अचानक ही ऐसा लगने लगा, अब कुछ होगा। पठानकोट हमले को अभी बहुत दिन नहीं बीते हैं। फोनों और मोबाइलों की घंटियाँ घनघनाने लगी। दिल्ली, मुम्बई और पुर्तगाल सहित अनेक देशों में बैठे लोगों की बात-चीत अचानक बढ़ गई। सोशल मीडिया चीख-चीखकर कहने लगा अब बहुत हुआ, अब पठानकोट पर हमला करने वालों को सबक सिखाना ही होगा। आम जनता को भी ऐसा ही लगने लगा। इस मौके पर ऐसा नहीं कि हमारे कुछ विशेष लोगों में देशभक्ति की भावना नहीं जागी। ऐसे ही कुछ विशेष लोगों को लगने लगा कि जनता सही है।। अब तो कुछ करना ही होगा। बस इन लोगों में आपस में देश-विदेश में चर्चा होने लगी। आपकों क्या लगता है पठानकोट के दोषियों को मोबाईल और नेट पर बातें और चैट करके सबक सिखाया जा सकता है। इसके लिए फोन पर ही मिलने का समय, दिन, स्थान निश्चित हो गया। किसी पांच सितारा होटल में सब विशेष लोग जनता कि निगाहों से दूर मिलने वाले थे।
अब देश में आप सब से छुप सकते हैं, मीडिया से छुपना कठिन ही नहीं नामुमकिन है। बस मीडिया के भाईयों को पता लग गया की कुछ राष्ट्रभक्त कुछ ऐसा करना चाहते हैं जिससे पठानकोट के गुनाहगारों को सजा दी जा सके। अचानक ही यह खबर कुछ चैनलों पर बे्रकिंग न्यूज बन गई। चैनलों के पास एक वाक्य से अधिक की कोई जानकारी तो थी नहीं लेकिन वो दिन भर चिल्ला रहे थे ‘‘अब बदला लेगा भारत’’, ‘‘तबाह होंगे दुश्मन’’ और ‘‘अब खैर नहीं दुश्मनों की’’ आदि-आदि। समाचारों मेें न कोई व्यक्ति सामने आकर इस खबर की पुष्टि कर रहा था और न हीं कोई खण्डन। यह समाचार फिर भी धमाकेदार था, बस इसीलिए चैनलों ने दो मिनट के समाचार के साथ दस मिनट विज्ञापन दिखाते हुए इस समाचार को विस्तार से विश्वस्त सूत्रों के हवाले से दिखाया। स्थान का सही पता नहीं होने के चलते सभी पांच सितारा होटलों के सामने पत्रकार कैमरों के साथ तैनात थे। जिसका कैमरा जहाँ था वो वहीं बैठक होने का दावा कर रहा था।
मिडिया की इस कोहराम के बीच वे विशेष लोग फोन और चैट के जरिए एक-दूसरे से सम्पर्क में थे। एक ने पूछा ‘‘क्या करें?’’ दूसरे ने कहा ‘‘करना क्या है, आज हमारा मिलना तय है।’’ पहला बोला ‘‘ लेकिन इतने कोहराम के बीच।’’ दूसरा बोला ‘‘हमें जो करना हम करेंगे, हल्ला मचाने वालों को मचाने दो।’’ पहला बोला ‘‘फिर भी डायरेक्टर साहब से तो पूछ लेते।’’ फिर वे सब कान्फ्रेंस में लग गये। कुछ सोचकर बैठक को न टालने का फैसला हुआ। यह निश्चय किया गया कि बैठक निश्चित स्थान और समय पर होगी। इन विशेष लोगों की लगन देखते ही बनती थी। इधर मिडिया इस समाचार के साथ जैसे चिपक सा गया था। सरकार भौच्चक थी कि हमने तो कुछ किया नहीं फिर भी ये क्या हो रहा है। सत्ता और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने लगे। सरकार कहने लगी ‘‘देखिये ये बहुत ही संवेदनशील विषय है इस पर अभी कुछ न बोला जाये तो उचित होगा।’’ विपक्ष आरोप लगाने लगा ‘‘सरकार तथ्यों को छुपा रही है और जनता को गुमराह कर रही है।’’ ऐसे ही एक वाद-विवाद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के दो धुरधंर एक-दूसरे जुबानी युद्ध में लगे थे और वाद-विवाद की संचालिका कैमरा बंद करके मेकअप में।
किसी वाद-विवाद के बीच खबर चलने लगी कि वे राष्ट्रभक्त बैठक के लिए पहुँचने लगे हैं। अब पांच सितारा होटलोें की ओर बढ़ते हर आम आदमी पर राष्ट्रभक्त होने का संदेह होने लगा क्योंकि कार में बैठे अभिजात्य वर्गीय व्यक्ति की राष्ट्रभक्त होने पर तो सामान्यतः संदेह रहता ही है। एक पत्रकार एक फटी धोती पहने बुजुर्ग में राष्ट्रभक्त ढूंढने का प्रयास करते हुए पूछता है ‘‘तो क्या आप इस होटल में होने वाली बैठक में जा रहे हैं ?’’ वो बोला ‘‘नहीं... हम सुलभ शौचालय जा रहे हैं।’’ इधर सब राष्ट्रभक्त खोजते रहे उधर उनकी अंदर बैठक प्रारंभ भी हो गई वे आपस में बहुत देर तक विचार-विमर्श करते रहे। कभी वे एक योजना पर सोचते तो कभी दूसरी पर। वे इस मिशन के लिए व्यक्तियों के चयन आदि पर भी विचार करने लगते।ं अंत में बात लागत पर आकर टिक गई। लागत के लिए भी व्यवस्थाओं हेतु व्यक्तियों को लगा दिया गया। वे अपने काम को चुपचाप अंजाम देना चाहते थे परन्तु मीडिया का कोई क्या करे।
अचानक बे्रकिंग न्युज बन गई ‘‘राष्ट्रभक्तों की बैठक प्रारंभ।’’ कुछ चैनल कुछ ही देर में राष्ट्रभक्तों के दर्शन करवाने का भी दावा करने लगे। अब पत्रकारों के सब्र का बांध टूटने लगा था। कुछ हेलिकाॅप्टर से होटल के हर कमरे में झांकने की कोशिश करने लगे। कुछ ने पता लगा लिया कि बैठक किस कमरे में है, वे उसी के सामने जा डटे। अंदर क्या हो रहा है ये किसी को पता न होने के कारण मनगढंत कहानियाँ समाचारों का रूप ले रही थी। बाहर एक और नया बवाल खड़ा हो गया था। कुछ लोगों ने समर्थन में तो कुछ ने विरोध में मोर्चा संभाल लिया था। वे नारेबाजी के साथ आपस में लड़ने मरने को उतारू थे।
आखिर उस कमरे का दरवाजा खुला, कुल जमा छः लोग थे। पत्रकारों ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी। उन छः में से एक बोला ‘‘आप लोग हाॅल में बैठिये, पत्रकार वार्ता में सब बताया जाएगा।’’ लीजिये साहब आप और हमतक तुरंत ही समाचार पहुँचने लगा ‘‘कैसे लेंगे दुश्मन से बदला थोड़ी देर में होगा खुलासा।’’ पत्रकार वार्ता के लिए सब तैयार थे माइक सही जगह पर, कैमरा सही जगह पर और पूछने वाला तैयार। एक ने बोलना शुरू किया ‘‘देखिये हमारा देश ऐसे हमलों से परेशान हो चुका है। अब और सहन नहीं होता। हमें अपने दुश्मन को ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए। जब कंधार में विमान अपहरण हुआ तो हम बहुत दिनों तक खामोश रहे। 26/11 में भी हमारी खामोशी देर से टूटी। हम पठानकोट के साथ ऐसा नहीं होने देंगे। हम सबने सोचा है कि हम दुश्मन से उस तरीके से बदला लेंगे जो हमें बहुत अच्छे से आता है। आप सब जानते ही हैं कि हमें दुनिया में बालीवुड के नाम से जाना जाता है। कंधार हमले के बाद हमने फिल्म ‘जमीन’ बनाकर दुश्मनों पर दागी थी। 26/11 का बदला ‘फैंटम’ और ‘बेबी’ फिल्मों में हमारे नायक उनके देश में घुसकर लेते हैं। अब हमने सोचा है कि हम पठानकोट का बदला फिल्म बनाकर लेंगे। इसमें हमारा नायक उनके सभी आतंकवादियों को उनके देश में घुस कर मारेगा। हमें अपने दुश्मन से बदला लेने का इससे अच्छा तरीका और कोई नहीं दिखता।.................................धन्यवाद।’’
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आलोक मिश्रा "मनमौजी"