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अनिल करमेले (कविता संग्रह) ईश्वर के नाम पर

अनिल करमेले (कविता संग्रह) ईश्वर के नाम पर

पुस्तक समीक्षा-

ईश्वर के नाम पर: द्वंद्व की कवितायें

राजनारायण बोहरे

पुस्तक-ईश्वर के नाम पर (कविता संग्रह)

कवि-अनिल करमेले

प्रकाशक-पुस्तक सदन दिल्ली

ईश्वर के नाम पर कविता संग्रह का चयन एवं प्रकाशन मायाराम सुरजन फाउण्डेसन‘ की प्रकाशन योजना के तहत पुस्तक सदन दिल्ली ने किया है। कई मानकों और कसौटियों पर कसी गयी यह किताब और उसकी सामग्री अच्छी होगी, यी सहज कल्पना की जा ाकती है। पर इस योजना में शामिल संग्रहों के बीच ही तो प्रतियोगिता होनी थी, इस कारण यी सर्वश्रेष्ठ होगी। यह आशा करना ‘धूल में लठ्ठ मारना‘ ही कहा जा सकता हैं‘ जब तक कि इसका सूक्ष्म विश्लेषण और समीक्षा न कर ली जावे।

अनिल करमेले सन् साठ के बाद पैदा हुई उस पीढ़ी के कवि है जो धले ही काव्यशास्त्र की पारगंत विद्वान न हों, पर जिनमें कविता की समझ खासी मात्रा में है। जिन की कवितायें अलग-अलग कालखण्ड से छपती हैं, इसलिये उनका नाम पाठकों में खूब जाना पहचाना है। प्रस्तुत संग्रह में अनिल की 35 कवितायें शामिल है।

इस संग्रह की कवितायें द्वंद्व की कवितायें हैं- भूतकाल से वर्तमान का द्वंद्व प्राचीन से अर्वाचीन का द्वंद्व, सद् से असद् का द्वंद्व प्रेम से नफरत का द्वंद्व और आशा से निराशा का द्वंद्व इन कविताओं में स्पष्ट झलकता है। यद्यपि ये कवितायें अलग-अलग कालखण्ड की कवितायें हैं, फिर भी किसी रचना में कवि वर्तमान से पूर्णतः निराश दिखाई देता हैं तों पश्चावर्ती कविता में वह आश्वस्त भी परिलक्षित होता है।

इन दिनों हिन्दी कविता में कुछ्र्र्र्र्र्र शीर्षक बेहद प्रचलित हैं, जैसे-पिता मां, नदी, होती लड़की बच्चे आदि। हर कवि के पास इन शीषकों की कवितायें मौजूद है। फैसन के लिए इसी कवितायें लिखी जा रही हैं, या इस भीषण समय में संवेदनशील कवि मन अपने जनक-जननी के भाव विगलित होकर ऐसी भीषण लिख रहें हैं अथवा इस खतनराक समय में नदी, बच्चे, पेड़, पक्षी आदि के प्रति हर संवेदनशील मन की दिलचस्पी बढ़ना एक अवश्यभावी परिणित है, इस मुद्दे पर खासी बहस की जा सकती है। हालांकि वरिष्ठ आलोचक डा. कृष्ण बिहारी लाल पाण्डे़य का मानना है। कि आज हमारी कविता फिर से एक विशिष्ट छंद में लिखी जाने लगी हैं और कुछ विशिष्ट-से विषयों पर हर कवि लिख रहा है। पर अनिल करमेले इन शीर्षकों से शायद जानबूझ कर बच निकलें है। यद्यपि उनकी कविताओं में पिता भी हैं और मां भी बच्चे भी हैं, और पत्नि भी। लेकिन ‘सुष्मिता सेन‘ पर कविता लिखकर अनिल ने यह जता दिया है कि वे पेचीदगी भरे वर्तमान से भी भिढल बरने तैयार है।

अनिल करमेले को अपने परिवेश से बेहद प्यार है और वे अनायास उसे अपनी कविताओं में ले आतें हैं। हमारे यहां दुःख ‘इस बार पिता‘, ‘छोड़ा हुआ शहर‘ धट्टी एवं इस तरह जीवन आदि कविताओं में कवि का परिवेश टनटनाता हुआ दिखता है।

देश के छोटे और महत्वपूर्ण पेशों पर तथा आम आदमी पर अपनी चोट पहुंचाता अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता बाद की सफल पहचान देखिये-

बुजुर्गोु ने कहा/हमारे जूते

चाहे सोने के ही

उनकी जगह पैरों में हैं

सचिन तंेदुलकर के कांधे पर

टंगा हैं, एक्शन का जूता

। जूते पृ.13।

इसी तरह सुष्मिता सेन पर लिखी पाांच कविताओं के बीच अनिल, देश की अर्थ व्यवस्था तथा नयी नीतियों पर एक कटाक्ष कर देते है-

दाढ़ीदार वित्तमंत्री को

उसने दिया तमगा

कि रही कोशिश कामयाब

और खनखना गया

ड़ालरों के बीच रूपया

। सुष्मिता सेन पृ.19।

आम आदमी को प्रायः अपनी-सी लगने वाली कई अनुभूतियों को अनिल ने बड़ी कारीगरी से शब्द दिये हैं जैसे- छोड़ा शहर और पूरा घर बेरे के पीछे, दोस्त, साथी आदि कवितायें। कवि के भीतरी संसार की आशा और आश्वस्ति भी कई कविताओं में आई है-

यह ऐसा समय नहीं

कि आप घर से बाहर जायें

और एकदम निश्चित हो जायें

0000000

आप सोचेंगे............. ओह।

बेकार में डर गये

0000000

यह ऐसा भी समय नहीं

कि सबकुछ अघट ही घटने लगे

।। यह ऐसा भी समय नहीं पृ।।

इस संग्रह की तमाम कवितायें यह साफ-साफ दर्शाती हैं, कि अनिल अभी नये कवि है। कई जगह उनके बिम्ब नहीं बन पाते तो कई जगह उनकी बात पूरी तौर पर संप्रेषणीय नहीं हो पाती और कविता कुछ अधूरी सी लगती है। भले आदमी, ‘नारी‘ पृथ्वी के लिए ‘कैलेण्ड़र‘ आदि ऐसी ही कवितायें है।

कई कविताओं में वे बेहद सधे हुये नजर आतें हैं। पर सूबाबा, शिनाख्त, कुछ बेहतर के लिए तत्पर हैं, मॉ-पिता आदि ऐसी ही कवितायें है। एक उम्दा कविता देखिये-

हमारे यहॉ दुःख

नहीं आता चुपचाप

दहाड़ें मारता हुआ

बजता हैं गांव के हर घर-आंगन में

0000000

मगर नहीं रह पाता ज्यादा दिन

पेट में उठती हैं, भंड़ाग

और काट देता हैं हंसिया दुःख को

एक ही बार में

।।हमारे यहॉ दृःख पृष्ठ 55।।

यद्यपि अनिल करमेले तमाम अच्छी कविताओं के अंत में कोई ऐसा नुक्ता छोड़ देते है कि सब कुछ अजीब सा लग उठता है-जैसे ‘परसू बाबा‘ कविता की अंतिम हो पंक्तियॉ, घट्टी कविता की अंतिम सात पंक्तियॉ दोस्त की अंतिम पंक्ति आदि।

शीर्षक कविता ‘ईश्वर के नाम पर‘ एक कम सशक्त कविता है। तटस्थ दृष्टि से देखें तो इस संग्रह की कविताओं से गुजरने के बाद यही कहा जा सकता हैं, कि तमाम कच्चेपन और कतिपय कमजोरियों के बाद भी अनिल करमेले की काव्य दृष्टि इस संग्रह में अलग-अलग तरह के फूलों को लेकर तैयार गुलदस्ते-सी मौजूद हैं, और उनसे आगे उम्दा कविताओं की आशा की जा सकती है।

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