पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 39 Abhilekh Dwivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 39

चैप्टर 39

विस्फोट और उसके परिणाम।

अगले दिन, जो कि अगस्त का सत्ताईसवां दिन था, हमारी चमत्कारिक भूमिगत यात्रा में मनाई जाने वाली एक तारीख थी। मैं अब भी इसके बारे में कभी नहीं सोचता, क्योंकि मैं आतंक से काँप जाता हूँ। उस भयानक दिन को याद कर के ही मेरा दिल बेतहाशा धड़कने लगता है।
इसके बाद से, हमारे कारण, हमारा निर्णय, हमारी मानवीय सरलता का होने वाली घटनाओं से कोई लेना-देना नहीं है। हम पृथ्वी की महान परिघटनाओं के लिए खेल बनने जा रहे हैं!
छः बजे हम सब उठ कर तैयार थे। घबड़ाया हुआ क्षण करीब आ रहा था जब हम बारूद के माध्यम से पृथ्वी के अंदर प्रवेश का मार्ग ढूंढ रहे थे। अगर पृथ्वी की पपड़ी तक टूटती है तो इसके परिणाम क्या होंगे?
मैंने प्रार्थना कि की खदान में आग लगाने का एक मौका मिले। मैंरे लिए यह सम्मानजनक था। यह कार्य एक बार किया गया। मैं फिर से बेड़ा पर अपने साथियों से मिल सकता था, जिनपर अभी तक सामान लदे हुए थे। जैसे ही हम सभी तैयार हुए, हम विस्फोट के परिणामों से बचने के लिए कुछ दूर तक चले गए, जिसके प्रभाव निश्चित रूप से सिर्फ पृथ्वी के आंतरिक भाग तक ही केंद्रित नहीं होंगे।
हमने गणना कि की जिस बारूदी गोले को हमने एक कोष्ठ में लगाया है, उसकी तीली धीमी गति से भी लगभग दस मिनट तक, कम या ज़्यादा जलनी चाहिए। इसलिए मेरे पास बहुत समय होना चाहिए कि मैं उस दरार तक पहुँच सकूँ और सुरक्षित दूरी पर पहुँच जाऊँ।
काफी भावनात्मक होते हुए, जिसे स्वीकार करना चाहिए, मैंने अपने स्व-आवंटित कार्य को निष्पादित करने की तैयारी शुरू कर दी।
भरपेट भोजन के बाद, मेरे मौसाजी और शिकारी - मार्गदर्शक बेड़ा पर सवार हो गए, मैं उस निर्जन किनारे पर अकेला था।
मुझे एक लालटेन दे दी गयी थी जिससे उस भयानक यंत्र की बाती में आग लगाना था।
"जाओ, मेरे बच्चे," मेरे चाचा ने कहा, "और भगवान तुम्हारे साथ हैं। लेकिन जितनी जल्दी हो सके लौट आना। मैं बहुत अधीर हो जाऊँगा।"
"उसके लिए आप निश्चिंत रहिये," मैंने जवाब दिया, "उस रास्ते पर मेरी देरी की कोई वजह नहीं है।"
यह कहने के बाद, मैं उस गहरे गलियारे के मुख की ओर अग्रसर हुआ। मेरा दिल बेतहाशा धड़क रहा था। मैंने अपने लालटेन को जलाया और बाती के सिरे को पकड़ लिया। प्रोफ़ेसर, जो यह देख रहे थे, ने अपने हाथ में अपने कालमापक यंत्र को देखा।
"तुम तैयार हो?" वह चीखे।
"काफी तैयार।"
"ठीक है, फिर, आग लगाओ!"
मैंने तुरंत बाती में आग लगा दिया, जो पहले भड़का, चमका और फिर किसी साँप की तरह फुफकारने और थूकने लगा; मैं फिर मैं जितनी तेजी से भाग सकता था, उतनी तेजी से मैंने किनारे पर वापसी की।
"ऊपर पर जाओ मेरे बच्चे, और तुम, हैन्स, भगाओ," मेरे मौसाजी चीखे।
हैन्स ने अपने पतवार के प्रहार से हमें पानी के ऊपर उड़ाने लगा। बेड़ा लगभग सात सौ बीस फ़ीट दूर था।
यह गहरी चिंता का विषय था। मेरे मौसाजी, प्रोफ़ेसर, ने एक बार भी कालमापक यन्त्र से दूर नहीं देखा।
"केवल पाँच मिनट और," उन्होंने धीमे स्वर में कहा, "केवल चार, केवल तीन।"
मेरी नब्ज एक मिनट में सौ के रफ्तार से चली। मैं अपने दिल की धड़कन को सुन सकता था।
"केवल दो, एक! और फिर, ग्रेनाइट के पहाड़, मनुष्य की शक्ति के आगे बिखरे पड़े मिलेंगे!"
क्या हुआ उसके बाद? विस्फोट की भयानक दहाड़ के रूप में, मुझे नहीं लगता कि मैंने इसे सुना। लेकिन मेरी आँखों में चट्टानों का रूप पूरी तरह से बदल गया था - वे एक पर्दे की तरह खींचे हुए लग रहे थे। मैंने एक असीमित अथाह रसातल को देखा, जो प्रलयंकारी लहरों के नीचे ऊँघ रहा था। समुद्र, जो लगता था कि अचानक से पागल हो गया, फिर एक विशाल पहाड़ी समूह बन गया, जिसके शीर्ष पर बेड़ा एक सीध में बढ़ा जा रहा था।
हम सब नीचे गिरे हुए थे। एक सेकंड से भी कम समय के लिए प्रकाश ने गहन अंधकार को जगह दी। मुझे लगा कि मेरे पैरों के नीचे बेड़ा किसी दबाव के तहत कहीं और बह रहा है। मुझे लगा वो किसी गहरे कुएँ में जा रहा था। मैंने बात करने की कोशिश में अपने मौसाजी से सवाल की कोशिश की। लेकिन शक्तिशाली लहरों की गर्जन के अलावा, कुछ भी सुना नहीं जा सकता था। हम सबने एक साथ चुप्पी साध ली।
लेकिन उस डरावने अंधकार के बावजूद, शोर, आश्चर्य, भावुकता के बावजूद, मैं अच्छी तरह समझ गया कि क्या हुआ था।
उस चट्टान के अलावा, जिसे उड़ा दिया गया था, वहाँ एक शक्तिशाली रसातल मौजूद था। विस्फोट से इस मिट्टी में एक प्रकार का भूकंप पैदा हुआ था, जिससे छिद्र और दरारें टूट गयीं। इस प्रकार, खाड़ी का मुँह भी अचानक खुल गया, जिसने अंतः समुद्र को निगलना शुरू किया था, जो एक शक्तिशाली धार में बदलकर हमें अपने साथ खींच रहा था।
केवल एक विचार मेरे मन में आ रहा था। हम पूरी तरह से और बुरी तरह से खो चुके हैं!
एक घंटा, दो घंटे - और फिर समय इस तरीके से गुज़रा जो मैं कह नहीं सकता। हम आपस में ऐसे चिपककर बैठ थे कि कोहनी से कोहनी और घुटनों से घुटने जुड़े हुए थे! हम सभी ने एक दूसरे को पकड़ा हुआ था जिससे कि बेड़ा से ना गिरें। जब भी हमारा एकमात्र सहारा, वो कमज़ोर बेड़ा, लहरों के चट्टानी पक्षों के खिलाफ भिड़ता, हम सब भयानक झटकों के अधीन होते। सौभाग्य से हमारे लिए, ये झटके लगातार कम होते गए, जिससे मैंने कल्पना की कि गलियारा व्यापक रूप से और चौड़ा होता जा रहा था। अब इस बात में कोई संदेह नहीं था कि हमने भी वही मार्ग चुना था जिससे सैकन्युज़ेम्म गुजरा था, लेकिन उचित तरीके से नीचे जाने के बजाय, हमने अपने स्वयं के कारनामे से, अपने साथ पूरा समुद्र खींच लिया था!
ऐसे विचारों बहुत अस्पष्ट और धुँधले तरीके से मेरे दिमाग में खुद आ रहे थे। मुझे भी तर्क के बजाय ऐसा महसूस हुआ। मैं अपने विचारों को गोल घुमा रहा था, जैसे मैं किसी के साथ घूमते हुए एक झरने के नीचे जा रहा था। हवा का माध्यम से, जैसा कि यह था और मेंरे चेहरे पर चाबुक की तरह पड़ रहा था, हम पूरी तरह से बिजली की दर से भाग रहे थे।
इन परिस्थितियों में किसी मशाल को जलाने के लिए प्रयास करना असंभव था। और हमारे विद्युतीय यंत्र की आखरी निशानी, रुह्मकोर्फ़ यंत्र उस भयानक विस्फोट के दौरान नष्ट हो गया था।
इसलिए मैं चमकते हुए हल्के प्रकाश में देखते समय उलझन में था। मार्गदर्शक का शांत स्वभाव मुझ पर झलक रहा था। चतुर और धैर्यवान शिकारी ने लालटेन को जलाने में सफलता प्राप्त कर ली थी; और भले शुरुआती जल्दबाज़ी में, लौ में टिमटिमाहट और आंच काम थी लेकिन यह आंशिक रूप से भयानक अस्पष्टता को भंग करने के लिए पर्याप्त था।
जिस गलियारे में हमने प्रवेश किया था, वह बहुत चौड़ा था। इसलिए, मैं अपने अनुमान के उस हिस्से में काफी सही था। उस समय, अपर्याप्त प्रकाश की वजह से हमें दीवारों के दोनों ओर देखने का मौका नहीं मिला। पानी की ढलान, जो हमें दूर ले जा रही थी, अमेरिका की सबसे तेज़ नदी की तुलना में कहीं अधिक थी। धारा की पूरी सतह किसी तरल तीर से बनी हुई प्रतीत होती है, जो अत्यधिक रफ्तार और शक्ति के साथ आगे बढ़ रही थी। इससे मैं कितना प्रभावित था, इसका मैं कोई अंदाजा नहीं दे सकता।
कई बार, बेड़ा कुछ भँवरों में अटका और आगे बढ़ गया, फिर खुद अपने वास्तविकता पर लौट आया। यह कैसे बिगड़ा नहीं, मैं कभी नहीं समझ पाऊँगा। जब इसका संपर्क गलियारे के किनारों से हुआ, तब मैंने ध्यान से उन पर लालटेन की रोशनी डाली, और मैं चट्टानों के समूहों पर उभरी स्थिति को देखते हुए गति को समझने में सक्षम था, जो दिखते ही तुरंत अदृश्य हो जाते थे। हमारी गति इतनी तेजी थी कि दूर से चट्टानों के बिंदु किसी अनुप्रस्थ रेखाओं के अंश जैसे दिखते थे, जो हमें एक तरह के जाल में घेरता था, जैसे कि तार की एक रेखा हो।
मुझे लगा कि हम अब सौ मील प्रति घंटे की दर से कम नहीं जा रहे थे।
मेरे मौसाजी और मैंने एक दूसरे को कातर और क्लांत आँखों से देखा; हम मस्तूल के ठूँठ पर दृढ़ता से चिपके हुए थे, जब उस समय तबाही हुई थी, जो थोड़ी दूरी पर हुई थी। जहाँ तक सम्भव हुआ हमने हवा की तरफ अपनी पीठ कर ली, ताकि उसकी गति के उस दबाव से ग्रस्त ना हों जिसका सामना कोई मानव नहीं कर सकता था और जीवित रह सकता था।
और इसी तरह नीरसता से कई घंटे बीते। स्थिति ज़रा भी नहीं बदली, हालाँकि मैंने अचानक एक खोज की थी जो बहुत जटिल लग रही थी।
जब हमने अपना संतुलन थोड़ा पा लिया, तो मैं अपने सामानों की जाँच करने के लिए आगे बढ़ा। मैंने तब एक असंतोषजनक खोज की कि इसका बड़ा हिस्सा पूरी तरह से गायब हो गया था।
मैं सतर्क हो गया, और यह जानने के लिए दृढ़ था कि हमारे संसाधन क्या थे। मेरा दिल इस विचार पर ज़ोर से धड़का, लेकिन यह जानना बेहद जरूरी था कि हमें किस पर निर्भर रहना था। इस बारे में सोचते हुए, मैंने लालटेन लिया और चारों ओर देखा।
हमारे सभी जहाज़ी और दार्शनिक उपकरणों के पूर्व संग्रह में, केवल कालक्रम मापक और कम्पास रह गए थे। सीढ़ी और रस्सियों की जगह बस एक रस्सी थी जिससे मस्तूल के ठूँठ को बांधा गया था। कोई कुदाल नहीं, कोई सब्बल नहीं, ना कोई हथौड़ा और सबसे बदतर, कोई भोजन नहीं - एक दिन के लिए भी पर्याप्त नहीं!
यह खोज, एक निश्चित और भयानक मौत की भूमिका थी।
उदासीन होकर बैठे हुए, यांत्रिक रूप से मस्तूल के ठूँठ को पकड़े हुए, मैं उनके बारे में सोचने लगा जो कभी भुखमरी से पीड़ित थे, जिनके बारे में कभी मैंने पढ़ा था।
इतिहास ने मुझे उस विषय पर जितना सिखाया था, मुझे वो सब याद था और उस कष्ट के सहन को याद कर के ही मैं सिहर गया। भुखमरी के दुखों को सहने की संभावनाओं पर झुंझलाते हुए, मैंने खुद को मना लिया कि मुझसे गलती हो सकती है। मैंने बेड़ा में दरारों की जाँच की; मैंने उसके जोड़ों और डंडी के बीच उंगली से छेड़ कर देखा; मैंने हर संभव छेद और कोनों की जाँच की। परिणाम था - बस, कुछ भी नहीं!
हमारे रसद के भंडार में सूखे मांस का एक टुकड़ा और कुछ भीगे और मुड़े हुए बिस्कुट थे।
मैं अपने चारों ओर देखकर घबराया और डर गया। मैं भयावह सच्चाई को समझ नहीं पाया। और क्या यह फिर किसी नए संबंधित खतरे का परिणाम था? यह मानते हुए कि हमारे पास महीनों के लिए रसद थे, वर्षों के लिए भी, लेकिन क्या हम कभी भी भयावह रसातल से बाहर नहीं निकल सकते थे, जिसमें हम उस अविरल धार से आहत हो रहे थे जिसे हमने ढीला छोड़ दिया था?
जब हमें मौत के इतने सारे भीषण तरीकों से और शायद इससे भी अधिक डरावने रूपों में सामना कर चुके हैं, तो हमें खुद को भूख से पीड़ित होने वाली यातनाओं के बारे में सोचकर क्यों परेशान होना चाहिए?
यह बहुत ही संदेहास्पद था कि जिन परिस्थितियों में हम थे, इससे भी बदतर मौत कोई हो सकती है।
लेकिन इंसानी ढाँचा विलक्षण रूप से गठित है।
मैं नहीं जानता कि यह कैसा था; लेकिन मन में उत्पन्न कुछ विलक्षण मतिभ्रम की वजह से, मैं वास्तविक, गंभीर और तत्काल खतरे को भूल गया था जिससे हम उलझे थे, भविष्य के उन खतरों के बारे में सोचने से भी जो हमारे सामने अपने पूरे आतंक के साथ दिखे थे। इसके अलावा, उम्मीद के सहारे, शायद हम अंत में उग्र धार के प्रकोप से बच जाएँ, और आखिरकार, एक बार फिर से अपनी सुंदर पृथ्वी की सतह पर चंद्रमा की झलक मिले।
यह कैसे करना था? मुझे ज़रा भी नहीं पता था। हम बाहर कहाँ जा रहे थे? कोई बात नहीं, सब हमारा ही किया हुआ है।
हजार बार में एक मौका हमेशा ऐसा होता था, जब भूख से मौत की आशा ने हमें धुंधली झलक नहीं दिया हो। इससे भयानक डर की कल्पना कौंध गयी जिससे बचना आसान नहीं था।
अपने मौसाजी को सबकुछ बताने के लिए मेरा बहुत मन कर रहा था, उन्हें उस असाधारण और जटिल स्थिति को समझाने का मन कर रहा था, जिसे हम कम कर रहे थे, और इस क्रम में हम दोनों, उस सटीक स्थान पर पहुँचने के लिए समय की गणना कर सकते हैं, जो हमारे लिए रहने के लिए है।
मैंने देखा, केवल यही काम था जिसे किया जाना था। लेकिन मुझमें इतनी हिम्मत थी कि मैं स्पार्टन लड़के की तरह अपनी बेचैनी को काबू में रखूँ और अपनी जीभ को भी। मैं उन्हें पूरी शांति के साथ छोड़ देना चाहता था।
इस क्षण तक, लालटेन का प्रकाश धीरे-धीरे कम हो गया, और अंत में डूब गया!
बाती पूरी तरह से जल चुकी थी। अस्पष्टता गहरी हो गई। अभेद्य अंधकार में देखना अब संभव नहीं था! एक मशाल बची हुई थी, लेकिन उसे जलाकर रखना असंभव था। फिर एक बच्चे की तरह, मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं, कि शायद मुझे अँधेरा ना दिखे।
कुछ समय के बाद, हमारे यात्रा की गति बढ़ गई। मैं इसे अपने चेहरे पर हवा के बहाव से महसूस कर सकता था। पानी का ढलान अत्यधिक था। मुझे लगने लगा कि अब हम ढलान पर नहीं जा रहे हैं; हम तो गिर रहे थे। मुझे लगा जैसे कोई सपने में करता है, शारीरिक रूप से गिरता जाता है; और लगातार गिरता ही जाता है!
मैंने महसूस किया कि मेरे मौसाजी और हैन्स के हाथों ने मुझे कसकर पकड़े हुए थे।
अचानक, कुछ समय के बाद एक प्रशंसनीय रूप से, मुझे कुछ झटका सा लगा। बेड़ा किसी कठोर चीज़ से नहीं टकराया था, लेकिन अचानक अपने सफर में रुक गया था। एक फव्वारा, जो पानी का एक तरल स्तंभ जैसा था, हमारे ऊपर गिर गया। मुझे घुटन महसूस हुई। मैं डूबता जा रहा था।
फिर भी वो अचानक रूपी बाढ़ ज़्यादा देर टिक नहीं पाया। कुछ ही सेकंड में मैंने खुद को एक बार और सांस लेने में सक्षम महसूस किया। मेरे मौसाजी और हैन्स ने मेरे बाजूओं को दबाया, और बेड़ा हम तीनों को ले गया।