समीक्षा - काव्य कुंज-स्व.श्री नरेन्द्र उत्सुक
समीक्षक स्वतंत्र कुमार सक्सेना
पुस्तक का नाम- काव्य कुंज
कवि -नरेन्द्र उत्सुक
सम्पादक- रामगोपाल भावुक
सहसम्पादक- वेदराम प्रजापति ‘मदमस्त’ धीरेन्द्र गेहलोत ’धीर‘
प्रकाशक-परमहंस मस्तराम गौरीशंकर सत्संग समिति ,डबरा(भवभूति नगर)475110एवं मुक्त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति डबरा(भवभूति नगर )
जिला ग्वालियर( मध्य प्रदेश)475110
श्री नरेन्द्र कुमार जी उत्सुक से मेरा परिचय सन्1976 में हुआ तब मैं अपनी शिक्षा पूर्ण करके डबरा आया था ।यह शहर मेरे लिए नया था। मेरी मां यहां शासकीय सेवा में थीं। हम सरकारी क्वार्टर में निवास करते थे उत्सुक जी हमारे पड़ौसी थे।वे कवि गोष्ठियां आयोजित करते मैं श्रोता की तौर पर उसमें सम्मिलित होता । वे मुझे गोष्ठी में बोलने को प्रोत्साहित करते ,धीरे-धीरे उनके प्रोत्साहन से मैं भी तुक बंदी करने लगा । मेरी तरह उन्होने न जाने कितने नव युवकों/साथियों को मार घसीट कर उन्हें कवि कथाकार बना दिया । नगर में वे साक्षात मूर्तिमंत कविता थे । वे व उनकी पत्नी स्वर्गीया श्रीमती दया कुमारी मेरे पहले श्रोता व प्रोत्साहक थे।
उत्सुक जी ने मुझे बताया था कि जब वे किशोर थे नये उत्साही कवि थे तब वे ग्वालियर में निवास करते थे , उन्होने अपनी रचना एक स्थानीय अखबार में भेजी उनके एक पड़ौसी जो उसी अखबार में काम करते थे पत्रकार थे, उन्होंने एक सुबह कहा -‘नरेन्द्र!तम्हारी कविता अखबार में निकली है वे देास्तों के साथ स्थानीय लायब्रेरी पहुचे सारे अखबार छान मारे कविता नदारत थी घर लौटे आक्रोषित थे तब उन्ही बुजुर्ग ने कहा नहीं निकली ? वह रचना अगले दो दिन बाद निकली उन्हीं ने उनकी किशोर सुलभ अकुलाहट को देख कर उन्हें सम्बोधन दिया ‘उत्सुक ’ जो उन्होने अपना कवि नाम बना लिया।
उन्होने कई पक्षें पर रचनाएं कीं कुछ व्यंग्य रचनाएं कुछ सामायिक कुछ आध्यात्मिक । वे जीवन के अंतिम दशक में भक्ति भाव की रचनाएं करने लगे थे।हमारे नगर के उपन्यासकार /कहानीकार /कवि श्री रामगाोपाल तिवारी ‘भावुक’ ने उन्हें सत्संग में खीच लिया था। पर यह उनका एकमात्र पक्ष नहीं था। जैसे इमरजेंसी के समय ट्रकों/दीवारों पर एक नारा लिखा दिखता था ‘ एक ही जादू’ इस पर उन्होंने रचना कही थी जिसकी मुझे मुखड़ा ही याद है ‘ दफाओं पर है काबू ,बस एक ही जादू’।
एक बार हमारे पड़ोस में एक बीमार सेठ को देखने डाॅक्टर साहब बुलाए गए ,वे तांगे पर बैठ कर आए , परीक्षण करने पर उन्होंने पाया रोगी मृत था परिजन रोने गाने लगे डॅाक्टर साहब सामान समेट कर जाने लगे तो वे व्याकुल हो गए उन्हें लगाा अब तो फीस गई अतः सेठ पुुत्र से बोले -‘मेरी फीस ?’उन्हें फीस दी गई। साथ ही सेठ के बेटे ने तांगे वाले को भी रूपये देने को हाथ बढ़ाया तो तांगे वाले ने इनकार कर दिया और हाथ जोड़ कर बोला- ‘भैया मैें तांगे वाला हूँ’। उत्सुक जी ने जो उस घटना के साक्षी थे इस पर गीत बनाया था
‘ भैया मैं तांगे वाला हूँ’
वे मानव जीवन की उन्हीं विसंगतियों व विद्रूपताओं पर कलम चलाते थे
वे स्वयं अपनी कविता में कहते हैं
‘कविता तू ही जीवन मेरा ’
वे श्रमिकों के जीवन से लौकिक साक्ष्य उठाते हैं
बहाते हैं पसीना तभी आती हैं रोटियां
दिन रात ख्वाब में भी लुभातीं हैं रोटियां
वे शहीदों के प्रति नतमस्तक हैं
कुरबानियां दी थीं वतन पर हमने जिस आन से
लहरा रहा है ध्वज तिरंगा देखिये किस शान से
देश में राजनैतिक हित साधने के लिये जानबूझ कर फैलाए गए साम्प्रदायिक ़द्धेष के वातावरण से वे व्यथित हैं
धधक रही ज्वाला नफरत की घर घर की दीवार बन गई
बात बात में बात बढ़ गई,यहां वहां तलवार बन गई।
छोहा मुक्त छन्द गजल काव्य की कई विधाओं पर उन्होंने कलम चलाई।
ऐसे जीवन्त कवि को मेरे जैसे कई कवियों के प्रेरक मेरा नमन ।
सम्पर्क- सवित्री सेवा आश्रम डबरा ग्वालियर (म0प्र0)