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कॉलेज की जिन्दगी..यही है जिंदगी
“तो डियर स्टूडेंट्स, आप लोग तैयार हो ना ग्रुप प्रोजेक्ट वर्क के लिए क्लास में आते ही पूछा चंद्रन सर ने. फिर, एक निगाह छात्रों पर डालने के बाद उन्होंने ग्रुप्स के नाम बताने शुरू कर दिए. और कहा कि सब ग्रुप्स को दिए गये टॉपिक्स की लिस्ट बाहर नोटिस बोर्ड पर थोड़ी देर में लगा दी जाएगी.
सदा की भांति अटेंडेंस रोल में आरिणी का पहला और आरव का दूसरा क्रमांक था. साथ में थे भूमिका और देव. आरिणी पढ़ने-लिखने में तीक्ष्ण बुद्धि तो थी ही, ईश्वर ने उसे सुंदर नयन-नक्श और मधुर आवाज का भी एक बेहतरीन तोहफा दिया था. कॉलेज के हर सांस्कृतिक कार्यक्रम में वह अपने गायन से तालियाँ बंटोरते हुए सुमधुर प्रतिध्वनियां लोगों के मन मे अंकित कर ही जाती थी, इसलिए बहुत लोग जानते थे उसे कॉलेज में. स्टडीज में भी कमतर नहीं थी वह, रिसर्च के लिए यू एस की इलिनोयस यूनिवर्सिटी जाने की ठान रखी थी उसने!
आरव भी पढ़ने में अच्छा था, उसने आरिणी से थोडी बेहतर, यानि २४वीं रैंक से मैकेनिकल ब्रांच हासिल की थी. कार डिजाइनिंग उसका सपना था और दिलीप छाबरिया उसके लिए आदर्श थे, जिसे पूरा करने के लिए वह इस पढ़ाई को जूनून की तरह मानता था. उसके बारे में चर्चा थी कि वह जब पढ़ता था तो दिन या रात कुछ नहीं देखता था .और जब सोता था तो भी न दिन, न रात का कोई ख्याल!
प्रोजेक्ट जिस पर इस ग्रुप को काम करना था. वह था , “ड्यूल मोटर इलेक्ट्रिक गो कार्ट फॉर रफ टिरेन”.
“इंटरेस्टिंग!”,
यह आरव की आवाज थी. वह खुश था कि मैकेनिकल में भी ऑटोमोबाइल की सब-ब्रांच का प्रोजेक्ट उन लोगों के हिस्से में आया है, न कि किसी लेथ-ग्राइंड फैक्ट्री की कोई रूखी-सी परियोजना. और फिर, अपने देश से लेकर पूरे विश्व की बात करें तो गो-कार्ट जैसे फील्ड में उसे अपार संभावनाएं दिखती थी. दरअसल, आरव को स्पीड थ्रिल करती थी, जैसे कुछ लोगों को पर्वतों की-सी शान्ति और स्थिरता बहुत भाती है.
नोटिस बोर्ड पर गाइडलाइन्स भी साथ लगी थी. अपेक्षा की गई थी कि वह सब अपना विषय ध्यान से देख लें, समझ लें. कुल आठ दिन का समय मिलना था प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए.
लिस्ट देखने के बाद उन चारों की एक छोटी-सी मीटिंग हुई. साढ़े चार बजे थे. कॉलेज बंद होने का समय था. कल से काम शुरू होना था. तय हुआ कि चारों लोग पढ़कर आयेंगे कि कैसे प्रोजेक्ट को बेहतर रूप दिया जा सकता है और इसके माध्यम से कोई अभिनव प्रयोग किया जा सकता है. सवेरे रफ नोट्स एक्सचेंज किये जा सकते थे और फिर सिनॉप्सिस लिखने का काम! सब ठीक ही दिख रहा था.
‘लीजिये मोहतरमा, बन्दा हाजिर है आपकी खिदमत में!”,
आरव की आवाज से वह वर्तमान में लौटी.
“आज ऐसा लग रहा है जैसे कॉलेज की कैंटीन में ही बैठे हों”,
आरिणी ने कहा.
“अरे कॉलेज में होते तो यह पूरा केक देव ही चट कर जाता. खा लो जल्दी से… कहीं से भी टपक सकता है खाने के लिए वह”,
आरव हंसकर बोला.
“अब ऐसा भी नहीं. चलो लेट हो रहा है…”,
आरिणी बोली. जबकि असल में वह चाह रही थी कि आज वह घर जाए ही न. बस वह हो और आरव. उसे डर था कि कहीं किसी तीसरे की उपस्थिति उनके चेहरे की मुस्कान न छीन ले… फिर से!
बाहर निकल आरव की बाइक की पिलन राइडिंग कर आरिणी एक बार फिर कॉलेज के दिनों में खो चुकी थी.
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