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कुन्नूर की वादियों में फिल्टर कॉफी

“कुन्नूर की वादियों मेंं फिल्टर कॉफी”


भीगा-भीगा मौसम, मंद-मंद चलती शीतल हवा,चारों ओर हरे-भरे पहाड़ और घाटियाँ, घाटियों के बीच से गुजरती टॉय-ट्रेन और हाथ में गरमागरम फिल्टर कॉफी का प्याला…..उफ्फफफ...बता नहीं सकती इस स्वर्गिक आनंद की अनुभूति..।

जब ऊटी जाना तय हुआ तो पहाड़ चढ़ते वक्त हमने कुन्नूर मेंं ही रुकने का फैसला किया,क्योंकि ऊटी में बहुत ही भीड़भाड़ और शोर-शराबा रहता है, यहाँ अपेक्षाकृत कम है। कुन्नूर ऊटी से पंन्द्रह सौ फीट नीचे है और यहाँ से ऊटी गाड़ी से लगभग एक घंटे का रास्ता है।कुन्नूर से ऊटी तक हम टॉय-ट्रेन में गए।यूँ तो रेल का सफर मैंने कई बार किया है पर घाटियों के बीच, पहाड़ों पर चढ़ती हुई धीमी गति से चलती इस रेल का सफर अत्यंत ही अद्भुत, मनोरंजक और अनूठा है। छोटे-छोटे रंगीन डब्बे, हर डब्बे में आमने-सामने दो बड़ी सी सीट और दोनों तरफ शीशे के बड़े दरवाजे और खिड़कियाँ…..।

गार्ड ने जैसे ही हरी झँडी दिखाई, रेल ने सीटी दी और चल पड़ी...मेरा दिल तो उछल-उछलकर बाहर आ रहा था।हमारे सामने ही एक और परिवार बैठा था, जिसमें एक छोटी बच्ची भी थी...इसके अलावा किसी स्कूल के बच्चों की टोली भी पीछे के डब्बों में बैठी थी।रेल के शुरू होते ही सबने खुशी से चिल्लाना आरंभ कर दिया...मैं और मेरे सामने बैठी बच्ची भी ताली बजाकर खुशी से झूमने लगे...ट्रेन धीमी गति से चलती हुई पहले तो उल्टी दिशा में थोड़ी दूर गई, फिर सीधी होकर पहाड़ पर चढ़ने लगी। पहले कुछ दूर तक कुन्नूर शहर का नजारा दिखा, फिर चाय के अति व्यवस्थित हरे-हरे खूबसूरत बगीचे और फिर शुरू हुआ घाटियों का सिलसिला …. कभी पहाड़, कभी घाटी, कभी चाय के बगीचे, कभी बादलों के साथ आँख-मिचौली….. खूबसूरत नजारे तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। कभी गरदन बायीं करके घाटियाँ देखते, कभी गरदन दायीं करके पहाड़...ऊँचे, लंबे, कहीं घने, कहीं सूखे ...दुनिया भर के पेड़-पौधे...बड़े-बड़े चट्टानों की अजीब-अजीब सी आकृतियाँ, जगह-जगह पर फूटते झरने... और दूर पर्वत श्रृंखला पर उतरे बादलों के घने समूह….ऐसा स्वर्गिक नजारा था कि बताते हुए शब्द कम पड़ रहे हैं।

तभी मेरे एक साथी ने थरमस से निकाल कर गरम फिल्टर कॉफी की प्याली मुझे पकड़ा दी...चलती ट्रेन में घाटियों के बीच से गुजरते हुए, खूबसूरत नजारे देखते हुए दक्षिण भारत की स्पेशल फिल्टर कॉफी पीते हुए सफर करने में जो मजा आ रहा था...शब्दों में बयान ही नहीं किया जा सकता।

तभी अगला स्टेशन,वेलिंगटन आ गया।यहाँ ट्रेन बस एक सेकेंड के लिए रुकी… जब तक हम कैमरे सँभालते कि जरा फोटोग्राफी कर लें, तब तक तो ट्रेन खुल गई। एक बार फिर शुरू हुआ खूबसूरत और दिलकश नजारों और घाटियों का सिलसिला..। थोड़ी देर के बाद हमें पता चला कि जल्दी ही एक लंबी सी टनेल आने वाली है...हम सभी खुशी से उछल पड़े और जैसे ही ट्रेन टनेल से गुजरने लगी, एक बार फिर हम सब ताली बजा-बजाकर हो-हो का शोर करने लगे...बच्चों के बीच में बच्चों की तरह उछलकूद करने में बड़ा ही मजा आ रहा था। कुन्नूर से ऊटी तक छोटे-छोटे चार-पाँच स्टेशन आते हैं-- कुन्नूर,वेलिंगटन, अरुवनकाड़ु, केत्ती, लवडेल और अंतिम उद्गमण्डलम् यानि ऊटी...जी हाँ, ऊटी का सरकारी नाम है- उद्गमण्डलम्...।हर स्टेशन पर गाड़ी दो-तीन मिनट रुकती, सबलोग उतरते, दुनिया भर की तस्वीरें लेते, फिर गाड़ी सीटी देती और सबलोग जल्दी से आकर अपनी सीट पर बैठ जाते….इसी तरह उछलते, हो-हल्ला मचाते, खूबसूरत वादियों का मजा लेते हम उद्गमण्डलम् यानि ऊटी पहुंच गए।

अर्चना अनुप्रिया।

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