सुरेश पाण्डे सरस डबरा का काव्य संग्रह 5
सरस प्रीत
सुरेश पाण्डे सरस डबरा
सम्पादकीय
सुरेश पाण्डे सरस की कवितायें प्रेम की जमीन पर अंकुरित हुई हैं। कवि ने बड़ी ईमानदारी के साथ स्वीकार किया है।
पर भुला पाता नहीं हूँ ।
मेरे दिन क्या मेरी रातें
तेरा मुखड़ा तेरी बातें
गीत जो तुझ पर लिखे वो
गीत अब गाता नहीं हूँ
अपनी मधुरतम भावनाओं को छिन्न भिन्न देखकर कवि का हृदय कराह उठा। उसका भावुक मन पीड़ा से चीख उठा। वह उन पुरानी स्मृतियों को भुला नहीं पाया
आज अपने ही किये पर रो रहा है आदमी
बीज ईर्ष्या, द्वेष के क्यों वो रहा है आदमी
आज दानवता बढ़ी है स्वार्थ की लम्बी डगर पर
मनुजता का गला घुटता सो रहा है आदमी
डबरा नगर के प्रसिद्ध शिक्षक श्री रमाशंकर राय जी ने लिखा है, कविता बड़ी बनती है अनुभूति की गहराई से, संवेदना की व्यापकता से, दूसरों के हृदय में बैठ जाने की अपनी क्षमता से । कवि बड़ा होता है, शब्द के आकार में सत्य की आराधना से । पाण्डे जी के पास कवि की प्रतिभा हैं, पराजय के क्षणों में उन्होंने भाग्य के अस्तित्व को भी स्वीकार किया है।
कर्म, भाग्य अस्तित्व, दोनों ही तो मैंने स्वीकारे हैं।
किन्तु भाग्य अस्तित्व तभी स्वीकारा जब जब हम हारे हैं।।
इन दिनों पाण्डे जी अस्वस्थ चल रहे हैं, मैं अपने प्रभू से उनके स्वस्थ होने की कामना करता हूं तथा आशा करता हूं कि उनका यह काव्य संग्रह सहृदय पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करेगा
रामगोपाल भावुक
सम्पादक
अभी मुझे तो कई रंग भरने हैं
अभी मुझे तो कई रंग भरने हैं
जीवन के सुख दु:ख दर्शाते चित्र में
जिसे व्यक्ति के ही कृत्यों ने अरे बनाया है
बचपन ही वह रंग सुरंगा
चिन्ताओं से पूर्ण मुक्त है
उस उपवन का पुष्प है यह
प्रति पुष्प जहां पर सुरभि युक्त है
बचपन से ही गीत प्रीत का
हमें सिखाया है
जिसे व्यक्ति के ही................
यदि बचपन ही जीवन होता
तो रंग सुरंगे सब भर देता
और श्रृष्टि को मेरे साथी
स्वर्ग तभी घोषित कर देता
बचपन ने ही जाति पांति का
भेद मिटाया है
जिसे व्यक्ति के ही..........
पड़ कुसंगति में किशोर क्यों
करते काम काला
अरे जमाने की सारंग ने
यौवन डस डाला
उसी क्रम से बचपन भटका
मन भरपाया है
जिसे व्यक्ति के ही.................
कोई शक्ति की भक्ति में
विश्वास किया करता
कोई कहता पाप पुण्य क्या
नहीं कभी डरता
इसी बात ने मानवता का
हनन कराया है
जिसे व्यक्ति के ही................
जीवन पथ
जीवन पथ पर चलते-चलते
जीवन पथ तक घिस डाले हैं
जीवन की पर स्वर्णमयी कोई
किरन अभी तक मिली नहीं है
जहां चला मैं मिला अंधेरा
उजयाले की बात नहीं थी
नहीं मिलेगा कहीं उजाला
बात मगर यह ज्ञात नहीं थी
मैं दीपक में भर स्नेह जब
अंधियारे में चला जलाने
तभी जमाने की सारंग मेरे,
सारंग को आगई बुझाने
जिस स्नेह की बाती साथी
अभी तलक तो जली नहीं है।
जीवन पथ..............
मेरे जीवन नील गगन पर
दु:ख के बादल जमकर छाये
हम भी डरे नहीं विघ्नों से
बड़ी खुशी से जा टकराये
कर्म-भाग्य अस्तित्व दोनों को
ही तो मैंने स्वीकारे हैं
किन्तु भाग्य अस्तित्व तभी
स्वीकारा जब जब हम हारे हैं
जो मुझको विश्वास दिला दें
जीवन के सुमधुर होने का
मेरे नभ के तले अभी तक
वह आशायें पली नहीं हैं।
जीवन पथ...............
सुमधुर सपने आते होंगे
सुमधुर सपने आते होंगे
मेरी याद दिलाते होंगे
बहुत दूर हूं तुमसे लेकिन
अपने पास बुलाते होंगे।
सुमधुर...............
सारा दिन मेरी यादों में
बेचेनी से कटता होगा
पढ़ती होगी प्रीति मेरी जब
ध्यान मेरे में बटता होगा
प्रीत भरे गुजरे क्षण मुझ संग
तेरा दिल बहलाते होंगे।
सुमधुर...............
कल ही मेरे स्वप्न में तुमने
प्रति भरे कुछ गीत सुनाये
जब तक क्रम चलता तब तक सुख
टूटे दुनिया दर्द दिखाये
यही हाल तेरा भी होगा
हम भी गीत सुनाते होंगे।
सुमधुर...............
तुमने मेरे स्वप्न में आकर
दिल की वीणा ऐसी बजाई
अमर हो गये हैं वे सब स्वर
गूंज उठी सुख की शहनाई
प्रीत स्वप्न में आकर हम भी
तुम संग बीन बजाते होंगे।
सुमधुर...............
प्यार ही प्यार में
प्यार के खेल में
प्यार ही प्यार में प्यार के खेल में
लुट गये आज हम और कुछ ना रहे
क्या सुनाये व्यथा अश्रु ही अश्रु हैा
क्या गिनायें वो गम जो कि दिल ने सहे
प्यार ही प्यार में.................
तुमसे मिलना हुआ बात नयनों ने की
बात बढ़ती गयी प्यार तक आ गई
देखने की तमन्ना तुम्हें होती है
सूरत तेरी मेरे मन पर छा गई
तेरी यादों की सरिता में कितना बहे
लुट गये आज हम और कुछ ना रहे
प्यार ही प्यार में..................
तुम तो मुस्का दिये पर तुम्हें क्या खबर
जिन्दगी छीन ली एक की आपने
कोई रोता रहा रात भर याद में
जिन्दगी के सफर को लगा नापने
दर्द-दिल के सरस किससे कहे
लुट गये आज हम और कुछ ना रहे
प्यार ही प्यार में................
प्यार क्या चीज है आप पहचानिये
प्यार को वासना का सहारा नहीं
मिटना हमको तो अपना गबारा मगर
प्यार पर आंच आये गवारा नहीं
प्रीत निर्मल सरस अवगुण ना गहे
लुट गये आज हम और कुछ ना रहे
प्यार ही प्यार में...................
हमको तो प्यार हो गया
हो या कि ना हो तुम्हें
हमको तो प्यार हो गया-2
रोम-रोम में बसे हैं आप
स्वांस मेरी बहक चली है
फूलों से बार जो किया
कांटों सी चुभन मिली है
कांटों सी चुभन ही सरस
प्रीत का उपहार हो गया
हो या कि ना हो तुम्हें
हमको तो प्यार हो गया
इन्तजार आपका रहा
हमने ये दर्द भी सहा
आप ही की बात सोचते
आप ही से हमने ये कहा
मेरा सारा प्यार आप पर
पुर्नजन्म को उधार हो गया
हो या कि ना हो तुम्हें
हमको तो प्यार हो गया।।
चलो चलें दूर
चलो चलें दूर कहीं
चलो चलें दूर। चलो चलें दूर
बहुत दिनों मिले नहीं
मिलने की आशा है
आशा से आसमान
आशा की भाषा है
मिलना तो होगा जरूर
चलो चलें दूर कहीं। चलो चलें दूर-2
अनजानी पीड़ा और
स्वप्न भरी रातें हैं।
तेरा ही सपना है
तेरी ही बातें हैं
तुमसा मिला न कोई नूर
चलो चलें दूर कहीं। चलो चलें दूर-2
कहने को बहुत दूर
पर दिल में रहती हो
मेरे ही कारण तो
प्रीत कसक सहती हो
पर कितने हम हैं मजबूर
चलो चलें दूर कहीं। चलो चलें दूर -2
हम तुम ही शेष रहें
भाव मन में आया है
प्रीत तूने कितना सरस
स्वार्थी बनाया है
बुरा नहीं मानिये हुजूर
चलो चलें दूर कहीं। चलो चलें दूर -2
मुझसे न होगा
मैंने सारी खुसी बेच दी गम के हाथों
तुम कहते हो मुस्काओ, मुझसे न होगा
माना मुझे प्यार के बदले
मिले नीर के प्याले-प्याले
पर जिसको समझा है अपना
उसको दिल से कौन निकाले
अब तो नेह जुड़ गया इतना
जहर पिलाये मैं पी लूंगा
चाहे जितना दर्द मुझे दे
उफ न करूं होंठ सी लूंगा
मेरे मन मन्दिर में स्थापित प्रतिमा को
तुम कहते हो भूल जाओ मुझसे ना होगा
मैंने सारी खुशी............
मैं जब चलूं मेरा अभिनन्दन
करता है दु:ख द्वारे द्वारे
ऐसा भाग्य कहां है मेरा
सुख आकर जो मुझे पुकारे
मैं वह एक मुसाफिर जिसको
उस चौराहे खड़ा कर दिया
कोई राह सरस ना जिसको
हर रस्ते में दर्द भर दिया
सारे गीत रखे गिरवी गम के घर मेरे
कहते सरस गीत गाओ, मुझसे ना होगा
मैंने सारी खुशी...................
नयन सावन मत बनाओ तुम प्रिये
नयन सावन मत बनाओ तुम प्रिये
प्रीत कार उपवन सजाओ तुम प्रिये
मैं उडूं आकाश की ऊँचाईयों तक
लगन वह मुझमें लगाओ तुम प्रिये
नयन सावन मत...........
मिलन और विछोह जग की रीत है
विश्वास है नर और नारी प्रीत है
प्रीत का विश्वास जब सम्बल बने
तोड़ देना इस जगत की नीत है
जगत अपनी प्रीत का बैरी बने
तब मिलन के गीत गाओ तुम प्रिये
नयन सावन मत................
विश्वास बल ही प्रीत का आधार है
प्रीत ही तो जिन्दगी का सार है
उद्देश्य के इस छोर से उस छोर तक
प्रेरणा है प्रीत, बन्धन बार है
प्रीत पूजा है तपस्या अति कठिन
बन तपस्विन, मुस्कराओ तुम प्रिये
नयन सावन मत.................