पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 2 Abhilekh Dwivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 2

चैप्टर 2

रहस्यमयी चर्मपत्र

"मैं बता रहा हूँ।" मौसाजी ने उत्तेजित होते हुए मेज पर मुट्ठी से प्रहार करते हुए कहा, "मैं बता रहा हूँ तुम्हें, ये रूनिक ही है और इनमें कुछ ज़बरदस्त राज़ हैं जो मुझे हर कीमत पर जानना है।"
मैं जवाब देने ही वाला था कि उन्होंने मुझे रोक दिया।

"बैठ जाओ" उन्होंने थोड़ा ज़ोर से कहा, "और जो मैं बोल रहा हूँ उसे लिखो।"

मैंने वैसा ही किया।

"इसका विकल्प बनाऊँगा।" उन्होंने कहना जारी रखा, "अपने वर्णमाला के अक्षरों को रूनिक के अक्षरों से बदलकर देखेंगे कि ये क्या बनता है, अब शुरू करो और कोई ग़लती मत करना।"
उनके बोले हुए और मेरे लिखे हुए शब्दों में कोई मेल नहीं था:


मेरे पूरा करने से पहले ही उन्होंने वो पत्र मेरे हाथ से छीन लिया और भावविभोर होते हुए पूरी तल्लीनता से उसे देखने लगे।
"मुझे जानना है इसका मतलब क्या है।" उन्होंने कुछ देर बाद कहा।
मैं बता भी नहीं सकता था और उन्हें उम्मीद भी नहीं थी - उनके सवालों के जवाब सिर्फ और वो खुद ही देते थे।
"मेरे हिसाब से ये बीज-लेखन जैसा है।" उन्होंने आगे कहा, "अगर ये वाक़ई में अकारण लिखा गया है तो इसके लिए परेशान क्यों होना? क्या पता मैं किसी नयी खोज के करीब हूँ?"
मेरा स्वाभाविक विचार यही था कि ये बकवास है। लेकिन मैंने अपने इन विचारों को अपने तक ही रखा क्योंकि मुझे मौसाजी के कोप का भाजन नहीं बनना था। इस दौरान वो चर्मपत्र और किताब की तुलना में लगे थे।
"पाण्डुलिपि के संस्करण और छोटी किताब के लेखन में फर्क है।" उन्होंने कहना जारी रखा, "किताब के मुकाबले बीज लेखन काफी बाद की है और इस बात को मैं बिना किसी संदेह से कह सकता हूँ (एक अखंड प्रमाण तो मैंने खुद दिया)। पहले दो अक्षर ‘म’ हैं जो कि आइसलैंड की भाषा में 12वीं शताब्दी में जुड़े थे - मतलब चर्मपत्र इस संस्करण से 200 साल पुरानी है।"
परिस्थिति और प्रत्यक्ष प्रमाण से, संभव प्रतीत होता था लेकिन मुझे फिर भी संदेह था।
"मेरे हिसाब से ये वाक्य इस किताब के मालिक ने ही लिखा होगा। अब बड़ा सवाल है कि कौन इसका मालिक होगा। हो सकता है सौभाग्य से इसी संस्करण में कहीं लिखा हो।"
इन शब्दों के बाद प्रोफ़ेसर हार्डविग ने अपना चश्मा उतारा और एक शक्तिशाली आवर्धक शीशे से किताब को परखने लगे।
एक पन्ने पर जो स्याही का धब्बा जैसा था, वो एक लिखी हुई पंक्ति थी जो समय के साथ मिट गयी थी। कुछ समय और मेहनत के बाद उन्होंने इन अक्षरों की खोज की:


"आर्न सैकन्यूज़ेम्म!" उन्होंने प्रफुल्लित होते हुए चीखा, "ये सिर्फ कोई आइसलैंडिक नाम नहीं है, 16वीं शताब्दी के ज्ञानी और प्रतिष्ठित रसायनविद प्रोफ़ेसर का नाम है।"
मैंने आदर से अभिवादन किया।
"ये रसायनविद" उन्होंने कहना जारी रखा, "एविसेना, बेकन, लुल्ली, पैरासेल्सस उस समय के सबसे सही विद्वान थे। उन्होंने अविश्वसनीय खोज किये। मेरे भांजे, हो सकता है सैकन्यूज़ेम्म ने इस चर्मपत्र पर कुछ आश्चर्यजनक खोज को छुपाया हो? मुझे लगता है बीज लेखन में गूढ़ अर्थ हैं - जिसका पता मुझे लगाना ही होगा।
मौसाजी जिस उमंग में निकले उसका विवरण देना मुश्किल था।
"बिल्कुल हो सकता है।" मैंने डरते हुए कहा, "फिर भी उसे क्यों कुरेदना, अगर वो वाक़ई में उपयोगी और ज़रूरी खोज है।"
"क्यों - मुझे कैसे पता चलेग?" क्या गैलीलियो ने अपनी खोज में शनि से सम्बंधित खोज को राज़ नहीं रखा था? इसलिए हम देखेंगे। जब तक मैं इस पंक्ति के अर्थ का पता नहीं लगा लेता, ना कुछ खाऊँगा ना सोऊँगा।"
"मौसाजी…" मैंने जैसे ही कहा।
"और तुम भी नहीं।" उन्होंने जोड़ दिया।
अच्छा होता अगर उस दिन मैंने दुगुना लगान ले लिया होता।
"सबसे पहले," उन्होंने कहना जारी रखा, "इसके अर्थ को समझने के लिए कुछ संकेत हों। अगर वो मिल गया, फिर सब आसान होगा।"
मैं गंभीरता से उसके बारे में सोचने लगा। भोजन और नींद के आसार वैसे भी नहीं थे इसलिए मैं उस रहस्य को सुलझाने में जुट गया। और मौसाजी अपनी बड़बड़ाहट में मशगूल थे।
"इसे खोजना इतना जटिल भी नहीं है। इस पत्र में 132 अक्षर हैं जिसमें 79 व्यंजन और 53 स्वर हैं। ऐसे योग दक्षिणी भाषाओं में ज़्यादातर मिलते हैं, उत्तरी भाषाओं में व्यंजनों की संख्या ज्यादा है। मैं पूरे आत्मविश्वास से कह सकता हूँ कि हमें दक्षिणी बोली से मिलाकर देखना चाहिए।"
इससे ज़्यादा तार्किक कुछ नहीं हो सकता था।
"अब" प्रोफ़ेसर हार्डविग ने कहा, "उस विशेष भाषा को पहचानना होगा।"
"शेक्सपियर ने भी कहा है 'सवाल यही है',।" मेरा व्यंग्यात्मक जवाब था।
"ये जो सैकन्यूज़ेम्म था।" उन्होंने कहना जारी रखा, "बहुत विद्वान था, जैसा कि उसने इसे अपनी मातृभाषा में ना लिखते हुए, 16वीं शताब्दी के अन्य विद्वानों की तरह इसे भी लैटिन में लिखा होगा। अगर मेरे अनुमान ग़लत है तो हमें स्पैनिश, फ्रेंच, इटालियन, ग्रीक और यहाँ तक कि हिब्रू में भी कोशिश करनी चाहिए। हालाँकि मेरे विचार लैटिन के पक्ष में हैं।"
उनके इस प्रस्ताव से में चकित था। लैटिन मेरा पसंदीदा विषय था और उस समय ऐसा लगा कि इस तुच्छ के सामने मैं वर्जिल के देश का काबिल इंसान हूँ।
"संभवतः देशज में हो" उन्होंने कहना जारी रखा, "फिर भी लैटिन।"
"बिल्कुल संभव है।" मैंने जवाब दिया, खंडन नहीं।
"अब इसे देखते हैं।" मौसाजी ने कहना जारी रखा, "ये देखो, यहाँ पूरे 132 अक्षर हैं, बिना तारतम्यता लिए। यहाँ कुछ शब्द सिर्फ व्यंजनों से बने हैं और बचे हुए स्वरों से। ये एक असाधारण जोड़ी है। हो सके तो, हमें ऐसे वाक्यांशों को ढूंढना चाहिए जो किसी गणितीय योजना से बने हों। इसमें कोई दो राय नहीं कि एक वाक्य लिखा गया हो और वो अव्यवस्थित हो गया हो - कोई सांकेतिक अंक होगा जो योजना को इंगित करता हो। हैरी, अब अपनी अंग्रेज़ी बुद्धिमत्ता दिखाओ - कौन सा अंक है?"
मैं कुछ भी नहीं बता पाया। मेरी सोचने-समझने की शक्ति कहीं और थी। जब वो मुझसे बोल रहे थे तो मेरी नज़र ग्रेचेन की बड़ी सी तस्वीर पर थी और मैं उसके लौटने के बारे में सोच रहा था।
हम एक दूजे के लिए बने थे और एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। लेकिन मौसाजी, जो सामाजिक बातों के बारे में कभी नहीं सोचते थे, उन्हें इसके बारे में कुछ नहीं पता था। मेरी कपोल-कल्पना को नजर-अंदाज कर, प्रोफ़ेसर उस पहेली नुमा पत्र को अपनी ही किसी पद्धति से पढ़ने लगे। फिलहाल उन्होंने मेरी उत्सुकता को बढ़ाने के लिए कुछ बोला लिखने को।
मैंने डरते हुए उसे बढ़ाया और उन्हें दे दिया। उसमें लिखा था:
(Refer the page 8)
मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी को रोके रखा जबकि मौसाजी जोश-ओ-खरोश में मेज पर थपकी देते हुए, वेग में कमरे से निकले, अपने जूते पहने और मेरी नज़रों से ओझल हो चुके थे।