारी राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए कुछ न कुछ करता रहता है । हमें उन सभी देशों का आभारी होना चाहिए जो हमारे बडे-बडे नेताओं को घूमने का अवसर प्रदान करते रहते है । हमें नेताओं के चमचों का भी आभारी होना चाहिए क्योंकि वे बार-बार धमकी देकर नेताजी की ताकत का अहसास कराते रहते है । इसका फायदा यह है कि हमको हमारी सीमाएं मालूम हो जाती है ।

वैसे देखा जाये तो शिक्षकों को छात्रों का, डाॅक्टरों को मरीजों का और पुलिस को चोर का आभारी होना ही चाहिए । सत्ता में बैठे नेताओं को पूर्व सत्ता वालों का, पक्ष को विपक्ष का आभार मानना ही चाहिए । वैसे उन देशों को भी हमारा आभार मानना चाहिए जिन्हें हमने उधार लेने के लिए चुन कर यह बड़प्पन दिया हैे । वैसे ठेकेदार को अधिकारी का, अधिकारी को बाबू का और बाबू को चपरासी का आभारी होना चाहिए क्योंकि जो आभार ठेकेदार से चलता है सब में बंटता है और न बटें तो ब्रेकिंग न्यूज बनता है । अनेक पत्रकार रूपी लोगों को उन अधिकारी और ठेकेदारों का आभारी होना चाहिए जो उनकी महिने भर की शाम की व्यवस्था का जुगाड़ करते है ।

और अंत में संपादक और प्रकाशक को प्रणय भाई, पूनम और मुझ जैसे लोगों को आभारी होना चाहिये क्योंकि वे बिना पारिश्रमिक के हम जैसे महान लेखकों से अपने प्रकाशन को प्रकाशित करते रहते है । आप भी तो खाली बैठे वर्ग पहेली भर रहे थे फिर भी समय नहीं कटा तो इस लेख को पढ़ने लगे लेकिन आपने अपने कीमती समय में से जो समय इस लेख को पढ़ने में दिया है उसके लिये मै आपका भी आभारी हुँ

आलोक मिश्रा