स्वतंत्र सक्सेना की कहानियाँ
swatantr saxena ki kahaniyan
संपादकीय
स्वतंत्र कुमार सक्सेना की कहानियाँ को पढ़ते हुये
वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’
कहानी स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कहानीकार के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कहानीकार अपनी स्मृतियों को अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है|
स्वतंत्र ने समाज को अपने तरीके से समझा है | वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी कहानियों के लिए चुनते हैं| समाज व्यवस्था, राज व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की विद्रूपताओं को सामने लाने में स्वतंत्र सन्नद्ध होते हैं| राम प्रसाद, किशन और दिलीप के चरित्र हमारे लिए जाने-पहचाने हैं | ये चरित्र शासनतंत्र से असंतुष्ट हैं और संघर्षशील हैं| उन्हें पता है कि लड़ाई बड़ी कठिन है| एक तरफ पूरी सत्ता है और दूसरी तरफ एकल व्यक्ति |
अपने कथाकार की सीमाओं की खुद ही पहचान करते हुए स्वतंत्र लेखनकार्य में निरंतर लगे रहें, हमारी यही कामना है|
संपादक
कहानी
किशन पंडित
स्वतंत्र कुमार सक्सेना
भारी अनर्थ हो गया पीढ़ियों की मान मर्यादा भंग हो गई। ऐसा कभी सोचा न था।चाहा न था पर हो गया। वे कुछ कह भी न सके।
श्री किशन पंडित जी जब बीस बरस के थे तभी उनके पिता जी ने उनका रिश्ता कर दिया।उन्होंने बहुत कहा कि अभी ठहर जाओ मेरा कोई नौकरी या दूकान जम जाने दो पर दादी बीमार थीं चला चली की बेला थी उनकी इच्छा थी कि नत बहू घर में देख कर जाएं।एक रिश्ता आया और श्री किशन जी दूल्हा बन कर चल दिए ।पिता जी बस इसी में संतुष्ट थे कि बस बहू आ जाए और कुछ नहीं । बहू के पिता झांसी में पुलिस में दीवान थे । उन्होनें गारंटी ले ली थी कि वे नौकरी लगवा देंगे।वे जनको मौसी के जीजा के भतीजे थे अतः श्री किशन के पिता जी बारात लेकर पंहुच गए ।
लड़की ठीक भांवर में जोर से हंस पड़ी तब कहा गया उसे तीन दिन से बुखार चढ़ा था अतः ऐसा हो गया ।शादी के बाद घर आने पर दादी को देख कर बोली.-‘ जा डुकरिया परी रहत कछू काम नइं करत ‘। वह कभी आंगन में नाचने लगती कभी अपने से ही अनर्गल बात करने लगती तब भेद खुला । झांसी व ग्वालियर में दिखाया डाक्टरों ने देखते ही निराशा व्यक्त कर दी । कि बचपन में कोई रोग हो जाने से हुआ पुराना है ।लड़की के पिता उसे ले गए पर धमका गए -‘घर की ईंट से ईंट बजा देंगे। दुश्मनी मंहगी पड़ेगी । काउ करम के न रह जाओगे।’उनकी पहले की होम गार्ड में नौकरी थी उसका भी वेतन में से आधी लडकी को देना पड.ती थी।हार कर श्री किशन ने नौकरी ही छोड दी।अफसर श्वसुर की तरफ से धमकाता था।साथी लोग मजाक उड़ाते।उनके व्यंग्य सहन नहीं होते ।कहते ‘-अरे शुक्र मनाओ तुम्हें कौन सी हेमा मालिनी मिलती कितना अच्छा घर है हेड साहब श्वसुर की ऊपर तक पंहुच है ।’ आखिर उन्होने नौकरी ही छोड़ दी । वे एक डॉक्टर साहब की क्लीनिक पर काम करने लगे।डॉक्टर साहब सरकारी डॉक्टर थे अतःसुबह शाम बैठते । किसी महत्त्व पूर्ण मरीज के क्लीनिक पर आने पर डॉक्टर साहब को बुलाना सूचित करना सफाई करना फिर धीरे -धीरे उन्होंने उन्हें इन्जेक्शन लगाना पट्टी करना आदि सिखा दिया अब मरीजों को पटाना रोकना उन्हें आ गया वे मरीजों को आश्वस्त करने लगे। डॉक्टर साहब की सिफारिश से वे अस्पताल में वार्ड बॉय बन गए सरकारी अस्पताल में काम करने के बाद डॉक्टर साहब की सेवा करते ।इसी समय समाचार मिला कि उनकी पत्नी अपने परिवार के साथ सफर में रेल से उतर कर न जाने कहां गायब हो गइ्र्र दो साल तक ढुंढाई हुई पर न मिली श्वसुर साहब स्वयं पुलिस में थे बाकायदा रिपोर्ट हुई विज्ञापन निकाले गए पर न मिलना थी न मिली श्री किशन के पिता जी ने भी उन विज्ञप्तियों और रिपोर्ट की प्रति बड़ी कोशिश से प्राप्त कीं ।फिर अदालत का द्वार खटखटाया मुक्ति पाई श्वसुर साहब ने ते फिर भी बड़ा अंड़गा लगाया पर सफल न हुए ।
उनके स्वयं व उनके पिता जी के सम्मिलित प्रयास से छोटे भाई की एक किराने की छोटी सी दूकान खुल गई। वे भाई के साथ रहते भाई के एक बेटा भी हो गया।वे सुंदर तो थे ही अब सज धज कर रहते मरीजों से मीठी मीठी बातें बनाते उन्हें डॉक्टर साहब की क्लीनिक में दिखाने के लिए पटाते साथ ले जाकर पहुंचाते बिठा देते । उन्हें भी वेतन के साथ कुछ अतिरिक्त आमदनी हो जाती ।डॉक्टर साहब के मरीजों की उनके घर जाकर इंजेक्शन लगाते जरूरत होने पर पट्टी बांधते अन्य सेवाएं प्रदान करते धीरे धीरे अन्य डॉक्टर साहबान के मरीजों को भी उनके आग्रह पर सेवाएं देने लगे वे मेहनत से काम करते विनम्र रहने का पूरा प्रयास करते
वे प्रसन्न थे संतुष्ट थे काम चल निकला था कि एक गड़बड़ हो गई इसी शासकीय अस्पताल में एक फत्तो बाई भी थी। वह दाई थी। काम में कुशल बातें बनाने में उससे भी ज्यादा माहिर दिन भर लेडी डॉक्टर के घर दिखाने को मरीज पटाती रहती नर्सों व मरीजों के बीच सौदे बाजी में कूद पड़ती मामला सुलझाती पूरे अस्पताल में दैड़ती रहती । वह श्री किशन को भी अधिकतर छेड़ा करती दोनों अधिकतर एक दूसरे पर चुहल कटाक्ष तू तू मैं मैं करते ही रहते पहले तो श्री किशन ढीले पड़े फिर पूरे जोश से मैदान में आ गए टक्कर बराबरी की हो गई अस्पताल का अन्य स्टाफ मजे लेता ।
कुछ समय बाद एक दिन की बात है फत्तो डॉक्टर साहब के चेम्बर में उनके सामने खड़ी थी -‘डॉक्टर साहब! मेरी जांच कर लें । मुझे आजकल सुबह सुबह उल्टी होतीं हैं दिन भर जी मिचलाता है काम में मन नहीं लगता थकान सी रहती है चक्कर आते हैं।डॉक्टर साहब ने जांच की अन्य लोगो को कमरे से बाहर कर दिया बेले -‘फत्तो! खुश खबरी है तेरे दिन चढ़े हैं। इसी से सब परेशानी है । मेडम लेडी डॉक्टर को और दिखा ले चाहे तो । शाम को मेरे क्लीनिक पर आ जाना मैं सेम्पल के जो टॉनिक वगैरह हैं दे दूंगा और दवा भी देखूंगा ।’फत्तो-‘ अरे डॉक्टर साहब ! ये क्या हो गया।दस पंदरह दिन से तबियत खराब थी सोचा साहब को दिखा लूंगी यहां अस्पताल में काम में उलझ जाती थी। मुझे पता ही नहीं चला । अब क्या होगा ।’डॉक्टर साहब -‘अब तो ज्यादा दिन हो गए पता कैसे नही पड़ा?’फत्तो-‘ डॉक्टर साहब ! मेरे मिस्टर तो हैं नहीं।शादी के तीसरे साल ही नहीं रहे। शादी के समय से ही बीमार रहे । वे पहले से ही टी़; बी; के मरीज थे घर वालों ने बताया नहीं ऊपर से गांजा भी पीते थे बहुत ईलाज कराया पर रहे नहीं । उनके जाने के बाद ससुराल वालों ने रखा नहीं निकाल दिया तभी तो नैाकरी करना पड़ी। अब क्या होगा?’डॉक्टर साहब कोई गोली लिख दो ये गिर जाए मेरी तो जिंदगी बरबाद हो जाएगी क्या करूं आप ही रास्ता निकालो।’
डॉक्टर साहब-‘ अब कुछ नहीं हो सकता बच्चा घूमने लगा है तेरी जान को खतरा हो जाएगा ।मेडम लेडी डॉक्टर साहिबा को दिखा ले ग्वालियर मेडिकल कॉलेज में दिखा ले शायद कुछ हो जाए ।’
फत्तो-‘ डॉक्टर साहब! मैं अकेली औरत जात कहां जाऊं सब मजाक उड़ाएंगे बहुत बदनामी होगी मेरी कौन मदद करेगा ।
डॉक्टर साहब-‘ फत्तो ऐसी निराश न हो तू अकेली नहीं है मैं तेरे साथ हूं कोई रास्ता निकालेंगे बता किसकी शरारत है मैं उसे ठीक कर दूंगा मुझे कुछ सेाचने दे ।’
और श्री किशन से बात की गई। उन्होने बहुत हाथ पैर फेंके पर स्टाफ के लोग फत्तो की तरफ थे।एक दिन वे लोग दो मालाएं लाए साथ में एक वकील साहब भी आमंत्रित थे सबके सामने श्री किशन व फत्तो ने एक दूसरे को मालाएं पहिनाई वकील साहब अपने साथ नोटरी का सारा सामान व कागजात लाए थे वहीं उनके अनुसार सब लिखा गया श्री किशन व फत्तो ने सबके सामने हस्ताक्षर किए गवाह बन कर सारे स्टाफ ने किए । फिर सब लोग श्री किशन व फत्तो को साथ लेकर एक जुलूस की शक्ल में उन देनो के साथ श्री किशन के घर तक उन्हें भेजने गए ।श्री किशन के भाई ने उस जुलूस का स्वागत करने से इनकार कर दिया । स्वयं डॉक्टर साहब ने सबके लिए कचौड़ी समोसे व इमरती मंगवाई । बहुत किचकिच हुई पिता जी बीच में पड़े घर का आनन फानन में बंटवारा हुआ श्री किशन को दो कमरे दिए गए ।श्री किशन पंडित जी थे पहले तो वे भाई के साथ शामिल रहते थे अब फत्तो के साथ थे दो कमरों में से एक कमरा रसोई के लिए नियुक्त किया गया पहले तो उसमे श्री किशने खाना बनाते फिर फत्तो बनाती। फिर वह अगले दिन के लिए चौका साफ करती बर्तन दोनों के अलग अलग थे । कुछ दिन बाद फत्तो के प्रसव हुआ एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया पर श्रीकिशन उसे पसंद नहीं करते न उसे खिलाते न ही ज्यादा लगाव रखते वह कन्या उन्हें दुश्मन सी लगती सारी आफत की पुड़िया।फत्तो काम बढ़ गया अब वह ज्यादा मेहनत करती ।
श्री किशन पंडित जी एक बार बीमार पड़े। भाई ने उन्हे देखने आने व सेवा से मना कर दिया। फत्तो ही सेवा करती वो तो अपना ही अस्पताल था। सारा ही स्टाफ उनकी देखभाल करता उन्हें उल्टी दस्त हो गए थे ।तीन दिन तक कुछ खा पी नहीं सके तीसरे दिन वे कुछ ठीक हुए । डॉक्टर साहब ने फत्तो को निर्देश दिया िक वह खिचड़ी बना कर लाए वह ले आई।श्री किशन ने बहुत ना नुकुर की बोले-‘ केला खा लूंगा, अन्न नहा कर लूंगा’। पर केला आखिर कब तक काम देता वेसे भी हालत ज्यादा ही खराब थी ज्यादा बोलते नहीं बन रहा था ।दूसरे दिन डॉक्टर साहब ने सबेरे राउंड के समय बेड साइड पर खड़े होकर फत्तो से पूंछा -‘ फत्तो! खिचड़ी लाई हो?’फत्ते -‘ जी हां डॉक्टर साहब! पर वे खाएंगे नहीं ।’डॅाक्टर साहब-‘ वाह कैसे नहीं खाएंगे अभी मेरे सामने खिलाओ।’
फत्तो ने एक चम्मच भर कर खिचड़ी उनके मुंह में डाल दी वे कमजोर तो थे डॉक्टर साहब का दबाव भी था वे मना न कर सके। खिचड़ी उनके मुंह में चली गई ।
और उस एक चम्मच खिचड़ी ने श्रीकिशन जी की वर्षों की तपस्या ष्;पवित्रता;संसकार ;धर्म सारा कुछ क्षण भर में धो कर रख दिया। वे न तो कुछ कह सके न कर ही सके।
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