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आस्तीन के सांप

जब कोई चाशनी युक्त मधुर वाणी एवं क्षद्म सभ्य व्यवहार के आवरण तले कुत्सित मनोभावों को धारण करने वाला हो वो भी निकट सम्बंधी के रूप में, तो सहज उसके घृणित क्रिया कलापों पर विश्वास करना भी दुरूह हो जाता है लेकिन यदि पीड़िता भी अत्यंत निकटवर्ती हो तो मन की उद्विग्नता चरम पर होती है।ये कथित निकटवर्ती ऐसे आस्तीन के सांप होते हैं जिन्हें पहचानना सरल नहीं होता।
धरा काम निबटाकर दोपहर को थोड़ी देर आराम करने के उद्देश्य से अभी बिस्तर पर लेटी ही थी कि कोई जोर -जोर से दरवाजा खटखटाने लगा।दरवाजे पर पड़ने वाले तीव्र थापों की आवाज आगन्तुक के उतावलेपन को दर्शा रही थी।दरवाजा खोलने से पहले ही रूही की तीव्र आवाज कानों में पड़ी,"दीदी दरवाजा खोलो जल्दी से।"
धरा ने प्रसन्न होते हुए पट खोले,लेकिन रूही का तमतमाया चेहरा एवं आंसू भरी आंखों को देखकर सशंकित हो गई।रूही को सोफे पर बिठाकर पानी लाकर पिलाया।जब वह थोड़ी शांत हुई तो पूछा कि क्या हुआ?तुम बेहद परेशान हो।रूही ने कहा,"दीदी पहले चाय पिलाओ,फिर बताती हूं।"
धरा चाय बनाते हुए अपनी सखी लतिका को याद करने लगी,दोनों बचपन की सखियां थीं, रूही उससे 12 वर्ष छोटी थी, जब रूही का उसके शहर के इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन हुआ तो लतिका यह सोचकर निश्चिंत हो गई कि इस शहर में दो लोगों के परिचित होने से रूही को कोई समस्या आने पर कोई न कोई सहायता हेतु उपलब्ध रहेगा।हालांकि बच्चे घर से बाहर निकलने पर शीघ्र ही स्वावलंबी हो जाते हैं।दूसरा परिवार लतिका की बड़ी नन्द का था,वे उसके पति से लगभग 10 वर्ष बड़ी थीं।नन्द लगभग उन्नीस वर्ष बाद IVF पद्धति द्वारा मातृत्व प्राप्त कर सकीं थीं।इत्तेफाक से धरा भी वहीं 10 मिनट की दूरी पर अपने परिवार के साथ रहती थी, उसका इकलौता बेटा दूसरी क्लास में पढ़ता था।हॉस्टल से रूही महीने दो महीने में दोनों जगह चक्कर लगा जाती थी, दोनों जगह छोटे बच्चे थे,जो उउससे खूब हिल-मिल गए थे।
नन्दोई रूही से उम्र में लगभग पच्चीस साल बड़े थे, वह कहती भले जीजाजी थी,लेकिन थी तो बेटी की उम्र की।यदि समय से उनके संतान होती तो रूही के बराबर की ही होती।नन्दोई काफी मजाकिया व्यक्तित्व के थे,उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी थे लेकिन उम्र की गम्भीरता नहीं थी।यह सब लतिका ने ही बताया था।इस वर्ष रूही का तीसरा साल था।
चाय पीने के बाद रूही थोड़ी प्रकृतस्थ हुई।धरा के प्रश्न का जबाब देते हुए उसने सारी घटना का वर्णन किया, जो रिश्तों की मर्यादा को शर्मसार करने वाला था।लतिका की नन्द किचन में चाय बना रही थीं, रूही ड्राइंग रूम में उनके दो साल के बेटे के साथ खेल रही थी, नन्दोई वहीं सोफे पर बैठे हुए थे कि अचानक उनके अंदर का जानवर उनके विवेक पर प्रभावी हो गया और वे रूही के निकट आकर उसको बाहों के घेरे में लेने का प्रयास करने लगे, रूही कोई कमजोर सी नवयौवना नहीं थी,अपितु एक साहसी एवं आत्मविश्वासी युवती थी,उसने धक्का देकर उन्हें दूर करते हुए कहा कि यह क्या बदतमीजी है।उन्होंने बेशर्मी से कहा कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, तुम स्वच्छंद हो,तुम हां कहो तो पत्नी को तलाक देकर तुमसे विवाह कर लूंगा।
रूही ने दांत पीसते हुए कहा कि आपको तनिक भी शर्म नहीं आई,मैं आपकी बेटी के समान हूँ।आप मेरी बहन के रिश्तेदार हैं, उनकी नन्द का ध्यान रखते हुए मैं फिलहाल चुपचाप जा रही हूं, वरना आपकी इस घृणित हरकत के लिए आपको मैं अपने भाई से कहकर सजा दिलवाती।यह समझने की भूल मत कीजिएगा कि मैं डर रही हूं।इतना कहकर रूही धरा के घर आ गई।कुछ देर रुककर रूही हॉस्टल वापस लौट गई।ऐसी शर्मनाक घटनाएं अक्सर हमें अपने आसपास देखने-सुनने को मिल जाती हैं।
बेशर्मी की हद देखिए कि कुछ दिनों पश्चात ही नन्दोई हॉस्टल पहुंच गए।सूचना मिलने पर रूही को गेस्ट रूम में आना पड़ा क्योंकि वह वहां कोई तमाशा नहीं चाहती थी।आने पर नन्दोई ने पुनः अपना निवेदन दुहराया।रूही ने कठोरता से कहा कि अब आइंदा इधर का रुख मत कीजिएगा।अगली बार मैं जुबान से बात नहीं करूंगी।साथ ही आपकी सारी करतूत दीदी-जीजाजी से बताऊंगी।मामला बिगड़ते देख महोदय गिड़गिड़ाने लगे कि मेरी पत्नी एवं अपनी बहन को मत बताना।
रूही ने सारा वाकया अपनी मां,बहन एवं भाई को बताया।बहन को बेहद अफसोस था कि उसने अपनी बहन को क्यों भेजा किसी रिश्तेदार के घर।खैर, यह बहुत बड़ा सबक था कि आज के युग में कब कौन विश्वासघात पर उतर जाय, कोई ठिकाना नहीं।अतः, हर कदम पर चौकन्ना रहने की आवश्यकता है।लतिका के पति ने लतिका को शांत रहने को कहा, क्योंकि उनकी बहन की जिंदगी का सवाल था लेकिन सम्बंध तो समाप्त कर ही लिया।हालांकि सास ने वस्तुस्थिति न जानने के कारण बहू पर ही आरोप लगाया कि बहू ने बेटे का रिश्ता बहन से तुड़वा दिया।कई वर्षों बाद जब उन्हें ज्ञात हुआ तब भी गलतफहमी होने की बात करती रहीं।यहाँ तक कह दिया कि तुम्हारी बहन झूठ बोल रही है।अब लतिका ने भी दृढ़ता से जबाब दिया कि हमें झूठ बोलने की आदत नहीं है।आप सबको जो सोचना है सोचिए, ये हमारी शराफ़त थी कि हम बर्दाश्त कर गए।आपकी बेटी के साथ होता तब शायद यकीन होता।कितना दोहरा व्यवहार है समाज का।दूसरों की तकलीफ, समस्या झूठ प्रतीत होती है।
बेटियों को समाज के भेड़ियों को पहचानने एवं उनसे बचाव के तरीकों की पूर्ण जानकारी देनी चाहिए।
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