चाय की खुशबू से ही चाय के जायके का पता लग जाता है।
सुबह होते ही चाय की तलब महसूस होती है। आलस आती
है थोड़ी देर बाद बनाऊंगी चाय। मगर चाय तो चाय है। वो
भी अदरख वाली चाय जिसके जायके का अपना अनोखा
ही अंदाज होता है। चाय की चुस्की लेते ही दिमाग दुरुस्त
होने लगता है , चाय पीते हुए किसी की भी बातें सुनने की
इच्छा नहीं होती है। सचमुच अदरख वाली चाय पीने के
बाद दूसरी चाय पीने को मन नहीं करता है। ऐसा महसूस
होता है , अदरख वाली चाय की खुशबू चली जाएगी।जब
अदरख वाली चाय बनती है उसी समय से एक गजब तरह
की महक उठती है जो मुझे बहुत भाती है। मेरा मन तो
चाय के जायके में ही खोया हुआ रहता है। भोर होते ही
पक्षियों की चहचहाहट सुनने को मिलती है। कभी कौवे
कांव कांव करते हैं ,तो कभी कबूतरों की गुटर गूं सुनाई
देती है । फिर कोयल की कुहू कुहू का स्वर कानों में मीठे-मीठे रस घोलती है। सुदूर गगन में पक्षियों को विचरण
करते हुए देखना एक अलग ही आनंद प्रस्तुत करते हैं।
चाय पीते हुए अचानक आज कौवे को झुंड में देखा तो
लगा कि जरुर कहीं आसपास कोई जीव मर गया है।
इसी कारण से पहले एक दो कौवे दिखाई दिए फिर लगातार
कौवे ही कौवे को पूर्वी दिशा में उड़ते हुए देखा।
दूर कहीं पेड़ पर कौवे इकट्ठा होकर कांव कांव कर रहे थे।
कहने का तात्पर्य यह है कि कांव कांव करके कौवे अपने
साथी को बुला रहे थे। काफी लंबे समय के पश्चात् हमने
कौए की प्रजाति को देखा। हमें तो लगा था कि अब कौए
की प्रजाति भी धीरे-धीरे लुप्त प्राय हो जाएगी तो फिर
आहार श्रृंखला पर भारी असर पड़ेगा। लेकिन ये केवल
मेरी भ्रांति नहीं थी। ऐसा हो भी रहा है। कौवे को बोलिए
रोटी कहां से मिलेगी जब मानव प्राणी रोटी के लिए तरस
रहे हैं।
कोयल की कूक तो समझ में आती है कि आम अब पकने
वाले हैं तो कोयल मीठी-मीठी कुहू कुहू जरुर सुनाएगी।
कोयल का कूकना मन को आंदोलित करता है। सुबह सुबह
पक्षीगण दाना पानी के लिए घोंसला से बाहर निकलते हैं।
देखिए हम मानव प्राणी तो कभी कभी आलस में नियत
समय पर नहीं उठ पाते हैं मगर पक्षीगण का समय बिल्कुल
निश्चित होता है। पक्षियों की चहचहाहट से हम सब पहले
जग जाया करते थे। ये एक तरह से घड़ी का काम करता है।
अरे इस दौरान हमें तो दूसरे कप चाय पीने की इच्छा हो रही
थी तो मैं चाय बना ली फटाफट और चाय की घूंट भरने लगी। वास्तव में अदरक की चाय का जायका मैं कभी भी
नहीं भूल सकती हूं। इस जायका के साथ मेरा बचपन जुड़ा हुआ है। जब भी मैं खुशबूदार अदरख की चाय बनाने जाती
हूं मुझे पुरानी स्मृतियों में बसा हुआ आनंद महसूस किया है।
मां का दूध लाने जाना और जाने से पहले मुझे जगाकर
अदरख की चाय चूल्हे पर बनाने बोलना एक अद्भुत प्रेम
परिलक्षित होता है। ओर मैं चाहे नींद में क्यूं न रहूं । मैं तो
5.45 पर मां को चाय का कप हाथ में पकड़ा देती और
मां खाट पर बैठ कर चाय पीती। साथ में पीढ़ा पर बैठकर
मैं भी चाय पीती। ये चाय के सुहाने पल मां के साथ जो
हमने बिताए वो मेरा अनमोल उपहार है।।
चाय की मां शौकीन रही हैं और पापा भी।
मैं ही माता पिता जी को चाय पिलाया करती थी।
तो चाय की खुशबू परिवार के साथ एक अलग पहचान
बनाते हैं और दिल में बसे हुए रहते हैं।