नीलम कुलश्रेष्ठ
वो एक सरकारी सुहावनी कॉलोनी है --------एक कतार में बने बंगले, जिनके अहातो में पेड़ पौधे, बीच के रास्ते पर गमलों की लम्बी कतारें हैं. किसी किसी द्वार पर बैठा वर्दी वाला वाच मैं न है. दूर तक जाती दोनों ओर पेड़ों से घिरी सड़क पर आगे बहुमंजली इमारते हैं. सुबह ऑफ़िस को जाते, शाम को ऑफ़िस से लौटते रास्ते पर जाते एक दूसरे को कुछ कुछ पह्चानते, एक दूसरे को स्माइल पास करते लोग होते हैं. ऎसे ही पढ़ने जाने वाले सायकल या दुपहियो पर हर उम्र के बच्चे, युवा होते हैं. दोपहर को गृहणियाँ घर का काम खत्म करके आजू बाज़ू के मकानों में गप्पे मारने निकलती हैं या शॉपिंग करने. सब कुछ बहुत सौंदर्यपगा सुरमय वातावरण लगता है-----कहना चाहिये एक आदर्श वातावरण लेकिन `आदर्श `शब्द एक डिक्शनरी का शब्द भर है. कोई स्थान हो या व्यक्ति हो या संस्थान हो उसकी असलियत या कमजोरियां कुछ होती ही हैं, उनका हाथी के दाँतों से रिश्ता होता ही है.
इस कॉलोनी की ख़ूबसूरत छवि को पहला झटका जब लगा जब उसके सामने वाले फ़्लैट की पड़ौसिन दक्षा बेन ने उसके घर की कॉल बैल बजाईं व जब तक बजाती रही जब तक उसने दरवाज़ा खोल नहीं दिया.
वह् घबराये लाल पड़े चेहरे से उससे बोली, "इनके बॉस वर्मा जी की वाइफ़ वृंदा उन्हें पीट रही है, चलिए आपको दिखाऊँ. "
वह चौंककर बोली, "वाइफ़ पीट रही है या उनके हज़बैंड उन्हें पीट रहे हैं ?"
"नहीं वाइफ़ पीट रही है. "
वे उसका हाथ पकड़कर खींचती हुई सी अपने घर में ले गई, वह समझ नहीं पा रही थी क्यों कोई दक्षा बेन के घर आकर अपने पति को पीटेगी ? वे उसे अपने बैडरूम में ले गई व खिड़की के पास ले जाकर बोली, "वो -----देखिये. "
सच ही श्रीमती वर्मा अपनी गुजली हुई धोती व एचक बेंचक बनी, लाल फीते से बंधी चोटी व पूरी माँग से भरे सिंदूर से, आँखों में चौड़ा काजल लगाए वर्मा जी को पेड़ की डंडी से सामने वाले बंगले के कम्पाउण्ड में पीट रही थी. उनके पड़ौसी श्री व श्रीमती मीणा उनके आजू बाज़ू घबराये से घूमते हुए कह रहे थे, `क्या कर रही हैं ? ---क्या कर रही हैं ? "
आश्चर्य ये था कि अकाउंट विभाग के सीनिअर अफ़सर वर्मा भी मेमने की तरह पिट रहे थे., बस हाथ उठाये अपना बचाव कर रहे थे. साक्षात बनी चंडी अपनी पत्नी से वह डंडी छीनने की कोशिश भी नहीं कर पा रहे थे. वृंदा उन्हें पीटते हुए हाँफती, क्या कह रही थी इतनी दूर से सुनाई क्या देता. जब वह थक गई तो उसने ख़ुद ही डंडी फेंक दी व वर्मा जी के सामने ज़मीन पर थूका और गुस्से में अपने बंगले की तरफ चल दी. वर्मा जी भी मीणा दंपति से बिना आँखें मिलाये डगमगाते कदमों से वहाँ से चल दिए. उधर दक्षा बेन ने अपने बैड पर बैठकर सिसकना शुरू कर दिया. वह असमंजस में पड़ गई`,"बेन ! वर्मा की बीवी उसे पीट रही है तो आप क्यों रो रही है ?"
"मेरे भाग्य में तो रोना ही लिखा है. इस शहर में हमारा ख़ुद का मकान है लेकिन मेरी सास उस घर में चैन से जीने नहीं दे रही थी. हर दिन खिट खिट करती रह्ती थी, झगड़ा करती. उनसे हम घबरा कर कॉलोनी में रहने आए कि बच्चों की पड़ाई ठीक से हो और ये वर्मा ----."उनकी ज़ोर से हिचकी निकली और वह
फूट फूट कर रोने लगी.
" वर्मा के लिए आप क्यों रो रही हैं ?"कहते हुए वह् उनकी रसोई से पानी ले आयी.
गिलास का पानी ख़त्म करके, उन्होंने अपने रोने पर काबू पाया, " मैं आपको क्या बताऊँ हम दोनों इनके झगड़े के बीच में कब से पिस रहे हैं. इन दोनों में कब से झगड़ा चल रहा है. जब वर्मा उन्हें पीटता था तो वृंदा बेन मेरे मिस्टर मूल जी भाई को फ़ोन करती कि मेरा मिस्टर मुझे पीट रहा है बचाओ तो भाई दौड़े दौड़े जाते,उन्हें पिटने से बचाते हैं तो वर्मा ऑफ़िस में भाई को डाँटता है कि मेरी बीवी के कहने पर मेरे घर क्यों दौड़े चले आते हो ? अब वह बॉस की वाइफ़ है, अगर वो फ़ोन करे तो इनको तो जाना पड़े, ये जायेंगे ही. "
"ओ माई गॉड --वर्मा इतना राक्षस आदमी है ?लगते तो बहुत सीधे है. "
"वृंदा ने बताया था घर चलाने के लिये बहुत कम पैसे देता है. उसे कई दिन तक भूखा ही सोना पड़़ता था. ख़ुद कहीं बाहर खा पीकर ऐश करके आ जाता था. जब उसका मन आए पीटता रहता है. "
" उफ़ ! बिचारी वृंदा ---उसकी तो वर्मा जी से उम्र भी कितनी कम होगी. वर्मा साहब अपनी पत्नी को पीटने की क्या वजह बताते है ? "
" वे इनसे कहते है वृंदा बिलकुल गांव की देहातन है, यहाँ के बंगले के थाट बाट देखकर सायकिक हो रही है इसलिए पीटना पड़़ता है. "
"वृंदा के पिता ने इतनी बड़ी उम्र के आदमी के साथ क्यों शादी कर दी ? जब ये देहातन थी तो एक अफ़सर ने इससे क्यों शादी की ?
"इनक़ी पहली बीवी तो जलकर मर गई थी. "
"सही है कौन ऎसे जंगली आदमी के साथ रहेगी ?लेकिन वह जल कर मर गई या जला -----."उसने जानबूझकर बात अधूरी छोड़ दी.
"वही पुराना बहाना था स्टोव पर खाना बना रही थी स्टोव का केरोसिन लीक कर गया और आग लग गई. अब बताइये मामूली से लोग भी आज दो दो गैस सिलिंडर रखते हैं तो एक अफ़सर के घर दो नहीं होंगे ?"
उसने एक बार सर्वे करते समय बर्न वॉर्ड देखा था ----एक कतार में सफ़ेद पट्टियों से बन्धे काले जले स्त्री बदन जिनके खुले अंगों पर काली पपड़ी जमी हुई थी, जैसे कोयले की पर्ते.उन काले चेहरों से झाकती आँखें बहुत डरावनी लग रही थी. हालाँकि, उनसे लाचार आँखें दुनिया में कोई नहीं होंगी क्योंकि किसी जज के सामने डाइंग डिक्लरेशन देते समय वे अपने बच्चों की खातिर उनको बचाने के लिये मजबूर होती है जिन्होंने केरोसिन छिड़क कर उन्हें जलाया होता है. दुनियाँ में इतनी स्त्रियां कचरे की तरह उपलब्ध हैं जिन्हें असानी से जलाया जाता है ? वर्माँ की पहली पत्नी क्या कोई बयान देने से पहले ही सिधार गई होगी ?
"अपनी कॉलोनी में इनकी जाति वाले भी तो है, उनसे वृंदा क्यों नहीं सहायता मांगती ?"
"मेरे मिस्टर ने तो एक दो इनकी जाति वाली फ़ेमिली से बात की थी. वे तो अकड़कर बोले कि ये पिटाई तो कुछ भी नहीं है, हमारे राजस्थान के गाँव में तो औरतों को पेड़ से बाँधकर पीटा जाता है. "
"वाह रे मर्दानगी !"
"वृंदा ने अपने घरवालों से कोई शिकायत नहीं की ?"
"उसके बुलाने पर गांव से उसका पिता आया था. वर्मा जी ने हम दोनों को और कुछ अपनी जात वाले परिवारों को बुलाया था.. अब इनके बॉस के सामने हम क्या मुँह खोलते ?बस वृंदा ही रो रोकर वर्माजी के अत्याचार बताती रही व हाथ जोड़कर बापू से कहती रही कि उसे इसके साथ नहीं रहना उसे गांव ले चले. वह आगे पढ़ना चाहती है. वह भी मूँछों पर ताव देता कहता गया कि ये लड़की तो पिटने लायक ही है. ये तो शादी के लिए भी तैयार नहीं हो रही थी. कह रही थी कि मैं और पढूंगी. साली को दसवीं पास करवा दिया और क्या कलक्टर बनना है ?"
"ऐसी बात कहने वाला पिता क्या पिता कहलाने लायक है ?लेकिन अब ये तो अपने पति को पीट रही है ?"
"मेरे पति ही बता रही थे कि ये वर्मा साहब की शिकायत लेकर नए एम डी साहब के पास गई थी उन्होंने ही इसे जोश दिला दिया कि आप इतने दिनों से पिट रही हैं, पुलिस के पास जाना नहीं चाहती तो इनकी अक्ल ठीक करने के लिये इन्हें आप ख़ुद पीटना शुरू कर दीजिये।. बस तब से ही जहां मौका मिलता है वर्मा जी को पीटने लगती है. "
"और ये अपने घर का तमाशा बना रही है ?"
"एक सतायी हुई स्त्री के घर की क्या इज़्ज़त ?"
" दक्षा बेन ! आप सही कह रही है, औरत बाहर कोई बात तभी आने देती है जब पानी सिर से ऊपर हो जाता है. ऎसे बर्बर मर्दो ने ही तो समाज में ये परिभाषा गढ़ी है कि` घर के बात घर में ही रहनी चाहिये `,बाहर नहीं आनी चाहिये `.बाहर बात आयेगी तो उनकी घिनौनी करतूतों का पता लगेगा. औरतें ऐसी परिभाषाओं में सदैव जकड़ी जाती रही हैं या कहना चाहिए इन्हें अपनी नियति मान लेतीं हैं। वैसे एम डी ने फिर तो ठीक किया. एक कम शिक्षित स्त्री कर ही क्या सकती है. "
"चलिए मैं मिसिज़ मीणा को फ़ोन करती हूँ ",कहकर दक्षा बेन उनका नंबर डायल करने लगी और औपचारिक बात के बाद पूछ ही लिया, "आज वृंदा बेन आपके यहाँ क्या तमाशा कर रही थी ?"
"बिचारी वो क्या तमाशा कर रही थी मिस्टर वर्मा और वह हमारे यहाँ आए थे. जब हम उन्हें बाहर छोड़ने निकले तो वर्मा जी कहने लगे कि ये देहातन है, मेरे लायक नहीं है ये सायकिक हो रही है, मुझे तंग करती है, खाना बनाकर नहीं देती.उनका इतना कहना था कि हमारे गार्डन के एक छोटे पेड़ की डाली तोड़कर वृंदा ने उन्हें मारना शुरू कर दिया कि मैं देहातन हूँ तो मेरे से क्यों शादी की ?. खाना तो मैं जब बनाऊँगी जब तू सामान लाने के लिए पैसे देगा. मुझे बदनाम करता फिरता है. "
"बाप रे !
"हां, वह् रोती जाती थी और कहती जा रही थी अपनी पहली औरत को जला दिया तो कोई जात में शादी के लिए लड़की नहीं देता था तो मुझे ले आया. "
"लेकिन इसके बाप ने ज़बरदस्ती इसकी शादी क्यों कर दी ?"
"क्या पता ----कौन जाने ?"
एक डेढ़ महीना ही शांति से निकला होगा कि दक्षा बेन ने फिर उसके घर की डोर बैल बजाईं. दरवाज़ा खोलते ही वह घबराई सी कहने लगी, "वर्मा साहब ने वृंदा मैडम को इतना मारा है कि उनके पैर का मांस फट गया है. वो दो तीन दिन से अस्पताल में एडमिट हैं. मुझे रोज़ फ़ोन करके वहाँ बुलाती है. कुछ उलटा सीधा ना हो जाये इसलिए प्लीज़ ! आप मेरे साथ चलिये. "
"अरे! फिर से वर्मा जी ने उन्हें मारना शुरू कर दिया. "
"ये दोनों का मारना पीटना बंद ही कब हुआ था ? मूल जी भाई को तो दोनों नहीं सोने देते कभी कोई फ़ोन करता है, कभी कोई."
दक्षा बेन को `ना `कहने का सवाल नहीं था. वे उसकी` गुड बुक `में थी जिसमे बहुत कम लोग आ पाते हैं, एकदम सहज पारदर्शी भोलापन लिए. गुजरात में दीवाली के अगले दिन को नया वर्ष मनाते हैं. उसी दिन यहाँ सब नए कपड़े पहनते है लेकिन दक्षा बेन उसकी भावनाओं की खातिर उसके परिवार के साथ दीपावली पर भी नए कपड़े पहनती हैं. दोनों परिवार साथ ही पटाखे चलाते हैं.
अस्पताल आते समय रास्ते में वह सोचती जा रही है कि वृंदा जब कॉलोनी में आई थी तब ग्रामीण परिवेश की भोली भाली प्यारी सी लड़की लगती थी. क्लब के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में सचिव ने शादी का लहँगा पहनाकर उसे अच्छी तरह तैयार कर दिया था. तब वृंदा कमर लचका कर नाची थी, "`अंजन की सीटी पर म्हारो दिल डोले ----."
लोकन्रत्य की केटेगरी में उसे प्रथम पुरस्कार मिला था लेकिन उसके बाद किसी ने क्लब में उसे नहीं देखा. वर्मा जी का सख्त ऑर्डर था कि वह लेडीज क्लब में नहीं जायेगी, शायद उन्हें डर हो कि वह घर की बात फैलाने ना लगे. कब सलीके से रहने वाली वह सीधी सादी लड़की अपने व्यक्तितव से लापरवाह हो गई, मैली कुचैली धोती, बिखरे हुए बालों में कहीं भी चल देती. उसकी फटी फटी आँखें पता नहीं क्या सोचती रहती. खाना ठीक से नहीं मिल रहा था इसलिए कुम्ह्लाती जा रहे थी.
वह जब एक बार कैम्पस के अस्पाताल में डॉ मीनाक्षी के पास अपनी दवाई लेने गई तो उनके पास बैठा एक अकाउंट का कर्मचारी उनसे कह रहा था, "डॉक्टर आप तो जानती हैं कि वर्मा जी व उनकी मैडम में झगड़ा चल रहा है तो आपने उनकी मैडम का उस रात क्यों इलाज किया ?"
"वॉट डु यु मीन ? एक औरत, वह भी एक अफ़सर की वाइफ़ मेरे पास घायल अवस्था में रात में बारह बजे के करीब घर से भागकर मैक्सी पहने ही मेरे घर रात में दौड़ती हुई चली आती है तो क्या मैं उसकी मलहम पट्टी नहीं करूंगी?"
"ऐसी औरत को बाहर निकाल देना चाहिये जो अपने पति को कहीं भी मारना शुरू कर देती है. "
" सही है, एक दिन दोनों मुझे कंसल्ट करने आए थे जैसे ही मेरे कमरे से बाहर निकले मैडम ने अपनी चप्पल उतारी और वर्मा को मारना शुरू कर दिया और लोगो ने उन्हें बचाया. वह पता नहीं रोते रोते क्या कहती जा रही थी. आपने कभी उस औरत से पूछा वो क्यों ऎसा करती है कि तालिबानों की तरह फरमान निकाल दिया कि मुझे उसकी सहायता नहीं करनी चाहिये. "
वह आदमी खिसियाया सा उठकर चला गया था. डॉ. मीनाक्षी उसकी तरफ़ मुखातिब हुई, "क्या आप वर्मा फ़ैमिली को जानती हैं ?"
"बस इतना ही जितना कोई कॉलॉनी में एक दूसरे को जानता है. मुझे तो इस कपल के झगड़े का अपनी नेबर से पता लगा. उनके हज़बैंड मूल जी भाई भी अकाउंट्स में हैं. "
`ओ ! मैं वृंदा की उम्र देखती हूँ व वर्मा को तो एक बात मेरे समझ में नहीं आती कि इसके पिता ने वर्मा से शादी क्यों कर दी ?"
"मुझे हैरानी तो इस बात की है कि वृंदा एक बहुत अमीर किसान परिवार की बेटी है,दक्षा बेन बता रहीं थी.. "
"क्लब की सेक्रेटरी बता रही थी कि वृंदा अक्ल की बहुत तेज़ हैं, उसने उनकी सलाह पर क्लब में हाउस वाइफ़ के लिए चलाया जाने वाला कंप्यूटर कोर्स ज्वॉइन का लिया है. वो बता रही थी कि जैसे ही वर्मा को पता लगा तो उसने उस दिन उसे बहुत पीटा, उसी दिन वह मेरे पास भागकर आई थी व रोते हुए कह रही थी कि वह ये कोर्स करके ही रहेगी, चाहे जो भी हो जाए. "
दक्षा बेन व उसने अस्पताल पहुंचकर स्पेशल वॉर्ड में देखा पलंग पर वृंदा लेटी हुई थी. वह उन दोनों को देखकर उठ गई और हिस्टीरिया के मरीज की तरह चीखने लगी, "दक्षा बेन !आपसे ये उम्मीद नहीं थी. तीन दिन से फ़ोन कर रहीं हूँ और आप अब आई हैं ?"
"क्या करू मैडम !बच्चों के टेस्ट थे. "
"मैंने आपसे कहा था ना यदि आ नहीं सकती तो पुलिस को मेरे पिटने की एफ़ आई आर करके बुलाकर साले वर्मा को जेल करवा दीजिये. "
" मैडम ! मैं कैसे ----."
" मैडम-- मैडम क्या लगा रक्खी है ? जरा सा काम नहीं कर सकती ? कल मूल जी भाई को बोला था वे पुलिस बुला लाये लेकिन वो भी बिना बोले चले गए. मेरा नाम वृंदा नहीं है यदि मैं मूल जी भाई का अपने मिस्टर साहब से कहकर ट्रांसएफ़ र ना करवा दूँ. "
वह् आश्चर्यचकित रह गई थी जिसकी शिकायत करनी है उसी से ट्रांसफ़र करवाने की धमकी भी दे रहीं है, वह् बहकी बहकी आँखें लिए पता नहीं क्या बोले जा रहीं थी. वह उसकी तरफ देखकर बोली, " आप मेरी तरफ़ से एफ़ आई आर लिखकर पुलिस में दे आइए और वर्मा को जेल करवा दीजिये नहीं तो वो मुझे मार डालेगा जैसे पिछले महीने उसने पेट में ही मेरे बच्चे को मरवा दिया. "
"क्या ?"उन दोनों के मुँह से से निकला.
"गन्दी औरतों के पास पड़़ा रहने वाला आदमी और कर भी क्या सकता है ? चलिए एफ़ आई आर लिखिये, ये रहा काग़ज़. "उसने उसके हाथ में काग़ज़ रख दिया.
उसने सहमते हुए पूछा, "और पेन ?"
" जल्दी जल्दी में पेन लाना भूल गई. "
वे दोनों एक झटके से उठ गई, "हम दोनों पेन लेकर आते हैं. " और जान बचाती सी अस्पताल के बाहर तेज़ कदमों से निकल आई.
पिता ने भी उसे उसके हाल पर छोड़ किनारा कर लिया है --कैसे जीवन काटेगी वृंदा ? उसके मुँह से पुराना प्रश्न फिसल ही गया, "क्या सोचकर इतने बड़ी उम्र के आदमी से इनके पिता ने शादी कर दी?"
उसे उत्तर की अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. महीने भर ही बाद दक्षा बेन अपने हाथ में एक डायरी लिए खड़ी थी, "वृंदा मुक्त हो गई. "
"क्या --"वह कुछ सोचकर घबरा गई.
"नहीं -- नहीं --मेरा मतलब ये नहीं था कि वह ऊपर पहुँच गई. उसने अपनी मंज़िल ख़ुद ढूंढ़ ली है.किसी स्त्री संस्था के कंप्यूटर सेंटर में नौकरी करके अपनी पड़ाई ज़ारी करेगी व संस्था की हेल्प से तलाक लेगी. ये उसकी डायरी है, कह गई है कि हम दोनों इसे पढ़ें व दुनियाँ को बताये उसके साथ क्या हुआ था ".
"आपने ये पढ़ ली ?"
वह सारे काम `फ़्रीज़ `करके बेसब्र हाथो से डायरी के पृष्ठ उलटती जा रहीं है. उसे एक किशोरी के सपनेनुमा विचारों में कोई दिलचस्पी नहीं है--ना ही उसके स्कूल की दिनचर्या में -----ना ही बीच बीच में - लिखी कविताओं की पंक्तियों या लोकगीतों से --- फिर भी वह जान रही है कि ये गांव की किशोरी किसी कॉलेज में पढ़ाना चाह्ती थी----हमेशा अपने क्लास में प्रथम आती थी. एक शीर्षक पर उसके नजर अटक जाती है ---`मेरे विवाह का दिन".
इस शीर्षक के नीचे लिखा था, "आज मेरा विवाह है--कैसा आश्चर्य है ?मेरी बिना `हाँ `के बापू मुझे ब्याह रहा है. कैसे कहता था कि तू तो मेरे आँगन की सोने की बुल बुल है. तो सोने की बुल बुल का मोल वसूलना चाह रहा है मुझसे बीस वर्ष बड़े सरकारी अफ़सर से मेरी शादी करके जिसकी पहली पत्नी जलकर मर गई [?] है. बापू खुश है उसका कितना रौब, कितना दबदबा बढ़ जायेगा। वो जिधर से गुज़रेगा उधर से लोग कुछ झुक जाएंगे -देखो सरकारी अफ़सर का ससुर जा रहा है। वह अफ़सर गांव के लोगों की सरकारी नौकरी लगवायेगा तो बापू का गांव भर पर बहुत रौब पड़ेगा और मेरे बापू सरपंच का चुनाव जीत जायेंगे. "
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नीलम कुलश्रेष्ठ