तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 5 harshad solanki द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 5

पर उसके यह आनंद भरे दिन बहुत लम्बे न चले. ऐसे ही तीन चार हप्ते बीत गए और पुरानी हिंदी वाली मेडम वापस आ गई. और नयी मेडम का क्लास में आना एकदम बंध हो गया. सभी लड़के नयी मेडम को भूल गए पर राहुल का मन बिलकुल न बदला. भले ही नयी मेडम क्लास से चली गई हो पर उनके मन में वह बस गई थी. अब नयी मेडम सिर्फ स्कूल एसेम्बली में ही दिखाई देती थी वो भी दूर से. राहुल बेचैन हो उठा.
एक दिन राहुल का मन हुआ की नयी मेडम किस तरफ से आती जाती हैं? इसका पता लगाया जाये. उस दिन वह स्कूल छूटने के बाद बाहर रास्ते पर खडा रहा और मेडम के स्कूल से बाहर निकलने का इन्तेजार करने लगा. थोड़ी देर बाद मेडम बाहर निकली और पैदल चलने लगीं. वह भी उनके पीछे पीछे जाने लगा. दोनों का रास्ता एक ही था. पर थोड़ी दूरी तक पैदल चलने के बाद एक बस स्टॉप पर मेडम रूक गईं. दुसरे दिन छिपकर राहुल ने मेडम किस बस में आया जाया करती हैं, इसका पता लगा लिया. अब वह रोज़ सुबह बस स्टॉप से थोड़ी दूरी पर ठहर जाता और मेडम के बस से उतरने के बाद उनके पीछे पीछे स्कूल तक पहुँचता. दोपहर को स्कूल छूटने के बाद भी यही क्रम वह दोहराता.
उनका भी कभी हम दीदार किया करते थे
उनसे भी कभी हम मुलाकात किया करते थे
क्या करे जो उनको हमारी जरूरत न हैं पर
फिर भी हम उनका इन्तेजार किया करते है.
************

स्नेक स्टोल के मेनेजर ने जब राहुल के सामने देखा तब वह अपनी विचार श्रुंखला से बाहर आया. उसने बिल पे किया और मेडम के पास लौटा. मेडम ने उसे थेंक्स कहा और स्माइल करते हुए बोली: "तो अब हम रजा ले? सायद अब तक हमारी बस आ पहुंची होगी." पर राहुल ने अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर उसकी स्क्रीन मेडम के सामने कर दी और पूछा: "क्या यहीं आप ठहरे हुए हैं न?" मेडम ने एक नज़र मोबाइल की स्क्रीन पर डाली और बड़े आश्चर्य के भाव से राहुल के सामने देखा. जैसे वह आँखों से ही उसे पूछ रही न हो! "हाँ, आप को कैसे पता?" राहुल के चहरे पर एक बड़ी स्माइल आ गई और उसने कहा: "तब तो आप की बस कब की आ गई हैं और आप लोगों का ही इन्तेजार कर रही हैं. जल्दी चलिए; कहीं निकल न जाए!" इतना कहते हुए राहुल ने हंस दिया. "हें! बस आ गई!? कहाँ है!?" पहाड़ी की ढलान के निचे खड़ी बसों की और नजर दोड़ाती हुई मेडम हड़बड़ी से ऊँची आवाज़ में चिल्ला पड़ी और उसके चहरे पर ज़ल्दबाज़ी दिखने लगी. इससे राहुल को हंसी आ गई. और वह बोला: "मेडम, चिंता न करें; आप की बस को कहीं जाने नहीं दूंगा." "क्या!! आप बस ले कर आये हैं!?" आश्चर्य से मेडम एक बार फिर चिहुक पड़ी. "हाँ, चलिए, मैं आप लोगों को ले चलता हूँ." राहुल ने हस्ते हुए कहा. और मेडम एवं लड़कियों को लेकर चल पड़ा. "आप सकल से तो किसी भी तरह ड्राइवर नहीं लगते!" मेडम चलते चलते राहुल की और देखते हुए बोली. इस पर राहुल ने कुछ ऐसा मुंह बनाया की मेडम खिलखिला कर हंस पड़ी.
राहुल सभी स्टुदंट्स एवं टीचर्स को अपनी बस तक ले आया. जब सब स्टुदंट्स बस में अपनी अपनी जगह ग्रहण कर रहे थे और सभी टीचर्स उनकी व्यवस्था में लगे हुए थे तब राहुल फिर से अकेला पड़ा और अपने पुराने दिनों की मधुर यादों में खो गया.
***************

एक बार फिर से राहुल और उनकी स्कूल के अन्य लड़कों का नसीब तब चमका था जब स्कूल से टूर का आयोजन हुआ था और उन्हें मेडम के साथ वक्त बिताने का मौका मिला था. स्कूल से बच्चे पंचमढ़ी की टूर पर जा रहे थे. जिसमे बहुत से स्टुदंट्स के साथ राहुल भी ज्वाइन होने वाला था. उन लोगों के साथ दो सर और तीन मेडम आ रहे थे. जिसमे यह नयी मेडम भी थीं.
उनकी पहले दिन की विजित जटाशंकर केव्स से हो कर बी वोटर फोल की रही. वोटर फोल के दर्शन के साथ सभी टीचर्स और स्टुदंट्स यहाँ के जरने में नहाने लगे. राहुल के साथी भी पानी की मज़ा लूटने के लिए जर्ने में उतर गए. पर यहाँ की भीड़ को देखकर राहुल का मन ऐसा करने का न हुआ. वह वोटर फोल के सामने की एक अच्छी जगह बैठकर आसपास की सुन्दरता का मज़ा लेने लगा. तभी उसे पीछे से किसी की आवाज़ सुनाई दी. उस आवाज़ ने उसे पूछा: "क्या तुम नहाने नहीं गए?" राहुल ने मुड़कर देखा, वह नयी मेडम थीं. "नहीं, वहां बहुत लोग हैं." उसने मेडम को स्माइल देते हुए उत्तर दिया. "क्या आप भी नहीं गई?" उसने मेडम को पूछा. "नहीं. मुझे भी नहीं जाना." मेडम ने भी स्माइल देते हुए कहा. "तुम्हारा नाम क्या है?" मेडम ने राहुल को पूछा. "राहुल". राहुल ने जवाब दिया. मेडम के साथ राहुल की यह पहली बातचीत थी. तभी उसे याद आया कि इतने दिन हुए पर उसे भी मेडम का नाम कहाँ पता है. उसका मन किया की वह भी मेडम का नाम पूछे. लेकिन उसकी हिम्मत न हुई और वह चुप रह गया. पर मेडम के यहाँ अपने पास आने से वह बहुत ख़ुश था.
कुछ नशा आपकी बातों का है,
कुछ नशा आप के साथ का है,
हम यूँही शराबी न बन बैठे,
यह हसीं असर तो आप की मुलाक़ात का है

वोटर फोल के ऊपर वाले तालाब में राहुल ने मेडम को मस्ती करते हुए देखा था, जहां वह तालाब की छोटी छोटी मछलियों की गुदगुदी से कभी चीखती थी तो कभी खिलखिलाकर हंस पड़ती थी, कभी पानी से बाहर आ जाती थी तो कभी पानी में वापस उतर जाती थी. वह उसकी हर हरकतों का मज़ा ले रहा था. पर राहुल के लिए यह पहला मौका था जब वह मेडम के साथ अकेला था और किसी का ध्यान उनकी और नहीं था. मेडम राहुल के पास बैठ गई और दोनों बाते करते हुए पहाड़ियों से गिरता हुआ पानी, वहां की खुबसूरत पहाड़ियों पर कुदरत का बिखेरा हुआ प्राकृतिक सौन्दर्य, पानी से लबालब भरा हुआ बहता जरना और जर्ने में नहाते लोग इत्यादि को देखने लगे.
राहुल ने यहाँ आते वक्त स्नेक स्टोल से गरम नास्ता लिया था. जो उसने निकाला और एक पेपर दिश में मेडम को देते हुए कहा: "लीजिए मेडम नास्ता कीजिए." "नहीं नहीं! मुझे रहने दें! तुम खा लो!" चोंक कर इनकार में मेडम बोली. पर राहुल ने आग्रह करके मेडम को भी नास्ता खिलाया. घर से लायी हुई मुगफली भी राहुल ने मेडम के साथ शेर की. मेडम ने अपने पर्स से चोकलेट निकाली और राहुल को देते हुए कहा: "लो. चोकलेट खाओ." राहुल थोडा हिचकिचाया. "ले लो, ले लो, क्यूँ शर्मा रहे हो! मुझे नास्ता खिलाया. अब मेरी चोकलेट खाने से इंकार कर रहे हो! ऐसा नहीं चलेगा हाँ!" बड़ी बड़ी आँखे कर के नकली धमकाते हुए मेडम बोली. और राहुल ने हस्ते हुए अपना हाथ बढ़ा दिया. "फाइन है." राहुल ने चोकलेट का एक टुकड़ा चबाते हुए कहा. वह चोकलेट खाते हुए बहुत खुश नजर आ रहा था. "चोकलेट मेरी फेवरिट आइटम है." राहुल ने आगे जोड़ा. "पसंद आई!? मुझे भी चोकलेट बहुत पसंद है." खुश होते हुए मेडम बोली.
मेडम खड़ी होकर इधर उधर टहलने लगी तो राहुल भी उसके पीछे पीछे घुमने लगा. किसी वजह से मेडम को दुसरे टीचर्स एवं स्टुदंट्स के बेग्स एवं अन्य सामान दूसरी जगह पर खिसकाने की जरूरत पड़ी तो राहुल भी मेडम की हेल्प करने लगा.
मेडम राहुल के साथ दोस्त की तरह ही बर्ताव कर रही थी और राहुल भी उसे काफी रिस्पेक्ट देता था. रिंछगढ़ और धुपगढ़ में सनसेट पॉइंट की विजित के साथ उन लोगों का पहला दिन समाप्त हो गया.
जब खामोश निगाहों से बात होती है,
तो ऐसे ही मोहब्बत की शुरुआत होती है,
हमतो बस खोये ही रहतें हैं उनके ख्यालों में,
पता ही नही चलता कब दिन कब रात होती है।
क्रमशः
इस लव स्टोरी में मेरी स्व रचित शायरी के अलावा अन्य गुमनाम लेखकों की शायरियों एवं फिल्म के डायलोग्स का भी इस्तेमाल किया गया हैं. उन शायरियों के गुमनाम शायरों एवं कल हो न हो और ओम शांति ओम फिल्म को उसके डायलोग्स के लिए हार्दिक धन्यवाद.
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