सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा का काव्‍य संग्रह - 3 Ramgopal Bhavuk Gwaaliyar द्वारा पत्रिका में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • My Wife is Student ? - 25

    वो दोनो जैसे ही अंडर जाते हैं.. वैसे ही हैरान हो जाते है ......

  • एग्जाम ड्यूटी - 3

    दूसरे दिन की परीक्षा: जिम्मेदारी और लापरवाही का द्वंद्वपरीक्...

  • आई कैन सी यू - 52

    अब तक कहानी में हम ने देखा के लूसी को बड़ी मुश्किल से बचाया...

  • All We Imagine As Light - Film Review

                           फिल्म रिव्यु  All We Imagine As Light...

  • दर्द दिलों के - 12

    तो हमने अभी तक देखा धनंजय और शेर सिंह अपने रुतबे को बचाने के...

श्रेणी
शेयर करे

सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा का काव्‍य संग्रह - 3

सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा का काव्‍य संग्रह 3

सरस प्रीत

सुरेश पाण्‍डे सरस डबरा

सम्पादकीय

सुरेश पाण्‍डे सरस की कवितायें प्रेम की जमीन पर अंकुरित हुई हैं। कवि ने बड़ी ईमानदारी के साथ स्‍वीकार किया है।

पर भुला पाता नहीं हूँ ।

मेरे दिन क्‍या मेरी रातें

तेरा मुखड़ा तेरी बातें

गीत जो तुझ पर लिखे वो

गीत अब गाता नहीं हूँ

अपनी मधुरतम भावनाओं को छिन्‍न भिन्‍न देखकर कवि का हृदय कराह उठा। उसका भावुक मन पीड़ा से चीख उठा। वह उन पुरानी स्‍मृतियों को भुला नहीं पाया

आज अपने ही किये पर रो रहा है आदमी

बीज ईर्ष्‍या, द्वेष के क्‍यों वो रहा है आदमी

आज दानवता बढ़ी है स्‍वार्थ की लम्‍बी डगर पर

मनुजता का गला घुटता सो रहा है आदमी

डबरा नगर के प्रसिद्ध शिक्षक श्री रमाशंकर राय जी ने लिखा है, कविता बड़ी बनती है अनुभूति की गहराई से, संवेदना की व्‍यापकता से, दूसरों के हृदय में बैठ जाने की अपनी क्षमता से । कवि बड़ा होता है, शब्‍द के आकार में सत्‍य की आराधना से । पाण्‍डे जी के पास कवि की प्रतिभा हैं, पराजय के क्षणों में उन्‍होंने भाग्‍य के अस्तित्‍व को भी स्‍वीकार किया है।

कर्म, भाग्‍य अस्तित्‍व, दोनों ही तो मैंने स्‍वीकारे हैं।

किन्‍तु भाग्‍य अस्तित्‍व तभी स्‍वीकारा जब जब हम हारे हैं।।

इन दिनों पाण्‍डे जी अस्वस्थ चल रहे हैं, मैं अपने प्रभू से उनके स्वस्थ होने की कामना करता हूं तथा आशा करता हूं कि उनका यह काव्‍य संग्रह सहृदय पाठकों का ध्‍यान अपनी ओर आकर्षित करेगा

रामगोपाल भावुक

सम्पादक

शहीद चन्‍द्रशेखर आजाद

जिसने पानी पिला दिया था

अंग्रेजी सरकार को

जिसने जड़ से हिला दिया था

अंग्रेजी सरकार को

वो हिन्‍द शेर जिसने गोरे

अंग्रेजों को ललकारा था

भारत माता के दुश्‍मन को

जिसने गिन-गिन कर मारा था

वह अमर लड़का वीर शेर

शेखर आजाद कहाता था

गम और खुशी दोनों में ही

वह गीत‍ देश के गाता था

थोड़ा पढ़ा हुआ फिर भी था

पूरी शिक्षा से भरपूर

डरता नहीं मौत से भी था

भारत माता का यह सूर

इसकी रिवाल्‍वर दुश्‍मन पर

गिन-गिन गोली बरसाती थी

हर मोलों दुश्‍मन मार मार कर

अपनी प्‍यास बुझाती थी

जिसकी आंखों की दिव्‍य चमक

को देख लोग भय खाते थे

उस वीर ब्रहम्‍चारी सन्‍मुख

हर मानी जन झुक जाते थे

जिसे चढ़ा रहता सदैव था

स्‍वतंत्रता का उन्‍माद

भारत माता का सपूत था

वीर चन्‍द्र शेखर आजाद

गणतंत्र-दिवस

पवित्र रावी के पुनीत तट पर

सब देश भक्‍त एकत्र हुए

पूर्ण स्‍वराज्‍य प्राप्‍त करने का

कर संकल्‍प पवित्र हुए

हर जगह सभाऐं होती थीं

हर जगह जलूस निकलते थे

जनता भाषण को सुनती थी

और वीर अकड़कर चलते थे

गोरांग शासकों ने जनता पर

लाखों जुल्‍म ढहाये थे

इसीलिये तो यह गोरे

पापी रावण कहलाये थे

देश के सभी जवानों, बच्‍चों

ने सोचा होना बलिदान

दानवता से लड़ना हमको

ले स्‍वतंत्रता का अरमान

माताओं ने दिये लाल

वहिनों ने दे डाले भाई

पत्‍नी ने पति त्‍याग किया

तब जाकर स्‍वतंत्रता आई

सन् 50 में संविधान बना

सन् 47 में आजादी पाई

पाकर इसे देश के हर

घर ने दीपावली मनाई

स्‍वाधीनता

जिसे प्राप्‍त करने को हमको

बड़ा मूल्‍य है पड़ा चुकाना

भारतवासी उन असंख्‍य

बलिदानों को तुम भूल न जाना

कभी परस्‍पर फूट न करना

तुम विनाश की ओर न बढ़ना

सबको अपने गले लगाओ

ऊँच नीच का भेद मिटाओ

राष्‍ट्र को शक्ति शाली है बनाना

जिसे प्राप्‍त...............

भाषा और प्रान्‍तीयता छोड़ो

झगड़ों से अपना मुँह मोड़ो

जहॉं एकता वहीं शक्ति है

जहां प्रीत है वहीं भक्ति है

देश में राम राज्‍य हमको है लाना

जिसे प्राप्‍त............

इन्‍सान हो इन्‍सान के काम आओ

एक हो देश शक्तिशाली बनाओ

नारों के चिल्‍लाने से काम नहीं चलता

महनत को अपने जीवन में अपनाओ

सद् विचार और सदाचार है अपनाना

जिसे प्राप्‍त..............

हमको जुल्‍मों से लड़ना है

कर्मवीर बनकर चलना है

विघ्‍नों के बादल चाहे मंडरायें

पर हमको बढ़ते रहना है

देश प्रेम सबके मन में है लाना

जिसे प्राप्‍त...................

कवियो तुम्‍हें देश भक्ति के गीत गाना है

कवियों तुम्‍हें देश भकित के गीत गाना है

क्‍योंकि देश नौका का मांझी तुम्‍हें माना है

कवि हृदय का उद्गार ही तो कविता है

कवि स्‍वयं रवि है और स्‍वयं सरिता हे

देश की नौका का प्रतिनिधित्‍व करते हो

तूफान से भी कवि तुम नहीं डरते हो

तुम्‍हें देश को समृद्धि शाली बनाना है

कविया तुम्‍हें देश भक्ति............

अपने भावों को देश उन्‍नति में लगा दो

सो रहे जो लोग तुम उनको जगा दो

गीत गाओ जवानों में वीरता भर दो

गीत गाओ जवानों में धीरता भर दो

तुम्‍हें शौर्य व साहस हर मानव में जगाना है

कवियो तुम्‍हें देश भक्त्.............

कष्‍टों का स्‍वागत करना तुमको आता है

ज्ञान का संबल सदैव तुमको आता है

गाकर ऐसे गीत संसार बदल दो

सुध-दुध दोनों में मुस्‍काना आता है

मातृ भूमि की रक्षा में अपना शीश कटाना है

कवियो तुम्‍हें देश भक्ति............

जातिवाद, प्रान्‍तीयता भाषा के झगड़ों का नाम मिटा दो

रूढ़ी बने कलंक संस्‍कृति, संस्‍कृति से ही उन्‍हें हटा दो

परिधान पहनते हैं पत्‍थर पर मानव के परिधान नहीं हैं

पत्‍थर को स्‍थान बने पर मानव का स्‍थान नहीं है

मानव को परिधान व स्‍थान दिलाना

कवियो तुम्‍हें देश भक्ति है..................

भजन

प्रभु मेरे तुम ही एक सहारे

आपन को पहचानत आप न

तेरी माया खेल नियारे

प्रभु तेरे............

शलभ करत है प्रेम दीपक सों

दीपक ही ने जारे

प्रभु तेरे............

या दुनियां की यही रीत है

झूठी प्रीत करत फिर मारे

प्रभु तेरे............

मैं ना ज्ञानी, मैं ना योगी

गुरू, मात-पिता तुम हमारे

प्रभु तेरे............

सौंप दिया है तुमको जीवन

तुमने अधम नींच हैं दुलारे

प्रभु तेरे............

चरण प्रीत आपन उपजाओ

गुण गावत सरस तुम्‍हारे

प्रभु तेरे............

मानव और मौत

नदी थी

पानी भरा था

नाव थी बीच में

बढ़ रहा था मांझी

किनारों की ओर नाव लिये

नाव और किनारे के बीच

अन्‍तर

कम हो रहा था

नाव बढ़ रही थी

किनारा स्थिर था

संसार सागर है

असंख्‍य नौकाऐं डली हैं इसमें

हर मानव नौका है

और

मौत किनारा

बढ़ने से

अन्‍तर

कम हो रहा था

मिल गयी

हर मानव को मौत

हर नाव को किनारा

मानव बबूला है

मानव बबूला है

पानी का

हाल फूट जाता

उत्‍पन्‍न होता दूसरा

सरांय

संसार है

राहगीर मानव है

ठहरता है

कुछ दिन

फिर

चला जाता है

क्रम है मौत का

हरदम यही रहता है

आता है

फिर

चला जाता है।

यारो मेरी खुशी भी देखो कैसे समय पर आई है

कहीं खुशी के गीत बज रहे

कहीं मायूसी छाई है।

यारो मेरी खुशी भी देखो

कैसे समय पर आई है।

आंखों में खुशी आंखों में है गम

मेरा गम ज्‍यादा मेरी खुशी है कम

तुम नहीं दीखते आज मुझे

तेरा प्‍यार याद आता हरदम

कांटे फूल संग कैसी ये विधि ने बनक बनाई है

यारो मेरी खुशी................

माना मैंने अपना हर गम

हर गम को खुशी ही माना है

पर कैसा दे दिया विधि ने गम

जिसे साथ मेरे ही जाना

शहनाई के स्‍वर रोते ये कैसी उदासी छाई है

यारो मेरी खुशी...................