भारत के गावों में स्वतंत्रा संग्राम - 6 Brijmohan sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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भारत के गावों में स्वतंत्रा संग्राम - 6

6

जाति अपमान
कुछ दिनों बाद,

ऐक शाम शिव की जाति के ऐक व्यक्ति के यहां विवाह भोज का आयोजन था।

शिव का पूरा परिवार भी निमंत्रित था। पंडित जब भोज स्थल पर पहुचे तो यजमान विवाह स्थल पर द्वार पर खड़ा होकर सभी आमंत्रित लोगो का स्वागत कर रहा था। शिव को देखकर भी उसने उनका अपमान करने के लिऐ उन्हें अनदेखा कर अपना मुंह दूसरी ओर फेर लिया।

पंडित कुछ देर वहां खड़े होकर अपने आमंत्रण का इंतजार करते रहे। बड़ी देर बाद वह शिव की ओर मुड़ा व बुझे हुऐ स्वर मे उन्हे वही थोड़ा इंतजार करने को कहा। उसने शिव के लिऐ बाहर ही खाना बुलवा कर वहीं बैठकर खाना खाने को कहा । उस स्थान के पास लोगो ने अपने जूते खोल रखे थे। शिव ने खाना खाये बिना वह स्थान छोड़ दिया।

गांव के अज्ञानियों का यह कृत्य ऐक महान स्वतंत्रता सेनानी व समाजसेवी का घोर अपमान था।

 


क्रांतिकारियों के मददगार
शिव पंडित देश की आजादी में सहयोग करने कें लिऐ तन,मन, धन से हर संभव मदद कर रहे थे।

उन्होंने उन क्रांतिकारियों की गुप्त मदद करने का बीड़ा उठा रखा था जो ब्रिटिश हुक्मरानों के आतंक, जुल्मों व गिरफ्तारी से बचने के लिऐ सुरक्षित ठिकाना ढूंढते थे किन्तु शासन के जुल्म के कारण कोई उनकी मदद नहीं करता था। पंडितजी के

 

 

पुरखों के समय से चली आ रही गांव में ऐक बहुत बड़ी हवेली थी । वह अनेक वर्षो से खाली पड़ी थी। गांव वाले उसे भूतहा महल कहते थे व रात में तो दूर, दिन में भी उसके अंदर जाने से डरते थे।

रात के समय उसमें कभी रोने की, घुंघरू बजने की या अन्य अनेक प्रकार की डरावनी आवाजें आती थीं।

उसमें जाने का साहस करने वाले कुछ लोग बेहोंश हो चुके थे व अन्य अनेक किसी प्रेतात्मा से बाल बाल बचकर लौटे थे। इन भयानक अफवाहो के चलते पंडितजी ने उस भूतहा महल को क्रांतिकारियों के सुरक्षित शरणस्थली बना दिया था। वह स्थान इतना सुरक्षित था कि अव्वल तो उस बियाबान जगह शासन का कोई नुमाइंदा आने का विचार तक नहीं करता था और कभी कोई पुलिसवाला वहां की तलाशी लेने की सोचता तो लोगों से उस भूतहा महल के बारे में सुनकर भय से भाग खड़ा होता।   पंडितजी वहां क्रIतिकारियों के निवास व खाने का सारा इंतजाम करते रहते थे। इस प्रकार वे बड़े साहस से अनूठी देश सेवा कर रहे थे।


अंग्रेजो भारत छोड़ो
सन १९४२ में गांधीजी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोइलन का श्रीगणेश किया I

इसके साथ ही पूरे देश में हड़ताल, प्रदर्शन व बंद का सिलसिला शुरू हो गया I

शिव पंडित अपने गाँव और आसपास के गावो में अपने कार्यकार्ताओ के साथ रेलीया निकालकर ग्रामीणों में स्वत्रंत्रता का अलख जगा रहे थे I उनके सतत प्रयासों से अब उन पर हंसने वाले ग्रामीण भी उनके कार्यो के प्रति गंभीरता से सोचने लगे थे I

अनेक अमीर कृषक पहले से ही धन देकर उनके आन्दोलनों को मदद दे रहे थे ; उन्होंने पंडित होने के नाते धर्म समझ कर अपना योगदान और बढI दिया I धीरज का फल सदा मीठा होता है I

पंडितजी ने पास के शहर में पहुचकर समूचे आन्दोलन का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया I

किन्तु उनके ताक में बैठी पुलिस ने उन्हें इस बार आन्दोलन शुरू होने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया I

किन्तु अपने अन्य साथियों द्वारा पुलिस से बचते हुऐ आन्दोलन जIरी रहा I

जेल में पुलिस वाले उन्हें आदरणीय पुजारी होने से बड़ा सम्मानजनक व्यव्हार करते थे I

किसी अंग्रेज आफिसर के आने पर वे उनके साथ दिखावटी क्रूर व्यवहार करते थे I

किन्तु इस बार पुरे हिंदुस्तान में बड़े नेताओ की गिरफ़्तारी के कारण गांधीजी का यह आन्दोलन अधिक जोर नहीं पकड़ पाया I


आज़ाद हिन्द फौज
भारत के महान सपूत सुभाषचंद्र बोस गांधीजी के अहिंसात्मक आन्दोलन से सहमत नहीं थे I उनका मत था कि अंग्रेज शांतिपूर्ण तरीको से भारत को कभी आज़ादी नहीं देंगे I

उन्हें युद्ध द्वारा परIस्त करके ही देश से भगाया जा सकता है I नेताजी ने अपने सुनहरे स्वप्नों को मूर्त रूप देने के लिऐ अपने उच्च स्तरीय सरकारी पद के मौके का त्याग करके जोशीले कार्यकर्ताओ से युक्त आज़ाद हिन्द फौज का गठन कर लिया I

लेकिन जैसे ही यह खबर अंग्रेजो तक पहुंची उन्हें गिरफ्तार करके प्रारंभ से ही उनके शानदार प्लान को कुचलने का प्रयास किया गया I

किन्तु सुभाषजी अंग्रेजो की जेल से फरार होकर जर्मनी जा पहुंचे I वहां उन्होंने आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना कर दी I सभी भारतीयों के दिल में सुभाषजी के प्रति अत्यंत सम्मान की भावना फ़ैल गई I सभी उन्हें नेताजी के नाम से पुकारने लगे I जर्मनी ने नेताजी को अपने रेडियो से मेसेज प्रसारण की सुविधा दे दी I नेताजी ने हिन्दुस्तानी नौजवानों से अपनी फौज में भर्ती होने का आवाहन ऐसे जोशीले शब्दों से किया कि अनेको भारतीय नौजवान देश के लिऐ बलिदान हो जाने के लिऐ तैयार हो गऐ I

सुभाजी ने भारतवासियों को ऐक बड़ा ही जोशीला नारा दिया,

“ तुम मुझे खून दो, में तुम्हे आज़ादी दूंगा “

सुभाषजी के इस महान साहसिक कदम से देश के लिऐ मर मिटने की होड़ मच गई I

हजारों भारतीय देश के लिऐ कुर्बान होने के लिऐ आज़ाद हिन्द फौज में भर्ती हो गऐ I

नेताजी को जापान से भी भIरी मदद मिली I

जापान ने भारतीय युद्ध बंदियों को नेताजी की फौज में शामिल होने की इजाजत दे दी I

आज़ाद हिन्द फौज का नारा था :

“ जय हिन्द ! दिल्ली चलो I”

फौज के सैनिक कदम ताल करते हुऐ गाते थे,

कदम कदम बढ़ाऐ जा ख़ुशी के गीत गाऐ जा,

ये जिंदगी है देश की, तू देश पर लुटाऐ जा ”

इस फौज के गठन के साथ ही अंग्रेज समझ चुके थे कि अब भारत से उनके बोरिया बिस्तर समेटने का समय आ चुका है I भारत को और अधिक समय के लिऐ गुलाम बना रखने का समय बीत चुका है I

सुभाषजी ने अंग्रेजो पर चढ़ाई कर दी I प्रारंभ में सुभाषजी को अंग्रेजो को पीछे धकेलने में भारी कामयाबी मिली किन्तु संख्या में कम होने से उन्हें अंत में हर का सामना करना पड़ा I उधर सुभाषजी को मदद करने वाले जापान की युद्ध में बुरी तरह हiर हो गई I ऐक विवादस्पद बयान के अनुसार नेताजी की विमान दुर्घटना में म्रत्यु हो गई । किन्तु आज तक इस घटना की पुष्टि नहीं हो सकी है। इसके बाद आजाद हिन्द फौज के हारने का सिलसिला शुरू हो गया । आज़ाद फौज के अनेक अफसर व सैनिक गिरफ्तार कर लिऐ गऐ जिनके विरुद्ध अंग्रेज सरकार ने फांसी का हुक्म जरी कर दिया I

किन्त आम जनता में अग्रेजो के खिलाफ भयानक असंतोष तथा गुस्से की लहर व आजाद फौज के अफसरों के प्रति सहानुभूति की लहर फ़ैल गई I आम जनता के रोष को देखते हुऐ अंग्रेजो ने आज़ाद हिन्द के सैनिको की फांसी की सजा को आजन्म कारावास की सजा में बदल दिया I अंत में सुभाष बोस से भय खाकर अंग्रेजो ने यहाँ से अपना बोरिया बिस्तर गोल करने में ही अपनी भलाई समझी I

"जब तक सूरज चाँद रहेगा नेताजी का नाम भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरो से लिखा जाऐगा। “