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प्रेमपत्र

आज तो स्मार्ट फोन का जमाना है।प्रेम हो ,नाराजगी हो,कुशल क्षेम पूछनी हो,आने जाने की सूचना देनी हो या समय बिताने के लिए गॉसिप करना हो,फोन मिलाया हो गई बात, बहुत हुआ तो वीडियो कॉलिंग कर ली, नहीं तो मैसेज भेज कर इतिश्री हो गई औपचारिकता की।अब तो शादी एवं गमी के कार्ड भी वॉट्सप पर भेज दिए जाते हैं।
आज से चालीस वर्ष पुरानी कहानी है।उस जमाने में गांव हो या शहर, हर जगह पोस्टमैन का हर किसी को बेसब्री से इंतजार रहता था।उनकी इज्जत भी खूब होती थी।कुशल पत्रों के साथ साथ प्रेम पत्रों का भी आदान प्रदान वे ही करते थे।शुभ समाचारों के आने पर डाकिए को अच्छी खासी बख्शीश भी मिलती थी।
उस समय उमा जी 26 वर्षीय युवती थीं।मात्र 17 वर्ष की उम्र में विवाह हो जाने के कारण इस समय वे दो बेटी एवं एक बेटे की मां बन चुकी थीं।थीं वे बेहद खूबसूरत।गुलाबी रंगत लिए गोरा रंग,काले लम्बे बाल, मध्यम किन्तु आकर्षक नेत्र,इकहरा शरीर उसपर होंठो पर सदाबहार मुस्कुराहट।कुल मिलाकर अत्यंत आकर्षक व्यक्तित्व था उनका।कमी थी तो शिक्षा की।उस समय 8-10 क्लास तक पढ़ने को मिल जाय तो बड़ी बात थी।परंतु खासियत तो यह थी कि उनकी बोल चाल से उनकी अल्प शिक्षा का पता नहीं चल पाता था।सिलाई-बुनाई से लेकर खाना बनाने में कुशल।
उमा जी के पति भूपेश जी बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे।सामान्य कद-काठी के सांवले रंग के व्यक्ति, हालांकि नाक-नक्श ठीक थे।परंतु रूपवती पत्नी के प्रति काफी पजेसिव थे।विवाह के 2-3 वर्षों तक तो उमा जी को इतने पर्दे में रखते थे कि दरवाजे से बाहर झाँकने की भी इजाजत नहीं थी।
विवाह के तुरंत बाद उमा जी को पति के साथ नोकरी पर साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हो जाने के कारण वे उसी में अत्यधिक प्रसन्न थीं।उमा जी के पति सख्त एवं क्रोधी स्वभाव के व्यक्ति थे।उस पर पुरूष प्रकृति स्वयं को सर्वेसर्वा समझने की ही थी।पत्नी का कार्य घर सम्भलना मात्र था।पति के किसी भी कार्य या निर्णय पर आपत्ति करने या सलाह देने का किंचित भी अधिकार नहीं था।
खैर, बच्चे होने के बाद उमा जी को बरामदे या छत पर जाकर पड़ोसियों से वार्तालाप कर पाने की स्वतंत्रता प्राप्त हो गई थी।शाम को छत पर बच्चे खेलते थे,और वे कभी सड़क पर लोगों का आना-जाना देखतीं,या कभी किसी पड़ोसन से थोड़ी बातचीत कर लेतीं।पति सुबह 9 बजे ऑफिस जाते एवं शाम 6 बजे के बाद सब्जी वगैरह लेते हुए घर आते थे।घर में रहने के कारण पत्र हमेशा उनके ही हाथों में डाकिया देकर जाता।यदा कदा ही बस मायके का पत्र उनके नाम आता था,अन्यथा ज्यादातर तो पति के नाम ही आते।
एक दिन एक श्वेत लिफाफा उनके नाम से आया,नाम भी नहीं, मात्र श्रीमती सिन्हा लिखा हुआ था।आश्चर्यचकित हो कर पत्र तुरंत खोलकर पढ़ने लगीं।सम्बोधन आदरणीया, प्रेषक आपका साधक।यह एक प्रेम पत्र था किसी अजनबी का उनके लिए।पत्र में उनकी दिनचर्या, उनके छत पर जाने से लेकर, कपड़े फैलाना, पड़ोसियों से बातें करना, पति का ऑफिस जाना, उनके आने पर सब्जी का थैला लेना इत्यादि बातों का विस्तार से जिक्र था।पत्र में अभद्र कुछ भी नहीं लिखा था, परन्तु घबराहट में पसीने से लथपथ हो गईं।,तुरंत पत्र के टुकड़े कर आग के हवाले कर दिया।
15-20 दिन शान्ति से बीते थे कि पुनः एक पत्र औऱ आ गया, पूरे तीन पेज का पत्र।इस बार लिखा था कि मैं जानता हूं कि आप गंगा की तरह पवित्र हैं, अपने पति एवं परिवार के प्रति पूर्ण समर्पित हैं।मेरा आपके प्रति अनुराग सामाजिक दृष्टि से सर्वथा अनुचित है, परन्तु आपकी मूर्ति मेरे मन मन्दिर में विराजमान है।मेरा प्रेम उस साधक की भांति है जो अपने आराध्य की उपासना बिना किसी भौतिक अपेक्षा के करता है।और इसी तरह की तमाम बातें।
जब उमा जी ने इस कथा को सुनाया था तो उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी।वे कह रही थीं कि सच कहूं तो उस पत्र को पढ़कर एक सुखद अहसास सा हुआ था कि कोई मुझसे भी प्रभावित हो सकता है।नरेश जी उनसे लगभग दस साल बड़े थे।उस जमाने में उम्र का यह अन्तराल अत्यंत सामान्य था।फिर पति से मैत्री भाव की अपेक्षा तो कल्पना से परे थी।
इस बार का पत्र न जाने क्या सोचकर सम्भालकर बक्से में सबसे नीचे छिपाकर रख लिया।
मन ने कुछ डरते, कुछ कुतुहल के साथ अगले पत्र की प्रतीक्षा प्रारंभ कर दिया।इस बार लगभग एक माह पश्चात पत्र आया।यह तो तय था कि वह अजनबी कहीं आसपास का ही था।आसपास के लोगों में उसे पहचानने का अत्यंत प्रयास किया,परन्तु न ढूंढ़ सकी, क्योंकि एक तो मेरा परिचय क्षेत्र अत्यंत सीमित था, फिर कोई भी ऐसा दिखाई नहीं देता था जो मुझे निहारता प्रतीत हो।यह तो समझ आता था कि है कोई विद्यार्थी युवक।खैर, जो भी हो, उसकी साहित्यिक भाषा एवं सुंदर लिखावट अत्यंत प्रभावी थी,मन में गहरे उतर जाने वाली।
अगले सात-आठ माह में उसके छः पत्र और आए।नवां पत्र आखिरी था।आखिरी पत्र में उसने लिखा था कि मेरी शिक्षा समाप्त हो गई है एवं मेरी नोकरी दूसरे शहर में लग गई है, अतः मेरी प्रेम यात्रा यहीं समाप्त हो रही है।आप की छवि ताउम्र मेरे हृदय में विराजमान रहेगी।मेरे कारण आपको यदि कोई परेशानी हुई हो या आप मेरे पत्रों से किसी भांति आहत हुई हों तो मुझे एक नादान युवक समझ कर क्षमा कर दीजिएगा।मेरा इरादा आपको चिंतित या दिग्भ्रमित करने का कदापि भी नहीं था।मैं बस अपनी भावनाओं को आपतक पहुंचाना चाहता था।मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि आप अपने परिवार के साथ सदैव सुखी एवं प्रसन्न रहें।
सच है कि पवित्र प्रेम हृदय के सीप में मोती के समान होता है।आजकल जरा सा आकर्षित होते ही I LOVE YOU कह देते हैं एवं जरा सा मनमुटाव होते ही ब्रेकअप हो जाता है।
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