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आज़ाद बचपन
अगली शाम ऐक उद्घोषणा होती है,
अगली शाम गांव के विद्यालय के मैदान में भारी भीड़ जुट गई। वहां आसपास के गाँव के लोग भी पंडित के गांव में इकट्ठे हो गऐ थे। वहां ऐक मेला सा लग गया था। मैदान के ऐक सिर पर ऐक ऊँचा मंच बनाया गया था। उसके सामने ऐक मखमली सुंदर सुनहरा पर्दा टांग दिया गया जो ऐक सीटी के साथ खुलता बंद होता था। उस दिन शहीद भगतसिंग के बलिदान पर आधारित ऐक महान नाटक खेला जाना था।
प्रिय दर्शको! आज आपके समक्ष महान स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद के बचपन की ऐक रोमांचक घटना पर आधारित ऐक नाटक प्रस्तुत किया जा रहा है I वह ऐसा समय था,जब भारत माता की जय बोलने पर पूर्ण प्रतिबन्ध था I जलियावाला कांड के विरोध में गांधीजी ने पूरे देश में हडताल,प्रदर्शन व धरना कार्यक्रम चला रखे थे I बालक चंद्रशेखर इन सभी आयोजनों बढ़ चढ़कर भाग ले रहे थे I पुलिसे ने उन्हें गिरफ्तार ऐक कोर्ट में हाजिर कर दिया I
प्रथम द्रश्य
(ऐक कोर्ट का द्रश्य )
जज ऐक बच्चे को देखकर उसे बहुत देर तक घूरता रहता है I
जज (इंस्पेक्टर से) : इस बच्चे पर क्या आरोप है ?
इंस्पेक्टर : माय लार्ड ! यह बच्चा सरकार के विरुद्ध भारत माता की जय का नारा लगाता रहता है I
जज :(बालक से ) बच्चे तुम्हारा क्या नाम है ?
बालक ; (निडरता से ) महोदय ! मेरा नाम आज़ाद है I
( जज बच्चे को कुछ देर तक घूरता रहता है I वह इंस्पेक्टर से बालक के जबाब का ट्रांसलेशन सुनता रहता है I वह फिर अगला प्रश्न करता है )
जज : तुम्हारे पिता का नाम ?
आज़ाद : स्वाधीनता
( जज बालक का उत्तर सुनकर कुछ देर तक सन्न रह जाता है )
जज : तुम्हारी माता का नाम ?
बालक: भारत माता !
( जज कुछ देर तक क्रोधित होकर बच्चे को देखता है )
जज : ( अपनी मेज पर जोर से डंडा मIरते हुऐ )
बच्चे ! यह तुम्हारे खेलने का मैदान नहीं है I आपको यहाँ शरारत के लिऐ सख्त सजा दी जा सकती है I ध्यान रहे I हमारे प्रश्न का ठीक से जबाब दो अन्यथा कड़ी सजा निलेगी I
जज : तुम्हारे घर का पता ?
बालक : जेलखाना !
जज : (आगबबूला होकर ) इस उद्यंड बच्चे को 10 बेंत की सजा दी जाती है I
द्रश्य 2 :
(व्यस्त सड़क का ऐक चौराहा : ; ऐक पुलिस का जवान बच्चे के कपडे उतारता है I वह बच्चे को बेंत मIरना शुरू करता है I)
बच्चा हर बेंत के साथ नारा लगता है “ भारत माता की जय “
बेंत मIरना जारी रहता है किन्तु साथ ही बच्चा और जोर से नारा लगाता रहता है I
सातवी बेंत के बाद बच्चा अचेत हो जाता है फिर भी होंठो से बुदबुदाते हुऐ हर बेंत के साथ भारत माता की जय बोलना बंद नहीं करता I सारी धरती बच्चे के खून से लाल हो जाती है I पुलिस वालों की आँखों से आंसू निकल पड़ते है जो रोके नहीं रुकते I अनेक राहगीर स्तब्ध होकर इस द्रश्य को देखते रहते है I
पूरे देश में बालक चंद्रशेखर आज़ाद के यश साहस व हौंसले की चर्चा फ़ैल जाती है I
अगली शाम गांव के विद्यालय के मैदान में और अधिक भीड़ जुट गई। वहां आसपास के गाँव के लोग भी पंडित के गांव में इकट्ठे हो गऐ थे।
मौत से शादि
पर्दा खुलते ही दर्शकों की तालिया बजने लगी I
ऐक व्यक्ति स्टेज पर अनाउंसमेंट कर रहा था :
“ देवियों व सज्जनों ! आज आप ऐक महान नाटक “ मौत से शादि “ देखने जा रहे है I
देखिऐ ब्रिटिश कौंसिल का द्रश्य : ब्रिटिश अफसर क्रांतिकारियों को कुचलने के लिऐ गंभीर मंत्रणा कर रहे है I इतने में अचानक दर्शक दीर्घा में दो युवक प्रकट होते है I सफ़ेद कपड़े पहने बटुकेश्वर दत्त व केशरिया बIना पहने भगतसिंग नारे लगIते है )“इन्कलाब जिंदाबाद “
( वे ऐक बम हाल के बीचमें फेंक देते है, बड़े जोर से धमाका होता है, अंग्रेज अफसर इधर उधर भाग खड़े होते है, कुछ अफसर व पुलिस वाले कोने में, अलमारियो के पीछे व टेबल के नीचे छुप जाते है)
भगतसिंगः 'माननीय सदस्यों! हम किसी को नुकसान नहीं पहचाना चाहते है।
देख लीजिऐ हमने किसी को निशाना नहीं बनाया है। हम तो अपना बलिदान देकर सोई हुई भारत की जनता की आत्मा को जगाना चाहते है।"
(उन्हे निहत्था देख सभी ब्रिटिश अधिकारी अपने स्थान पर डरते हुऐ लौट आते हैं)
ऐक अधिकारी(पुलिस वालो से) : इन दुष्टो की तलाशी लो इन्हें गिरफ्तार कर लिया जाऐ।
(दो पुलिस के जवान टेबल के पीछे से निकलकर उन्हें गिरफ्तार कर लेते है । दोनो युवकों को हथकड़ियां लगाई जाती है I वे कोई प्रतिरोध नहीं करते हैं)
ब्रिटिश अधिकारी : इन्हे सेंट्रल जेल में बंद कर दो।
(पुलिस वाले उन्हें 'चलो सेंट्रल जेल' कहकर चल पड़ते हैं)
द्रश्य 2
(बड़े सवेरे का समय है। ऐक बड़ी जेल का सीन : तीन कैदियों को फासी दी जाना है। जेल के बीच तीन फासी के फंदे लटक रहे हैं। फासी तो दूसरे दिन दी जाने वाली थी किन्तु आम लोगों के भारी विरोध को देखते हुऐ अग्रेजो ने षड्यंत्र करके फांसी को गोपनीय रखते हऐ ऐक दिन पहले ही क्रांतिकारियों को गुपचुप फंदे पर लटकाने का फैसला कर लिया I ऐक काला मोटा जल्लाद तैयार खड़ा है। कुछ पुलिस व जेल अधिकारी मत्युदंड पाने वाले कैदियों के आने का इंतजार कर रहे हैं।
तीनो केदी अपनी बैरकों से निकलकर मंच की ओर बढते है। उनके चेहरे पर खुशी के भाव हैं)
भगतसिंग ( शान से चलता हुआ) : आज मेरे जीवन का सबसे बड़ी खुशी का दिन है।
आज मेरी मौत के साथ शादी है। मेरी मां मेरी शादी के लिऐ मुझसे बड़ा मनुहार किया करती थी।
(तीनो दोस्त गाना गाते हैं :
'मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे,
माई रंग दे बसंति चोला, 'मेरा रंग दे बसंती चोला
दम निकले इस देश के खातिर बस इतना अरमान है,
मेरा रंग दे',मै रंग दे बसंती चोला “
(वे फांसी के तख्त पर जाकर फंदे को चूमते हैं I वे लगातार नारे लगIते रहते हैं :
“भारत माता की जय “
(वे खुद अपने गले में फंदा डाल लेते है। जल्लाद उन्हें फासी पर चढ़ा देता है )
दर्शक नारे लगाते है -
" भारत माता की जय”,
“इंकलाब जिदाबाद”,
अगली शाम ऐक अन्य नाटक का मंचन हआ