सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा का काव्‍य संग्रह - 6 Ramgopal Bhavuk Gwaaliyar द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा का काव्‍य संग्रह - 6

सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा का काव्‍य संग्रह 6

सरस प्रीत

सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा

सम्पादकीय

सुरेश पाण्‍डे सरस की कवितायें प्रेम की जमीन पर अंकुरित हुई हैं। कवि ने बड़ी ईमानदारी के साथ स्‍वीकार किया है।

पर भुला पाता नहीं हूँ ।

मेरे दिन क्‍या मेरी रातें

तेरा मुखड़ा तेरी बातें

गीत जो तुझ पर लिखे वो

गीत अब गाता नहीं हूँ

अपनी मधुरतम भावनाओं को छिन्‍न भिन्‍न देखकर कवि का हृदय कराह उठा। उसका भावुक मन पीड़ा से चीख उठा। वह उन पुरानी स्‍मृतियों को भुला नहीं पाया

आज अपने ही किये पर रो रहा है आदमी

बीज ईर्ष्‍या, द्वेष के क्‍यों वो रहा है आदमी

आज दानवता बढ़ी है स्‍वार्थ की लम्‍बी डगर पर

मनुजता का गला घुटता सो रहा है आदमी

डबरा नगर के प्रसिद्ध शिक्षक श्री रमाशंकर राय जी ने लिखा है, कविता बड़ी बनती है अनुभूति की गहराई से, संवेदना की व्‍यापकता से, दूसरों के हृदय में बैठ जाने की अपनी क्षमता से । कवि बड़ा होता है, शब्‍द के आकार में सत्‍य की आराधना से । पाण्‍डे जी के पास कवि की प्रतिभा हैं, पराजय के क्षणों में उन्‍होंने भाग्‍य के अस्तित्‍व को भी स्‍वीकार किया है।

कर्म, भाग्‍य अस्तित्‍व, दोनों ही तो मैंने स्‍वीकारे हैं।

किन्‍तु भाग्‍य अस्तित्‍व तभी स्‍वीकारा जब जब हम हारे हैं।।

इन दिनों पाण्‍डे जी अस्वस्थ चल रहे हैं, मैं अपने प्रभू से उनके स्वस्थ होने की कामना करता हूं तथा आशा करता हूं कि उनका यह काव्‍य संग्रह सहृदय पाठकों का ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित करेगा

रामगोपाल भावुक

सम्पादक

गीतिका – अश्रु मेरे हुए बेशरम

नमन मेरे हुये बेशरम

नीर ही नीर जो ला रहे

अश्रु मेरे हुये बेशरम

जो निरन्‍तर बढ़े जा रहे

अश्रु मेरे हुये बेशरम

कैसी पूजा है यह प्‍यार की

भूल जाता हूं सारा जहां

कोई आकर बता दे मुझे

खो गये सरस तुम कहां

गीत मेरे हुए बेशरम

खुद ही की व्‍यथा गा रहे

अश्रु मेरे हुये बेशरम

प्रीत पीड़ा को पहिचान लो

मर्म की बात यह जान लो

प्रीत का दर्द तूफान है

मत करो प्‍यार अब मान लो

मीत मेरे हुए बेशरम

आसमां की तरह छा रहे

अश्रु मेरे हुए बेशरम

मैं वद तो नहीं हूं मगर

बदनाम क्‍यों हो गया

भाग्‍य मेरा नहीं जागता

गहरी निंद्रा में जो सो गया

स्‍वप्‍न मेरे हुये बेशरम

नित्‍य रातों को जो आ रहे

अश्रु मेरे हुए बेशरम

भोर से भोर तक का सफर

कटता नहीं अब मेरा

कितनी बेचैनी बढ़ जाती है

दिखता चेहरा नहीं जब तेरा

प्रभु मेरे हुए बेशरम

कब से मुझको है भरमा रहे

अश्रु मेरे हुए बेशरम

सारा जीवन रूदन हो गया

हर बाजी जीत जीवन की

पर एक बाजी हार गया हूं

सारा जीवन रूदन हो गया

मेरा मन वह नहीं कि हर

प्रतिमा के आगे नमन हो गया

सारा जीवन रूदन हो गया

सिंचित किा प्रीत ने पौधा

मदमाती वयार ने पाला

फूल खिले उस उपवन में तब

हाय विधाता क्‍या कर डाला

सूना सारा चमन हो गया

सारा जीवन रूदन हो गया

शबनम की बातें करता था

किन्‍तु अश्रु से भेंट हो गई

मेरी आशा मुझ तक आकर

ना जाने अब कहां खो गयी

मेरा बचपन सपन हो गया

सारा जीवन रूदन हो गया

छांव मिले इस राहगीर को

ऐसा तरूवर मुझे दिखा दो

आंसू पीकर खुशियां बांटू

ऐसी विद्या सरस सिखा दो

मेरा मन अब तपन हो गया

मेरा मन वह नहीं कि हर

प्रतिमा के आगे नमन हो गया

सारा जीवन रूदन हो गया

मुझको बतला देना

अपनों के दिये जख्‍म, कितना करते हैं दर्द

तुमको यदि ज्ञात हो तो, मुझको बतला देना

श्रद्धा विश्‍वास की मेरी थीं बैशाखीं

तुमनें क्‍यों तोड़ी है, मुझको बतला देना।

अपनों के दिये....................

कितना सुखमय जीवन, दु:ख की ही अनुभूति

मेरा मन रोये तब‍, मुझको बहला देना

अश्रु पिये इतने हैं, नीर पिया जितना ना

तुम तो अपने हो, कुछ और हो पिला देना

अपनों के दिये....................

दर्द भरा मेरा दिल, खुशी यदि तुम्‍हारी हो

मैं चुप हो जाऊँ तब, उसको सहला देना

प्रीत तो तुम्‍हारी है, पर पीड़ा मेरी है

अश्रु बरसात हो तो, मुझको बतला देना

अपनों के दिये....................

मेरी शतरंज पर, मेरे ही मोहरों से

पैदल की मात दो तो, मुझको बतला देना

मेरे जीवन से प्रिय पीर तुम्‍हें होती हो

ऐसी यदि बात हो तो, मुझको बतला देना

अपनों के दिये.....................

अब तो संघर्षों से ऊब गया मन

अब तो संघर्षों से ऊब गया मन

स्‍पर्धा रही नहीं रह गयी जलन

अब तो संघर्षों से......................

स्‍वार्थ रक्‍त दौड़ रहा, यौवन की रग-रग में

कपट शूल सरस चुभे, जीवन के पथ पग में

लूट रहा माली ही, अपना उपवन

अब तो संघर्षों से......................

करते हैं हमसे सब, अपनों सी बात

मिला नहीं मौका कि, कर देते घात

अपने मन से ही, मानव हुआ नगन

अब तो संघर्षों से......................

राजनीति स्‍वार्थ भरी, विष की है बेल

लूटना गरीबों का, इसका बना खेल

दग्धित है आज सभी, कैसी यह तपन

अब तो संघर्षों से......................

मुक्‍तक

मेरी प्रीत जटाओं जैसी

सुलझे ना कैसे सुलझाऊँ

गीत प्रीत बिन व्‍यथित हुए जब

तुम सुखमय सन्‍मुख क्‍या गाऊँ

चर्चा ये आम हो गयी

चर्चा ये आम हो गयी

माली का दोष कुछ नहीं, बगिया बदनाम हो गयी।

मिटना था वे नहीं मिटे, मृ‍त्‍यु कितनी नाकाम हो गयी।

चर्चा ये आम..................

जीवन महनत को मानते, कांटों की राह जो चले।

खुशियां सब दूसरों को दीं, ऐसे सांचे में जो ढले।।

मिलने को क्‍या मिला उन्‍हें, निर्धनता नाम हो गयी।

चर्चा ये आम..................

लड़ते हैं राम-लक्ष्‍मण, बिकती है सीता यहां।

मानव शिशु को कुछ नहीं, श्‍वान दुग्‍ध पीता यहां।

अर्थ का ही अर्थ रह गया, निर्धन की शाम हो गयी।

चर्चा ये आम..................

नित्‍य समाचार में छपे, जला दी सावित्री सत्‍यवान ने।

जनता का खून पी लिया, देखो जनता के भगवान ने।।

दोष भगवानों का इसमें क्‍या, जनता नीलाम हो गयी।

चर्चा ये आम..................

पूजते रहे सरस सदा, प्‍यार को भगवान मानकर।

लूटते रहे जो प्रीत को, वासना का खेल जानकर।।

प्‍यार रोता रहा उम्र भर, पूजा निष्‍काम हो गयी।

चर्चा ये आम..................