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जीत - हार

जीत - हार
हम सामाजिक प्राणी हैं। हमें आदि काल से जीने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है । आज के आपाधापी वाले समय में हमारे लिए अनेक स्तरों पर संघर्ष करना आवश्यक हो गया है । सामाजिक स्तर पर इन संघर्षों को प्रतियोगिता कहते है, जिनमें विजेता को ही समाज में सम्मान प्राप्त होता है । विजेता के विजय भाव को तो सब देखते और सराहते है ,लेकिन पराजय की कराह सुनना शायद ही किसी को पसंद हो । समाज ने जीतनुमा छल दम्भ में अपने आप को समेट लिया है । पराजय की निराशा के भय से अनेक लोग संघर्ष के रास्ते को ही छोड़ देते है । जिससे विजेता को कम योग्य व्यक्तियों से संघर्ष करना पड़ता है और विजेताओं की योग्यता भी कम ही होती है ।
देखा जाये तो समाज में आगे बढ़ने के अनेकों ‘‘शार्टकट’’ भी बन गए है । अनेक लोग अपनी योग्यता से वहाॅ नहीं है ,जहाॅ वे दिखाई देते है । ऐसे लोग स्वस्थ्य प्रतियोगिता से डरते है । ऐसे ही लोग समाज के योग्य लोगों को प्रतियोगिता से बाहर कर देते है। लेकिन क्या इससे योग्य लोगों को डर जाना चाहिए ? योग्यता किसी भी सहारे की मोहताज नहीं होती । योग्य लोगों को अपने विचारों को बदले बिना ‘‘शार्टकट ’’ से जाने वालों को चुनौती देनी चाहिए। इस चुनौती के परिणाम स्वरुप दोनों ही पक्ष योग्यता का प्रदर्शन करने की कोशिश तो करेंगे ही ; परन्तु अयोग्य लोगों के लिए इस प्रदर्शन को लम्बे समय तक जारी रख पाना सम्भव नहीं हो सकेगा। तब वे अपने असली रुप में आ जाते है । वे आपकी योग्यता को ही आपकी अयोग्यता साबित करने का प्रयास करने लगेंगे । ऐसे लोगों को उन्ही के समान कुछ लोगों का सहयोग भी प्राप्त होगा । आपको लगेगा आप हार गए ;परन्तु आप डटे रहें क्योंकि हार और जीत से भी अधिक यह बात मायने रखती है कि आप संघर्ष कर रहे है । इन परिस्थितियों में विचारों से परिपूर्ण , योग्य और तपे-तपाए लोग कम से कम यह जान जाऐंगे कि आपने कोशिश तो की ही है ।
अनेक लोग अपने उपर होने वाले अन्यायों को सर झुका कर स्वीकार कर लेते है , इससे वे समाज मे एक हारे हुए रुप में दिखाई देते है । ऐसे लोग जो बिना लड़े ही हार मान लेते है,समाज को सही रास्ते से भटका देते है । ऐसे लोग अयोग्य लोगों के लिए आगे बढ़ने के रास्ते प्रदान करते है और स्वयम् के लिए भी प्रतियोगिता में बने रहने के रास्ते बंद कर लेते है । कुछ लोग लड़ते है और विजेता बन कर समाज में स्थान बनाते है, फिर अपने संघर्ष को भूल कर दूसरों के मार्ग में रोडे़ अटकाने लगते है । ऐसे लोगों को वास्तव में दूसरों के लिए मार्गदर्शक बनना चाहिए और अपने संघर्ष को दूसरों के जरिए अपने शिखर से प्रारम्भ करना चाहिए । ऐसे लोगों की कमी समाज को बहुत खटकती है । विजय प्राप्त करके दूसरों का उत्साह बढाए , संघर्षों की याद दिलाए और अगले संघर्षों के लिए तैयार करें तो आपका विजयी होना सफल हो जाता है । जीत , विजयी को दम्भी बनाए,लक्ष्य तक पहुॅचने का अहसास कराए और आत्मकेन्द्रित करे तो विजय कुछ समय की मानना चाहिए ।
अनेकों लोग अपने संघर्षों में पराजित होते है, इसका तात्पर्य यह नहीं कि वे कमजोर है उन्हे हतोत्साहित न होने दें ; उनमें कल के विजेता की छवि देखे। उनका संघर्ष अभी शेष है या उन्हें कुछ क्षण सोचने ओर सम्भलने का अवसर प्राप्त हुआ है । उन्हें हार को धूल की तरह उड़ा कर फिर से प्रयास में लगना होगा और यदि वे वास्तव में योग्य है तो सफलता उनके कदम आज नहीं तो कल चूमेगी ।
आलोक मिश्रा "मनमौजी"


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