सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा का काव्‍य संग्रह - 2 Ramgopal Bhavuk Gwaaliyar द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा का काव्‍य संग्रह - 2

सुरेश पाण्‍डे डबरा का काव्‍य संग्रह 2

सरस प्रीत

सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा

सम्पादकीय

सुरेश पाण्‍डे सरस की कवितायें प्रेम की जमीन पर अंकुरित हुई हैं। कवि ने बड़ी ईमानदारी के साथ स्‍वीकार किया है।

पर भुला पाता नहीं हूँ ।

मेरे दिन क्‍या मेरी रातें

तेरा मुखड़ा तेरी बातें

गीत जो तुझ पर लिखे वो

गीत अब गाता नहीं हूँ

अपनी मधुरतम भावनाओं को छिन्‍न भिन्‍न देखकर कवि का हृदय कराह उठा। उसका भावुक मन पीड़ा से चीख उठा। वह उन पुरानी स्‍मृतियों को भुला नहीं पाया

आज अपने ही किये पर रो रहा है आदमी

बीज ईर्ष्‍या, द्वेष के क्‍यों वो रहा है आदमी

आज दानवता बढ़ी है स्‍वार्थ की लम्‍बी डगर पर

मनुजता का गला घुटता सो रहा है आदमी

डबरा नगर के प्रसिद्ध शिक्षक श्री रमाशंकर राय जी ने लिखा है, कविता बड़ी बनती है अनुभूति की गहराई से, संवेदना की व्‍यापकता से, दूसरों के हृदय में बैठ जाने की अपनी क्षमता से । कवि बड़ा होता है, शब्‍द के आकार में सत्‍य की आराधना से । पाण्‍डे जी के पास कवि की प्रतिभा हैं, पराजय के क्षणों में उन्‍होंने भाग्‍य के अस्तित्‍व को भी स्‍वीकार किया है।

कर्म, भाग्‍य अस्तित्‍व, दोनों ही तो मैंने स्‍वीकारे हैं।

किन्‍तु भाग्‍य अस्तित्‍व तभी स्‍वीकारा जब जब हम हारे हैं।।

इन दिनों पाण्‍डे जी अस्वस्थ चल रहे हैं, मैं अपने प्रभू से उनके स्वस्थ होने की कामना करता हूं तथा आशा करता हूं कि उनका यह काव्‍य संग्रह सहृदय पाठकों का ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित करेगा

रामगोपाल भावुक

सम्पादक

लगता है मधुमास आ गया है

यह मदमाती पवन और नयनों का नेह निमन्‍त्रण

लगता है मधुमास आ गया

नयनों को भाषा नयनों ने मेरे मन तक पहुंचाई जब

नयनों मे उल्‍लास छा गया

लगता है मधुमास............

प्रीत भरी वीणा तारों को

संकेती हाथों झनकारा

यह कैसा स्‍पर्श हुआ है

कंपन करता यह तन सारा

लगता है मधुमास.........

तुम जब चलो सुमन उपवन के

झुक कर करते हैं अभिनन्‍दन

और नीड़ के मृदुल पात तब

तेरा करते हैं आलिंगन

जब इतना विश्‍वास आ गया

लगता है मधुमास.........

तुम बोलीं तो कुहकी कोयल

और पपीहा पिऊ-पिऊ बोला

मन का सागर शान्‍त हो गया

ऐसा प्रीत-सरस रस बोला

कोई इतने पास आ गया

लगता है मधुमास आ गया

प्‍यासा है सावन

प्‍यासी हैं आंखें प्‍यासा है सावन

प्‍यासी है दुनिया प्‍यासा है मधुवन

प्‍यासा है सावन...........

कांटों की राहों पर में चल रही हूं

जीवन हे सूना पर में चल रही हूं

उपवन में कोई खिला फूल ही ना

कांटे ही कांटे हैं सूना चमन

प्‍यासा है सावन...........

मधुमास लगता है पतझड़ सा मुझको

पतझड़ तो पतझड़ सा दीखता है

पतझड़ ही पतझ़ड़ तो दीखता है

भरा सिर्फ खारो से मेरा दमन है

प्‍यासा है सावन...........

रूठे है अब सारे तारे गगन के

रवि रूठा शशी रूहा सरे भुवन से

न होगा उदित रवि अब इस गगन पर

कि रवि रूठा रूठी है उसकी किरन

प्‍यासा है सावन...........

मां ऐसा दो वरदान

स्‍वाभिमान से हृदय संजो

देशाभिमान से सिर ऊँचा कर

अड़ग खड़े हों लोह पुरूष बन

भारत मां की शान

मां ऐसा दो वरदान

हिम्‍मत में हमदर्दी हो

साहस में समतावर्ती हो

सच्‍चे सेवक बनें राष्‍ट्र के

वीर सुधीर महान

मां ऐसा दो वरदान

हम बच्‍चे भविष्‍य के नायक

हम ही सांसद और प्रशासक

देश भक्‍त बनकर के हम भी

करें राष्‍ट्र उत्‍थान

मां ऐसा दो वरदान

दहरी पर बैरी जो आये

कभी न जीवित लौट वो पाये

जन्‍म भूमि प्राणों से प्‍यारी

सीखे सबक जहान

मां ऐसा दो वरदान

सच्‍चा है मेरा प्‍यार यार

दिल की वीणा का

झंकृत है हर तार-तार

सच्‍चा है मेरा प्‍यार यार-2

ख्‍वाबों में तुमसे बा‍त हुई

यह बात मगर साकार हुई

तुमने सपने में पहनाया

मुझको खुसियों का हार यार

सच्‍चा है मेरा प्‍यार यार-2

रेशम के परिधानों में

मेरे सच्‍चे अरमानों में

पल भर भी चैन नहीं मिलता

तुम बिन सूना संसार यार

सच्‍चा है मेरा प्‍यार यार-2

गीत प्रीत के गाये थे

हम तुम दोनों शरमाये थे

जो प्‍यार भरा था गीतों में

वो प्‍यार मिला उपहार यार

सच्‍चा है मेरा प्‍यार यार-2

मैं कवि तुम मेरी कविता हो

मैं दीपक तुम तो सविता हो

तुम उदयाचल मैं अस्‍ताचल

बांकी बातें बेकार यार

सच्‍चा है मेरा प्‍यार यार-2

ऋतुओं की रानी

कजरारे कजरारे बादल नभ पर छाये हैं

ऋतुओं की रानी आई संदेश ये लाये हैं

कजरारे-कजरारे बादल.................

कल तक ज्‍वर से पीडि़त सारंग

अब शीतल बनी प्रवाहित होती

अधरों पर मुस्‍कान धरा के

कल तक तपती थी और रोती

अभिनन्‍दन करने कोयल ने गीत खुशी के गाये हैं

कजरारे-कजरारे बादल.................

तपन से दुग्धित कल तक पक्षी

दुश्‍मन भी कल तक थी बयार

वर्षा ऋतु आयी तो देखो

करने लगी पवन भी प्‍यार

आज प्रफुल्लित लता वृक्ष मन भर के नहाये हैं

कजरारे-कजरारे बादल.................

मस्‍ती झलक रही आंखों में

उन्‍माद खुसी का छाया है

अधर बोलते आज सभी के

सरस गीत ही गाया है

कृषकों में उत्‍साह भरा है सबके मन हरषाये हैं

कजरारे-कजरारे बादल.................

प्रीत ही भगवान है

प्रीत की ही श्रृष्टि है और प्रीत ही भगवान है

प्रीत का मैं हूँ पुजारी प्रीत ही इन्‍सान है।।

तुम कहते हो वेदों ने हमको बतलाया

समझ नहीं पाये तुम उल्‍टा अर्थ लगाया

ब्राहम्‍ण, क्षत्रीय, वैश्‍य, सूद्र तो थीं उपाधियां

गुरूकुल में ज्ञानानुसार मानव ने पाया

यह मेरी बात नहीं है वेदों का प्रमाण है

प्रीत की ही श्रृष्टि है................

साँप रहेगा जब तक उसका जहर रहेगा

जाति रहेगी जब तक उसका असर रहेगा

स्‍वार्थ वाद ने जातिवाद को जन्‍म दिया है

कोशा से जीवोत्‍पत्ति विज्ञान ने सिद्ध किया है

छुआछूत का ढोंग रचाये पाखण्‍डी तुमको गुमान है

प्रीत की ही श्रृष्टि है................

राम ने तो साथ अपने वानरों तक को मिलाया

प्रेम का दिगनाद करके एकता का गीत गाया

पर स्‍वार्थ-परता ने तुम्‍हें अन्‍धा किया है

मानव नहीं दानव तुम मानव को ठुकराया

प्रीत देकर प्रीत ले लो जग में प्रीत महान है।

प्रीत की ही श्रृष्टि है.................