अजीब दास्तां है ये.. - 4 Ashish Kumar Trivedi द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अजीब दास्तां है ये.. - 4

(4)

बात खत्म करके रेवती ने मुकुल को अपने साथ आने को कहा। वह उसे लेकर कैफ़े के बाहर चली गई। कैफ़े के बगल में एक छोटा सा गेट लगा था। उसे खोल कर रेवती अंदर चली गई। मुकुल को कुछ समझ नहीं आ रहा था। लेकिन चुपचाप उसके पीछे चल रहा था। एक पैसेज पार करके दोनों एक दरवाज़े के सामने आ गए। दरवाज़े पर लगी घंटी बजाने से पहले रेवती ने कहा,

"अंकल इस वक्त कैफ़े में नहीं हैं। यह उनका घर है।"

रेवती ने घंटी बजाई। एक बीस बाइस साल के लड़के ने दरवाज़ा खोला। रेवती को देखकर वह खुशी से तमिल में कुछ बोला। उसके बाद वह उन्हें अंदर ले गया। एक बड़ा सा आंगन था। उसके चारों तरफ कमरे बने थे। उन कमरों के आगे बरामदा था। वह लड़का उन्हें लेकर एक कमरे तक गया। उसने रेवती से फिर कुछ कहा। रेवती ने बताया कि अंकल अपनी छोटी लाईब्रेरी में हैं। उसने दरवाज़े पर नॉक करके कहा,

"अंकल...."

"रेवती....कम इन..."

रेवती और मुकुल अंदर चले गए। अंकल अपनी कुर्सी से उठकर खड़े हो गए। रेवती भागकर उनके गले लग गई। मुकुल ने अंकल के चेहरे को ध्यान से देखा। वह इस तरह से खुश हो रहे थे जैसे बहुत दिनों के बाद अपनी बेटी से मिल रहे हों। रेवती अंकल के साथ बात करने लगी। मुकुल कमरे को देखने लगा। कमरे की तीनों दीवारों पर लड़की की अलमारी थी। कांँच के पीछे करीने से सजी किताबें दिखाई पड़ रही थीं। मुकुल बड़े ध्यान से कमरे का मुआयना कर रहा था। रेवती ने उसका ध्यान खींचते हुए कहा,

"मुकुल...अंकल..."

मुकुल ने हाथ जोड़कर अंकल को नमस्कार किया। अंकल ने कहा,

"मुकुल तुम रेवती के फ्रेंड और नेबर हो। थैंक्यू कि तुम इसे यहाँ लाए। बहुत दिन हो गए थे इससे मिले।"

अंकल दक्षिण भारतीय लहज़े में हिंदी बोल रहे थे। मुकुल ने कहा,

"वेलकम सर...पर रेवती मुझे यहाँ लेकर आई है। आई एम ग्लैड टू मीट यू।"

"सेम हियर...बट कॉल मी अंकल..."

 

मुकुल मुस्कुरा दिया। अंकल ने पूँछा,

"क्या करते हो तुम ?"

"इवेंट प्लानिंग फर्म है मेरी। मेरा एक दोस्त पार्टनर है उसमें।"

"गुड..."

मुकुल ने कमरे में नज़र दौड़ाकर कहा,

"आपके पास तो किताबों का अच्छा खासा कलेक्शन है।"

अंकल ने हंसकर कहा,

"दो प्रोफेसर्स का घर है यह। मैं और मेरी पत्नी सुधा जयदेव कॉलेज में प्रोफेसर्स थे। तीन साल पहले सुधा की मृत्यु हो गई।"

अपनी पत्नी की मृत्यु के बारे में बताते हुए अंकल भावुक हो गए। लेकिन खुद को संभाल कर बोले,

"बाईं तरफ की दीवार सुधा की है। सारी हिस्ट्री की किताबें हैं। दाईं तरफ का हिस्सा मेरा है। तमिल और अंग्रेजी साहित्य।"

"सामने वाली दीवार ?"

"वो हम दोनों का कॉमन इंटरेस्ट है। कुछ हिंदू धार्मिक ग्रंथ हैं। संस्कृत, तमिल और अंग्रेजी के।"

रेवती ने कहा,

"मुकुल अंकल को हिंदू धर्म ग्रंथों की बहुत जानकारी है। अपने ब्लॉग में उनके बारे में लिखते रहते हैं। अंकल का ब्लॉग बहुत से लोग फॉलो करते हैं।"

मुकुल ने अंकल की तरफ देखकर कहा,

"आप ब्लॉग भी लिखते हैं।"

अंकल हंसकर बोले,

"जीवन भर पढ़ने लिखने का ही काम किया है। आदत कहाँ छूटेगी।"

"रेवती ने कहा था कि आपका वाइलन सुनने को मिलेगा।"

अंकल फिर हंसे। वह बोले,

"इसने कहा होगा कि वाइलन के साथ साउथ इंडियन स्टाइल में काफी पीने को मिलेगी।"

इस बार मुकुल और रेवती दोनों हंस पड़े। अंकल ने कहा,

"वाइलन बाद में पहले कॉफी पिलाता हूँ। तुम लोग बैठो। मैं खुद बनाकर लाता हूंँ।"

मुकुल ने कहा,

"अंकल आप परेशान ना हों।"

"कोई परेशानी नहीं होगी।"

रेवती ने उसे इशारा करते हुए कहा,

"अंकल को अच्छा लगता है।"

फिर उसने अंकल से पूँछा,

"अंकल तब तक मैं मुकुल को टैरेस पर ले जाऊँ ?"

"तुम्हारा घर है। जहाँ चाहो ले जाओ।"

कहकर अंकल चले गए। रेवती मुकुल को लेकर छत पर चली गई। सूरज डूब रहा था। पश्चिम में आसमान लाल था। छत से बहुत सुंदर दृश्य दिख रहा था। मुकुल को अच्छा लग रहा था। रेवती ने कहा,

"जब मैं यहाँ रहती थी तो जब मन करता था छत पर आ जाती थी।"

"तुम पहले यहाँ रह चुकी हो ?"

"अंकल और मेरे पापा मदुरई में एक ही स्कूल में पढ़े थे। पाँच साल पहले जब मैं इस शहर में आई थी तो करीब दस महीने अंकल आंटी के साथ रही थी।"

रेवती ने डूबते सूरज की तरफ देखकर कहा,

"मैं जब यहाँ आई थी तो लाइफ के बहुत बुरे दौर से गुजर रही थी। पर अंकल आंटी ने मुझे उस दौर से बाहर आने में बहुत मदद की। आई थिंक दैट वाज़ अ गुड फेज़ ऑफ माई लाइफ।"

रेवती बात कर रही थी तो मुकुल को एहसास हो रहा था कि वह किसी बड़े दर्द से गुज़री है। पर वह उसे कुरेदना नहीं चाहता था। वह चुपचाप उसकी बात सुनता रहा। रेवती ने कहा,

"यहाँ से जाने के बाद भी जब मुझे फुर्सत मिलती थी मैं अंकल आंटी से मिलने आ जाती थी। कई बार तो मैंने वीकेंड इन दोनों के साथ ही बताया था। आंटी भी बहुत अच्छा गाती थीं। अंकल वाइलन बजाते थे। आंटी गाना गाती थीं। कभी कभी मैं भी गाती थी। हमारे बीच बहुत सी बातें होती थीं। आंटी बहुत अच्छी कुक थीं।"

"तो ये मद्रास कॉफी हाउस काफी पुराना है।"

"मेरे जाने के बाद अंकल आंटी ने अपने घर के अगले हिस्से को कैफ़े में बदल दिया। पैसों के लिए नहीं। कैफ़े में लोगों का आना जाना रहता था। इससे उनका मन लगा रहता था। उन लोगों ने यहाँ तमिल कल्चर को भी ज़िंदा रखा है।"

"देखा था मैंने। वो रिसेप्शन पर जो था उसे तुम जानती हो ?"

"अनंत महादेवन... अंकल का भतीजा है। आंटी के जाने के बाद यहीं आ गया।"

हल्की हल्की हवा चल रही थी जो बहुत अच्छी लग रही थी। रेवती ने मुकुल से पूँछा,

"तुम यहीं के हो ?"

"मेरा जन्म और परवरिश लखनऊ में हुई थी। पर ट्वेल्थ के बाद से ही लखनऊ से बाहर रहा। यहाँ पिछले छह साल से हूँ।"

"तुम्हारे पेरेंट्स ?"

"मम्मी तो ग्रैजुएशन के समय ही नहीं रही थीं। पापा भी दो साल पहले चले गए। एक बड़ी बहन हैं वो जर्मनी में हैं।"

रेवती ने कहा,

"मेरे पापा मम्मी भी अब नहीं हैं। कोई भाई बहन था ही नहीं।"

जिस लड़के ने दरवाज़ा खोला था वह छत पर आया। उसने फिर रेवती से तमिल में कुछ कहा। रेवती ने मुकुल को बताया,

"अंकल नीचे कॉफ़ी के साथ वेट कर रहे हैं।"

रेवती और मुकुल नीचे आए। आंगन में अंकल ने पूरी तैयारी कर रखी थी। टेबल और तीन कुर्सियां लगी हुई थीं। उन लोगों को देखते ही अंकल ने कहा,

"आओ गर्म गर्म कॉफी और स्पाइसी फ्राइड इडली तुम लोगों का वेट कर रहे हैं।"

मुकुल और रेवती बैठ गए। उन लोगों के सामने स्टील के छोटे गिलासों में कॉफी रखी थी। तीनों के सामने केले के पत्ते के टुकड़े थे। बीच में एक बाउल में फ्राइड इडली रखी थीं। अंकल ने कहा,

"मुकुल हैव सम फ्राइड इडली।"

मुकुल ने बाउल से थोड़ी फ्राइड इडली केले के पत्ते में परोस ली। उसने बाउल रेवती की तरफ बढ़ा दिया। उसने कुछ इडली अपने लिए परोसी और कुछ अंकल के सामने वाले पत्ते में पर परोस दी। अंकल ने कहा,

"हम खाते समय स्पून का इस्तेमाल नहीं करते हैं। पर तुम दोनों के लिए रखा है। खाकर बताओ कैसा लगा।"

मुकुल ने थोड़ी सी इडली खाई। उसे पसंद आई। उसके बाद उसने एक घूंट कॉफी पी। वह बोला,

"अंकल ऐसी कॉफी तो मैंने पहले कभी नहीं पी। बहुत अच्छी है।"

रेवती ने भी उसकी बात का समर्थन किया। अंकल ने कहा,

"मुकुल... तुम्हारी फैमिली में कौन-कौन है ?"

"मैं और मेरा आठ साल का बेटा अनय।"

"और तुम्हारी पत्नी ?"

मुकुल ने धीरे से कहा,

"नहीं है...."

अंकल समझ गए कि वह अपनी पत्नी के बारे में अधिक बात नहीं करना चाहता है। रेवती ने भी स्थिति को समझते हुए कहा,

"अंकल अनय इज़ वेरी स्वीट ब्वॉय एंड इंटेलीजेंट टू।"

अपनी कॉफ़ी का सिप लेकर रेवती ने कहा,

"मुकुल के रिश्ते की एक बहन हमारे ही फ्लोर पर रहती हैं। हम उन्हें नीली दी कहते हैं। बहुत अच्छी हैं। हमारा बहुत खयाल रखती हैं। अनय अभी उनके ही पास है। वी ऑल आर लाइक अ बिग फैमिली।"

"गुड... अब जब आना तो सबको साथ लेकर आना।"

मुकुल ने कहा,

"श्योर अंकल... सब आपसे मिलकर बहुत खुश होंगे।"

 

नाश्ते के बाद अंकल ने अपना वाइलन मंगवाया। उन्होंने रेवती से कहा कि वह कोई हिंदी गाना गाए जिससे मुकुल भी इंज्वॉय कर सके। अंकल ने वाइलन बजाया। रेवती ने एक प्यार का नगमा है गाना गाया।

मुकुल बहुत ध्यान से उसका गाना सुन रहा था। जब गाना खत्म हुआ तो उसने ताली बजाकर कहा,

"रेवती तुम बहुत अच्छा गाती हो। मैंने तुमसे कहा था ना अगर तुम चाहती तो प्लेबैक सिंगर बन सकती थी।"

"मैंने भी तो कहा था कि संगीत मुझे सुख देता है। पर डिजाइनिंग मेरा पैशन है।"

"ठीक है... पर अब हमें चलना चाहिए। देर हो रही है।"

अंकल से विदा लेकर रेवती और मुकुल वहाँ से चले गए। रास्ते में रेवती ने एक बेकरी शॉप में गाड़ी रोकने को कहा। मुकुल ने गाड़ी रोक दी। ‌ रेवती ने कहा,

"यहांँ की पेस्ट्रीज बहुत अच्छी हैं। आजी, दी और बच्चों के लिए लेकर चलते हैं।"

मुकुल को उसका आईडिया बहुत अच्छा लगा।

 

घर लौटकर मुकुल थका हुआ था। एक बात उसे परेशान कर रही थी। पहली बार वह बिना अनय को लिए कहीं घूमने गया था। अनय अगले दिन के लिए अपना स्कूल बैग लगा रहा था। मुकुल ने उसे अपने पास बुलाया। उसे अपनी गोद में बैठाकर बोला,

"बेटा एक बात बताओ। मैं तुम्हें छोड़कर आंटी के साथ घूमने गया था। तुम्हें बुरा तो नहीं लगा।"

"नहीं पापा.... बुरा क्यों लगेगा ? मैं भी तो कभी कभी आपको छोड़कर बुआ के साथ जाता हूँ। वैसे भी ये फिल्म मुझे नहीं देखनी थी।"

मुकुल ने उसे सीने से लगाकर कहा,

"बहुत अच्छे बच्चे हो तुम। भूख तो नहीं लगी है ?"

"बिल्कुल नहीं। आज तो बहुत खाया। बुआ के साथ बहुत मज़ा आया।"

मुकुल ने उसके सर पर हाथ फेरकर कहा,

"अब जाकर सो जाओ। सुबह स्कूल जाना है ना।"

अनय सोने चला गया। मुकुल को कुछ काम करना था। लेकिन उसका मन नहीं कर रहा था। घर लौटने के बाद ना जाने क्यों उसका मन उदास हो गया था। उसका मन एक उलझन में था। ना जाने क्यों रेवती के लिए अपने आकर्षण के कारण उसे अपराधबोध होने लगा था। एक सवाल उसके मन में उथल-पुथल मचा रहा था। उसे डर लग रहा था कि रेवती से उसकी नज़दीकी कहीं अनय को उससे दूर तो नहीं कर देगी ? क्या अनय यह सह पाएगा कि रेवती उसके जीवन में आए ?

वह अनय को बहुत चाहता था। किसी भी कीमत पर उसे अपनी ज़िंदगी से अलग नहीं कर सकता था। लेकिन एक बात और थी। रेवती उसकी सूनी ज़िंदगी में एक रौशनी की किरण बनकर आई थी। उसे अपने जीवन से दूर करने का मतलब था खुद को फिर से उस सूनेपन में ढकेल देना जिससे वह बड़ी मुश्किल से निकल पाया था।

वह बहुत दुविधा में था। वह यह नहीं चाहता था कि अनय को यह लगे कि पापा को अब उससे प्यार नहीं है। दूसरी ओर वह रेवती को भी नहीं खोना चाहता था।

उसके मन में एक टीस उठी। उसने भगवान से कहा कि क्या कभी भी उसे मुकम्मल खुशी नहीं मिल सकती। हमेशा जब भी वह खुश होता है तो उसके साथ कोई ना कोई दुख क्यों जुड़ जाता है ?

वह उठकर कमरे में टहलने लगा। अपनी बीती हुई ज़िंदगी के पल उसके ज़ेहन में उभरने लगे। उसे वह पल याद आ रहा था जब नन्हे से अनय को उसकी गोद में रोता छोड़कर नेहा सारे रिश्ते तोड़कर चली गई थी। उसके बाद कभी उसने उन लोगों की सुध भी नहीं ली। वह उससे नाराज़ थी। पर उसने तो अनय को भी खुद से दूर कर दिया था। यह जानने का प्रयास भी नहीं किया कि अनय कैसा है ? उसके बिना कैसे रह रहा है ?

उस दिन से उसने अनय को उसके पापा और मम्मी दोनों बनकर पाला था।