मेरी रोटी
मैं आप में से एक हुँ , मेरे लिए महत्वपूर्ण है मेरी “रोटी” । वो “रोटी” जिसके लिए मैं दर- ब- दर भटकता हुँ , जिसके लिए मैं दूसरों की सुनता हुँ और वो रोटी जो चाँद सी गोल होकर भी मेरे जीने का आधार है। मैंने रोटी पर अनेकों सुमधुर कविताऍ पढ़ी है लेकिन वे कभी भी रोटी से मीठी नहीं लगी । रोटी मुझे संघर्ष की ताकत देती है , कुछ करते रहने की शक्ति देती है और गलत कामों को भी अनदेखा करने की प्रेरणा देती है । मेरी जिदंगी रोटी के आस-पास घूमती है । आजकल मुझे अपनी रोटी की फिक्र होने लगी है । हालाँकि यह फिक्र मुझे हमेशा से ही थी परन्तु आजकल जो कुछ देख-सुन रहा हॅुं उससे मेरी फिक्र बहुत बढ़ गई है । मैं इस रोटी को कमाने और बचाए रखने का हरसम्भव प्रयास करता रहा हॅुं । मेरी रोटी पर न जाने किसकी नजर लगी है वो इन दिनों मंहगी और मंहगी होती जा रही है ? मुझे मालूम है मेरी रोटी पर लगने वाले टैक्स के पैसे से कुछ लोग ऐशो-आराम कर रहे है ।
मुझे मालूम है कि हर ओर घूमने वाले लुटेरों ने मेरा सब कुछ लूट लिया है । मेरे घर की छत उनके आलीशान कालीन बन गई है, मेरे रोजगार उनके घरों के नौकर बन गए है और मेरी आवश्यकताएँ उनकी सुविधाओं में बदल गई है । अब मै अपनी रोटी नहीं खोना चाहता। मैं लुटेरों को बता देना चाहता हॅुं कि मेरी रोटी की ओर मत देखना । लुटेरों तुमने मेरा घर लूट लिया, मेरे हिस्से की योजनाओं पर कब्जा कर लिया , तुमने मेरी जमीनों ,खदानों और सुविधाओं पर भी अधिकार जमा लिया । मैं देखता रहा तुम्हारा यह लूट का खेल । यह देखता रहा कि कैसे एक मुझे लूटता और दूसरा चुप रहता , फिर दूसरा लूटता और पहला चुप रहता । मैं सोचता कि मैं कुछ समय के बाद इनकी सत्ता बदलता हॅुं लेकिन ये तो मेरा भ्रम था । वे लुटेरे, चेहरे और टोलियों के नाम बदल कर मुझे लूटते रहे । बाद में मुझे मालूम हुआ कि बड़े बड़े धन्नासेठ भी इन लुटेरों के साथ मिले हुए है । मैंने अपने से लगने वाले सरकारी नौकरों की ओर देखा तो वे लुटेरों के तलुए चाटते हुए दिखे । मुझे लगा कि शायद कहीं कोई होगा जो आम आदमी को इस लूट से मुक्ति दिलाएगा । मेरी नजर लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की ओर गई लेकिन काजल की कोठरी में यहाँ भी सब नहीं तो अधिकांश कालिख से पुते हुए दिखे । अब तो हद ही हो गई सब मिल कर अपनी लूट को सही ठहराने और प्रचारित करने में जुटे है । मैंने सोचा कि शायद वे मेरे आवेदन-निवदेन से समझ जाए , फिर मैं धरने प्रदर्शन और आंदोलन के जरिए अपनी बात समझाने का प्रयास करता रहा । वे मुझे कहते है कि तुम्हारे लिए न्यायालय का रास्ता खुला है । मैं तो न्यायालय में अनेकों वर्षों से चक्कर लगा रहा हुँ । यहॉ भी समय और पैसे के खेल में न्याय कब अन्याय हो जाता है यह बात आज हर कोई जानता है । इसकी आड़ में भी लुटेरे मलाई ही काट रहे है । हो सकता है मुझे न्याय मृत्यु के बाद ही प्राप्त हो ।
आप यह मत सोचना कि मैं मर जाऊँगा , मैं तो आम आदमी हुँ किसी न किसी नाम से जीवित अवश्य रहॅुंगा और मुझे जीवित रखना इन लुटेरों की मजबूरी भी है क्योंकि इनकी रोजी रोटी भी तो मुझसे ही चलती है । मै लुटेरों को चेतावनी देना चाहता हुँ कि तुमने मेरे नाम पर तोपें ,जमीनें, खदानें, घर, स्टेडियम,सड़क और न जाने क्या-क्या लूटा है और लूटना चाहते है? तुम लुटेरों की टीमों ने मिल-जुल कर योजनाएँ बनाई और हमसे सब लूट लिया लेकिन सावधान मेरी रोटी की ओर यदि तुमने नजर भी की तो फिर मैं तुम्हारे साम्राज्य की चिन्ता किए बिना उठ खड़ा होऊँगा। मुझे तुम्हारे पिज्जा ,बर्गर और मालपूए नहीं चाहिए । मुझे बस मेरी रोटी चाहिए।अब तुम सावधान रहना इस रोटी ने पहले भी अनेकों साम्राज्यों को ध्वस्त किया है । अब मेरे पास भी खोने के लिए कुछ नहीं बचा है .......बची है तो केवल रोटी.......। जिसके पास खोने को कुछ नहीं होता तो वो आक्रमक हो जाता है इसलिए रोटी खोकर मैं पागल कुत्ते की तरह तुम सब को नोच खाऊॅंगा । इसे कोरी धमकी मत समझना और सावधान रहना.....।।
आम आदमी
आलोक मिश्रा "मनमौजी"