तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 2 harshad solanki द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 2

दो तीन दिनों से उसके दिल में अजीब सी फिलिंग हो रही थी. बिना किसी वजह के कभी उसके अन्दर कोई अनजानी ख़ुशी का सागर उफान मारने लगता, तो कभी उसका मन अनजाने विरह और बेचैनी से व्याकुल हो उठता. उसका मन किसी काम में लग नहीं रहा था. उसकी ऐसी दशा क्यूँ हो रही थी? उसे कुछ पता लग नहीं रहा था. पर अब उसे ओम शांति ओम का शाहरुख खान का वह पोपुलर डायलोग अपनी ही ज़िन्दगी में सार्थक साबित होता हुआ प्रतीत होने लगा.
"अभी भी वैसी ही दिख रही हैं. बस, चहरे पर थोड़ा सा फर्क नज़र आ रहा है." राहुल ने युवती को गौर से देखते हुए मन में ही कहा. इसे वह कैसे भूल सकता है? जो न जाने कितने ही सालों से उसके ख़्वाबों की खलीफाइन बनकर उनके दिलो दिमाग पर छाई हुई हैं.

आपकी परछाई हमारे दिल में है,
आपकी यादें हमारी आँखों में हैं,
आपको हम भुलाएं भी कैसे,
आपकी मोहब्बत हमारी सांसो में हैं।

दोनों को जैसे ध्यान लग गया था. वे एक दूसरे को देखे ही जा रहे थे. तभी दो तेरह चौदह साल की लड़कियां, जो किसी स्कूल की छात्रा लग रही थी और वे सायद उसी यौवना के साथ ही जा रही थी और दोड़ते हुए उनसे आगे निकल गई थी, मुड़कर पास आ गई और यौवना के पीछे खड़ी हो गई. इससे दोनों का ध्यान भंग हुआ और वे दोनों वास्तविक दुनियाँ में लौट आये.
"मेडम आप!?" राहुल ने अपना मुंह खोलते हुए पूछा. उत्तर में यौवना ने आश्चर्य और प्रश्न दृष्टी से देखा. राहुल को थोड़ा क्सोभ हुआ. "मेडम, आप सिलवासा से आ रहे हो न?" ज़रा रुक कर राहुल ने संकोच के साथ यौवना को आगे पूछा. राहुल के मुंह से सिलवासा का नाम सुनकर युवती ने आश्चर्य से उसकी और देखा. उनकी आँखों से जांकते प्रश्न को राहुल पढ़ पाया की वह कैसे जानता है की वे सिलवासा से बिलोंग करती हैं?
"आप सास्वत स्कूल में पढ़ाती हो न!?" राहुल ने उस यौवना के मन में उठे प्रश्न को नज़र अंदाज़ करते हुए आगे पूछा. एक अनजाने नगर में एक अनजान लड़का उसके बारें में इतना सब कुछ कैसे जानता है? यह जान यौवना के मन की जिज्ञाषा दोगुनी हो गई.
"हाँ! कुछ साल पहले मैं वहां थी पर अब वह स्कूल छोड़े मुझे कई साल बीत चुके हैं." आँखों से ही 'आप मेरे बारें में इतना सब कैसे जानते हो?' पूछते हुए वह यौवना ने राहुल के प्रश्न का उत्तर दिया.
"में भी कभी उस स्कूल में पढ़ता था." कहते हुए राहुल मुश्कुराया. उसकी बात सुन, यौवना कुछ याद करने की कोशिश करने लगी. उसे भी यह चेहरा कहीं देखा हुआ सा लग रहा था.
"जब स्कूल से पंचमढ़ी की टूर हुई थी तब हम साथ साथ ही थे." राहुल ने उस युवती को पुरानी यादें ताज़ा करवाने की कोशिश करते हुए आगे कहा. पंचमढ़ी का नाम सुनते ही यौवना का मुखकमल खिल उठा और उनके होंठ बड़ी सी हंसी में बदल गए. "अरे हाँ! कहीं राहुल तो नहीं!?" यौवना मधुर आवाज़ में चहक उठी. राहुल ने अपने होंठो पर स्मित लाते हुए यौवना के प्रश्न का हकार में उत्तर दिया. उसका नाम मेडम को अब तक याद है इससे वह बहुत खुश हुआ. "तभी मुझे कब से ऐसा क्यूँ लग रहा था की जैसे मैंने आप को कहीं देखा हुआ है!" यौवना उत्साह से बोली. "कितने साल बाद मिले हो! सकल सूरत से तो बिलकुल ही बदल गए हो! ज़रा भी पहचाने नहीं जाते." मेडम हस्ते हुए बोली.
"हाँ, वक्त काफी बीत चूका है. लास्ट टाइम हम पंचमढ़ी की टूर के दौरान ही मिले थे. वहां हम साथ में ही घुमे थे और ऊंट पर साथ साथ सवारी भी की थी." राहुल ने मेडम को टूर के दौरान की पुराणी बातें याद दिलाई. "हाँ, याद आया. तुम मेरे घोड़े के पीछे पीछे भी कैसे दोड़े थे. उस वक्त तुमने मेरी बहुत हेल्प की थी." बड़े ही मीठे सूरो में गहकते हुए मेडम बोली. वह पुराणी बातें याद कर बड़ी खुश हो उठी थी. उनकी बात सुन राहुल ने हंस दिया. "और जो मेरे पीछे पीछे भी हरदम घुमा करता था!" खिलखिला कर हस्ते हुए और आँखे नचाते हुए मेडम सरारत से आगे बोली. यह सुन राहुल शर्मा गया. बात मोड़ते हुए वह बोला: "चाय लोगे?" राहुल ने उस पगडण्डी से हटकर लगे हुए एक चाय नास्ते के स्टोल की और इशारा करते हुए कहा. उसके इस प्रस्ताव को मेडम ने अपनी आँखो के भाव से ही सहमति दी और दोनों स्टोल की और चल पड़े. मेडम ने अपने साथ वाली लड़कियों को भी पीछे आने का इशारा किया.
यह एक छोटा सा स्टोल था, जिसने बाहर खुले मैदान में ही टेबल कुर्सियां लगा रखी थी और टूरिस्ट हिमाचल प्रदेश के इस ठन्डे मौसम में आराम पहुंचाने वाली सूरज की रौशनी में ही प्रकृति की मज़ा लेते हुए चाय नास्ते का आनंद उठा रहे थे. राहुल ने सभी के लिए यहाँ के प्रख्यात पकोड़े और चाय का ऑर्डर दिया. अभी सुबह के साढ़े आठ बज रहे थे इसलिए काफी ग्राहक चाय नास्ते के लिए मौजूद थे. मुश्किल से एक खाली टेबल धुंधकर राहुल ने दोनों लड़कियों को बिठाया और लोगों से थोड़े दूर जाकर मेडम के साथ वह खड़ा रह गया.
"मैं फिलहाल प्रगति स्कूल में पढ़ाती हूँ और हम स्कूल से टूर पर निकले हैं. हमारी बस में कोई समस्या आ गई है इसलिए हमारे लिए अब यहाँ एक दूसरी बस का इन्तेजाम हुआ है, जो अब आने ही वाली है."" यह कहते हुए यौवना ने वे जल्दी में हैं, इसकी और इशारा किया. पर यौवना की बात सुन राहुल मन ही मन खिल उठा. "मेडम, आप की बस बिलकुल नहीं छूटेगी!" आत्मविश्वास से भरी आवाज़ में राहुल ने कहा. और वह आने वाली पलों की कल्पना कर मन में ही पुलकित हो उठा.
गरम गरम पकोड़े और चाय का लुफ्त उठाते हुए यौवना अपनी यहाँ आने की वजह के बारें में बताने लगी. "हम चार टीचर्स पचास स्टुडंत्स के साथ सिमला की तीन दिवसीय टूर पर कल सुबह यहाँ पहुंचे हैं. पर बस के एंजिन में कोई समस्या पैदा हो जाने की वजह से कल का हमारा पूरा दिन करीब बर्बाद ही हो गया. फिर साम को यहाँ की एक प्राइवेट बस एजंसी का संपर्क कर एक नयी बस की व्यवस्था की गई है, जो अब हमें सिमला घुमाने वाली है और जिनके आने की हमें इंतेजारी है." मेडम पकोड़े खाते खाते बोले जा रही थीं और आसपास के प्राकृतिक नज़ारे का मज़ा लिए जा रही थी. इस दौरान राहुल टकटकी लगाए इस परिजमाल के खुबसूरत चहरे को देखे जा रहा था. वह जैसे उसके रूप लालित्य को आँखों से ही पिए जा रहा था. पर मेडम का ध्यान जब राहुल की और गया तो उनको अपनी और यूँ टकटकी लगाते देख, वह अपने चहरे पर बड़ी सी मुस्कराहट लाते हुए बोल पड़ी: "क्या तुम हर लड़की को इसी तरह से देखते रहते हो?"
"ओह! सोरी मेडम..." माफ़ी माँगते हुए राहुल ने शर्म से अपनी नज़रें दूसरी और घुमा ली. मेडम को यूँ घूरते वक्त वह यह बिलकुल भूल गया था कि वह कभी उसकी टीचर हुआ करती थीं और उम्र में भी वह उससे बड़ी थीं.
तुम एक नज़र देख लो खुद को मेरी नज़र से
तुम्हारी नज़रें तलाशेंगी खुद फिर मेरी नज़र को
क्रमशः
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