पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 6 Abhilekh Dwivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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पृथ्वी के केंद्र तक का सफर - 6

चैप्टर 6

आइसलैंड की तरफ प्रस्थान।

आखिर में यहाँ से भी जाने का समय आ गया। एक रात पहले ही मिस्टर थॉम्पसन ने, आइसलैंड के राज्यपाल बैरन ट्रैम्प, पादरी के सहायक एम०पिक्टर्सन और रिकिविक नगर के महापौर एम०फिनसेन को दिखाने वाले पहचान पत्र, लाकर हमें दे दिया।
दो तारीख के भोर में करीब दो बजे हमारे सामान को जहाज पर लाद दिया गया। जहाज के कप्तान ने हमें एक कमरा दिखाया जहाँ दो बिस्तर लगे थे, कमरा ना ही रोशनदान था और ना ही आरामदायक। लेकिन विज्ञान के लिए कष्ट उठाना ही पड़ता है।
"क्या मस्त हवा चल रही है।" मौसाजी ने चहकते आवाज़ में कहा।
"बहुत ही ज़बरदस्त हवा!" कप्तान बार्न ने जवाब दिया, "अब हमें सब भूल कर समुद्री यात्रा का आनंद लेना चाहिए।"
कुछ मिनटों में जहाज हवा के साथ अपने सफर के लिए चल दी। एक घण्टे बाद डेनमार्क की राजधानी लहरों में कहीं गुम थी और हम एलसिनॉर के तट से ज़्यादा दूर नहीं थे। मौसाजी खुश थे लेकिन मैं असंतुष्ट और चिढ़ा हुआ था। मुझे देख कर लगता था, जैसे मैंने हैमलेट का भूत देख लिया हो।
"बेमिसाल पागल," मैंने उसे सोचते हुए कहा, "तुम्हें तो बिना शर्त के सब मंजूर होगा। तुम तो अपनी जिज्ञासा के लिए हमारे साथ पृथ्वी के केंद्र तक चलोगे।"
लेकिन वहाँ कोई भूत या साया नहीं था। असल में महल भी हैमलेट के बाद के काल का था। वो तो तराई के रखवालों का ठिकाना था, जहाँ से हर साल करीब पंद्रह हजार नाव गुज़रते थे।
क्रोनबोर्ग का महल और स्वीडिश नदी पर स्थित हेलसिनबोर्ग की ऊँची मीनारें भी वातावरण में गुम हो चुके थे। जहाज को भी कैटीगट के हवाओं का अंदाज़ा हो चुका था। जिस रफ्तार से जहाज बढ़ रहा था उससे एक अनिश्चितता थी। सामान में कोयला, लकड़ियाँ, मिट्टी के बर्तन, ऊनी कपड़े और बहुत सारे मक्के थे। काम करने के लिए बस 5 लोग थे जिससे भीड़ भी कम थी।
"हम कितने दिनों में पहुँच जाएँगे?" मौसाजी ने पूछा।
"मेरे अनुमान से दस दिनों में," कप्तान ने कहा, "बशर्ते फ्रॉय द्वीप के उत्तरी-पूर्वी तूफानों से ना पाला पड़े।"
"किसी भी हालत में इससे ज़्यादा देर नहीं होना चाहिए।" मौसाजी ने अधीर होते हुए चीखा।
"नहीं मिस्टर हार्डविग," कप्तान ने कहा, "चिंता मत करिये। हर हाल में हम समय से पहुँचेंगे।"
शाम होने तक जहाज अपने दोगुने रफ्तार से, डेनमार्क के उत्तरी छोर: स्केन, रात में स्केर्राक और नॉर्वे के अंतिम छोर पर लिंड्सनेस से होते हुए उत्तरी समुद्र तक पहुँच गया। दो दिन बाद हम स्कॉटलैंड के तट के करीब थे, वहाँ के नाविक उसे पीटरहेड बोलते थे, फिर हम ओर्कनेय और शेटलैंड के बीच फ्रॉय द्वीप के लिए मुड़ चुके थे। अब हमारे जहाज़ का तेज़ लहरों और तूफानी हवाओं से सामना हुआ लेकिन हर मुश्किल को पार कर हम फ्रॉय द्वीप तक पहुँच गए। आठवें दिन कप्तान ने द्वीप के पश्चिमी भाग, मिगएनस तक पहुँचाया और वहाँ से हम सीधा पोर्टलैंड की तरफ चल दिए।
जहाज ने कुछ भी यादगार मौके नहीं दिए थे। मैं तो इस सफर को झेल पा रहा था लेकिन मेरे मौसाजी चिड़चिड़े, लज्जित और बीमार लग रहे थे। जहाजी-मतली ने उन्हें इतना परेशान किया था कि वो स्नेफल्स, संपर्क माध्यम और सवारी-सुविधा से जुड़े अपने सवाल कप्तान बार्न से नहीं पूछ सके। उनको ये सारे सवाल पहुँचने तक रोके रखना पड़ा था। उनका अधिकतर समय बिस्तर पर कराहते और सफर के खत्म होने की दुआ में कट रहा था; मुझे उनपर दया नहीं आयी।
ग्यारहवें दिन मौसम साफ होने से हमें पोर्टलैंड के टुकड़े पर स्थित ऊँची चोटी मयर्डल्स जोकल दिख रहा था। वो टुकड़ा और कुछ नहीं बस ग्रेनाइट का इतना बड़ा चट्टान था कि अटलांटिक महासागर के लहरों से अकेले लड़ता था। जहाज उसके किनारे से आगे की ओर मुड़ी। हर तरफ व्हेल और शार्क दिख रहे थे। थोड़ी देर बाद हमें समुद्र में इतना बड़ा पत्थर दिखा जिससे लहरें टकराकर झाग के रूप में और तेज़ी से बहने लगते थे। फिर वेस्टमैन का छोटा टापू दिखा जो इतना छोटा था कि वो समुद्र के ऊपर जल्दी नहीं दिखता था। वहाँ से जहाज आइसलैंड के पश्चिमी बिंदु की तरफ मुड़ चुका था।
मौसाजी तो गुस्से में जहाज पर ठीक से रेंग भी नहीं पा रहे थे इसलिए उनको उन नज़ारों की पहली झलक नहीं मिली। अड़तालीस घण्टों बाद तूफान ने हमें कहीं और भटका दिया था लेकिन चालक ने अपनी तीन घण्टे की मशक्कत के बाद सही दिशा को पहचान कर, जहाज को रिकिविक से पहले फैक्सा की खाड़ी के करीब रोक दिया था।
प्रोफ़ेसर हार्डविग को अपने कैद, या कहें तो अस्पताल से आज़ाद होने की बहुत जल्दी थी। लेकिन उससे पहले ही उन्होंने मेरी बाँह को अपने पंजे से जकड़ते हुए, जहाज के एक छोर पर ले गए और अपने दूसरे हाथ से उस तरफ देखने के लिए इशारा किया जहाँ खाड़ी के उत्तरी हिस्से में दो चोटियाँ थीं और बर्फ से ढके हुए थे।
"वो देखो!", उन्होंने अपनी आश्चर्य से काँपते लहजे में कहा, "वो देखो, स्नेफल्स के पहाड़!"
फिर उन्होंने बिना कुछ कहे, अपने होठों पर उँगली रखकर वापस अपने केबिन की तरफ चले गए। मैं भी उनके पीछे चला गया और कुछ देर बाद हम आइसलैंड की रहस्यमयी ज़मीन पर खड़े थे।
अभी हम बस किनारे पर पहुँचे ही थे कि वहाँ सैन्य वेषभूषा में एक बेमिसाल व्यक्तित्व खड़े थे। वो यहाँ के मजिस्ट्रेट, बैरन ट्रैम्प थे। प्रोफ़ेसर जानते थे कि कैसे मिलना है। इसलिए उन्होंने कोपेनहेगन वाली चिट्ठी दे दी और डेनमार्क की भाषा में बात करने लगे, जिससे मैं बिल्कुल अनजान था। कुछ देर बाद मुझे पता चला कि अब बैरन ट्रैम्प सिर्फ प्रोफ़ेसर हार्डविग को ज़रूरत होने पर ही मिलेंगे।
एम०फिनसेन, जो कि वहाँ के महापौर थे, मौसाजी का गर्मजोशी से स्वागत किया। वो भी सैन्य वेषभूषा में ही थे लेकिन वो अपने व्यक्तित्व और काम को लेकर ज़्यादा गंभीर थे। उनके सहायक एम०पिक्टर्सन उत्तरी क्षेत्र के दौरे पर जाने की वजह से साथ नहीं थे। उनकी कमी को रिकिविक के कॉलेज से प्राकृतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर, एम०फ्रिड्रिक्सन ने पूरा किया, जो बहुगुणी थे। इस शालीन विद्वान को सारी भाषाओं का ज्ञान था। और मुझे उन्होंने अपना परिचय होरेस भाषा में दिया जिससे हम दोनों परिचित थे। हम जब तक यहाँ रुके, सिर्फ यही थे जिनकी बातें मुझे समझ में आती थी।
उनके तीन कमरों वाले घर में से दो कमरे हमारी सेवा में थे और कुछ देर बाद हमारे सामानों को कमरों में लगा दिया गया था। वहाँ के लोगों के लिए हमारे सामानों की संख्या ताज्जुब का विषय था।
"हैरी!" मौसाजी ने अपने हाथों को सहलाते हुए कहा, "सब अच्छे से हो गया, बड़ी समस्या भी निपट गयी।"
"बड़ी समस्या कैसे निपट गयी?" मैंने भी आश्चर्य और उत्सुक होते हुए पूछा।
"कोई संदेह ही नहीं। अब हम आइसलैंड में हैं। अब हमें बस पृथ्वी के गर्भ में उतरना है।"
"बात तो सही है आपकी। हमें नीचे ही उतरना है लेकिन जहाँ तक मुझे लगता है, बड़ा सवाल ये है कि ऊपर कैसे लौटेंगे।"
"ये सब बाद की बात है, ये सब से मैं परेशान नहीं होने वाला। फिलहाल यहाँ ज़रा भी समय बर्बाद नहीं करना है, मैं पुस्तकालय से होकर आता हूँ। मुझे वहाँ शायद सैकन्यूज़ेम्म द्वारा लिखित कोई पाण्डुलिपि मिले। उसके बारे में चर्चा करना अच्छा रहेगा।"
"मैं तब तक शहर देख लूँ।" मैंने जवाब दिया, "आप ऐसा कुछ नहीं करेंगे?"
"मुझे इनमें कोई दिलचस्पी नहीं है।" मौसाजी ने कहा, "मेरी जिज्ञासा इस द्वीप के ऊपरी सतह में नहीं, निचले हिस्से से जुड़ी है।"
मैंने उनके जवाब का सम्मान किया, और खुद को तैयार कर बाहर की ओर निकल गया।
रिकिविक के सड़कों को खुद से जानना इतना मुश्किल नहीं था; इसलिए मैं खुद ही निकल पड़ा। दो पहाड़ों के बीच और सपाट मैदानी ज़मीन पर ये नगर है, जिसके एक तरफ समुद्र से लगे मैदानी इलाके हैं और दूसरी तरफ फैक्सा की खाड़ी है जिसमें स्नेफल्स से बनी हुई हिमनदी है, जिसके किनारे पर अभी कुछ देर पहले हमारा जहाज था। आमतौर पर यहाँ मछलीपालन को देखने के लिए अंग्रेजी और फ्रांसीसी नाव होते हैं, फिलहाल सब नदारद थे।
रिकिविक की सबसे लम्बी सड़क बिल्कुल नदी के किनारे के बराबर है। इस सड़क पर सौदागर और व्यापारी, लाल रंग से रंगी लकड़ी की झोपड़ियों में रहते हैं, जैसा अमेरिकी जंगलों में मिलते हैं। दूसरी सड़क, पश्चिम में एक छोटी झील को जाती है, जहाँ उनके घर हैं जो धर्मिक और अव्यावसायिक कामों में हैं।
इस उबाऊ और बेकार की सड़क पर जो भी था, देख चुका था। किसी पुराने, उधेड़े हुए कालीन की तरह जहाँ-तहाँ उजड़े मैदानी घास थे और कहीं रसोइया-बाग़ थे जहाँ आलू, बंदगोभी, हर सब्जी उगते थे; जिन्हें देखकर लिलिपुट की कहानी का अंदाज़ा हो रहा था।
नए व्यावसायिक सड़क पर मुझे एक कब्रिस्तान दिखा, जो दीवारों से घिरा था। बहुत बड़ा नहीं था लेकिन कई सालों से वीरान पड़ा हुआ लगा। फिर वहाँ से मैं राज्यपाल के घर की ओर चल दिया। हैम्बर्ग के महलनुमा घर के मुकाबले वो झोपड़ी ही थी लेकिन वहाँ के हिसाब से वो महल ही था। छोटी झील और नगर के बीच गिरजाघर था, जो धार्मिक निर्देशानुसार और ज्वालामुखी से निकले भस्मित पत्थरों से बनाये गए थे। मुझे तो ज़रा भी संदेह नहीं था कि धार्मिक सभाओं के दौरान तेज़ हवाओं ने इसके लाल खपरैल को नहीं उजाड़ा होगा। थोड़ी दूरी पर सरकारी विद्यालय था जहाँ हिब्रू, अंग्रेजी, फ्रेंच और डैनिश भाषाएँ पढ़ायी जाती थी।
तीन घण्टे में मेरा दौर पूरा हो गया था। मुझे यहाँ सब उदास से लगे। कहने भर पेड़ और वनस्पति थे, चारों तरफ ज्वालामुखियों की चोटी, भूस-पुआल की झोपड़ियाँ थीं। यहाँ के निवासियों में इतनी गर्मी थी कि छत पर भी घास उग जाते थे जिसे बड़ी सावधानी से काटा जाता था जिससे कि पुआल नष्ट ना हों। तट पर मैंने कुछ निवासियों को कॉड-मछलियों के सुखाते, नमक लगाकर लादते हुए देखा था; शायद यहाँ का मुख्य कारोबार है। यहाँ के पुरुष स्वस्थ गठीले, जर्मन की तरह सफेद चमकते बाल वाले हैं; लेकिन विषादग्रस्त, जैसे एस्किमों वालों से भी ज़्यादा भार इनपर इंसानियत का हो, लेकिन मुझे यही लगा कि ध्रुवी गोलार्ध की सीमित माहौल की वजह से ये नाखुश जैसे दिखते हैं।
कभी-कभी वो अचानक से हँसते लेकिन मुस्कुराते शायद ही थे। उनके पहनावे में एक लंबा ऊनी कोट होता जिसमें सिर को ढकने के लिए कपड़े जुड़े होते, लाल पतलून, और नर्म चमड़े से बना हुआ जूता जिसमें फीते लगे थे। औरतों के नाक-नक्श अच्छे थे लेकिन चहेरे, भावना-विहीन और रूआंसी थीं। उनके पहनावे में चोली और भारी-भरकम ऊनी साया होता। अविवाहित अपने जूड़े के ऊपर बुनी हुई टोपियाँ पहनतीं और विवाहित रंगीन रुमाल से ढकती जिसके ऊपर वो सफेद दुप्पटा बाँध लेती थीं।