कल्पनाओं से आगे  Alok Mishra द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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कल्पनाओं से आगे 

कल्पनाओं से आगे
मानव सभ्यता प्रगति की अनोखी कहानी है । हम अपनी सुविधाओं और आवश्यकताओं की कल्पनाओं को वास्तविक रुप देते हुए आगे बढ रहे है । मानव सभ्यता की प्रथम खोज उसके पत्थरों से बने हथियार हो सकते है ; वहीे आग और पहिए को मानव इतिहास की क्रांतिकारी खोज कहा जा सकता है । पिछली सदी में लियोनार्दो द विंची जैसे विचारकों को छोड़ दे तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कभी टेलीफोन ,मोबाईल ,टेलिवीजन और हवाई जहाज जैसी कोई चीज वास्तविक रुप में होगी । कल्पनाऐं कभी रुकती नहीं । क्या आपने सोचा है कि भविष्य में और क्या-क्या हो सकता है ? अब हमें अपने साथ मोबाईल लेकर चलना भी दूभर लगने लगा है । कितना ही अच्छा होता कि किसी पत्थर की तरह जेब में पडे़ मोबाईल से तो छुटकरा मिल जाता लेकिन हमारा दुनिया से संपर्क बना भी रहता । भविष्य में मोबाईल के शारीरिक संस्करण की आवश्यकता होगी । याने मोबाईल आपके शरीर के अंदर ही होगा । आप एक भी शब्द बोले बिना ही अपने साथी से मानसिक स्तर पर बात कर सकेंगें और विकास की स्थिति में उसे देख भी सकेगें ।
लगभग सभी लोग यह मानते है कि हमारा दिमाग किसी सुपर कम्प्यूटर से भी अधिक शक्तिशाली है । जिसके केवल पाॅंच प्रतिषत भाग का ही हम प्रयोग कर पाते है । शेष भाग का उपयोग हो ही नहीें पाता ।इस भाग का प्रयोग बाह्य मेमोरी को डाउनलोड करने और उपयोग करने में किया जा सकता है । यदि ऐसा हुआ तो आपके दिमाग के साथ किसी कम्प्यूटर को जोड़ने के लिऐ शायद यू.एस.बी. स्लाट या कुछ तार और जोड़ने पड़ें । इसकी मदद से आप कोई भी जानकारी अपने दिमाग में ड़ाल सकेंगे । तब आपके लिए ज्ञान की सभी सीमाएॅं समाप्त हो जाऐगी क्योंकि तब आप आवश्यकता अनुसार ज्ञान को पाठ्यक्रम, साफ्टवेयर के रुप में लोड कर या करवा सकेंगे । तब शायद स्कूल और काॅलेज की आवश्यकता ही समाप्त हो जाए । शिक्षक केवल साफ्टवेयर बनाने और बेचने का काम ही करेगें । आपको सायकल से लेकर हवाई जहाज चलाना सीखने के लिए घर से निकलने की कोई जरुरत न होगी ।
दूरियों का क्या ? हमें आज एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए कुछ घंटों से कुछ दिनों तक का समय लगता है । रफ्तार के युग में शायद एक ही दिन में आपको अनेक देशों में होना जरुरी हो जाए तो क्या आपको फैक्स किया जा सकेगा ? शायद ऐसा भी हो । इसे भविष्य में टेलिर्पोटेशन के नाम से जाना जा सकेगा । इसमे आपके शरीर के कणों को विद्युत चुम्बकिय रुप में बदल कर दूसरी जगह पर पुनः उसी रुप में बनाया जा सकेगा । इस तरह आप पूरे के पूरे कुछ ही क्षणों में दूसरी जगह पर होगें । लेकिन यह अभी थोड़ी दूर की कौड़ी है । इसके पहले हम और आप उड़ने वाली कारों पर सफर अवश्य करेगें । भविष्य में बिना ईंधन के तेज गति से सफर तो शायद हम कुछ ही दशकों में ही कर पाएंगें ।
मानव का स्वस्थ्य रहना और लम्बा जीवन जीना आवश्यक है इसके लिए नैनो टेक्नोलाॅजी के नैनो आपके शरीर में रोग खोज कर तुरन्त ही इलाज करते रहेगें या किसी निकटतम डाॅक्टर को सूचित करते रहेगें । आपके छाटे मोटे रोगों के लिए आप को डाॅक्टर के पास जाने की भी आवश्यकता न रहेगी । विश्व की खाद्य समस्या का हल उच्च तकनीक से बनी गोलियों में छुपा होगा । इससे शायद आपकी रसोई का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए । घरेलू और व्यवसायिक कामगारों के लिए रोबोट आपको उपलब्ध होगें । इसका प्रथम संस्करण बाजार में आ भी चुका है लेकिन अभी तो वे कवल एक बेवकूफ नौकर से अधिक नहीं है । भविष्य में ये बुद्धिमान होकर हमें ही चुनौती दे सकते है । इन्हीे में से सेनाऐं अपने सैनिक भी बना सकती है , इससे युद्ध में सीधे मानव सैनिकों के मरने की संम्भावना धीरे -धीरे समाप्त हो जाएगी ।
आप जिस अखबार को पढ रहे है वो भी आप के पास भविष्य में पहुॅंचेगा तो तस्वीरें बोल और चल कर अपने आप को बयान करेंगी । आप को यदि अपने अखबार का रंग पसन्द नहीं आएगा तो वो भी बदल जाएगा और आपके कमरे को आपकी पसन्द की खुशबू से महकाता रहेगा । कागज के नोट आज अपने अंतिम पड़ाव पर है । ये कब प्लास्टिक मे बदलने के बाद आभासी मुद्रा में बदल जाएंगे यह तो हम आप देख ही सकेगें । प्रथम पूर्णतः कृत्रिम मानव के विषय में तो आप पढ भी चुके होगें ; लेकिन जब इनका औद्योगिक उत्पादन होगा तो हमें यह समझना भी मुश्किल होगा की हम जिस से मिल रहे है वो मानव है या मशीन ।
इस समय हमारी मशीनों पर निर्भरता बढ़ जाएगी । यह दौर सुविधाओं के साथ ही साथ खतरों का भी होगा । । मानव शरीर पर सीधे ही वाइरस के हमले होने लगेगें । मशीने जब अपना उत्पादन स्वयम् करने लगेगी तो मानव के अस्तित्व के विषय में सोचना भी आवश्यक हो जाएगा । कही उस समय का युद्ध मशीनों और मानवों को एक दूसरे के विरुद्ध ही लड़ना न पड़ जाए । तब शायद मानव को किसी और ही ग्रह पर शरण लेनी पडे़ । ये आज आपको कल्पना लगती हो लेकिन एक दिन ऐसा होगा जरुर।

आलोक मिश्रा