भारत के गावों में स्वतंत्रा संग्राम - 5 Brijmohan sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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भारत के गावों में स्वतंत्रा संग्राम - 5

5

मंदिर दर्शन
हरिजन विद्यालय का काम जोर शोर से चल रहा था। छात्र संख्या मे नित्य वृद्धि हो रही थी।

उस दिन सवेरे मंदिर मे आरती हो रही थी। भक्तो की भारी भीड़ आरती गा रही थी। भक्त शंख,घंटाल व ताली बजा रहे थे। अंत मे भगवान की जय जयकार के साथ प्रसाद का वितरण हुआ । कुछ देर बाद भक्तों की भीड़ बाहर निकलने लगी। लोगों ने देखा कि मंदिर के सामने कुछ दूरी पर ऐक व्रक्ष के नीचे कुछ हरिजन भगवान का दर्शन कर रहे हैं।

ऐक प्रभावशाली व्यक्ति उन पर क्रोधित होते हुऐ बोला,

‘तुम्हारी मंदिर के पवित्र स्थान के पास आने की हिम्मत कैसे हुई ? ’

हरिजन बुरी तरह डर गऐ। उनसे कोई जबाब नही देते बना। शोर सुनकर शिव बाहर आऐ। उन्हे जिस बात का अंदेशा था, वही हुआ।

वे भीड़ को उॅंची आवाज मे संबोधित करते हुऐ बोले ‘ इन लोगों को मैंने आमंत्रित किया है । क्या किसी को आपत्ति है ?’

कुछ देर के लिऐ वहॉं सन्नाटा छा गया।

ऐक वृद्ध व्यक्ति बोला, ‘ पंडितजी आप हरिजनो को मंदिर मे बुलवा कर मंदिर को अपवित्र कर रहे हो। ’

पंडित बोले, ‘ भगवान छोटे बड़े,ऊंच नीच सभी के लिऐ हैं । उनकी नजर मे सभी बराबर हैं। मंदिर सभी के लिऐ खुला है। हरिजन भाईयों को दूर से भगवान के दर्शन से आपका क्या बिगड़ता है ? ’

इस पर कुछ लोगों ने पंडित के इस कुक्रत्य की पंचायत मे शिकायत करने की धमकी दी।

शिव बोले,‘ छुआछूत,ऊॅंच नीच की कुप्रथा ने हिन्दुस्तान को डुबो दिया। ’

उन्होने हरिजनो को प्रसाद दिया। प्रसाद लेकर भगवान को नमस्कार कर हरिजन वहॉं से विदा हो गऐ।

दरसल कुछ हरिजन पिछले कुछ दिनों से शिवजी से भगवान का दर्शन कराने का आग्रह कर रहे थे।

इस पर शिव ने उन्हें भगवान के दर्शन कराने का आश्वIसन दिया था।

 


गॉंव पंचायत
अगले रविवार सायं,

विद्यालय के बड़े मैदान मे पेचायत की बैठक का आयोजन हुआ । मैदान के बीच बैठक के लिऐ विशेष रूप से विशाल बरगद के पेड़ के नीचे ऐक चबूतरा बनाया हुआ था। धीरे धीरे पंच,सरपंच व अन्य लोग मैदान में इकटृा होने लगे । ऐक व्यक्ति को शिव पंडित को बुलाने हेतु भेजा गया। कुछ देर बाद पंडित पंचायत के सामने हाजिर हुऐ।

उन्होने पंचों व लोगों का अभिवादन करते हुऐ कहा, ‘ सभी भाइयो को राम राम ’सभी लोगो ने उनका अभिवादन स्वीकार करते हुऐ जबाब दिया, ‘राम राम, पंडितजी’

सरपंच ने उन्हे अपना स्थान ग्रहण करने को कहा।

सरपंच ने उंचे स्वर में कहना प्रारम्भ किया,

‘ पंडितजी पूरे गॉंव के लोगों को आपसे शिकायत है।

1 ‘ आप हरिजनों को पढ़ाते हो । आप उन्हे अपना काम छोडकर उच्च जाति के लोगो की बराबरी कराने का कुकृत्य कर रहे हो। ’ पंडित बड़े धैर्य से सरपंच की बातें सुन रहे थे।

उन्होने कहा

पहले आप अपने सभी अभियोग सुना लीजिऐ, फिर मैं सिलसिलेवार सभी का जबाब दूंगा। ’

 

]चित्र क्र 7
सरपंच ने अपना कथन जारी रखते हुऐ कहा,

‘ आप हरिजनो के हाथ का छुआ खाते पीते हो। उन्हे मंदिर के पास आने की अनुमति देकर भगवान के दर्शन कराते हो। पंडित पुजारी होकर आपको ऐसा धर्म विरूद्ध कार्य शोभा नहीं देता। आप हमारा धर्म भ्रष्ट कर रहे हो। ’

इतना कहकर वह चुप हो गया।

पंडित ने कहना प्रारम्भ किया,

‘क्या हरिजन मनुष्य नही हैं। ईश्वर के सामने सभी मनुष्य बराबर हैं। वहां कोई छोटा बड़ा, ऊॅंचा नीचा, छूत अछूत नहीं है। सदियो से चली आ रही छुआछूत की कुप्रथा हिन्दु धर्म पर कलंक है।

पंडितजी ने ऐक सत्यकथा सुनाई,

स्वामी विवेकानंद ऐक बार ऐक गांव मे ऐक व्रक्ष के नीचे रूक हुऐ थे। उन्होने ऐक व्यक्ति को भागते देखा । वह भरी धूप मे चिल्लाते हुऐ जा रहा था

‘ परे हटो, परे रहो ’

स्वामीजी को बड़ा आश्चर्य हुआ।

उन्होने अपने भक्तों से पूछा,

‘‘ क्या बात है यह व्यक्ति चिल्लाता हुआ क्यों भाग रहा है ?’’

ऐक भक्त ने उत्तर दिया, ‘‘ स्वामीजी वह व्यक्ति अछूत है । उसके स्पर्श से कोई अपवित्र नही हो जाऐ इसलिऐ वह लोगो को स्वयं से दूर रहने के लिऐ सावधान करता हुआ भाग रहा है। ’’

यह सुनकर स्वामी विवेकानंद को बड़ा दुख हुआ। उन्होने इस घटना पर बड़ा शोक प्रकट करते हुऐ कहा, ‘‘ अछूत प्रथा भारत के माथे पर कलंक हे। हरिजन हमारे पूजनीय ऋषियों की पवित्र संताने हैं। आने वाले युग मे हरिजन इस देश पर राज्य करेंगे। ’’

उपस्थित बंधुओं यदि निम्न जाति के हमारे भाई अछूत हैं तो भगवान राम ने शबरी के झूठे बैर प्रेम से क्यों खाऐ ? केवट मल्लाह को उन्होने प्रेम से गले लगाया। इंसान तो ठीक, उन्होने बंदरों, गिलहरी,भालू,गिद्ध आदि पशु पक्षियों से प्यार करके ऐक मिसाल पेश की है। दुनीयI में कोई अछूत नही है। गांधीजी छुआछूत मिटाने का प्रयास कर रहे हैं। हमे उनका अनुकरण करना चाहिऐ। धर्म के मूल सिद्धांत हैः सभी से प्यार, दीन दुखियों की सेवा, परोपकार,सभी प्राणियों मे ईश्वर का दर्शन । मैं उन्ही की राह पर चलने का प्रयास कर रहा हू। ’’

सरपंच ने धीमे स्वर मे अन्य पंचों की राय ली व कहा

‘‘ पंडितजी हम यह सब नही जानते । आप हरिजनों का साथ छोड़कर सारे कार्य कीजिऐ, हमें आपके अन्य कार्यो पर ऐतराज नही है। आगे आप स्वयं ज्ञानी हैं। हम आपको क्या समझा सकते हैं ? साथ ही मुझे आपको चेतावनी देने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि पंचायत का आदेश न मानने की स्थिति मे आपके वियद्ध कठोर कार्यवाही की जावेगी।’’

इस पर पंडितजी हाथ जोड़ कर बोले,

‘‘ मै पंचायत का सम्मान करता हूं किन्तु मुझे सत्य ज्यादा प्यारा है।

विवेकानंद के शब्दों में कहता हूं - ’यदि सारी दुनिया ऐक तरफ तलवार लेकर भी खड़ी हो जाऐ तो भी मै सत्य के साथ अकेला खड़ा रहना पसंद करूगा।’

पंचायत मेरे विरुद्ध चाहे जो फरमान जारी करे किन्तु मैं हरिजन सेवा का पवित्र कार्य गांधीजी के निर्देशो के अनुसार करता रहूगा। ’’

इतना कहकर शिव सभी को नमस्कार करके सभा से उठकर चल दिऐ। कुछ देर तक चारों ओर सन्नाटा छा गया। सरपंच व पंचों को कुछ सूझ नही पड़ा कि क्या किया जाऐं। ऐसी परिस्थिति का सामना उन्हे कभी नही करना पड़ा था।

फिर सरपंच ने पंचों से इस कठिन विषय पर अपनी राय रखने को कहा I सभी पंचों ने धीमे स्वर मे आपस में चर्चा की।

फिर ऐक ऐक कर पंच अपनी राय बताने लगे :

ऐक पंच बोला - ‘‘पंडित को गांव के बाहर निकाल देना चाहिऐ। ’’

दूसरा तैश मे बोला - ‘‘पंडित को मार मार कर ठीक कर देना चाहिये।’’

तीसरा - ‘‘मंदिर में दूसरा पंडित नियुक्त कर देना चाहिऐ। ’’

इस प्रकार अनेक लोगों ने अनेक सुझाव दिऐ।

अंत मे सरपंच ने खड़े होकर कहा-

‘‘ मैं पंचों का सम्मान करते हुऐ दुख व क्षमा पूर्वक कहना चाहता हू कि अभी तक जितने सुझाव आऐ वे सभी बचकाने और अव्यावहारिक हैं।

हम सभी जानते हैं कि शिव पंडित के समान विद्वान और सेवाभावी अन्य कोई व्यक्ति मिलना सम्भव नही है । हमारे रोज के काम उनके बिना अटक जाऐंगे। हमें बीमार होने पर दवा कौन देगा? हमारी समस्याओं पर ज्योतिष संबंधित सलाह कौन देगा, विवाह कर्मकांड व मुहुर्त की समस्या कौन हल करेगा? किसी की नजर मे शिवजी के समकक्ष का कोई अन्य सेवाभावी विद्वान हो तो बताऐ?’’

इतना कहकर सरपंच ने बड़ी देर तक किसी उत्तर की प्रतिक्षा की किन्तु उपस्थित लोगो मे से किसी को उत्तर नहीं देते बना।

तब यह कठिन विषय हल करने हेतु सर्वसम्मति से शिव की जाति पंचायत को भेज दिया गया।

इस प्रकार पंचायत ने असमर्थ होकर इस उलझन से अपना पल्ला झाड़ लिया।

पंचायत के समान प्रतिष्ठित संस्था की ऐसी किरकिरी कभी नही हुई थी।

सरपंच ने कहा, “ भविष्य में शिव से कभी कोई पंगा लेकर आगे से पंचायत की इज्जत का कचरा नहीं कराया जाऐगा ।

जाति बिरादरी की पंचायत भी शिव पर कोई कार्यवाही करने मे असमर्थ रही।