४४.
इस रात की सुबह भी होगी
ग्रेटर नॉएडा की हेवेंस प्राइड सोसाइटी की मेरीगोल्ड विंग के १००२ नंबर फ्लैट में मानो बसंत ठहर गया है. दो आतुर पंछी तिनका-तिनका सहेज अपना नीड बनाने की सहज प्रक्रिया से गुजर रहे हैं… साथ हँसते है...रोते भी हैं, मार्ग दुरूह है… मंजिल अलक्षित… लेकिन प्रेम, विश्वास और समर्पण के मुलायम गलीचे पैरों को थकने नहीं देते हैं!
बहुत दूर, क्षितिज के पार पूर्व दिशा से उगता सूरज अपनी लालिमा से आरव और आरिणी के जीवन में कुछ नए रंगों के आने की पुष्टि कर रहा था. आसमां से पेंग बढ़ाती दसवीं मंजिल की खिड़की से आती किरणें इन्द्रधनुष का-सा अहसास करा रही थी. साथ ही बालकनी में रखे गमलों में ताजे महकते गुलाब के फूलों पर भोर की ओंस की बूंदें भी सतरंगी-सी जगमगाहट बिखेर रही थी.
अल्लसुबह एक नर्म स्पर्श अधरों पर महसूस कर आरिणी ने आँखें खोली. सिरहाने आरव बैठा था. बोला,
“शादी की पहली सालगिरह मुबारक हो…!”,
“आपको भी श्रीमान ….!”,
आरिणी ने हल्की सी अंगडाई लेते हुए शरारत से कहा.
“श्रीमती आरव …!”
“जी श्रीमान जी…”,
आरिणी उसके नजदीक आती हुई बोली.
“आपके इरादे नेक नहीं लग रहे श्रीमती आरव. बंदा आपको याद दिलाना चाहता है कि मल्लिका-ए-आरव को आज नवाबों के शहर लखनऊ प्रस्थान करना है, जहाँ उनकी शान में एक जलसे का आयोजन किया गया है. बेहतर हो आप तैयार हो जायें. नाचीज तब तक कुछ लज्जत-सा नाश्ता बना लाता है.”
“जी हुजूर बजा फ़रमाया …. आपका हुकुम सर आँखों पर!”,
आरिणी ने कहा.
और उन दोनों को लखनऊ पहुँचते-पहुँचते शाम के साढ़े सात बज गए थे. मेहमानों का आना शरू हो चुका था. वर्तिका और पलाश की सगाई और आरव-आरिणी की शादी का केक काटते देख उर्मिला सोच रही थी कि मार्ग तो सरल ही था, शायद वह ही गलत मोड़ पर मुड़ गयी थी. आरिणी ने पैर छुए तो उर्मिला ने आदतन कहा,
‘पूतो.. फलो!’
“पुत्र या पुत्री तो नहीं मालूम… लेकिन…एक और जश्न की तयारी कर लीजिये”,
आरव ने कहा.
“भाभी… सच क्या…. लव यू ….!”,
वर्तिका चिल्लाई.
“बहुत दुष्ट हो!”,
आरिणी ने आरव को घूर कर, झेंपते हुए धीमे से बोला.
“कोई नहीं, अब वजन बढ़ना ही है तो एक किलो और सही. हमेशा कॉलेज लाइफ की तरह छरहरी थोड़े ही रहोगी”,
कहते हुए आरव ने केक का बड़ा टुकड़ा आरिणी के मुंह में जबरन ठूंस ही दिया.
एफ़ एम गोल्ड चैनल पर फरमाइशी गीत बज उठा था--
“मेरे घर आना... ओ जिंदगी!”
००००