दुख भरे दिन बीते रे भइया Sneh Goswami द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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दुख भरे दिन बीते रे भइया

दुख भरे दिन बीते रे भइया

आँखों में आँसू और हाथ में अखबार लिए अचिंत कौर काफी देर तक यूं ही खङी रही । अखबार में अचिंत कौर के बारहवीं बोर्ड में मैरिट में तीसरा स्थान पाने और जिले में पहले स्थान पर रहने के साथ साथ आगे की पढाई के लिए सरकार द्वारा पूरा खर्च उठाने का समाचार प्रमुखता से छापा गया था । काश ! यह समाचार पिछले साल छपता और पापा इस समाचार को पढ रहे होते तो कितना अच्छा होता । इस समय वे हर आने जाने वाले का मुँह मीठा करा रहे होते ।
पिछले साल वह बोर्ड की परीक्षा में बैठी थी , तीन पेपर अच्छे से हो गये थे । दो बाकी थे । घर परिवार के लोगों के साथ साथ सभी अध्यापकों को पूरा विश्वास था कि अचिंत कौर इस बार इतिहास रच देगी । अचिंत भी आश्वस्त थी । उसने पूरी मेहनत की थी । उस दिन उसका फिजीक्स का पेपर था और वह सुबह पाँच बजे से अपने नोट्स दोहरा रही थी । पापा को अपनी सात बजे काम पर जाना था इसलिए जाते जाते हिदायतें देते रहे – “ बेटा समय पर परीक्षा देने चले जाना । पेपर देख कर घबराना नहीं । सोच समझकर उत्तर लिखना “ ।
“ जी पापा “ ।
और हिम्मत सिंह हमेशा की तरह ड्यूटी के लिए निकले । साढे सात बजे संदेशवाहक ने उनके डयूटी पर न पहुँचने की सूचना दी तो परिवार सकते में आ गया । वे तो घर से आधा घंटा पहले चले गये थे । रास्ते में कहाँ रह गये । अभी ये लोग ढूँढने निकल ही रहे थे कि तभी सहारा जनसेवा की ओर से फोन आया कि हिम्मत सिंह के मोटरसाइकिल को कोई ट्रक टक्कर मार कर घायल गया । उन्हें अस्पताल पहुँचाया गया पर बचाया नहीं जा सका ।
बार बार गश खा बेहोश होती माँ को सम्भालती अचिंत उस दिन अचानक बङी हो गयी थी । उसने ही रिश्तेदारों को फोन किए । पापा के संस्कार की व्यवस्था में हाथ बँटाया । परीक्षाएँ छूट गयी । हँसता खेलता परिवार तबाह हो गया था । सबकी रोटी का सवाल था । ऐसे में सहारा वालों ने ही उसे अपने संध्या स्कूल में पढाने का न्योता दिया । माँ ने एक ऊन विक्रेता से सम्पर्क कर बुनाई का काम पकङ लिया । गुजारा होने लगा । छोटे दोनों भाई पढने जाने लगे । जिंदगी की गाङी थोङी सी रास्ते पर आई तो अचिंत ने फिर नये सिरे से पढाई शुरु की । दिन में अपने स्कूल जाती । शाम को सैंटर में दो घंटे पढाती । औकर दो घंटे ट्यूशन । साथ ही मन लगा कर पढाई की । जो लोग कह रहे थे – काश बेटी की जगह बेटा बङा होता तो सहारा हो जाता , उनकी बात को झुठलाती हुई अचिंत ने मजबूत मन से फैसला लिया - अभी ग्रैजुएशन करनी है फिर सिविल सर्विस में आना है । पापा का नाम बढाना है । बेटा नहीं , बेटी बन कर ।

स्नेह गोस्वामी