शुभि (3)
शुभि दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर मॉं के पास गई ।मॉं ने शुभि को एक गिलास दूध के साथ सुबह का नाश्ता दिया ।
नाश्ता करके वह दादी के कमरे की ओर जा रही थी तो मॉं ने बताया कि माँजी तो पीछे वाले गार्डन में है ।शुभि जल्दी से गार्डन में पहुँच गई ।वहाँ देखा कि दादी जी ने जो कुछ दिन पहले बीज बोये थे वह नन्हे पौधे बन गये थे।
दादी जी उन पौधों को वहाँ से निकाल कर दूसरी जगह लगा रहीं थीं और पिता जी उनकी सहायता कर रहे थे ।
उसने देखा कि दादी पौधों को निकाल कर कुछ पौधे कनेर के गुड़हल के घर के बाहर लगा रहीं थीं ।घर के बाहर ही उन्होंने अशोक के पौधे भी दो दो मीटर की दूरी पर लगा दिए ।
तुलसी घर के ऑंगन में गमलों में रोपित कर दी और कुछ पौधे फूलों वाले गमलों में ही लगा दिए।साथ में शुभि ने भी कुछ पौधों में पानी लगाया ।
अब शुभि को अच्छा नहीं लगा क्योंकि इतने नन्हे पौधे भी दादी जी ने बाहर लगा दिए ।
अगले दिन तेज धूप से वह सभी पौधे कुम्हला गये।शुभि ने दादी से कहा—दादी जी पौधों को अंदर ही लगा दिया जाए तो ठीक रहेगा ।दादी जी ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया ।पौधों में पानी लगा दिया ।
गर्मी के दिनों में ऑंधी तों आती ही है एक दिन बहुत ज़ोर से हवा चली ,उसके बाद ऑंधी में सभी पौधे ख़राब हो गये ।कुछ मिट्टी से बाहर निकल आये और कुछ मिट्टी के अंदर दब गये ।शुभि ने दादी से कहा कि हम लोग पौधों को अंदर ही लगा दें,तभी मूसलाधार बारिश होने लगी ।
सभी पौधे अस्त-व्यस्त हो गये दादी जी से फिर कहा—दादी जी हम नन्हे पौधों को घर में ही ले आये तो अच्छा रहेगा,वरना सभी पौधे ख़राब हो जायेंगे।दादी जी ने बरसात ख़त्म होते ही सभी पौधे ठीक से व्यवस्थित कर दिए और वह कुछ दिनों में ही ठीक हो गए।
एक दिन फिर शुभि ने देखा कि कुछ पौधों में पानी की कमी है और वह मुरझाने लगे हैं ।उसने दादी को बताया और कहा कि—दादी हम लोग उन्हें घर में ही ले आयें तो ठीक रहेगा ।नहीं शुभि यह बाहर ही ठीक है ।शुभि को दादी जी की बात अच्छी नहीं लगी वह रोने लगी ।
दादी ने शुभि को घर की दूसरी तरफ़ जो पेड़ लगे थे वह दिखाए और बताया कि —जो यह आम, अमरूदों के पेड़ लगे हुए हैं जिनसे हम प्रतिवर्ष बहुत फल खाते हैं,पड़ौस में रहने वाले लोगों को भी देते हैं ।यह बहुत साल पहले ऐसे ही थे ,तुम्हारे पिताजी भी ऐसे ही ज़िद किया करते थे कि इन्हें अंदर रखना ठीक रहेगा ।यदि यह घर के अंदर होते तो क्या हम सब फल तोड़ पाते ।घर में पर्याप्त धूप और हवा नहीं मिलती तो यह मुरझा जाते ।बाहर धूप बारिश तेज हवा का इन्हें अभ्यास हो जाता है और यह मज़बूत हो जाते है,जितनी परेशानी इन्हें अब होगी बाद में यह बहुत ही ताकतवर हो जायेंगे फिर यह नहीं गिरेंगे ।न बारिश में,नऑंधी में,न धूप में,यह बड़े होकर मज़बूत हो जायेंगे।
मन कठोर करके हम पौधों को बाहर ही रखते हैं ।धूप से ,ऑंधी,बारिश से बचाव करते हुए इनकी देख-भाल करनी चाहिए ।जब हम इनकी समय -समय पर देख-भाल करेंगे तो फल वाले पौधे बड़े पेड़ बनकर भरपूर फल देंगे ।
जो पौधे फूल के है वह भरपूर फूल देंगे ।जो अशोक के पौधे है यह फल-फूल नहीं देंगे तो छाया अवश्य देंगे और घर के बाहर बहुत ही सुंदर लगेंगे ।
कुछ पेड़ तो हमें बहुत सारी लकड़ी भी देते हैं ।जो हमारे घर में फ़र्नीचर है,आपकी खाना खाने की मेज है,आप की पढ़ने की मेज़ है ,यह सब तुम्हारे दादा जी नेअपनी लकड़ी से ही बनवाये थे।
दादी जी की बातों का समर्थन पिताजी और मॉं ने भी किया ।शुभि ने कहा—में अब प्रतिदिन इनकी देख-भाल करूँगी ।
दादी जी से शुभि गले लग गई और कहानी सुनने के लिए बोली—दादी जी कहानी सुनाइये न मुझे!
दादी जी ने कहा—आज नहीं,आज़ थकान कुछ ज़्यादा है कल सुनायेंगे ।
✍️क्रमश:
आशा सारस्वत