वो भारत! है कहाँ मेरा? 11
(काव्य संकलन)
सत्यमेव जयते
समर्पण
मानव अवनी के,
चिंतन शील मनीषियों के,
कर कमलों में, सादर।
वेदराम प्रजापति
‘‘मनमस्त’’
दो शब्द-
आज मानव संवेदनाओं का यह दौर बड़ा ही भयावह है। इस समय मानव त्राशदी चरम सीमा पर चल रही है। मानवता की गमगीनता चारों तरफ बोल रहीं है जहां मानव चिंतन उस विगत परिवेश को तलासता दिख रहा है,जिंसमें मानव-मानव होकर एक सुखद संसार में जीवन जीता था,उसी परिवेश को तलासने में यह काव्य संकलन-वो भारत है कहाँ मेरा । इन्हीं आशाओं के लिए इस संकलन की रचनाऐं आप सभी के चिंतन को एक नए मुकाम की ओर ले जाऐंगी यही मेरा विश्वास है।
वेदराम प्रजापति
‘‘मनमस्त’’
51.एहि तन में-चैदह रतन
पारिजात-युगपाद हैं,कौस्तुभ-मस्तक लेख।
लक्ष्मी-कर मध्ये बसति,सुरा-नेत्र अभिलेख। (नरतन में)
कामधेनु-है जीभ,धनवन्तरि-पेटहि जानो। (अंग)
चन्द्र-सुहात ललाट,हस्थि-हृदय को मानो।
रम्भा-आनन,विष-कर्ण,धनुष-भृकुटि हो जात।
अश्व-स्कन्ध,शंख-ग्रीवा,अमृत-ओष्ठ सुहात।।1।।
युगल करों में लक्ष्मी,दन्त कौस्तुभ देख।
उदर-कल्प वृक्षहि समुझ,पलक-सुरा-आलेख।
नेत्र-वैद्य समजान,स्तन-कामधेनु मानो। तियतन
हृदय-गज अनुमान,आनन-चन्द्रहि पहिचानो। (अंग)
केस-कल्पना-रम्भ,पाद-अश्व,कर्ण-विष जुगल।
मृकुटि-धनु,कंठ-शंख,अधर-अमृत,हैं युगल।।2।।
नरतन रतनों से भरा,गिनो चतुर्दष मीत।
पावनता-है शंख,मान-गज,बकुता-धनु से प्रीति।
चिंतन-वैद्य विहार,दृष्टि-हय,बुद्धि-गावा।
शान्ति-जान सुर वृक्ष,शीलता-चन्दहि पावा।
बोलन-अमृत मान,रंग-बारुणि,कान्ति-मणि बर।
चपल दृष्टि है-रम्भ,क्रोध-विष,सोम्य-लक्ष्मी नर।।3।।
रतन भरा तियतन समुझ,चतुर्दशो को जान।
रुप-रम्भ,बोलन-अमिय चितवन विषवत मान।
शोभा-मणि,लक्षण-श्री,हांस-वैद्य,मृकुटि-धनुः।
बदन-चन्द्र,चंचलता है-हय,चाल-हस्थि,षुचि-धनुः।
ग्रीव-शंख,मद-बारुणि,लावण्यता-सुरतरुः यतन।
मथ मनमस्त सुजान,पाओगे चैदह रतन।।4।।
सागर-हृदय को बना,जान-गहन,गंभीर।
मदराचल है धैर्यता,स्वांस-सुरा सुर वीर।
मथत-सुरा सुर वीर,वासना-वासुकि जानो।
देय न डूबन-मदरु,कमठ-चिन्तन को मानो।
मंथन तत्व विचार,जानलो इनको नागर।
पाओगे मनमस्त,बना-हृदय को सागर।।5।।
तन-सागर सा है विषद,चिन्तन मंदरु जान।
ज्ञान-भक्ति मंथन करत,रज्जु-विचार प्रमाण।
रज्जु-विचारहि मान,रतन चैदह तन पाए।
गुणागुणों से भरे,सभी ने ऐहि अपनाए।
करैं मनमस्त विचार,हमेषां नर-ज्ञानी जन।
सब रतनों की खानि,दिख रहा,सच में यह तन।।6।।
यह तन है सब कुछ सखे,सब रतनन का मूल।
इसे भूल,नहिं कुछ मिले,करो न ऐसी भूल।
करो न ऐसी भूल,सगाई इससे कर लो।
रतन भरा यह देश,झोलियां अपनी भर लो।
मनमस्त पूरी साघ,पूर्णता पाओ,होवौ धन्।
दुनियां इसमें रमीं,सभी कुछ जानो यह तन।।7।।
पाओगे सब इसी में,कहीं न जाना मीत।
भटकत क्यों संसार में,इससे ही कर प्रीत।
इससे ही कर प्रीत,जीत कर,क्यों हो,हारत।
भटकावे रहो दूर,करोना,मनमें भारत।
सबै त्याग मनमस्त,इसी के गीत गाओगे।
कहीं न कोई षंक,इसी में सभी पाओगे।।8।।
मंथन हो हर घड़ी पर,प्रकट ज्ञान-नवनीत।
अगम-ध्यान सोधन किए,हो जीवन में जीत।
हो जीवन में जीत,सदां सत युग अनुमानो।
कलियुग आए न द्वार,सुयष-ध्वज फहरा जानो।
खोजन करिए मीत,पाओगे सब कुछ ग्रन्थन।
नरतन मोक्ष का द्वार,करो मनमस्त हो मंथन।।9।।
खोजन कर गुरु-ज्ञान से,तन रतनन का देश।
चैदह ही पाऐ अभी,कई चैदह एहि वेष।
कई चैदह एहि देश,खोजने के गुरु जानो।
रोम-रोम हैं रतन,रंग-रंगत पहिचानो।
एहितन का है व्यास,जान लो,है कई योजन।
कहाँ भटकत मनमस्त,करो इसका ही खोजन।।10।।
जिन खोजा,तिन पांइयां,इस तन का सब भेद।
खोजत ही,कई खो गए,जान न पाए वेद।
जन न पाए वेद,भेद इसका है गहरा।
सुनो न जग की बात,बनो अब,खुद में बहरा।
यह मनमस्त विचार,न कोई व्रत,ना रोजा।
सब कुछ ऐहितन मिलत,जिन्होने इसको खोजा।।11।।
52.वीर वधूटी(वीरांगना)
प्रश्न भामिनी? किस तरह-सीमा-समय वितात।
दृष्य उकेरे,पति कई,पुलकित भामिन गात।
पुलके भामिन गात,चूम मस्तक,बलि जाती।
मन ने गाए गीत,जुन्हैया रंग बरसाती।
मदन-मयंकी-अंक,सेज साजन संग,प्रसन्न।
मोबाइल तेहि क्षण बजा,सुनत कई एक प्रश्न।।1।।
पूंछत पति से,नेह संग,किससे कीनी बात।
सेनापति थे सींभ के,यौं बोले-मुस्कात।
यौं बोले मुस्कात,प्रातः सीमा पर जाना।
इतना है आदेश,सुना,सुन मैने माना।
अंग-अंग हुलशात,सीम का नक्षा सूझा।
क्या करना है विदा?प्रश्न कर,भामिन पूंछा।।2।।
वीर भामिनी तुम्हीं,और को विदा करेगा।
प्रभा वीरता तुम्हीं,तुम्हीं से सुयष मिलेगा।
तुम हो मम संगीन,विजय की,तुम्हीं वाहिनी।
विहॅंस भामिनी कहत,विजयी हो! कहती भामिनी।
प्रातः दीनी विदा,तिलक-अच्छत संग कामिनी।ं
हॅंस-हॅंस पूजीं भुजा,विजयी हो!वीर भामिनी।।3।।
गृह कारज करती,मगर,था सीमा पर ध्यान।
उच्च स्वप्न थे सामने,जो स्वामी पहिचान।
जो स्वामी पहिचान,ताहि क्षण,फौन बज उठा।
विजयी भामिनी हुआ,कट गया,नहीं फिर उठा।
सुन विजयी आवाज,धन्य हो,मेरे आर्य।
पहले आरति करुं,करुंगी-फेर अन्य कार्य।।4।।
भामिनि-भारत-विजय पर,सज रही थी थार।
कई कल्पनाओं लिए,धरत थाली में हार।
धर थाली में हार,संग में अच्छत रोरी।
दीपक रही जलाय,अनेकन सपनों,भोरी।
ताहि समय एक यान,द्वार पर देखा कामिनी।
तिरंगे के परिधान,सजा था-वीर,भामिनी।।5।।
देखा प्रिय पति को जभी,सजा तिरंगे माँहि।
रौमाँचित भामिन भई,क्या मेरा यह,नांह।
क्या मेरे ये नांह,उस दिवस यौं बोले थे।
फतह करुंगा जंग,नेह-अमृत घोले थे।
आज,मौन क्यों हुए,कौन-सी,खींची रेखा।
उठो! करुं सत्कार,सपन यह कैसा? देखा।।6।।
वीर पुरुष थे आप,न कांपा शंसय मेरा।
वीर भामिनी बनी,घटा क्या तप है मेरा?।
हो रही मुझको भ्रान्ति,न मन में, शंका कोई।
वीर पुरुष रहें अमर,इस तरह रहैं न सोई।
कर थामूं संगीन,न होऊॅं,कभी अधीर।
मातृभूमि के हेतु,भामिनी-मैं हूं वीर।।7।।
वादा करके गए थे,वीर-चक्र ले हाथ।
अंधकार कैसे हुआ,होना था परभात।
होना था परभात,सो रहे,मौनी बनकर।
कोई उत्तर देऊ,लेट रहे क्यौं,यौं तन कर।
आप कहा-भए विजय,मगर यह,क्या-इरादा।
उठा लेऊ संगीन,निभाओ अपना वादा।।8।।
भारत भू है मातृवत, माँ का करुं सम्मान।
लाज रखूंगी आपकी,होऊॅंगी कुर्बान।
होऊॅंगी कुर्बान,धन्य जीवन,तब होगा।
वीर बधूटी बनूं,न कोई,यहाँ पर रोगा।
वीर भूमि है यही,यहाँ नहिं कोई मरत।
होते हैं,न्यौंछार,वीर हैं,सारे-भरत।।9।।
नयन न मेरे रोऐंगे,बरसाऐंगे-खून।
वीर पती-वीरांगना,मेरा यही जुनून।
मेरा यही जुनूंन,तुम्हारा पाथ बरुंगी।
प्रण को पूरण करुं,सींम पर जाय लरुंगी।
अमर रहेंगे सदां,वीरगति होके षयन।
फरक रहे सब अंग,संग में दोनौं नयन।।10।।
मैं हूं जीवन सॅंगिनी,लो जीवन न्यौंछार।
स्वागत करती हूं सनम,पहनो स्वागत हार।
पहनो स्वागत हार,तुम्हारा नाम करुंगी।
उसी सींम पर जाय,अपनी माँग भरुंगी।
अमर होऊॅंगी वही,गाऐगा सारा आगत।
दो अपनी बन्दूक,कर रही तिहांरा स्वागत।।11।।
पाते हैं सब अमरता,कोई न मरता,भूल।
बरसाते हैं देव सब,यहाँ स्वर्ग से फूल।
यहाँ स्वर्ग से फूल,वीर भूमि है भारत।
वीर प्रसवनी धरा,मृत्यु है यहाँ नदारत।
भारत स्वर्ग हमारा,देश सब गौरब गाते।
प्रकृति हमारे साथ,सुमन-फल सब ही पाते।।12।।
कंधा दीना पती को,अग्नि पात्र के साथ।
सुमन माल संग श्रीफल,उछलाती निज हाथ।
उछलाती निज हाथ,माँग सिंदूर सजी थी।
छुटके थे शिर केष,बाद्य ध्वनि विजय वजी थी।
आगे-आगे चली,उड़ रही गंध-सुगंधा।
नयनन तेज अपार,फड़क रहे भामिनि कंधा।।13।।
जयकारों की ध्वनि थी,उमड़ी भीड़ अपार।
भेंट नारियल अर्थी पर,सुमन माल उपहार।
पहिनाए सब हार,विजय उत्सव था न्यारा।
समय साद्य सब किया,तिलक मस्तक पर धारा।
दयी मुखाग्नि जभी,तोप गर्जन स्वर भारो।
तोप सलाामी सुनत,गूंजगऔ,जय-जय कारो।।14।।
छलके नहीं आंसू नयन,नहीं कुम्लाया गात।
वीरोचित सम्मान लो,सदां रहूंगी साथा।
सदां रहूंगी साथ,सामने तुम,नित होगे।।े
भटकूं गर मैं कहीं,सहारा तुम ही दोगे।
विदा करुं,दे नेह,न झुक रही मेरी पलकें।
गरज रहीं संगीन,गर्व के सागर-छलके।।15।।
देखा जिनने दृष्य यह,गर्वित थे सब माथ।
वीर भामिनी विजय पर,जोड़े सबने हाथ।
जोरे सबने हाथ,धन्य हो वीर बधूटीं।
सुयष रहेगा सदां,तुम्हारा चारौ खूंटी।
अजया-विजया तुम्ही,तुम्हारा को करै लेखा।
लौटे-ले कई प्रश्न?,सभी मन-चिन्तन देखा।।16।।
जय-जय,जय जय हो रही,सभी दिषा से आज।
वीर भामिनी विजयी भईं,यही विजय का राज।
यही विजय का राज,मुखाग्नि हॅंसकर दीनी।
सामाजिक अनुकूल,क्रियाऐं सारी कीनी।
चहुदिसि बरसत फूल,भगा सबही का,मन भय।
छाती गर्वित भई,सुनत चहुदिसि से जय-जय।।17।।
वीर और वीरांगना,हैं भारत की शान।
इनके पावन कर्म से,भारत बना महान।
भारत बना महान,धन्य-भू-माता म्हांरी।
वीर प्रसवनी बनी,वीर भू प्यारी प्यारी।
गाओ मंगल गीत,और बरसाओ अबीर।
है मनमस्त जहाँन,प्रगट होते यहाँ वीर।।18।।
वीर बधूटीं जगीं हैं,माँ की रक्षा हेतु।
सबके कर संगीन है,संग तिरंगा केतु।
संग तिरंगा केतु,धरा-आसमाँ जाऐंगी।
सागर भी मथ रहीं,रतन धर धरा लाऐगी
अन्तरिक्ष छू रही,विवेकी बन नीर-क्षीर
मन में ले यह हुलस,बधूटी हम हैं,वीर।।19।।
सर्वांगिनी हम आज हैं,अद्र्धांगिनी थीं काल।
हम सब मिलकर एक हैं,भारत करैं विषाल।
भारत करन विषाल,विश्व गुरु होगा भारत।
कोई षिखण्डी नहीं,यहाँ सबही हैं पारथ।
अहिल्या,लक्ष्मी सभी,तीर,तलवार-संगिनी।
लड़ै मिषायल,बम्ब,वीर हम हैं,सर्वांगिनी।।20।।
समरांगन में आज फिर,हिल-मिल खेलें फाग।
जो-जैसे-चाहे लड़न,वन,बीहड़ या बाग।
वन-बीहड़ या बाग,सजग वन,दिन और राती।
सीम वंद सब करैं,न आऐ कोई घाती।
तीक्ष्ण-नयन कर नयन,हवा नहीं झांखे आगन।
विजय रहेगी सदां,लड़ो मिलकर समरांगन।।21।।
हम तो सब कुछ कर सकें,नहीं अबला हैं आज।
सभी क्षेत्र में जाऐगी,करन मातृ-भू काज।
करन मातृ-भू काज,लिया हमने प्रण ऐई।
सभी करैंगी कार्य,अछूता रहे न कोई।
गौर्यवान हो धरा,न व्यापे कोई गम तो।
हम नाहीं कमजोर,सबल हैं सब विधि हम तो।।22।।
भारत वासी हम सभी,हम हैं वीर,जवान।
कोटि एकसौ तीस हैं,भारत-विश्व महान।
भारत बना महान,आंख,अब कौन उठावे।
रतन प्रसवनी भूमि,दैन्यता कहाँ?लखावे।
सबकुछ हमरें पास,कौन जो,हमको टारत।
जय होती मनमस्त,धन्य है मेरा भारत।।23।।
ऐहि विधि भारत नारियां,सजीं विजय के हेतु।
बांधे सब हथियार,हाथ ले भारत केतु।
लेकर भारत केतु,चहु सीमाऐं दावीं।
समरांगण के बीच,आज हैं सबही हावी।
कौन सामना करे,सजीं हैं रण को कई विधि।
विजय होंयगी सदां,पांऐगी गौरव एहि विधि।।24।।