पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 4 Abhilekh Dwivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 4

चैप्टर 4

हमारे सफर की शुरुआत।

"देखो, पूरा द्वीप ज्वालामुखियों से बना है।" प्रोफ़ेसर ने कहा, "और ध्यान दो, सभी के नाम 'जोकल' से जुड़े हैं। ये एक आइसलैंडिक शब्द है जिसका मतलब हिमनदी है। यहाँ के ज़्यादातर ज्वालामुखियों के लावा बर्फीले खोह से निकलते हैं। इसलिए इस बेमिसाल द्वीप के हर ज्वालामुखी से ये नाम जुड़ा है।
"फिर स्नेफल्स का मतलब क्या है?"
इस सवाल के लिए मुझे कोई वाजिब जवाब की उम्मीद नहीं थी। मैं ग़लत था।
मेरी उँगली की सीध में देखो जहाँ आइसलैंड के पश्चिमी तट पर इसकी राजधानी, रिकिविक है। वहीं उसी दिशा में समुद्र के घेरे की तरफ, व्याप के पैंसठवें अंश पर क्या दिखा?"
"एक उपद्विप - जाँघ की हड्डी के आकार का।"
"और उसके केंद्र में?
"एक पहाड़।"
"वही है स्नेफल्स।"
मैं कुछ नहीं कह पाया।
"ये स्नेफल्स, जिसकी ऊँचाई 5 हज़ार फ़ीट हैं और इस द्वीप के अलावा विश्व मे भी जाना-माना है, इसी के खोह से हम पृथ्वी के केंद्र में पहुँचेंगे।"
"असम्भव!" मैंने चौंकते हुए चीख कर कहा।
"क्यों असम्भव?" प्रोफ़ेसर हार्डविग ने सख्ती से पूछा।
"क्योंकि इसके खोह में ज्वलनशील चट्टान और असंख्य खतरे हैं।"
"अगर ये खाली हुआ?"
"फिर कुछ मुमकिन हो।"
"बिल्कुल है। पूरी पृथ्वी पर लगभग 300 ज्वालामुखी हैं और ज़्यादातर खाली और शांत हैं। स्नेफल्स उनमें से एक है। साल 1219 से एक बार भी नहीं फटा है, दरअसल अब ये ज्वालामुखी है भी नहीं।"
अब इसके बाद मैं क्या ही बोल सकता था? हाँ, एक और सवाल का ध्यान आया।
"फिर वो स्कारतरिस और जुलाई के महीने के बारे में कौन सी बातें थी?"
मौसाजी थोड़ा गंभीर हुए। अब उन्होंने अपने जवाब को उपदेशक की तरह सुनाना शुरू किया, "जहाँ तुम्हें अंधेरा दिख रहा है, मुझे वहाँ रोशनी दिख रही है। सैकन्यूज़ेम्म ने अपने कथन से सही दिशा के संकेत दिए हैं। स्नेफल्स के कई खोह हैं, इसका उन्होंने ध्यान रखते हुए उसको चिन्हित किया जिससे पृथ्वी के अंदर जाने का रास्ता मिले। उन्होंने ये बताया कि जून महीने के आखिरी में स्कारतरिस पहाड़ की परछाई एक खोह पर पड़ेगी। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं है।"
"मैं समझ गया आपकी बात।" मैंने कहा, "और सैकन्यूज़ेम्म सही हैं। उन्होंने पृथ्वी के प्रवेशद्वार का पता लगाया, सही तरीके से चिन्हित किया, लेकिन उन्होंने या किसी और ने इस खोज को फिर से जानने की कोशिश की, कि कहीं ये पागलपन तो नहीं?"
"ऐसा क्यों लगता है लड़के?
"सारे वैज्ञानिक आधार, तथ्य और प्रयोग इसको असम्भव बताते हैं।"
"मैं किसी सिद्धांत की परवाह नहीं करता।" मौसाजी ने तल्खी से कहा।
"क्या ये नहीं मालूम कि पृथ्वी के नीचे हर 70 फ़ीट पर ताप बढ़ती जाती है? इसी से केंद्र के ताप का आंकलन हो जाता है। पृथ्वी के नीचे सारे अंश, चाहे धातु हो या खनिज, सब आपस में मिश्रित हैं और ज्वलंत भी। फिर हमारा क्या होगा?"
"ताप से मत डरो लड़के।"
"क्यों?"
"पृथ्वी के अंदरूनी हालात को ना तुम ठीक से जानते हो और ना कोई और। सारे नए प्रयोगों ने पुराने सिद्धान्तों को विफल कर दिया है। अगर इतना ताप होता तो पृथ्वी की ऊपरी सतह परमाणु होती और सारा विश्व खत्म हो चुका होता।"
एक लंबी, ज्ञानवर्धक और नीरस बहस का अंत, कुछ इस तरीके से हुआ:
"हेनरी, मैं खतरों और मुश्किलों से नहीं घबराता जिसे तुम नाहक बढ़ाये जा रहे हो, और जानने के लिए ज़रूरी है आर्न सैकन्यूज़ेम्म की तरह जाएँ और देखें।"
"ठीक है", मैंने हार मान ली, "चलिए, चलकर देखेंगे। हालाँकि अँधेरे में कैसे करेंगे ये अलग रहस्य है।"
"डरो मत। इन सब के अलावा और जो भी मुश्किलें होंगी, सब हल होंगे। और मुझे उम्मीद है केंद में हमें कुछ चमक दिखे।"
"नामुमकिन कुछ भी नहीं है।"
"अब जब सब समझ गए हो तो किसी और के बारे में और कोई बात नहीं करनी। हमारी सफलता इस बात पर निर्भर है कि कितनी खामोशी से हम इसे पूरा करें।"
इस तरह अपनी यादगार बहस पूरी हुई जिसने मुझमें ताप की मात्रा बढ़ा दी थी। मौसाजी को वहीं छोड़, मैं किसी भूत की तरह भागा। एल्बे नदी के किनारे पहुँचकर मैं सोचने लगा। मैंने जो भी सुना, क्या वो सम्भव है? मौसाजी होश में थे और क्या वाकई पृथ्वी के भीतर जाना सम्भव है? कहीं मैं उनके पागलपन का शिकार तो नहीं हो गया था या वो वाक़ई में एक साहसिक और अकल्पनीय खोजकर्ता थे?
कुछ हद तक मैं भी उत्सुक था। मैं डर रहा था कि मेरा उत्साह कहीं ठंडा ना हो जाये। मैंने सामान बाँधने का निश्चय कर लिया। लेकिन घर पहुँचते मेरा मन बदल गया था।
"मैं कहीं और हूँ।" मैंने ज़ोर से चीखा, "ये कोई बुरा सपना है जिसे मैंने देखा है।"
इतने में मेरे सामने ग्रेचेन थी, जिसे मैंने बड़े प्यार से गले लगाया।
"तो तुम मुझसे मिलने आये हो," उसने कहा, "तुम कितने अच्छे हो। लेकिन बात क्या है?"
अब कोई छुपाने वाली बात थी नहीं, मैंने उसे सब बता दिया। वो अवाक होकर सुन रही थी और कुछ पल के लिए खामोश थी।
"अब?" मैंने उत्सुकता से पूछा।
"क्या बेहतरीन यात्रा होगी, काश मैं भी पुरूष होती! प्रोफ़ेसर हार्डविग के भांजे के लिए वाजिब सफर। उनका साथ देना मेरे लिए गौरान्वित होने जैसा है।"
"मेरी प्यारी ग्रेचेन, मुझे लगा था इस बेवकूफाना मेहनत के लिए सबसे पहले तुम खिलाफ में कहोगी।"
"नहीं; मुझे तो गर्व हो रहा है। ये बहुत ही बेजोड़, ज़बरदस्त है - मेरे पिता की वाजिब सोच है। हेनरी लॉसन, मुझे तुमसे ईर्ष्या हो रही है।"
इसका निष्कर्ष यही था कि मुझे आघात पहुँचा था।
जब हम कमरे में पहुँचे, वहाँ मौसाजी कुछ कारीगरों और कुम्हारों के साथ कुछ बाँध रहे थे।
"तुम कहाँ अपना समय बर्बाद कर रहे हो? ना तुमने अपना बैग तैयार किया, मेरे पत्र व्यवस्थित नहीं हैं, दर्जी ने मेरे कपड़े अभी तक वापस नहीं दिए, दरी के बस्ते की चाबी भी गुम है।"
मैं उन्हें देखकर दंग था। और वो अपने सामान को जोतने में लगे थे।
"मतलब, अब हम जा रहे हैं?" मैंने पूछा।
"हाँ, बिल्कुल। फिर भी तुम टहलने निकल गए बेवकूफ लड़के।"
"हम कब जा रहें हैं?"
"परसों, पौ फटते ही।"
मैं कुछ नहीं सुनना चाहता था; इसलिए सीधा अपने कमरे में जाकर खुद को बंद कर लिया। अब कोई संदेह नहीं था। पूरे दोपहर मौसाजी काम में लगे रहे। 10 लोगों को लादने लायक उन्होंने रस्सी, सीढ़ी, मशाल, लौकी, चिमटे, कुदाल, फावड़ा और अन्य यंत्र बाग़ में जुटा लिए थे।
किसी तरह रात गुज़री। अगली सुबह, तड़के ही मुझे बुला कर बता दिया गया कि मौसाजी का फैसला अडिग और अटल है। मुझे ग्रेचेन के चेहरे पर भी खुशी ज़्यादा दिख रही थी।
अगले दिन सुबह 5 बजे ही घोड़ा-गाड़ी दरवाजे पर थी। ग्रेचेन और उस बूढ़ी बावर्ची को चाबी देने के बाद हमने पृथ्वी के केंद्र में जाने का सफर शुरू किया।