तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 8 अंतिम harshad solanki द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये? भाग - 8 अंतिम

कुछ देर बाद अपने अपने हाथों में कोफ़ी के प्याले लिए दोनों चुपचाप खड़े थे. लाल चुनर ओढ़े धरती जैसे दुल्हन बनी थी. पश्चिम में अस्त होता सूरज अपने सिंदूरी हाथों से धरती को जैसे आलिंगन में बाँधने को उत्सुक था.
कोफ़ी की चुस्कियां लेते हुए मेडम अवनी पर फैली बहारों को जी भर के अपनी आँखों में बसा रही थी. पर राहुल कहीं और खोया हुआ था. गुमसुम सा और शुन्य मनस्क उसकी आँखे मेडम पर ही टिकी थी. वदन पर मुग्धता धारण किये मेडम राहुल की और मुड़ी. उसने अपनी नशीली निगाहों को राहुल की निगाहों में मिला कर देखा.
नहीं करता इज़हारे-ऐ-इश्क़ वो,
पर रहता है मेरे करीब है वो,
देखूँ उसकी आँखों में तो शर्मा जाता है वो,
हाय मेरा यार भी कितना कमाल है||

राहुल को मेडम की निगाहों में जान्कते हुए ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो उसे पूछ रही हो: "कहो... क्या कहना चाह रहे हो?"
"मेडम..." राहुल ने आखिर चुप्किदी तोड़ी.
"हं." प्रश्न दृष्टी से देखते हुए मेडम धीरे से बोली.
"एक बात कहूँ?" राहुल ने पूछा.
मेडम ने अपने बाएं हाथ की हथेली को अपनी ठुड्डी पर रखते हुए आँखों के भाव से ही "हाँ कहो..." कहते हुए राहुल की आँखों में देखा. राहुल ने भी उनकी आँखों में देखा. उसे उनकी आँखों में कभी हिरनी सी चंचलता और सरारत नजर पड़ी तो कभी स्नेह का समंदर लहराते दिखाई दिया. फिर गहरा ठहराव नज़र आने लगा.
इस तरह मत देखो वरना देखते रह जाओ गे,
एक नज़र की आस में खुद रह जाओ गे,
बिना झिझक कह दो आज अपने दिल की बात,
सोचोगे तो ज़िन्दगी भर सोचते रह जाओगे||

"वो... क्या है न..." राहुल अपने मन की बात कहने से जिजकने लगा. मेडम को कैसे कहूँ? उन्हें कैसा लगेगा? वह बुरा तो नहीं मान जायेगी न? मेरे बारें में वह क्या सोचेगी? राहुल दुविधा में पड़ा. "वो... मेडम आप का नाम?" राहुल के मुंह से यह प्रश्न सुनते ही मेडम ठहाके लगाकर हंस पड़ी. फिर तुरंत वह चुप हो गई. वह गंभीर नज़र आने लगी. उनके चहरे पर तेजी से भाव परिवर्तित हो रहे थे. वह थोड़ी दुखी दिखी. फिर चिढ़ी हुई. और फिर नाराज़ हो कर बोली: "अब तक वैसे के वैसे ही रहे. तुम और कुछ नहीं कह सकते थे क्या?" स्कूल से मेरे बस स्टॉप तक और बस स्टॉप से स्कूल तक मेरा पीछा किया करते थे तो क्या अब तक मेरा नाम तक नहीं जानते थे क्या?" मेडम काफी नाराज़ दिख रही थी. "तुम मेरा नाम ही जानना चाहते हो न? ज़ोया. ज़ोया खान नाम है मेरा." और मेडम ने अपना चेहरा घुमा लिया. राहुल सहम गया. मेडम नाराज हो गई थीं. वह मेडम का पीछा किया करता था यह बात मेडम को पता है यह जान वह बेहद शर्मिंदा हो उठा. मेडम को उसने नाराज कर दिया था यह बात उससे सहन न हुई. वह उनकी नज़रों से नज़र नहीं मिला पा रहा था. आगे कोई बात करने की उसकी हिम्मत न रही. वह उनकी नज़रों से बचने के लिए कोफ़ी के खाली प्याले लिए चल पड़ा.
***********

दो दिनों तक राहुल ने स्टुदंट्स एवं टीचर्स को अच्छी तरह से शिमला घुमाया. अब उन लोगों के बिदा होने का वक्त आ गया था. उनकी बस भी अब तक ठीक हो चुकी थी. सभी स्टुदंट्स बेहद मायूस मन से बस में सवार होने लगे. वे चुप थे. उनका शोर बिलकुल बंध हो गया था. पीछे सभी टीचर्स एक के बाद एक राहुल से बिदा होकर बस में चढ़ने लगे. आखिर में बस में सवार होने से पहले मेडम ने राहुल से थोड़ी बात की. राहुल ने देखा. मेडम का चेहरा भी दुखी एवं उदास लग रहा था. उनको ऐसे मायूस देखना राहुल को जरा भी नहीं भाया. वैसे तो उसे भी मेडम से जुदा होने की पीड़ा हो रही थी, पर वह फिर भी अपने दिल पर भारी पत्थर रख कर वहां खड़ा था. राहुल को इस बात का बेहद अफसोस हो रहा था की वह मेडम की कुछ तस्वीर और उनसे उनका नाम पूछने के अलावा और कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था. और वह अब उससे जुदा होने जा रही थीं.
चलते चलते राह में उन से मुलाकात हो गई
वो कुछ शरमाई फिर सहम सी गई
दिल तो हमारा भी किया कि कह दे उनसे अपने दिल की बात
पर कम्बखत इस दिल की इतनी हिम्मत ही न हुई

बस का एंजिन शुरू हुआ. सभी स्टुदंट्स एवं टीचर्स खिड़की से हाथ निकाल कर राहुल को बाय बाय कहने लगे. पर राहुल को जिस चहरे की तलाश थी वह खिड़की में नहीं दिख रहा था. राहुल बड़ी बेताबी से उस चहरे का इन्तेजार करने लगा. आखिर वह चेहरा भी दिखा. उसने राहुल को देखा. राहुल उस वक्त बेहद उदास लग रहा था. राहुल ने भी उसे देखा. चार आँखे एक हुई. राहुल को लगा जैसे वे आँखे उसे कुछ कह रही हैं, मगर वह कुछ समज नहीं पाया. राहुल ने प्रश्न दृष्टी से देखा. वह इस चहरे को आखरी बार देख रहा था. न जाने इस सुन्दर से चहरे को वह फिर कभी अपनी ज़िन्दगी में दोबारा देख पायेगा भी या नहीं! इस सोच से उसका मन उदास हो गया. पर उसके दिल को तब बड़ा सदमा लगा जब वह चेहरा बिना कुछ बोले ही तुरंत खिड़की के अन्दर हो गया. और बस चल पड़ी. राहुल का दिल बैठ गया. उसका हाथ हवा में बाय बाय कहते हुए हिल रहा था पर वह जिसके लिए हिल रहा था वह बस की खिड़की में नहीं थी. राहुल का माथा घुमने लगा. उसका दिल रोने लगा. उसको लगा जैसे उसकी सारी दुनिया ही लूट गई हो. उसकी सारी ज़िन्दगी ही चली गई हो. दूर जाती बस की खिड़की में उसने उस चहरे को बड़ी बेताबी से धुंधने की कोशिश की, मगर बाकि सारे चहरे उसे दिखाई दे रहे थे पर उन चेहरों में एक चेहरा कहीं दिखाई नहीं दे रहा था.
जब वो चली गई तब दिल में मेरे ये एहसास हुआ है
कि उस पगली से तो मुझे प्यार हुआ है।

तभी बस ज़रा आगे बढ़ी और फिर रुकी. राहुल देख रहा था, बस का दरवाज़ा खुला और एक लड़की डोड़ती हुई उसके पास आई और उसके हाथ में एक छोटी सी कागज़ की पर्ची रख कर चली गई.
राहुल कागज़ पढ़ने लगा. लिखा था:
अरे फट पगले..!
तुम मुझे इत्ता भी नहीं कह पाये...!?
हंह; ये लो!
निचे उसने अपना मोबाइल नंबर लिखा था.
और कागज़ आंसुओं की बूंदों से गिला था.

उसने आँखों से आँखें क्या मिला दी,
हमारी ज़िन्दगी झूम कर मुस्कुरा दी,
जुबान से तो हम कुछ न कह सके,
पर आँखों ने दिल की कहानी सुना दी।

राहुल को लगा जैसे उसे नयी ज़िन्दगी मिल गई!
राहुल ने तेज हवा में फर्फराते कागज़ को अपने कांपते हाथों में पकड़े नम आँखों से दूर जाती बस को देखा. एक मुस्कुराता चेहरा अश्रु भरी आँखों से उसकी और हाथ हिलाए जा रहा था.
आज एक हंसी और बांट लूं,
आज एक दुआ और मांग लूं,
आज एक आंसू और पी लूं,
आज एक जिंदगी और जी लूं,
आज एक सपना और देख लूं,
आज क्या पता कल हो ना हो।
(कल हो ना हो फिल्म से)
समाप्त
इस लव स्टोरी में मेरी स्व रचित शायरी के अलावा अन्य गुमनाम लेखकों की शायरियों एवं फिल्म के डायलोग्स का भी इस्तेमाल किया गया हैं. उन शायरियों के गुमनाम शायरों एवं कल हो न हो और ओम शांति ओम फिल्म को उसके डायलोग्स के लिए हार्दिक धन्यवाद.
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