360 degree love - 45 - The last part books and stories free download online pdf in Hindi

360 डिग्री वाला प्रेम - 45 - अंतिम भाग

४५.

यही है जिंदगी

अब तीन साल बाद!

आरिणी आज होंडा कार कंपनी में मैनेजर डिजाइन की पोस्ट पर प्रमोट हो चुकी है. आरव अपनी लगन और आरिणी के साथ से फरीदाबाद की एस्कॉर्ट्स कंपनी में जॉइन्ट मैनेजर की पोस्ट संभाले हुए है. आरव का भी नई दिल्ली के ‘विमहंस’ चिकित्सा केंद्र में उपचार चल रहा है. अब वह लगभग सामान्य और बेहतर ढंग से अपने जीवन को जी पा रहा है, और मन के अनुसार काम कर पा रहा है.

लगभग ढाई साल की अविका अवसर मिलने पर आरव-आरिणी के साथ ही उर्मिला और राजेश को भी अपनी तोतली जबान में डपट देती है. तब कोई मुद्दा नहीं बनता बल्कि ऐसे समय में उस पर और प्यार आता है क्योंकि सब उसमें अपना बचपन जो ढूंढते हैं.

वर्तिका की शादी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर से हुई है. उसके पति पलाश रघुवंशी आजकल बेंगलुरु मे एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में पोस्टेड हैं. 

राजेश सिंह भारतीय रेलवे की सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी पत्नी उर्मिला, आरव और आरिणी के साथ ग्रेटर नॉएडा के एक ड्यूप्लेक्स विला में रहते हैं. उर्मिला को पिछले साल शरीर के दायें हिस्से में लकवे का असर हुआ था, जिसे आरिणी ने ससमय मेडिकल सहायता तथा सेवा सुश्रुषा से संभाल लिया था. उर्मिला को हफ्ते में दो बार वह जे पी हास्पिटल में स्वयं उपचार के लिए ले जाती है. सास की जब भी, किसी से चर्चा होती है तो वह अपनी बहू की प्रशंसा करते अघाती नहीं हैं.

...लगभग ऐसी ही एक परिस्थितियों में एक नव विवाहित लड़की ने पति की बीमारी और मां के दुर्व्यवहार को आधार बनाकर तलाक का वाद दायर किया था, जिसे निचली अदालत ने आठ वर्ष की सुनवाई, तमाम गवाहों और सबूतों के परीक्षण के उपरान्त यह कह कर खारिज कर दिया कि यह स्थिति सामान्य है. वादिनी ऐसा कुछ साबित नहीं कर पाई जो परंपरागत घरों की दिनचर्या न हो. न ही उस लड़के की बीमारी इस स्तर पर थी जो किसी भयावह मोड़ पर जा सकती थी. यदि यूँ तलाक मंजूर होने लगें तो लगभग सत्तर प्रतिशत रिश्ते शादी के कुछ महीनों या सालों में टूट जाएँ. 

उच्च न्यायालय में इस प्रकरण की अपील पर यद्यपि तलाक मंजूर कर लिया गया, परन्तु उन्होंने अपने फैसले में लिखा कि यह इसलिए किया जा रहा है कि दोनों पक्ष केस को अंतिम अंजाम तक पहुँचाना चाहते हैं. और यह कि जब लड़का-लडकी पिछले तेरह वर्षों से पति-पत्नी की हैसियत से साथ नहीं रह रहे हैं, तो ऐसे “मृत रिश्तों” को ढोते रहना बेमानी है. मात्र इसीलिए तलाक की मंजूरी दी जाती है.

अब कल्पना कीजिये कि यदि १३-साल की इस लड़ाई के बाद आरिणी को तलाक मिल भी जाता तो उसने क्या पाया होता? न वह गुजरे हुए साल लौट कर आते, न वह सम्बन्ध कभी अपनत्व दे पाते, और न जाने आरव जिन्दगी के किस मुकाम पर होता! होता भी, या नहीं होता. क्या व्यक्तिगत रूप से उसका कोई दोष था इस बीमारी के होने में? माना कि उनका यह छिपाना गलत था, पर बीमारियाँ तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर आकर गले पड़ सकती हैं, तब क्या करें? फिर, आरिणी की दूसरी पारी सफल होती, इसकी सुनिश्चितता करने के लिए कौन आगे आता. स्मृतियां कभी मरती नहीं हैं, वह तो हमारा पीछा करती चलती हैं, छाया की तरह. तो उनसे भागना कैसा!

हो सकता है यह सब ज्ञान पुरातन हो. जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है. नारी विमर्श के नाम पर सब जायज हो सकता है, परन्तु व्यवहारिक हल, जिसमें सब रिश्तों का सम्मान हो, निश्चित रूप से बेहतर होता है. कुछ मुद्दे जो समाज को बदलने का दावा करते हैं वह चाय की प्याली में तूफ़ान ला सकते हैं, पर अपने घर को सहेजना आपके ही हाथों में होता है, और वह भी परम्परागत तरीकों से.

बात रही आरव की बीमारी की. रोग तो मनुष्यों के साथ ऐसे हैं जैसे चोली-दामन का साथ. कौन सी बीमारी कब और क्यों विकसित हो जाए, कुछ भी कहना सम्भव नहीं. पर, शुक्र है विज्ञान की चमत्कारिक तरक्की का कि हम तथाकथित खतरनाक बीमारियों की चपेट में आकर भी सामान्य जीवन बिता सकते हैं. इसलिए जीवन के इस पक्ष से डरना क्यों!

रिश्ते यूँ ही बनते हैं… और बिगड़ते भी हैं. कोई शार्ट कट नहीं. फरिश्ते नहीं आते उन्हें सहेजने, कोई अदृश्य शक्ति भी चाहे तो बिगाड़ नहीं सकती उनको. न ही किसी कोर्ट के वश में है उन्हें निभाने के निर्देशों का पालन कराना. बस हमारी इच्छा शक्ति, रिश्तों का सम्मान और थोड़ा सा संवाद… लगातार संवाद, क्या अधिक है यह निवेश?

लेकिन इस सब के विपरीत संचय करना इंसान की इंस्टिंक्ट में शामिल है. हम सुखों के साथ दुखों का भी संचय करते हैं. उन्हें सहेज कर बरसों रखे रहते हैं, जबकि दुःख से सबक ले उसे नष्ट कर देना चाहिए... वरना वो ख़ुशी और ऊर्जा का दोहन करता रहेगा, ऐसा कहा जाता है!

फिर जीवन भी तो कभी तेज़ धूप… और कभी हल्की छाँव सा होता है, प्रकृति की तरह ही. अगर जड़ हो जाएगा तो क्या निस्सार नहीं हो जाएगा यह जीवन भी!

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